क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-821
सूरए साफ़्फ़ात आयतें 1-6
सूरए यासीन की आयतों की व्याख्या ख़त्म होने के बाद इस कार्यक्रम से सूरए साफ़्फ़ात की आयतों की व्याख्या शुरू कर रहे हैं। यह सूरा मक्के में नाज़िल हुआ है और क़ुरआने मजीद का 37वां सूरा है। अन्य मक्की सूरों की तरह इस सूरे में भी धार्मिक आदेशों के बजाए आस्था संबंधी मामलों पर अधिक बल दिया गया है। कुफ़्र व अनेकेश्वरवाद से संघर्ष में पिछले पैग़म्बरों की कोशिशों विशेष कर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम द्वारा मूर्तिपूजा से संघर्ष के बारे में इस सूरे में प्रकाश डाला गया है। इसी तरह इस सूरे में जिन्नों व फ़रिश्तों के बारे में पाए जाने वाले ग़लत विचारों की निंदा की गई है। तो आइये पहले सूरए साफ़्फ़ात की पहली से लेकिर पांचवीं आयतों तक की तिलावत सुनें।
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ. وَالصَّافَّاتِ صَفًّا (1) فَالزَّاجِرَاتِ زَجْرًا (2) فَالتَّالِيَاتِ ذِكْرًا (3) إِنَّ إِلَهَكُمْ لَوَاحِدٌ (4) رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَرَبُّ الْمَشَارِقِ (5)
अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील व दयावान है। जमा कर पंक्तिबद्ध होने वालों की क़सम! (37:1) फिर (दूसरों को पाप से) कड़ाई से रोकने वालों की क़सम! (37:2) फिर ज़िक्र और (ईश्वरीय आयतों) की तिलावत करने वालों की क़सम! (37:3) कि निश्चय ही तुम्हारा वास्तविक पूज्य एक ही है। (37:4) वह आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है सबका पालनहार है और सारे पूर्वों का (भी) पालनहार है (37:5)
यह सूरा कई क़समों से शुरू होता है ताकि इंसान का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर सके। स्पष्ट है कि ईश्वर को क़सम खाने की ज़रूरत नहीं है और ईमान वाले उसकी बात को बिना सौगंध के ही स्वीकार करते हैं लेकिन ईश्वरीय सौगंध, विषय के महत्व व महानता की निशानी और उसकी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए है।
ईश्वर इन आयतों में फ़रिश्तों कुछ गुटों की क़सम खाता है जिनकी पैग़म्बरों तक ईश्वरीय संदेश "वहि" पहुंचाने में भूमिका है और वे वहि में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से इंसानों और शैतानों को दूर रखते हैं ताकि पैग़म्बर, वहि को उसके सही व संपूर्ण रूप में हासिल करके लोगों तक पहुंचा सकें।
फ़रिश्तों के इन गुटों की पहली विशेषता संगठित रूप से पंक्ति में बढ़ना है, इस तरह से कि ईश्वर ने उसकी क़सम खाई है। स्वाभाविक है कि हम इंसानों को फ़रिश्तों की कोई भौतिक पहचान नहीं है कि हम उन्हें देख या समझ सकें लेकिन पंक्ति का गठन, एक असाधारण अनुशासन व तैयारी का सूचक है। जैसा कि सैन्य बलों की पंक्तियां, उनके आगे बढ़ने में सुव्यवस्था, अनुशासन और कमांडरों के आदेशों के पालन के लिए उनकी तैयारी का कारण बनती हैं। फ़रिश्ते, संगठित पंक्तियों में ईश्वर के आदेशों का पालन करने के लिए तैयार हैं और राह में आने वाली हर रुकावट को हटाते और ईश्वरीय आदेश को लागू करते हैं।
