आइए सब मिलकर पैग़म्बर को याद करें (1) +वीडियो, फ़ोटो
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सुन्नी मुसलमानों के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ था जबकि शियों का मानना है कि उन्होंने 17 रबीउल अव्वल को इस संसार में आंखें खोली थीं। बरसों पहले इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने, जो एकता का निमंत्रण देने वालों में से एक थे, इन दोनों तारीख़ों के बीच के समय को एकता सप्ताह का नाम दिया था।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Nov ०७, २०१९ १६:०० Asia/Kolkata
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सुन्नी मुसलमानों के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ था जबकि शियों का मानना है कि उन्होंने 17 रबीउल अव्वल को इस संसार में आंखें खोली थीं। बरसों पहले इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने, जो एकता का निमंत्रण देने वालों में से एक थे, इन दोनों तारीख़ों के बीच के समय को एकता सप्ताह का नाम दिया था।

यह नामकरण, हर मत के मुसलमानों के बीच एकता के महत्व के कारण था। कहा जा सकता है कि संसार में मुसलमानों की जो स्थिति है और संसार के विभिन्न क्षेत्रों में इस्लाम, इस्लामी देशों और मुसलमानों पर विभिन्न रूपों में जो हमले हो रहे हैं उसके दृष्टिगत, इस्लाम व मुसलमानों के ख़िलाफ़ षड्यंत्रों को विफल बनाने के लिए मुस्लिम एकता से अधिक प्रभावी कोई रास्ता नहीं है।

 

क़ुरआने मजीद में कई आयतें हैं जिनमें एकता के विषय की ओर संकेत किया गया है। क़ुरआन के दृष्टिकोण में एकता का आधार एकेश्वरवाद और अगले चरण में इस्लाम है। क़ुरआने मजीद सूरए आले इमरान में पैग़म्बरे इस्लाम से कहता है कि वे आसमानी किताब वालों को एकेश्वरवाद का निमंत्रण दें। आयत कहती हैः हे पैग़म्बर! आसमानी किताब वालों से कह दीजिए कि आओ हम एक ऐसे बिंदु पर एकजुट हो जाएं जो हमारे और तुम्हारे बीच साझा है और वह यह कि हम ईश्वर के अतिरिक्त किसी की उपासना न करें और किसी को उसका समकक्ष न बनाएं। इसी तरह सूरए आले इमरान की आयत क्रमांक 103 में मुसलमानों को एकता का निमंत्रण देते हुए कहा गया है। हे ईमान वालो! ईश्वर की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और तितर-बितर न हो।

पैग़म्बरों की सबसे अहम विशेषताओं में से एक, अमानतदारी है क्योंकि उन्हें ईश्वरीय धर्म को प्राप्त करने और उसे लोगों तक पहुंचाने और इसी तरह ईश्वरीय रहस्यों की रक्षा में अमानतदार होना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की अमानतदारी उनके युवाकाल से ही लोगों में मशहूर थी। उनकी इसी विशेषता ने इस्लाम स्वीकार करने के लिए लोगों को आकृष्ट करने में अहम भूमिका निभाई थी। पैग़म्बरे इस्लाम की सच्चाई और उनकी अमानतादारी इस बात का भी कारण बनती है कि हम उन्हें अपनी जीवन शैली का आदर्श बनाने में थोड़ा सा भी न हिचकिचाएं और वे अनन्य ईश्वर की ओर से हमारे लिए जो शिक्षाएं लेकर आए हैं, उनके सामने हम सिर झुका दें। 

 

चूंकि मनुष्य, ईश्वर की रचना है इस लिए निश्चित रूप से उसकी परिपूर्णता व कल्याण का सबसे अच्छा कार्यक्रम वही हो सकता है जो ईश्वर ने तैयार किया हो। ईश्वर, क़ुरआने मजीद के सूरए अहज़ाब की 21वीं आयत में, ईश्वर और प्रलय पर ईमान व आशा रखने वालों के लिए पैग़म्बर को सबसे अच्छा आदर्श बताते हुए कहता है। निश्चित रूप से तुम्हारे लिए ईश्वर के पैग़म्बर (के चरित्र) में एक उत्तम आदर्श है उस व्यक्ति के लिए जो ईश्वर और (प्रलय के) अंतिम दिन की आशा रखता हो और ईश्वर को बहुत अधिक याद करता हो।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने समय को तीन भागों में बांटा करते थे। एक भाग ईश्वर के लिए जिसमें वे नमाज़, रोज़ा और उपासना किया करते थे। दूसरा भाग परिवार के सदस्यों, उनसे बात-चीत और उनकी भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए होता था जबकि तीसरा भाग स्वयं अपने लिए और लोगों तथा उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए।

