Sep १६, २०२५ १९:४५ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1029

सूरए तलाक़ आयतें. 8से 12

आइए सबसे पहले सूरए तलाक़ की आयत संख्या से 10 तक की तिलावत सुनते हैं:

 

وَكَأَيِّنْ مِنْ قَرْيَةٍ عَتَتْ عَنْ أَمْرِ رَبِّهَا وَرُسُلِهِ فَحَاسَبْنَاهَا حِسَابًا شَدِيدًا وَعَذَّبْنَاهَا عَذَابًا نُكْرًا (8) فَذَاقَتْ وَبَالَ أَمْرِهَا وَكَانَ عَاقِبَةُ أَمْرِهَا خُسْرًا (9) أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ عَذَابًا شَدِيدًا فَاتَّقُوا اللَّهَ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ الَّذِينَ آَمَنُوا قَدْ أَنْزَلَ اللَّهُ إِلَيْكُمْ ذِكْرًا (10)

इन आयतों का अनुवाद है:

और कितनी ही बस्तियाँ ऐसी हैं जिन्होंने अपने रब और उसके रसूलों के हुक्म की नाफ़रमानी की, तो हमने उनका सख़्त हिसाब लिया और उन्हें एक भयानक अज़ाब दिया। [65:8] फिर उन्होंने अपने कामों का बुरा नतीजा चखा और उनके काम का अंजाम नुक़सान ही था।[65:9] अल्लाह ने उनके लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है, इसलिए ऐ समझदार लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह ने तुम्हारी तरफ़ नसीहत (का ज़रिया) उतारी है। [65:10]

 

पिछले प्रोग्राम में तलाक़ मसले पर पारिवारिक हुक्मों की बात हो रही थी। इन आयतों में, अल्लाह मुसलमानों को चेतावनी देता है कि अगर तुम हर तरह के इंसानी, पारिवारिक और सामाजिक मामलों में अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ नहीं चलोगे, तो पहले के लोगों की तरह, उसके सख़्त नतीजों में फंस जाओगे।

 

अल्लाह की नाफ़रमानी की एक सख़्त सज़ा है जो दुनिया और आख़िरत दोनों में इंसान को आ घेरती है। हालांकि यह सज़ा इंसाफ और सही हिसाब-किताब पर आधारित है ताकि एक तरफ़ किसी पर ज़ुल्म न हो और दूसरी तरफ़, अच्छे काम करने वालों और बुरे काम करने वालों के बीच फ़र्क़ किया जा सके।

 

आयतों में आगे कहा गया है: पहले के अवज्ञाकारी लोगों से सबक़ लो और जान लो कि जिन लोगों ने नाफ़र्मानी की, उनका अंजाम दुनिया और आख़िरत में घाटे और नुक़सान के सिवा कुछ नहीं था; यह मत समझो कि वह लोग चालाक और होशियार थे और दुनिया में जीतने वाले थे, क्योंकि इंसान की ज़िंदगी मौत के साथ ख़त्म नहीं हो जाती और ज़रूरी चीज़ है उसकी आख़िरत में हालत और क़िस्मत।

कुछ लोग यह सोचते हैं कि दुनिया की सज़ा, इंसान को आख़िरत की सज़ा से बचा लेती है, हालांकि हर एक सज़ा अल्लाह की नाफ़रमानी के मुताबिक़ इंसान को मिलती है। सोच-विचार वाला इंसान जो अल्लाह पर ईमान रखता है, वह जानता है कि दुनिया और आख़िरत की सज़ा से बचने का एक ही रास्ता है, अल्लाह का डर  और उसकी नाफ़रमानी से बचना।

 

इन आयतों से हमने सीखा:

   अल्लाह और उसके रसूलों के हुक्मों से बग़ावत और नाफ़रमानी, दुनिया में नुक़सान और बर्बादी और आख़िरत में सख़्त सज़ा लेकर आती है।

   उन छोटी-मोटी खुशियों और सुखों से मत फँसो जो अल्लाह की नाफ़रमानी और बग़ावत के साथ मिलते हैं; बल्कि बहुत ज़रूरी मसला है इंसान का अंजाम और उसका अंत।

 

   अक़्ल और ईमान एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। अक़्ल की पैरवी इंसान को ईमान तक पहुँचाती है और उसमें अल्लाह का डर और परहेज़गारी पैदा करती है।

   अक़्ल और वहि इंसान की नजात के ज़रिए हैं। यह दोनों हमेशा इंसान को बुराइयों से रोकते हैं और उसे याद दिलाते और चेतावनी देते हैं ताकि वह हमेशा की ख़ुशी और सुख तक पहुँच जाए।

 

आइए अब सूरए तलाक़ की आयत नंबर 11 की तिलावत सुनते हैं:

 

رَسُولًا يَتْلُو عَلَيْكُمْ آَيَاتِ اللَّهِ مُبَيِّنَاتٍ لِيُخْرِجَ الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَمَنْ يُؤْمِنْ بِاللَّهِ وَيَعْمَلْ صَالِحًا يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا قَدْ أَحْسَنَ اللَّهُ لَهُ رِزْقًا (11)

इस आयत का अनुवाद है:

 

