Jun २३, २०२१ १७:५४ Asia/Kolkata
  • रेगिस्तानी क्षेत्रों में पानी भंडारण का अनोखा तरीका

पीने के पानी का संरक्षण, हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है और इंसान इस मुद्दे को लेकर चिंतित रहा है। ईरान में पानी के जलाशयों का निर्माण करके काफ़ी हद तक इस चिंता का समाधान निकाला गया था।

पानी का भंडार, पानी के संरक्षण का एक अच्छा तरीक़ा माना जाता था। अन्य मनोरंजनों के अलावा, इससे गर्म और सूखे इलाक़ों में ज़िंदगी गुज़ारना संभव हो पाता था।

प्राचीन ईरान में पानी को एक पवित्र प्राकृतिक तत्व माना जाता था। ईरानी पानी को इतना पवित्र मानते थे कि अपने वतन को आब व ख़ाक यानी पानी और मिट्टी कहते थे। प्राचीन ईरान में पानी का एक विशेष स्थान था। ऐसी धारणा थी कि पानी की एक देवी है, जिसका नाम अनाहीता था। उस ज़माने के लोगों का विश्वास था कि पानी की देवी, झरनों और वर्षा की संरक्षक और उर्वरता, प्रेम और मित्रता की प्रतीक रही है।

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शायद इस सरज़मीन की अर्ध-शुष्क जलवायु का पानी का, पानी के महत्व पर काफ़ी असर रहा है। जलसेतू जैसी तकनीक के साथ-साथ जलाशयों ने उन दिनों ईरानियों के जीवन में क्रांति बरपा कर दी थी। पानी का भंडार एक हौज़ या इनडोर पूल होता है, जिसे पानी जमा करने के लिए ज़मीन के भीतर बनाया जाता है। कम पानी वाले और रेगिस्तानी क्षेत्रों में जलाशयों को बारिश के पानी या मौसमी धाराओं से भरा जाता था।

जलाशय के लिए फ़ार्सी में विभिन्न नाम होते थे। इस तरह के जलाशयों को अन्य मुस्लिम देशों जैसे कि तुर्कमनिस्तान में सरदाबे, मिस्र में मुसन्ना, फ़िलिस्तीन में ख़ज़ान और हरात में हौज़ कहा जाता था। ईरान के बड़े हिस्से में शुष्क जलवायु और साल में 6 महीने से ज़्यादा समय में बारिश न होने के कारण, नदियां मौसमी होती थी, जिसकी वजह से पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती थी। इसी वजह से ख़ुश्क मौसमों में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जाते थे, जिसमें से एक जलाशय है।

जलाशयों से पानी हासिल करने का इतिहास, छठी शताब्दी ईसा पूर्व से संबंधित है। जल भंडारण शुरू में अचानक बारिश के पानी और बाढ़ से भर जाते थे। धीरे-धीरे लोगों ने ख़ुद पानी जमा करना शुरू कर दिया। विभिन्न क्षेत्रों में सभ्यता के विकास के साथ पर्यावरण और उस क्षेत्र की जरूरतों के मुताबिक़, पीने के पानी के संग्रहण के लिए अलग-अलग तरीक़ों को अपनाया जाने लगा। ईरान, मिस्र और मैसोपोटामिया की सभ्यताओं में, पानी को ढके हुए जलाशयों में जमा किया जाता था, ताकि उसे भाप बनने और दूषित होने से बचाया जा सके।

कम पानी वाले और रेगिस्तानी इलाक़ों में जलाशय को बारिश के पानी और मौसमी धाराओं से भरा जाता था। आम तौर पर सर्दियों में पानी का भंडार किया जाता था और गर्मियों में उसका इस्तेमाल किया जाता था। जलाशय का पानी जलसेतू से जुड़ी सुविधाओं में से होता था और जलसेतू का पानी कई मीटर भूमिगत जलाशयों में बहता था और प्रदूषण से सुरक्षित रहते हुए बर्बाद होने से बचता था।

जलाशय के निर्माण, फ़िल्टर और इन्सुलेशन का तरीक़ा, इंजीनियरिंग और वैज्ञानिक नियमों से मेल खाता था। फ़िल्टरिंग के लिए भौतिक और रासायनिक शैलियों का उपयोग किया जाता था। इन शैलियों में कचरे का निपटान, उसके विघटन के लिए नमक की एक निश्चित मात्रा डालना और क्लोरीन के ज़रिए कीटाणुरहित करना, कीटाणुशोधन के लिए कैल्शियम यौगिकों का उपयोग करना और गंध दूर करने के लिए कोयले के थैलों का उपयोग करना शामिल है।

जलाशय वास्तुकला का उपयोग ईरान के पठारी क्षेत्रों में किया गया था, जहां का मौसम अकसर गर्म और ख़ुश्क होता है। उन क्षेत्रों में जहां हवा का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है, वहां जलाशय में 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर लोगों को ताज़ा और साफ़ पानी उपलब्ध किया जाता था। दीवारों में गारे का उपयोग, सीढ़ियां और वेंटिलेशन सभी पानी के भंडारण के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने में प्रभावी होते थे।

