क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1030
सूरे तहरीम- आयतें 1 से 5
पिछले कार्यक्रम में सूरए तलाक़ की तफ़सरी ख़त्म होने के बाद, इस कार्यक्रम में हम सूरए तहरीम की आयतों की व्याख्या शुरू कर रहे हैं। यह सूरा भी मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी 12 आयतें हैं। इस सूरे की शुरुआती आयतें हलाल खाने की कुछ चीज़ों को अपने ऊपर हराम कर लेने के बारे में हैं; इसी वजह से इस सूरे का नाम 'तहरीम' (हराम कर लेना) है। सूरे की आख़िरी आयतें दो नेक और बुरी औरतों के बारे में हैं ताकि ईमान वाले नेक और सही लोगों से सीख लें और बुरे और बिगाड़ करने वाले लोगों के रास्ते और तरीक़े से दूर रहें।
आइए सबसे पहले हम सूरए तहरीम की आयत नंबर 1 और 2 की तिलावत सुनते हैं:
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ لِمَ تُحَرِّمُ مَا أَحَلَّ اللَّهُ لَكَ تَبْتَغِي مَرْضَاةَ أَزْوَاجِكَ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ (1) قَدْ فَرَضَ اللَّهُ لَكُمْ تَحِلَّةَ أَيْمَانِكُمْ وَاللَّهُ مَوْلَاكُمْ وَهُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ (2)
इन आयतों का अनुवाद है:
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ नबी! तुम अल्लाह की हलाल की हुई चीज़ को अपनी बीवियों की ख़ुशी हासिल करने के लिए अपने ऊपर क्यों हराम करते हो? और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है।[66:1] अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी क़समों (की प्रतिज्ञा) से नजात को (कफ़्फ़ारे की अदायगी के ज़रिए) मुक़र्रर कर दिया है और अल्लाह तुम्हारा मालिक है और वह जानने वाला, हिकमत वाला है।[66:2]
पैग़म्बरे इस्लाम की कुछ बीवियाँ दूसरों से जलती थीं, इसलिए वे उन खानों में ख़ामियां निकालती थीं जो दूसरी बीवी ने बनाया था और पैग़म्बर ने खाया था। मिसाल के तौर पर वे कहतीं: ऐ अल्लाह के रसूल! जो खाना आपने खाया है, उससे बदबू आ रही है और इसने आपके मुँह को बदबूदार कर दिया है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही व सल्लम ने मुश्किल दूर करने और उन बीवियों को खुश करने के लिए क़सम खा ली कि वह फिर वह खाना नहीं खाएँगे ताकि उनके मुँह से बदबू न आए और दूसरी बीवियाँ नाराज़ न हों। यह आयतें नाज़िल हुईं और रसूलुल्लाह को याद दिलाया कि तुम ख़ुद को बिना वजह क्यों तकलीफ दे रहे हो और अल्लाह की हलाल की हुई चीज़ को अपने ऊपर क्यों हराम कर रहे हो? कफ़्फ़ारा देकर अपनी क़सम तोड़ दो और अपने ऊपर स्वयं थोपे गए इस हराम को ख़त्म कर दो। इसलिए रसूलुल्लाह ने एक ग़ुलाम आज़ाद किया और जो चीज़ अपने ऊपर हराम की थी, उसे हलाल कर लिया।
इन आयतों से हमने सीखा:
पैग़म्बर अल्लाह की तालीम व तरबियत में थे और अल्लाह अपनी रहनुमाई से उन्हें सही और सीधे रास्ते की हिदायत करता था।
इस्लाम में रोहबानियत या सन्यास और कठोर तपस्या जो हलाल ख़ुशियों को हराम करना है, क़ुबूल नहीं है, क्योंकि अल्लाह चाहता है कि जो चीज़ें उसने अपने बंदों के लिए जायज़ ठहराई हैं, उनसे वे फ़ायदा उठाएँ।
बीवियों की एक-दूसरे से माँग, हलाल को हराम या हराम को हलाल करने की वजह नहीं बननी चाहिए। दूसरे शब्दों में, घर के माहौल में, बीवी की ख़ुशी हासिल करना, अल्लाह की ख़ुशी और रज़ामंदी के दायरे में क़ुबूल है।
