Sep १६, २०२५ २२:०८ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1031

सूरे तहरीम आयतें , 6 से 8

आइए सबसे पहले सूरए तहरीम की आयत संख्या 6 की तिलावत सुनते हैं

 

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا قُوا أَنْفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًا وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَائِكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَا يَعْصُونَ اللَّهَ مَا أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ (6)

इस आयत का अनुवाद इस प्रकार है:

 

हे ईमान लाने वालो! अपने आप को और अपने परिवार को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं। (ऐसी आग) जिस पर कठोर स्वभाव और सख़्ती बरतने वाले फ़रिश्ते निगरानी करते हैं, अल्लाह के जिस आदेश की उन्हें आज्ञा होती है, उसका उल्लंघन नहीं करते और जो आदेश दिया जाता है, उसे पूरा करते हैं।[66:6]

 

इस सूरे की शुरुआती आयतों में कुछ पारिवारिक मामलों के बारे में सिफ़ारिशें की गई थीं। यह आयत इंसान की अपने परिवार के सदस्यों के प्रति ज़िम्मेदारी के बारे में बात करती है:

 

ईमान वाले सिर्फ़ अपने आप को दोज़ख़ की आग से बचाने का ही ख़याल नहीं रखते, बल्कि वे अपने परिवार के प्रति ज़िम्मेदारी महसूस करते हैं और उन्हें बुरे और अनुचित काम करने से रोकते हैं।

 

पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति और ख़ासकर बच्चों के प्रति ज़िम्मेदार हैं। उन्हें घर और परिवार के माहौल को हर तरह की गंदगी से पाक करना चाहिए, जिसमें यह भी शामिल है कि वे किसी भी ऐसी चीज़ को घर के माहौल में दाख़िल न होने दें जो धर्म-विरोधी संस्कृति को बढ़ावा देती हो या परिवार की नैतिकता को कमज़ोर करती हो। माता-पिता को अच्छी बातों की सलाह देकर और बुराइयों से सावधान करके परिवार को अच्छे कामों की ओर बुलाना चाहिए और बुरे और नापसंद कामों से रोकना चाहिए।

एक दूसरे नज़रिए से, जिस तरह बच्चों की आजीविका और शारीरिक स्वस्थ पोषण का प्रबंध माता-पिता की ज़िम्मेदारी है, उसी तरह उनकी धार्मिक परवरिश और सही और स्वस्थ बौद्धिक पोषण भी माता-पिता की ज़िम्मेदारी है। स्वाभाविक है कि इस मामले में कोताही बच्चों के बौद्धिक और चारित्रिक भटकाव का कारण बन सकती है।

 

दोज़ख़ की आग के बारे में कहा गया है: दोज़ख़ की लकड़ी ख़ुद दोज़ख़ में जाने वालों का शरीर है जिससे गुनाह की वजह से आग निकलती है और भड़क उठती है और उसके साथ ऐसे पत्थर हैं जो दोज़ख़ की गर्मी से पिघल गए हैं, जैसे आग का लावा जो ज्वालामुखियों के मुंह से निकलता है।

 

इस आयत से हमने सीखा:

 

 इंसान का नफ़्स बाग़ी और विस्तारवादी है और उसे बुराइयों की तरफ़ ले जाता है, इसलिए हर हाल में नफ़्स की इच्छाओं पर नज़र रखनी चाहिए ताकि वे इंसान को मुसीबत में न डालें।

 

 मआद (परलोक) और दोज़ख़ की आग पर विश्वास की इंसान और दूसरों को नियंत्रित करने और सुधारने में अहम भूमिका है।

 

 सुधार की पहली सीढ़ी ख़ुद का और रिश्तेदारों का सुधार है और फिर समाज का सुधार है।

 

  बच्चों की धार्मिक परवरिश परिवार के मुखिया के कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों में से है।

 

 फ़रिश्ते दुनिया और आख़ेरत में ब्रह्मांड की व्यवस्था के कार्यकारी हैं और अल्लाह के आदेश के आधार पर जन्नत और दोज़ख़ चलाते हैं।

 

आइए अब सूरए तहरीम की आयत 7 और 8 की तलावत सुनते हैं:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَعْتَذِرُوا الْيَوْمَ إِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (7) يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا تُوبُوا إِلَى اللَّهِ تَوْبَةً نَصُوحًا عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يُكَفِّرَ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيُدْخِلَكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ يَوْمَ لَا يُخْزِي اللَّهُ النَّبِيَّ وَالَّذِينَ آَمَنُوا مَعَهُ نُورُهُمْ يَسْعَى بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا أَتْمِمْ لَنَا نُورَنَا وَاغْفِرْ لَنَا إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (8)

 

इन आयतों का अनुवाद है:

 