जलाशयों की दीवारें सामान्य रूप से दो मीटर ऊंची होती थीं। इसकी ईंटें भी अलग होती थीं और इनका सिर्फ़ इसी मक़सद से प्रयोग किया जाता था। प्राचीन ईरान में ईरानी वास्तुकारों ने गारे या मसाले की खोज की थी। इसे बनाने के लिए वे मिट्टी और चूने को एक निश्चित अनुपात में मिलाते थे, और इस मिश्रण से सख़्त मिट्टी बनाते थे। गारे को थोड़ी देर तक गूंथते थे। भट्टियों की राख को पुआल के साथ मिट्टी में मिलाते थे और उसे अच्छी तरह से गूंथते थे। गर्मी के मौसम में इमारत को ठंडा रखने में गारे की भूमिका अहम होती थी। प्राचीन कूलरों में भी गारे का उपयोग किया जाता था।

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जलाशय अपने गुंबददार जिज़ाइन और विंड टॉवर के लिए जाना जाता है। विंड टॉवर एयर कंडीशनिंग का काम करते थे। आज, एयर कंडीशनिंग अक्सर बिजली और ब्लेड के घूमने के कारण होती है। जलाशय की एक अन्य विशेषता, इसका पृथक होना है, जिससे पर्यावरण के दूषित पदार्थ जलाशय तक नहीं पहुंचते थे।

जलाशय का निर्माण, अक्सर भूमिगत एक बेलनाकार या आयताकार टैंक की खुदाई के साथ शुरू होता था। इस टैंक की गहराई कभी-कभी बेसमेंट में 20 मीटर तक पहुंच जाती थी। कुछ जलाशय आयताकार होते थे, जिनके नमूने आज भी क़ज़वीन में मौजूद हैं। हालांकि यज़्द के जलाशय अक्सर आयताकार होते थे।

दीवारों को ईंटों और गारे से बनाया जाता था। उसके बाद टैंक को गुंबद से ढक दिया जाता था, ताकि पानी को भाप बनने और प्रदूषण से बचाया जा सके। गंदगी में धूल और पक्षियों की बीटें या कुछ और हो सकता था। विंड टॉवर्स के डिज़ाइन के कारण, हवा अंदर आती थी और फिर बाहर निकल जाती थी, जिससे पानी को ठंडा रखने में मदद मिलती थी।

पानी के दबाव से टैंक की दीवारों के टूटने का ख़तरा रहता था। इसीलिए टैंक को भूमिगत बनाया जाता था। कहा जाता है कि यह निर्माण भूंकप में भी सुरक्षित रहता था। जलाशय के क्षेत्रफल के मद्देनज़र, विभिन्न ताक़ बनाए जाते थे। इन जलाशयों के ऊपर मस्जिदों और मुसाफ़िरख़ानों जैसी महत्वपूर्ण इमारतें बनाई जाती थीं।

कोई भी मुख्य प्रवेश द्वारा से अदंर जाता था। मुख्य द्वार आम तौर पर खुला रहता था और सीढ़ियों के ज़रिए रास्ता भूतल तक जाता था। ऊपरी सीढ़ियों तक पानी गर्म रहता था और सबसे नीचे की सीढ़ियों का पानी थोड़ा ठंडा होता था। पानी तक पहुंच के लिए अलग-अलग मंज़िलों में नल होते थे। प्रत्येक नल के निकट आमतौर पर बैठने की जगह, वेंटिलेशन शॉफ्ट और टैंक को फ़्लश करने के लिए एक प्रणाली होती थी।

आज जनसंख्या के बढ़ने और औद्योगिक विकास के कारण, जलाशयों की भूमिका बहुत कम हो गई है। वास्तव में, शहरी स्वचालन, एक ऐसा तंत्र हो गया है जिस पर अधिक लागत नहीं आती है। इसके बावजूद, ईरान में अभी भी जलाशयों का इस्तेमाल हो रहा है, और इन्हें राष्ट्रीय धरोहरों की सूची में सांस्कृतिक विरासत के रूप में पंजीकृत किया गया है। लोग इन्हें देखने के लिए भी जाते हैं।

जलाशयों के विभिन्न भाग इस प्रकार होते थेः टैंक, पाशीर, यानी पानी की निकासी के लिए टैंक से जुड़ा एक बड़ा पीतल का नल, प्रवेश द्वार और सीढ़ियां और विंड टॉवर। हालांकि ज़रूरी नहीं है कि यह सभी भाग किसी एक जलाशय में पाए जाते हों।

सर्दी के मौसम में जलाशय के टैंक को भरा जाता था। इस मौसम में खेती नहीं होती थी और गांवों या शहरों के लोग पानी का भंडारण कर सकते थे। क़रीब एक साल तक पानी टैंक में बाक़ी रहता था। पानी को ख़राब होने से बचाने के लिए उसमें एक प्रकार का नमक मिला दिया जाता था। समय के साथ जलाशय के तल पर नमक की परत जमा हो जाती थी, फिर से जलाशय को भरने से पहले उसे साफ़ करना एक मुश्किल काम होता था।

आज औद्योगिक प्रगति के कारण, पानी को अलग तरह से स्टोर और सप्लाई किया जाता है। आज घरों में पानी के नल होते हैं। लोग सुबह उठते ही नल खोलते हैं और फ़्रेश हो जाते हैं, केतली में पानी भरते हैं और चूल्हे पर चढ़ा देते हैं। यह सभी औद्योगिक युग की सुख-सुविधाएं हैं। बेशक, यह नहीं भूलना चाहिए कि जलाशय केवल जल संरक्षण के लिए नहीं थे, बल्कि शोध से पता चलता है कि यह वास्तुकला भूकंपीय तरंगों के जोखिम को कम कर सकती है।

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