वह क़सम क़ीमती और मान्य है जो अल्लाह के हुक्म के दायरे में हो, न कि वह जिसमें इंसान हलाल चीज़ों को अपने ऊपर हराम करना चाहे।
आइए अब सूरए तहरीम की आयत नंबर 3 और 4 की तिलावत सुनते हैं:
وَإِذْ أَسَرَّ النَّبِيُّ إِلَى بَعْضِ أَزْوَاجِهِ حَدِيثًا فَلَمَّا نَبَّأَتْ بِهِ وَأَظْهَرَهُ اللَّهُ عَلَيْهِ عَرَّفَ بَعْضَهُ وَأَعْرَضَ عَنْ بَعْضٍ فَلَمَّا نَبَّأَهَا بِهِ قَالَتْ مَنْ أَنْبَأَكَ هَذَا قَالَ نَبَّأَنِيَ الْعَلِيمُ الْخَبِيرُ (3) إِنْ تَتُوبَا إِلَى اللَّهِ فَقَدْ صَغَتْ قُلُوبُكُمَا وَإِنْ تَظَاهَرَا عَلَيْهِ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ مَوْلَاهُ وَجِبْرِيلُ وَصَالِحُ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمَلَائِكَةُ بَعْدَ ذَلِكَ ظَهِيرٌ (4)
इन आयतों का अनुवाद है:
और जब नबी ने अपनी किसी बीवी से एक बात चुपके से कही, फिर जब उस ने उस राज़ को किसी और को बता दिया और अल्लाह ने फ़ाश होने की बात को नबी पर ज़ाहिर कर दिया, तो नबी ने उस (बीवी) को उस (फ़ाश होने वाले राज़) का कुछ हिस्सा बता दिया और कुछ हिस्से पर ख़ामोशी अख़्तियार की। फिर जब नबी ने उसे (यह बात) बताई तो उस (बीवी) ने कहा: आपको इसकी ख़बर किसने दी (कि मैने राज़ फ़ाश कर दिया है)? नबी ने फ़रमाया: मुझे जानने वाले, ख़बर रखने वाले (अल्लाह) ने ख़बर दी।[66:3] अगर तुम दोनों अल्लाह की बारगाह में तौबा करो (तो बेहतर है) क्योंकि तुम दोनों के दिल (सही रास्ते से) टेढ़े हो गए हैं और अगर तुम दोनों नबी के ख़िलाफ़ एक-दूसरे का साथ दो (तो कोई फ़ायदा नहीं) क्योंकि अल्लाह ही उसका मालिक है और जिबरईल और नेक ईमान वाले और फ़रिश्ते उसके बाद (भी) उसके मददगार हैं। [66:4]
पिछली आयतों के सिलसिले में, जो नबी की कुछ बीवियों के उनके साथ ग़लत बर्ताव के बारे में थीं, यह आयतें कहती हैं: जलन के अलावा, कुछ बीवियों का एक और बुरा काम राज़ फ़ाश करना था, हालाँकि बीवियों का फ़र्ज़ है कि वे एक-दूसरे के राज़ की हिफाज़त करें।
जैसा कि तारीख़ में है कि रसूलुल्लाह ने एक बात अपनी एक बीवी से राज़ की तरह कही थी और उससे कहा था कि दूसरों को न बताए, लेकिन उसने यह राज़ नबी की दूसरी बीवी को बता दिया और उसे फ़ाश कर दिया। अल्लाह ने अपने रसूल को इस घटना से आगाह किया। उन्होंने अपनी बीवी को याद दिलाया कि उसने यह ग़लत काम किया है और हाँ, नबी ने पूरी घटना को विस्तार से नहीं बताया ताकि उनकी बीवी ज्यादा शर्मिंदा न हो।
आयतों का आगे का हिस्सा, उन दो औरतों (राज फ़ाश करने वाली और उसे सुनने वाली) को अपनी गलती से तौबा करने की सलाह देता है और फरमाता है: इस काम से तुम्हारे दिल सही रास्ते से भटक गए हैं; अगर तुम तौबा नहीं करोगी और बाज़ नहीं आओगी, तो दरअसल तुम दोनों नबी के खिलाफ़ मिल गई हो। हालाँकि, तुम कुछ नहीं बिगाड़ सकती क्योंकि अल्लाह और फ़रिश्ते और नेक ईमान वाले, रसूलुल्लाह के यार व मददगार हैं।
इन आयतों से हमने सीखा:
राज़ की रखवाली करना नेक और सही बीवियों की एक ख़ासियत है और बीवी का राज फ़ाश करना, उसके ख़िलाफ़ एक तरह की कार्रवाई या साज़िश है।