इन सौगंधों के बाद क़ुरआने मजीद कहता है कि आकाशों, धरती और सभी वस्तुओं का पालनहार, अनन्य ईश्वर है और उसका कोई समकक्ष नहीं है। इस सृष्टि की रचना में फ़रिश्तों, जिन्नों और अन्य ज़मीनी व आसमानी जीवों की कोई भूमिका नहीं है। ईश्वर, न केवल सृष्टिकर्ता है बल्कि सभी वस्तुओं और उनकी व्यवस्था के सभी मामलों की युक्ति भी उसी के हाथ में है।
एक अन्य बिंदु, जिसकी तरफ़ इन आयतों में इशारा किया गया है, यह है कि धरती में अनेक पूर्व हैं और हर दिन अलग अलग समय और स्थान पर पिछले दिन से निर्धारित फ़ासले पर सूरज का उदय होता है। प्रतिदिन का यह परिवर्तन बड़ा ही सुव्यवस्थित और सटीक समीकरणों के आधार पर होता है। ये सभी परिवर्तन ईश्वर की युक्ति के चलते हैं जिसने धरती और सूरज के लिए एक कक्षा निर्धारित की है और ये दोनों एक विशेष गति के साथ अपनी कक्षा की परिक्रमा करते हैं और इस सुव्यवस्थित व्यवस्था का परिणाम, धरती के विभिन्न स्थानों पर अनेक पूरब व पश्चिम हैं।
इन आयतों से हमने सीखा कि कामों में अनुशासन उन मान्यताओं में से है जिन पर धर्म ने बल दिया है कि जो कामों में एकता, शक्ति व गति का कारण बनता है।
ईश्वर दुनिया का रचयिता भी है और सृष्टि के कामों का युक्तिकर्ता भी है।
पूरी सृष्टि अनन्य ईश्वर की युक्ति के अंतर्गत है। धरती, आकाश व संसार की अन्य रचनाओं के बीच समन्वय, ईश्वर के अनन्य होने की उत्तम निशानी है।
आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 6 की तिलावत सुनें।
إِنَّا زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِزِينَةٍ الْكَوَاكِبِ (6)
निश्चित रूप से हमने दुनिया के आकाश को सितारों की सजावट से सुसज्जित किया है। (37:6)
पिछली आयतों में धरती व आकाशों के पालनहार के अनन्य होने पर बल देने के बाद ईश्वर इस आयत में कहता है कि हमने आसमान को, जो तुम्हारा सबसे क़रीबी आकाश है, सितारों से सुसज्जित किया है। सच्चाई यह है कि घनी आबादी और भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में ज़िंदगी इस बात का कारण बनी है कि आज का इंसान सड़कों, घरों, दुकानों व शहरों के अन्य स्थानों की लाइटों की वजह से रात में सितारों को नहीं देख पाता। अलबत्ता अंधेरी रातों में जंगलों, रेगिस्तानों और ग्रामीण इलाक़ों में आसमान बड़ा दर्शनीय होता है और इंसान को आश्चर्यकचकित कर देता है। आसमान सुंदर भी है और वैभवशाली भी।
मानो ईश्वर इस आयत में सितारों को चिराग़ों जैसा बताया है जिन्हें जश्नों व समारोहों में प्रकाश के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे सितारे जिनमें से बहुत से तो बहुत दूर से झिलमिलाते हैं जबकि कुछ अन्य निरंतर चमकते रहते हैं।
इस आयत से हमने सीखा कि साज-सज्जा व सौंदर्य की ओर झुकाव, मनुषय की प्रकृति का भाग है। इसी लिए क़ुरआने मजीद ने सजावट और प्राकृतिक दृश्यों के सौंदर्य से लाभ उठाने पर बल दिया है।
आकाश और सितारों की सुंदरता, सृष्टि की रचना करने वाले पालनहार की शक्ति व महानता का एक चिन्ह है।
आकाश और सितारों पर ध्यान देना, उनकी पहचान करना और उनके बारे में अधिक से अधिक अध्ययन करना, ज्ञान की एक शाखा है जिस पर हमेशा ही इस्लाम धर्म के विद्वानों, ज्ञानियों व बुद्धिजीवियों ने बल दिया है।