Jun ३०, २०२१ १५:२६ Asia/Kolkata
  • कोरोना महामारी और सिनेमा जगत

हम इस बात का जायज़ा लेने की कोशिश करेंगे कि कोविड-19 की महामारी से दुनिया भर में सिनेमा जगत किस तरह प्रभावित हुए हैं।

कोविड-19 महामारी ने व्यापक रूप से हमारे जीवन में परिवर्तन किया है और सिनेमा भी इससे अछूता नहीं रहा है। महामारी की वजह से सिनेमा हॉल बंद पड़े हैं। लेकिन यह दास्तान सिर्फ़ यहीं ख़त्म नहीं हो रही है, बल्कि दुनिया भर में फ़िल्म इंडस्ट्रीज़ को भारी नुक़सान का सामना करना पड़ रहा है। फ़िल्मों के शौक़ीन लोगों के लिए यह एक बुरी ख़बर है, लेकिन सच्चाई यही है। फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए हैं और सिनेमा हॉल दीवालिया हो गए हैं।

 

कोरोना वायरस की वजह से राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों को सीमित करने के साथ ही फ़िल्म फ़ेस्टिवल, शोज़ और संगीत कार्यक्रमों को बंद करना पड़ा है। इससे विश्व अर्थव्यस्था भी प्रभावित हुई है। मिसाल के तौर पर, इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में मीडिया और मनोरंजन से होने वाली आय में 2020 में 24 प्रतिशत की गिरावट आई है, और टेलीविज़न राजस्व में 13 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस देश में कि जहां सिनेमा दुनिया में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रहा है, सिनेमाघरों के मालिकों का कहना है कि पानी और बिजली तक बिलों के भुगतान में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

ईरान में भी अचानक सिनेमा उद्योग ठप्प पड़ गया, जिसकी वजह से भारी नुक़सान हुआ। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़, ईरानी सिनेमा उद्योग से 8,000 लोग जुड़े हुए हैं। इस उद्योग को पहुंचने वाले भारी नुक़ासन से कई लोगों का जीवन बहुत प्रभावित हुआ है। सिनेमाघर महीनों से बंद पड़े थे, हालांकि अब खुल गए हैं, लेकिन लोग अभी भी वहां जाने से बच रहे हैं।

2020 में सिनेमाघरों के बंद होने के कारण, हॉलिवुड को भी भारी नुक़ासन हुआ है। 2019 में उत्तर अमरीका में हॉलिवुड को 11 अरब 400 मिलियन डॉलर का राजस्व हासिल हुआ था, जबकि 2020 में सिर्फ़ 2 अरब और 280 मिलियन डॉलर की कमाई हुई। यानी हॉलिवुड की कमाई में 80 फ़ीसद की कमी दर्ज की गई। इससे फ़िल्म स्टूडियोज़ को भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।

 

वैश्विक स्तर पर कोरोना के प्रकोप ने बड़ी संख्या में फ़िल्मों के निर्माण को रोक दिया है। वहीं कई फ़िल्मों की रिलीज़ को 2020 से 2021 तक के लिए टाल दिया गया। जबकि महामारी अभी तक समाप्त नहीं हुई है, इसीलिए स्थिति और अधिक जटिल हो गई है।

अगर अंसभव बात संभव हो जाए और आज दुनिया के सभी सिनेमाघर खुल जाएं, तो भी कोरोना वायरस ने इस उद्योग को आने वाले कई वर्षों तक के लिए प्रभावित कर दिया है। इस दौरान सिनेमाघर और स्टूडियोज़ पर काफ़ी क़र्ज़ हो गया है, जिन्हें संभलने में काफ़ी वक़्त लग जाएगा।

फ़िल्मों के आलोचक व लेखक जेक गोएल का कहना हैः न्यू यॉर्क टाइम्स ने 10 अक्टूबर 1917 को घातक स्पैनिश फ़्लू की दूसरी लहर की शुरुआत में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था फ़्लू के अंत तक कोई नई फ़िल्म नहीं। एक सदी बाद, एक दूसरी महामारी के प्रकोप के कारण, फ़िल्म उद्योग एक बार फिर एक संवेदनशील चरण में है। लेकिन इस अंतर के साथ कि इस बार समस्या नई फ़िल्मों की कमी की नहीं है, बल्कि कठिन आर्थिक परिस्थितियां की वजह से फ़िल्मों का निर्माण रुका हुआ है।