रसूलुल्लाह भी कभी-कभी घर के भीतर की कुछ मुश्किलों में फँस जाते थे और इसकी वजह यह थी कि कुछ बीवियाँ उनकी तकलीफ़ और परेशानी का सबब बनती थीं, लेकिन नबी उनके साथ नरमी और शांति से पेश आते थे और फ़राख़दिली से उनकी ग़लती माफ़ कर देते थे।
कभी-कभी घर और परिवार के माहौल में, अनदेखा करना और सहनशीलता ज़रूरी है और ग़लती करने वाले के लिए तौबा और वापसी का रास्ता खुला होना चाहिए। इसलिए परिवार के किसी सदस्य की ग़लती देखने भर से ही घर का माहौल नहीं बिगाड़ना चाहिए और घर में तनाव बढ़ाना और पारिवारिक रिश्तों को कमज़ोर नहीं करना चाहिए।
जब भी रसूलुल्लाह के साथ बेअदबी हो या इल्ज़ाम लगाया जाए, या उनके ख़िलाफ़ साज़िश की जाए, तो मोमिनीन का फ़र्ज़ है कि वे उस महान हस्ती की पूरी तरह से हिफ़ाज़त करें ताकि दुश्मन उनकी जगह को कमज़ोर और ख़राब न कर सके।
आइए अब हम सूरए तहरीम की आयत नंबर 5 की तिलावत सुनते हैं:
عَسَى رَبُّهُ إِنْ طَلَّقَكُنَّ أَنْ يُبْدِلَهُ أَزْوَاجًا خَيْرًا مِنْكُنَّ مُسْلِمَاتٍ مُؤْمِنَاتٍ قَانِتَاتٍ تَائِبَاتٍ عَابِدَاتٍ سَائِحَاتٍ ثَيِّبَاتٍ وَأَبْكَارًا (5)
इस आयत का अनुवाद है:
उम्मीद है कि अगर (नबी) तुम्हें तलाक़ दे दें तो अल्लाह तुम्हारी जगह तुमसे बेहतर बीवियाँ दे देगा, जो मुस्लिम, मोमिना, आज्ञाकारी, तौबा करने वाली, इबादत करने वाली, रोज़ा रखने वाली, चाहे पहले शादीशुदा रही हों या फिर कुंवारी हों।[66:5]
हालाँकि पैग़म्बरे इस्लाम की कई बीवियाँ थीं और उनमें से कुछ उनकी नाराज़गी और तकलीफ़ का सबब बनती थीं, रसूलुल्लाह ने उनमें से किसी को भी तलाक़ नहीं दिया और हमेशा उनके साथ नरमी से पेश आते रहे।
यह आयत नबी की बीवियों को चेतावनी देती है कि वे नबी के अच्छे अख़लाक़ का ग़लत फ़ायदा न उठाएँ और यह न सोचें कि नबी उन्हें कभी तलाक़ नहीं देंगे, बल्कि नबी का यह हक़ क़ायम है। साथ ही यह न सोचें कि वही सबसे अच्छी औरतें हैं; अगर नबी उन्हें तलाक़ दे दें, तो उनसे बेहतर और लायक़ औरतें नबी की बीवी बन जाएँगी।
इस आयत में एक अच्छी बीवी की कुछ ख़ास बातों का भी ज़िक्र है जो शादी के वक़्त बीवी चुनने के लिए एक पैमाना हो सकता है। मुस्लिम होना और मोमिन होना शादी की पहली शर्त है और एक मुसलमान ग़ैर-मुस्लिम से शादी नहीं कर सकता। बीवी के आगे नम्रता और घमंड न करने वाला होना और तौबा करने वाला और नमाज़ी और रोज़ेदार होना, उन ख़ासियतों में से है जिनपर इस आयत में ज़ोर दिया गया है।
दिलचस्प यह है कि इस आयत में, कुंवारी और शादीशुदा होने को कोई ख़ास अहमियत नहीं दी गई है। यानी जो औरत पहले शादी कर चुकी है, अगर उसमें यह ख़ासियतें हों, तो उसका कुंवारी न होना उसकी अहमियत में कोई कमी नहीं लाता।
इस आयत से हमने सीखा:
तलाक़ देना पारिवारिक झगड़ों में आख़िरी उपाय है, पहला उपाय नहीं। अगर बीवी अपनी ग़लतियों पर अड़ी रहती है, उसका स्वभाव झगड़ालू है और हमेशा तनाव पैदा करके परिवार की शांति भंग करती है, तो शायद इस हालत में, अलग होना एक विकल्प हो सकता है।
विधवा और तलाक़शुदा औरतों को शादी करने का हक़ है और उन्हें उम्र भर बीवी या पति से महरूम नहीं रहना चाहिए।
औरत की असली क़ीमत उसके अच्छे अख़लाक़, इंसानी और रूहानी पूर्णता से है, न कि उसकी उम्र या कुंवारी होने से।