क़लम से संघर्ष करने वाला पैग़म्बरे इस्लाम का नवासा
दोस्तो हज़रत इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम के साथ आपकी सेवा में उपस्थित हैं। ..... और ...का सलाम स्वीकार करें।
रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़ को लोग हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम का अनुसरण करते हुए अपने रोज़े व उपासनाओं की शोभा वंचितों और अनाथों की सहायता करके बढ़ाते हैं और इस्लाम की इस महान हस्ती के जन्म दिन को बड़े ही उत्साह व हर्षोल्लास से मनाते हैं। हम अपने दोस्तो की सेवा में हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में बधाई पेश करते हैं और उनकी ज़िदगी के कुछ आयाम पर रोशनी डालने का प्रयास करते हैं।
पवित्र रमज़ान की पंद्रहवीं तारीख़, सन तीन हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के बाग़ में एक सुन्दर फूल खिला। यह पैग़म्बरे इस्लाम का पहला नवासा था जिसके आने से पूरी दुनिया प्रकाशमान हो गयी और लोग पैग़म्बरे इस्लाम के घर उनको नवासे की बधाई देने के लिए दौड़ पड़े।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जन्म के बाद हज़रत फ़ातेमा ने हज़रत अली से कहा कि नवजात का नाम रख दें। हज़रत अली कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के रहते हुए मैं अपने पुत्र का नाम नहीं रख सकता। उसके बाद वह अपने पुत्र को कपड़े में लपेट कर पैग़म्बरे इस्लाम के पास ले गये। पैग़म्बरे इस्लाम ने बड़े ही प्रेम से नवजात को अपनी गोद में लिया और उसके दाहिने कान में अज़ान दी और बायें कान में अक़ामत कही और उसके बाद कहा कि ईश्वर की ओर से जिब्राइल आये थे और सलाम व पुत्र के जन्म की बधाई देने के बाद कहा कि अली का स्थान आप के निकट वैसा ही है जैसा कि मूसा के निकट उनके भाई हारून का था, इसीलिए अली के बेटे का नाम हारून के बेटे के नाम पर रखिए। मैंने पूछा हारून के बेटे का नाम क्या था? जिब्राइल ने कहा शब्बर, मैंने कहा कि हमारी भाषा अरबी है, कहा अरबी में हसन है।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में बहुत उच्च स्थान है। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पिता हज़रत अली और उनकी माता हज़रत फ़ातेमा हैं। उनका पालन पोषण पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली की छत्रछाया में हुआ। हज़रत इमाम हसन ने अपने जीवन के सात मूल्यवान वर्ष पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में गुज़ारे। पैग़म्बरे इस्लाम अपने नवासे को बहुत अधिक चाहते थे और उन्हें अपने कंधे पर बिठाते थे और कहते थे कि मेरे ईश्वर मैं इनसे स्नेह करता हूं तू भी इनसे स्नेह कर।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का नाम एसा था जो अज्ञानता के काल में किसी का नहीं रखा गया था। उसके बाद से हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम (स) की प्यारी आत्मा व जान और उनके सबसे पसंदीदा थे। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) हज़रत इमाम हसन को अपना बेटा और अपने दिल का सुकून कहा करते थे, उन्हें चूमा करते थे उनकी ख़ुशबू सूंघा करते थे तथा मस्जिदों व सभाओं में हमेशा अपने साथ रखा करते थे। वह हमेशा फ़रमाते थे कि हसन एक सुगंधित फूल है जिसे मैंने दुनिया से लिया है।
अपने बचपन में ही हज़रत इमाम हसन बिन अली अलैहिस्सलाम ने न केवल हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसे अनुकरणीय माता-पिता के लाड प्यार, दुलार, मार्गदर्शन और शैक्षिक सिद्धांतों से लाभ उठाया, बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लाम की विशेष परवरिश और देखभाल में बड़े हुए और उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार का सदस्य माना जाता है जो वहि और विशेषताओं का स्रोत था।
उनके बचपन में कभी उज्ज्वल भविष्य का वादा करने वाली लहरें और चिंगारी उठती थीं जो उन लोगों के लिए आश्चर्य की बात थी जो इस परिवार की महानता के रहस्यों को नहीं जानते थे। अभी तक बच्चे ही थे और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ सभाओं में भाग लेते थे और पैग़म्बरे इस्लाम की ज़बान से क़ुरान की आयतें सुनते थे जो उनके दिमाग़ के स्पष्ट और साफ़ दर्पण में अंकित हो जाते थे और जब वह अपनी दयालु मां के पास लौटकर आते थे तो उन्हें पूरा वैसे ही बताते थे जैसा पैग़म्बरे इस्लाम ने मस्जिद में लोगों को बताया हुआ था। एक दिन अमीरल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से पूछा कि उन्हें उन आयतों के बारे में कैसे पता चला? तो उन्होंने कहा कि हमारे छोटे बच्चे हसन ने मुझे वह आयतें बतायीं जो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मस्जिद में सनी थीं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बेटों को पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक चाहते थे। एक दिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने दोनों बेटों इमाम हसन और इमाम हुसैन के साथ पैग़म्बरे इस्लाम से मिलने आईं और कहा कि पिता जी यह दोनों आपके पुत्र हैं, इनके लिए कुछ चीज़ें यागदार कर दें ताकि हमेशा आपको याद रहे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा इमाम हसन को मेरा रोब व वीरता मिले और इमाम हुसैन को मेरी क्षमाशीलता और वीरता मिले।