 (वे काफ़िरों से कहते हैं:) हे काफिरो! आज बहाने मत करो, तुम सिर्फ़ उसी का बदला पाओगे जो तुम करते थे।[66:7] हे ईमान लाने वालो! अल्लाह की बारगाह में तौबा करो, एक ख़ालिस तौबा। उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारी बुराइयों को मिटा देगा और तुम्हें उन बाग़ों (स्वर्ग) में दाख़िल करेगा जिनके (पेड़ों के) नीचे नदियां बहती हैं। उस दिन अल्लाह अपने नबी और उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए शर्मिंदा नहीं करेगा। उनका नूर (प्रकाश) उनके आगे और उनके दाएं भाग में दौड़ता होगा, वे कहेंगे: 'हे हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारा प्रकाश पूरा कर और हमें क्षमा कर, निश्चय ही तू हर चीज़ पर सक्षम है! [66:8]

 

पिछली आयत की निरंतरता में जो दोज़ख़ के अज़ाब से अपने आप और परिवार की हिफ़ाज़त की बात कर रही थी, ये आयतें पहले काफिरों को संबोधित करते हुए कहती हैं: क़यामत में कोई बहाना या औपचारिक क्षमा-याचना स्वीकार नहीं की जाएगी। क्योंकि क़यामत अमल के सामने आने का मैदान है और बुरे काम जो इंसान के अंदर पैदा हो जाते हैं और तौबा और इस्तेग़फ़ार से साफ़ नहीं होते, वही इंसान के लिए दोज़ख़ में अज़ाब का कारण बनेंगे, जैसा कि पिछली आयत ने साफ़ कहा कि दोज़ख़ में आग इंसानों के अंदर से पैदा होती है।

 

आयतों का अगला हिस्सा एक बार फिर दुनिया की तरफ़ लौटता है और मोमिनीन को संबोधित करते हुए कहता है: इंसान के बचाव का रास्ता तौबा और अल्लाह की तरफ़ सच्चे और ख़ालिस इस्तेग़फ़ार का है ताकि अल्लाह बुराइयों को मिटा दे और उन्हें माफ़ कर दे।

 

स्वाभाविक है कि जो शख़्स गुनाह की गंदगी से पाक हो जाएगा, उसके जन्नत में दाख़िल होने का रास्ता खुल जाएगा और वह अल्लाह की रहमत के साये में आ जाएगा। इस आयत में जिस 'तौबा-ए-नसूह' पर ज़ोर दिया गया है, वह असल में वह तौबा है जो दिल से निकलती है और इंसान के असली पछतावे को दिखाती है (न कि सिर्फ़ गुनाह के बाहरी नतीजों जैसे लोगों के सामने बदनामी और शर्मिंदगी की वजह से)। दूसरे शब्दों में, असली और सच्ची तौबा यह है कि इंसान यह फैसला करे कि वह फिर कभी उस गुनाह की तरफ़ नहीं लौटेगा और उसे दोहराएगा नहीं।

 

आयतों के अगले हिस्से में मोमिनीन और रसूले ख़ुदा के साथियों और अनुयायियों की क़यामत में हालत की तरफ़ इशारा किया गया है और कहा गया है: उस दिन जब गुनहगार दोज़ख़ी शर्मसार और लज्जित होंगे, वे (मोमिनीन) सिर उठाए हुए और गर्व से खड़े होंगे; ईमान का नूर उनके अस्तित्व से चमक रहा होगा और वे अल्लाह से उस नूर की स्थिरता और पूर्णता की दुआ मांगेंगे।

 

इन आयतों से हमने सीखा :

 

 क़यामत में तौबा और माफ़ी मांगना काम नहीं आएगा। जब तक हम दुनिया में हैं और मौक़ा है, तौबा और इस्तेग़फ़ार से अपने अतीत को सुधार लें।

 दोज़ख़ की आग और क़यामत का अज़ाब, इंसान के अपने अमल के अलावा और कुछ नहीं है।

 

 इंसान को गुनाह करने से बचना चाहिए और अगर ग़लती से फिसल जाए तो फ़ौरन तौबा कर ले ताकि गुनाह के असर उसके अंदर पैदा न हों।

 

 मोमिन शख़्स गुनाह से महफ़ूज़ नहीं है और कभी-कभी उससे गुनाह हो सकता है, लेकिन उसके ईमान की निशानी गुनाह पर पछतावा और तौबा है।

 

  जब तक इंसान गंदगी और बुराई से पाक और साफ़ नहीं हो जाता, उसे जन्नत में दाख़िल नहीं किया जाएगा, क्योंकि जन्नत पाक लोगों की जगह है, न कि बदकार और नापाक लोगों की।

 

  तौबा और मग़फेरत न सिर्फ़ इंसान के अंधेरे अतीत को साफ़ करती है, बल्कि उसकी तरक़्क़ी, कमाल और नूरानियत का ज़रिया भी तैयार करती है।

 दुनिया में इंसान के अच्छे और पसंदीदा काम क़यामत में नूर के रूप में ज़ाहिर होंगे।