सुरक्षा परिषद में अमरीका की किरकिरी के अहम कारण
ईरान के ख़िलाफ़ अपनी कोशिशों के नाकाम रहने के बारे में अमरीका को कुछ हफ़्ते पहले ही पता चल गया था इसी लिए उसने अपने प्रस्ताव के मसौदे को कुछ संतुलित करने के अलावा ईरान पर अधिकतम दबाव की नीति के ज़िम्मेदार ब्रायन हुक को भी पदमुक्त कर दिया था।
ईरान पर हथियारों के आयात-निर्यात के संबंध में लगे हुए प्रतिबंध की समय सीमा को बढ़ाने के लिए अमरीका के कई महीनों के प्रयासों का नतीजा यह निकला कि उसे डोमिनिकन गणराज्य का सकारात्मक वोट हासिल हुआ और सुरक्षा परिषद के बाक़ी बचे 13 सदस्यों में से रूस व चीन ने तो उसके प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट दिया जबकि फ़्रान्स, ब्रिटेन व जर्मनी जैसे तीन यूरोपीय देशों समेत 11 देशों ने वोटिंग में भाग नहीं लिया और तटस्थ रहे। इस तरह डोनल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में वाइट हाउस के दक्षिण पंथियों के हिस्से में एक बड़ी सियासी रुसवाई और शर्मनाक हार आई।
अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के कम से कम 9 सदस्यों का समर्थन हासिल करने के लिए अपने प्रस्ताव के मसौदे को कई पृष्ठों से कम करके सिर्फ़ कुछ पैराग्राफ़ों तक सीमित कर दिया था लेकिन फिर भी उसे कोई सफलता हासिल नहीं हुई बल्कि शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा। वाॅशिंग्टन को कई हफ़्ते पहले ही से इस बात का अनुमान हो गया था कि उसकी कोशिशों का कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है और इसी लिए उसने अपने प्रस्तावित मसौदे को संतुलित करने के अलावा ईरान के मामलों में अपने विशेष प्रतिनिधि ब्रायन हुक को भी उनके पद से हटा दिया था, यहां तक कि इस प्रस्ताव के मसौदे पर वोटिंग से एक दिन पहले उसने इस्राईल व संयुक्त अरब इमारात के बीच कूटनैतिक संबंधों की स्थापना को भी सार्वजनिक कर दिया ताकि ज़ायोनियों का समर्थन भी हासिल कर सके और साथ ही अपनी आने वाली हार पर भी पर्दा डाल सके लेकिन उसकी पूरी कोशिश यह थी कि अगर यह प्रस्ताव निरस्त किया जाए तो रूस और चीन के वीटो से निरस्त हो ताकि अगले चरण में वह ट्रिगर मैकेनिज़म का सहारा ले सके लेकिन अब इस मैकेनिज़म का सहारा लेना भी उसके लिए संभव नहीं रहा है। दूसरे शब्दों में अमरीका को दोनों चरणों में करारी हार का स्वाद चखना पड़ा है।
अमरीका की इस शर्मनाक हार में कई बातें बहुत प्रभावी रही हैंः
- इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अमरीका के उल्लंघनों और भड़काऊ कार्यवाहियों पर रणनैतिक संयम की नीति अपना कर परमाणु समझौते के अंतर्गत अपनी हर ज़िम्मेदारी को पूरी तरह निभाया और परमाणु ऊर्जा की अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के निदेशक मंडल ने अपनी कई रिपोर्टों में इस बात की पुष्टि की कि ईरान ने परमाणु समझौते का पूरी तरह से पालन किया है। इस तरह सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों के लिए ईरान की सच्चाई पूरी तरह से स्पष्ट हो गई।
- अमरीका की कार्यवाहियां शुरू से ही परमाणु समझौते के भी और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव नंबर 2231 के ख़िलाफ़ रही हैं जिसके अनुसार अगले दो महीने में ईरान पर हथियारों के आयात-निर्यात के संबंध में लगे हुए प्रतिबंध समाप्त हो जाएंगे।
- अब दुनिया के सभी देश यहां तक कि अमरीका के यूरोपीय घटक भी वाॅशिंग्टन की एकपक्षीय नीतियों के विध्वंसक व घातक परिणामों को समझ चुके हैं, ऊब चुके हैं और वे नहीं चाहते कि इन नीतियों में अमरीका का साथ दें।
इन सब बातों के मद्देनज़र कहा जा सकता है कि विश्व समुदाय ने सुरक्षा परिषद में अमरीका को शर्मनाक हार से दोचार करके ट्रम्प के नेतृत्व वाले अमरीका के दक्षिणपंथी टोले की पराजय का स्वागत किया है। इस लिहाज़ से अमरीका की यह हार, उसकी अगली पराजयों की भूमिका है और वाइट हाउस में बैठे दक्षिणपंथियों के साथ ही ज़ायोनियों, सऊदियों और इमारातियों को उनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए। (H)