इमाम हसन इतने महान थे कि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी अल्पायु के बावजूद अपने कुछ समझौतों में उनको गवाह बनाया। पैग़म्बरे इस्लाम जब ईश्वर के आदेश पर नजरान के निवासियों से मुबाहेले के लिए निकले तो उन्होंने ईश्वर के आदेश से इमाम हसन, इमाम हुसैन, हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा को अपने साथ लिया और उसी समय उनकी पवित्रता का गुणगान करते हुए आयते ततहीर उतरी।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जीवन की प्रमुख विशेषताओं में यह है कि वह अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के क़दम से क़दम मिलाकर चलते थे। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और उनकी मां हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के बाद, जो एक दूसरे से थोड़े फ़ासले पर हुई, उन्होंने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ उनके दर्द और पीड़ा को निकट से देखा। उन्हें हज़रत अली अलैहिस्साम के सयम का साथी, सक्षम सहायक और सलाहकार भी माना जाता था, जिन्होंने विशेष रूप से अपने पिता के शासन के दौरान सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभाई थी। हजरत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद, कूफ़ा के लोगों ने इमाम हसन अलैहिस्साम के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और आज्ञापालन का वचन दिया और इस तरह उन्होंने मुसलमानों को अशांत और असहज माहौल में नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी संभाली।
बनी उमय्या के कार्यों में से एक इमाम हसन अलैहिस्सलाम से नेताओं और प्रभावशाली लोगों को अलग करना था। वे घूस व रिश्वत देकर और कपटी वादे करके, कुफ़े और इराक़ के कुछ बुज़ुर्गों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया और फिर मुआविया ने युद्ध की घोषणा करके अपने सैनिकों को इराक़ पर चढ़ाई के लिए आगे बढ़ा दिया। दूसरी ओर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के अभियान की खबर सुनकर लोगों से सच्चाई का बचाव करने का आह्वान किया लेकिन बनी उमय्या की अफवाहों और झूठे प्रचार के प्रभाव में लोग सच्चाई का बचाव करने के बजाय भयभीत और कमज़ोर हो गए।
इसीलिए हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी उम्मा या इस्लामी जगत के कुछ हिस्सों में हुए राजद्रोह के बाद, इस्लाम के हितों की रक्षा के लिए मुआविया के साथ शांति संधि को स्वीकार कर लिया। इस तरह से इमाम हसन अलैहिस्सलाम बड़े हितों और युद्ध व रक्तपात को रोकने के लिए सत्ता और ख़िलाफत से हट गए। इमाम का लक्ष्य इस्लामी जगत या इस्लामी उम्मा को ख़तरों से बचाना और अपनी दूरदर्शिता और तत्वदर्शिता से भविष्य की योजना तैयार करना था। ध्यानयोग्य है कि उस काल में विद्रोह इस स्तर तक पहुंच गया था कि सही और ग़लत या हक़ और बातिल के बीच की सीमा बहुत से लोगों और यहां तक कि बुद्धिजीवियों के एक समूह के लिए भी अज्ञात हो गयी थी।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने धर्म के नाम पर इस्लाम की प्रामाणिक संस्कृति के ख़िलाफ विकृतियों की बाढ़ और व्यापक हमलों के खिलाफ डटकर इस्लाम के प्रामाणिक विचारों को विस्तृत किया। सामान्य रूप से इमाम हसन ने शांति व संधि को स्वीकार करने के बाद, अपने जीवन के अंत तक आत्मज्ञान की पद्धति का पालन किया और उन लोगों को जगाने के लिए प्रभावी उपाय किए जो इस्लाम की सच्चाइयों को अच्छी तरह से नहीं समझते थे या उसके सिद्धांतों से भटक गए थे।

लोगों के मार्गदर्शन के समय इमाम हसन का धैर्य और उनकी क्षमाशीलता, उनकी एक अन्य विशेषता थी। इसी धैर्य और क्षमाशीलता के कारण उन्होंने तत्कालीन सरकार के कई षड्यंत्रों को विफल बना दिया और मुआविया के साथ शांति समझौता करके वास्तव में एक अन्य शैली द्वारा आत्याचारों से संघर्ष का ध्वज लहरा दिया। इतिहासकार लिखते हैं कि एक दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे थे।
वर्तमान सीरिया का रहने वाला एक व्यक्ति उनके रास्ते में आ गया और उन्हें बुरा भला कहने लगा। इमाम हसन ने उस व्यक्ति को सलाम किया और मुस्कुरा कर कहा कि मुझे लगता है कि तू यात्री है, अगर तू मुझसे कुछ चाहता है तो मैं तुझे प्रदान करूं। यदि तू भूखा है तो तुझे पेटभर खाना दूं, यदि तेरे पास कपड़े नहीं हैं तो मैं तुझे बेहतरीन कपड़े दूं, यदि तुझे किसी चीज़ की आवश्यकता तो मैं तेरी आवश्यकता को पूरा करूं। आओ मेरे मेहमान बनो। जब तक तुम यहां पर हो, मरे मेहमान हो, तत्कालीन सीरिया के उस व्यक्ति ने जब यह सब सुना, वह इमाम हसन के पैरों पर गिर गया और रोने लगा और कहा कि मैं गवाही देता हूं कि आप धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं और ईश्वर भलिभांति जानता है कि यह स्थान किसे प्रदान किया जाए। मैं इससे पहले तक आपका और आपके पिता का बहुत बड़ा शत्रु था किन्तु अब मैं दुनिया में सबसे अधिक आपको चाहता हूं। वह व्यक्ति उस दिन के बाद से इमाम हसन अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में हो गया और जब तक वह मदीने में रहा, इमाम हसन का मेहमान था।