परिवार की इमारत प्रेम की नींव पर आधारित होती है जैसा कि ईश्वर ने सूरए रूम की आयत नंबर 21 में एक दूसरे के साथ महिला व पुरुष की उपस्थिति को उनके लिए शांति का कारण बताया है। और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही जाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उनके पास शान्ति प्राप्त कर सको। और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की और निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ है जो सोच-विचार करते हैं। परिवार में प्रेम व दोस्ती से बहुत सी कमियों की भरपाई हो जाती है, दिल एक दूसरे के क़रीब आते हैं, आशा व संतोष पैदा होता है और जीवन की रगों में प्रफुल्लता दौड़ने लगती है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि इंसान का ईमान जितना मज़बूत होगा, उतना ही वह अपने जीवन साथी से प्रेम करेगा।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, पुरुषों से कहते थे कि वे अपनी पत्नियों के साथ स्नेह व न्याय का बर्ताव करें। वे कहते थेः जिसने भी शादी की है वह अपनी पत्नी का सम्मान करे। अगर पति अपनी पत्नी से यह कहे कि मैं तुमसे प्यार करता हूं तो यह बात उसकी पत्नी के दिल से कभी नहीं निकलेगी। अपनी पत्नी हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा से उनके प्रेम की बात, इतिहास की किताबों में वर्णित है। इस वास्तविकता को उनके चाचा हज़रत अबू तालिब ने उनके निकाह के ख़ुतबे में इस तरह बयान किया था। मुहम्मद को ख़दीजा से प्रेम है और ख़दीजा को मुहम्मद से। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, हज़रत ख़दीजा के गुणों को समझ चुके थे और उन्हें अपने जीवन साथी के रूप में उचित समझते थे। वे सदैव उनका सम्मान करते थे और उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार करते थे। वे किसी भी महिला को ख़दीजा के समान नहीं समझते थे और उनके त्याग, बलिदान व कष्टों की क़द्र करते थे क्योंकि उन्होंने अपनी अपार धन-दौलत को बिना किसी लालच के और गर्व के साथ पैग़म्बर के हवाले कर दिया था। वे इस्लाम और पैग़म्बर के उच्च लक्ष्यों के प्रसार के लिए किसी भी प्रकार की मदद में कोई संकोच नहीं करती थीं।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, घर में मर्दों के काम को भलाई और दान बताया करते थे। उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा था कि हे अली! जीवन साथी की सेवा, बड़े बड़े पापों का प्रायश्चित है और ईश्वर के कोप को ठंडा कर देती है। इसी तरह वे कहते थे कि ईश्वर की दृष्टि में परिवार के साथ बैठना, मदीने की मस्जिदुन्नबी में एतेकाफ़ करने और ईश्वर की उपासना करने से अधिक प्रिय है। पैग़म्बरे इस्लाम, परिवार के साथ खाना खाने पर बहुत ध्यान देते थे और कहते थे कि जो मर्द दस्तरख़ान बिछाए, अपने बाल बच्चों को खाने के लिए बुलाए, बिस्मिल्लाह करके शुरू करे और अंत में ईश्वर का आभार प्रकट करे, जब तक वह दस्तरख़ान बिछा रहता है उन पर ईश्वर की दया व कृपा की बारिश होती रहती है और उनके पापों को क्षमा किया जाता है।

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से यह निवेदन किया कि वे उनके प्रतिदिन के कामों का बंटवारा कर दें तो उन्होंने फ़रमायाः घर के अंदर के काम फ़ातेमा के ज़िम्मे और घर से बाहर के काम अली के ज़िम्मे। यद्यपि घर के अंदर के काम महिलाओं के ज़िम्मे और बाहर के काम पुरुषों के ज़िम्मे हैं लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि मर्द को कभी भी घर के कामो में हाथ नहीं बंटाना चाहिए और हमेशा यही आशा रखनी चाहिए कि उसकी पत्नी उसके लिए हर चीज़ तैयार कर देगी, बल्कि औरत को भी सहयोग व समरसता की ज़रूरत होती है और उसके पति को हंसी ख़ुशी उसकी मदद करनी चाहिए।

 

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कोशिश करते थे कि बच्चों के साथ खेल कर और तोहफ़े देकर उन्हें ख़ुश करें। वे इस बारे में कहते थे कि अगर कोई अपनी छोटी सी बच्ची को ख़ुश करेगा वह ऐसा ही है जैसे उसने हज़रत इस्माईल की संतान में से किसी दास को स्वतंत्र किया है। और जो अपने छोटे बच्चे को ख़ुश करेगा वह ऐसे ही है मानो उसने ईश्वर के भय में आंसू बहाए हैं। वे कहते थे कि बच्चों के धार्मिक प्रशिक्षण के संबंध में मां-बाप की ज़िम्मेदारी, जीवन साथी के चयन के समय से ही शुरू हो जाती है और अच्छी संतान के लिए पहले अच्छा जीवन साथी चुनना चाहिए। बच्चों के प्रशिक्षण की ज़िम्मेदारी इतनी अहम है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते थेः अगर तुममें से हर एक अपने बच्चे का प्रशिक्षण करे तो यह काम हर दिन कमाए गए पैसों में से आधे, ईश्वर की राह में दान देने से बेहतर है। वे कहते थे कि अपने बच्चों के लिए अच्छे नाम का चयन करो और उनका सही प्रशिक्षण करके अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम धरोहर छोड़ कर जाओ।