मोमिन आपस में भाई- भाई हैं तो अपने दो भाइयों के मध्य सुलह करा दो!+ फ़ोटो, वीडियो
(last modified Tue, 12 Nov 2019 11:41:22 GMT )
Nov १२, २०१९ १७:११ Asia/Kolkata
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इस्लामी देशों के पास अपार संसाधन हैं। विश्व के कुल उर्जा स्रोतों का 70 प्रतिशत भाग मुसलमानों के पास है। इसी प्रकार दुनिया के लगभग 65 प्रतिशत प्राकृतिक स्रोत मुसलमानों के पास हैं।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरये हुजुरात में कहता है कि मोमिन आपस में भाई- भाई हैं तो अपने दो भाइयों के मध्य सुलह करा दो और ईश्वर से डरो ताकि उसकी दया के पात्र बनो"

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का मानना था कि मुसलमानों के मध्य एकता इस्लामी जगत के विकास का कारण है।  स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का मानना था कि मुसलमानों के विभिन्न संप्रदायों के मध्य एकता से मुसलमानों के मज़बूत होने और इस्लामी जगत से जुड़ी समस्याओं के समाधान का रास्ता  निकल सकता है।

इमाम ख़ुमैनी

11 फरवरी वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति के सफ़ल हो जाने के बाद दुश्मनों की गतिविधियां और तेज़ हो गईं और उन्होंने ईरानी राष्ट्र के मध्य फूट डालने और उसे कमज़ोर करने के लिए विभिन्न प्रकार का षडयंत्र रचना आरंभ कर दिया। दुश्मनों और षडयंत्रकारियों ने जातीय और धार्मिक मतभेदों को फैलाकर इस्लामी क्रांति को उसके मूल मार्ग से हटाने का बहुत कुप्रयास किया। शीया मुसलमानों का मानना है कि 17 रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म हुआ था जबकि सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि 12 रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म हुआ था। 12 से 17 रबीउल अव्वल के समय को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने एकता सप्ताह का नाम दिया। उनका यह क़दम मुसलमानों के मध्य फूट डालने के शत्रुओं के षडयंत्रों के मार्ग की बहुत बड़ी रुकावट बन गया। 28 नवंबर वर्ष 1981 को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की ओर से एकता सप्ताह की घोषणा की गयी थी।

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इमाम ख़ुमैनी का कहना था कि ईश्वर की कृपा से ईरान में दोनों संप्रदायों के मध्य कोई मतभेद नहीं है और सब आपस में भाईचारे के साथ घुल मिलकर रहते हैं। इस्लामी देश में रहने वाले अहले सुन्नत भाइयों को जान लेना चाहिये कि बड़ी शैतानी शक्तियों से संबंधित एजेन्ट इस्लाम और मुसलमानों का भला नहीं चाहते हैं और उनसे मुसलमानों का दूर रहना ज़रूरी है और फूट डालने वाले उनके कुप्रचारों पर ध्यान नहीं देना चाहिये। मैं पूरी दुनिया के मुसलमानों की ओर बंधुत्व का हाथ बढ़ाता हूं।“

यहां इस बात का जानना रोचक होगा कि शीया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य बहुत अधिक धार्मिक समानताएं मौजूद हैं। दोनों का ईश्वर एक, पैग़म्बर एक, कुरआन एक, क़िबला एक और इसी तरह प्रलय जैसी बहुत सी धार्मिक बातों के संबंध में दोनों की आस्थायें समान हैं। यहां तक कि अधिकांश सुन्नी मुसलमान हज़रत अली अलैहिस्सलाम को मानते और उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं यानी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की महानता के बारे में शीया- सुन्नी मुसलमानों की आस्था समान है। यही नहीं अहले सुन्नत की महान हस्तियों और प्रसिद्ध शायरों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को विशेष श्रद्धा व सम्मान के साथ याद किया है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का रौज़ा

 

खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज सऊदी अरब जैसे कुछ इस्लामी देशों के इस्लामी जगत के सबसे बड़े व घोर शत्रु अमेरिका और इस्राईल से बहुत अच्छे संबंध हैं जबकि सऊदी अरब स्वयं को मक्का और मदीना का सेवक भी कहता है। दूसरे शब्दों में सऊदी अरब क्षेत्र में अमेरिका और इस्राईली नीतियों का संचालक बन गया है जबकि अगर मुसलमान एकजुट होते तो उनकी सहकारिता, सहयोग व समरसता से इस्लामी जगत के सबसे महत्वपूर्ण फिलिस्तीन मुद्दे का बहुत आराम से समाधान किया जा सकता था। 

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इस्लामी देशों के पास अपार संसाधन हैं। विश्व के कुल उर्जा स्रोतों का 70 प्रतिशत भाग मुसलमानों के पास है। इसी प्रकार दुनिया के लगभग 65 प्रतिशत प्राकृतिक स्रोत मुसलमानों के पास हैं। इस समय मध्यपूर्व दुनिया के महत्वपूर्ण एवं स्ट्रैटेजिक क्षेत्रों में से है और वर्चस्ववादी शक्तियां सदैव इस क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने  की कोशिश में रहती हैं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई भी स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की भांति एकता को इस्लामी जगत की सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरत समझते हैं और इस्लामी संप्रदायों को संबोधित करते हुए कहते हैं दुश्मन हम सबको एक दूसरे की नज़र में बुरा दिखाते हैं, हम सबको एक दूसरे की दृष्टि में अनुचित दिखाते हैं यह दुश्मनों का काम है।