 

फ़िल्म उद्योग इस स्थिति से कैसे उबर पाएगा? इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह बात साफ़ है कि कोरोना के बाद, हॉलिवुड पहले वाला हॉलिवुड नहीं रहेगा। जिस तरह स्पेनिश फ़्लू ने हॉलीवुड की दुनिया में छोटी कंपनियों और स्वतंत्र स्टूडियो पर आधारित एक प्रणाली को जन्म दिया, उसी तरह कोविड-19 हॉलीवुड का पुनर्निर्माण कर रहा है, जिससे पहले से ही बदलते उद्योग के ढांचे का तेज़ी से डिजिटलीकरण हो रहा है।

सोनी पिक्चर्ज़ कंपनी के पूर्व प्रमुख पीटर गुबेर का कहना हैः मुझे नहीं लगता कि अब कभी पहले वाले हालात पलटकर आयेंगे। स्टूडियो का एक नया सिस्टम बनकर उभरेगा और एमजीएम और फ़ॉक्स डिज़नी के बजाए, डिज़नी प्लस, अमेज़न, एप्पल, नेटफ़िलिक्स और एचबीओ मिक्स बाक़ी रहेंगे।

पैरामाउंट पिक्चर्ज़ कंपनी के डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजर क्रिस एरोनसन का कहना हैः स्क्रीन विंडो स्पष्ट रूप से बदल रही है। फ़िल्म उद्योग में आप जो भी बदलाव देख रहे हैं, वह होने वाला था, लेकिन अब यह बदलाव, सामान्य से अधिक तेज़ी से हो रहा है।

 

कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और फ़िल्म प्रोड्यूसर इरा डुएचमैन का मानना हैः लोगों की सोच से कहीं ज़्यादा यह मुद्दा जटिल है। फ़िल्मों के निर्माण और डिस्ट्रीब्यूशन में काफ़ी समय से बदलाव की ज़रूरत थी, हम आशा करते हैं कि वर्तमान स्थिति इस बदलाव का मार्ग प्रशस्त करेगी। लेकिन जब आप लोगों को यह बताते हैं, तो उन्हें लगता है कि कोरोना महामारी ने सिनेमा का काम तमाम कर दिया है और यह उद्योग मर चुका है। मेरी नज़र में यह बकवास है।

विशेषज्ञों के मुताबिक़, विश्व सिनेमा व्यापार में भारी गिरावट कोरोना के कारण हुई, लेकिन सच्चाई यह है कि इस दौरान हमने उस प्रक्रिया में तेज़ी देखी, जो महामारी की शुरुआत से पहले भी तेज़ी से आगे बढ़ रही थी। उदाहरण के लिए वीडियो ऑन डिमांड या वीओडी।

बड़े स्टूडियोज़ में फ़िल्म के निर्माण और वीओडी के उत्पादन में काफ़ी अंतर है। स्टूडियोज़ स्टार ओरिएंटेड होते हैं और दर्शकों को फ़िल्म की ओर आकर्षित करने के लिए लगातार प्रोजेक्ट्स को अधिक से अधिक महंगा बनाने और दिखाने की कोशिश करते हैं। लेकिन वीओडी में रेड कार्पेट और बड़े शहरों में पोस्टर और बड़े मॉलों में शो नहीं होते हैं, इसलिए यह कम लागत वाली फिल्में होती हैं, जो अक्सर स्टार-केंद्रित नहीं होती हैं।

वीओडी में यह सुविधा होती है कि दर्शक अपनी पसंदीदा फिल्मों, टीवी सीरियलों और डॉक्यूमेंट्रीज़ को अपने पास रख सकते हैं और अपनी पंसद के हिसाब से देख सकते हैं। इस सिस्टम में दर्शकों और यूज़र्स को ग्लोबल ब्रॉडकास्ट के दौरान प्रोग्राम को देखने की ज़रूरत नहीं होती है। आईपीटीवी तकनीक का उपयोग अक्सर इसी उद्देश्य के लिए और टीवी और पीसी पर वीओडी के लिए किया जाता है।

 

अधिकांश केबल या दूरसंचार सेवा प्रदान करने वाले उपयोगकर्ताओं को स्ट्रीमिंग वीओडी प्रदान करते हैं, जिसमें निःशुल्क और पे-पर-व्यू सामग्री दोनों शामिल हैं। इसी तरह से विशेष एप्लिकेशन के माध्यम से भी वीओडी तक एक्सेस हासिल किया जा सकता है। कुछ एयरलाइंस कंपनियां भी अपने यात्रियों को मनोरंजन के लिए वीओडी की सेवा प्रदान करती हैं।

कुछ वीओडी सेवाएं एक सबस्क्रिप्शन मॉडल का उपयोग करती हैं, जिसके तहत उपयोगकर्ता मासिक सदस्यता शुल्क का भुगतान करके इस सामग्री तक पहुंच सकते हैं। अन्य सेवाएं विज्ञापन-आधारित मॉडल का उपयोग करती हैं, जिसमें उपयोगकर्ताओं के लिए सामग्री तक पहुंच निःशुल्क है, लेकिन इन सेवाओं का मुख्य राजस्व विज्ञापनों पर निर्भर करता है।

सिनेमा पर वीओडी के प्रभावों में से एक यह है कि नागरिकों की सांस्कृतिक वस्तुओं की लिस्ट से सिनेमा बाहर हो सकता है। उसके विरोधियों का मानना ​​​​है कि वीओडी का फ़िल्मों की बिक्री और उसके परिणामस्वरूप, फ़िल्म उद्योग की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

कोरोना से पहले ही इस सिस्टम ने कई देशों में सिनेमा के पर्दे को काफ़ी हद तक सिकोड़ दिया था। महामारी के दौरान इस प्रक्रिया में तेज़ी आ गई। यह बात भविष्य ही तय करेगा कि फ़िल्म रिलीज़ करने की इस शैली का लोग कितना स्वागत करेंगे, जिसका फ़िल्म उद्योग पर अच्छा असर पड़ेगा या बुरा।

2021 में फ़िल्म उद्योग एक नई शुरुआत करने के लिए तैयार है, इस दौरान फ़िल्म बनाने और रिलीज़ करने के क्षेत्र में बुनियादी बदलाव हुआ है। लेकिन हॉलीवुड को अभी भी बॉक्स ऑफ़िस के सामान्य होने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना होगा, और अभी भी सिनेमाघरों और फ़िल्म स्टूडियो के आर्थिक संकट से निपटना होगा।

हालांकि सिनेमाघरों के फिर से खुलने का मतलब, उनमें फिर से रौनक़ लौटना नहीं है, क्योंकि रातों-रात सिनेमा की चकाचौंध नहीं लौट आएगी। इस उद्योग के लोगों के सामने कई चुनौतियां हैं। इस उद्योग के भविष्य को लेकर चिंता स्वाभाविक है। हालांकि कई लोग अभी भी आशावादी हैं, और यह लोग अभी भी वीओडी को सिनेमा के लिए गंभीर प्रतिस्पर्धी नहीं मानते। इस उद्योग के लोगों को उम्मीद है कि सिनेमा प्रेमी इस उद्योग की रौनक़ को बनाए रखेंगे और दर्शकों को आकर्षित करने के लिए प्रभावशाली शैलियों का इस्तेमाल करेंगे।

दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिनका मानना है कि इस कला-उद्योग की सभी समस्याएं महामारी के परिणामस्वरूप नहीं हैं, बल्कि सिनेमा के उत्पाद अब पहले की तरह दर्शकों को सिनेमाघरों तक नहीं खींच सकते हैं। स्पष्ट है कि दुनिया भर के सिनेमा को एक बड़े संकट और चुनौती का सामना करना पड़ेगा और इसके भविष्य के बारे में कोई फ़ैसला करना जल्दबाज़ी होगी। सिनेमा से जुड़े लोगों का मानना ​​है कि यह देखना होगा कि क्या 2022 में सिनेमा अपने सामान्य दिनों की ओर लौट पाएगा या नहीं।

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