एक रसूल जो तुम पर अल्लाह की स्पष्ट आयतें पढ़ता है ताकि जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए उन्हें अंधेरों से उजाले की तरफ निकाले, और जो कोई अल्लाह पर ईमान लाएगा और अच्छा काम करेगा, अल्लाह उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके (पेड़ों के) नीचे नहरें बह रही हैं, वह उसमें हमेशा हमेशा रहेंगे। निश्चय ही अल्लाह ने उसके लिए अच्छा रोज़ी मुहैया कर दी है।[65:11]

 

क़ुरआन के नाज़िल होने के साथ-साथ, अल्लाह ने एक पैग़म्बर भेजा जो किताब-ए-ख़ुदा की साफ़ आयतों के आधार पर लोगों को बुराइयों से अच्छाइयों की तरफ़ बुलाए और वह लोग ईमान और अच्छे अमल से इस दावत को कुबूल करें और दुनिया और आख़िरत की खुशी हासिल करें। यह याद रखना ज़रूरी है कि हर तरह का शिर्क, कुफ़्र और नेफ़ाक़ विचार में, और हर तरह की बिगाड़, बुराई और गुनाह अमल में, इंसान के लिए एक तरह का अंधेरा और तारीकी है। इसी वजह से, पैग़म्बर आए हैं ताकि इंसान को विचार और अक़ीदे में तौहीद तक पहुँचाएँ और अमल में भी भलाई और अच्छाई की तरफ़ बुलाएँ। इस तरह, इंसान अंधेरे से उजाले की तरफ़ हिदायत पा जाता है और खुशनसीब हो जाता है।

 

हालांकि गुनाह और बिगाड़ और बुराई करने में एक तरह का मज़ा और खुशी होती है, लेकिन बेशक, यह मज़ा थोड़े समय का और टिकाऊ नहीं होता। लेकिन जो व्यक्ति अच्छे अमल वाला है, वह उन टिकाऊ और स्थायी खुशियों तक पहुँचता है जिन तक इस नश्वर दुनिया में पहुँचना मुमकिन नहीं है और सिर्फ़ आख़िरत की जन्नत में ही उन अनंत खुशियों और सुखों का फ़ायदा उठाया जा सकता है। उस जन्नत में, अल्लाह ने नेक लोगों के लिए बेहतरीन रोज़ी तैयार कर रखी है।

 

इस आयत से हमने सीखा:

 

   इंसानों की हिदायत के लिए सिर्फ़ आसमानी किताब काफ़ी नहीं है, बल्कि एक पैग़म्बर का होना ज़रूरी है जो उस किताब की तालीम के आधार पर लोगों को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हिदायत दे और उनके लिए एक नमूना और मिसाल बने।

 

   बातिल रास्ते कई और बिखरे हुए हैं, इसलिए 'तारीकी' शब्द बहुवचन के रूप में आया है, लेकिन हक़ का रास्ता सिर्फ़ एक ही है, इसी वजह से 'नूर' शब्द एकवचन के रूप में आया है।

   पैग़म्बरों के भेजे जाने का मक़सद, इंसान को ख़ुद बनाए हुए अंधेरों से निकालना और उसे हक़ के रोशन रास्ते की तरफ़ ले जाना है।

 

अब आइए सुरए तलाक़ की आयत नंबर 12 की तिलावत सुनते हैं:

 

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ وَمِنَ الْأَرْضِ مِثْلَهُنَّ يَتَنَزَّلُ الْأَمْرُ بَيْنَهُنَّ لِتَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ وَأَنَّ اللَّهَ قَدْ أَحَاطَ بِكُلِّ شَيْءٍ عِلْمًا (12)

 

इस आयत का अनुवाद है:

 

अल्लाह वह है जिसने सात आसमान बनाए और ज़मीन से भी उसके जैसी बनाईं। उसका हुक्म हमेशा उन के बीच उतरता रहता है ताकि तुम जान लो कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है और यह कि अल्लाह का इल्म हर चीज़ को घेरे हुए है।[65:12]

 

यह आयत जो सुरए तलाक़ की आख़िरी आयत है, दुनिया की बड़ाई और अल्लाह की रचना और दुनिया की व्यवस्था में उसकी अनंत ताक़त की तरफ़ इशारा करती है और फरमाती है: सात आसमान और सात ज़मीनों को अल्लाह ने बनाया है। हो सकता है कि इस आयत में 'सात' से मुराद आसमान के तारों की बहुतायत या ज़मीन जैसी हालत वाले ग्रहों की बहुतायत हो; या फिर हो सकता है कि यह दुनिया में एक ऐसी हक़ीक़त की तरफ़ इशारा हो जो अभी तक इंसान पर ज़ाहिर नहीं हुई है और आगे चलकर विज्ञान की तरक़्क़ी के साथ उसके लिए साफ़ हो जाएगी।

 

लेकिन सिर्फ रचना काफी नहीं है, इस बड़ी दुनिया की देख-रेख और व्यवस्था जिसकी शुरुआत और अंत और पहलू (आयाम) बहुत ही तरक़्क़ी याफ़्ता उपकरणों और दूरबीनों के बावजूद आज भी इंसान के लिए अनजान हैं, एक और ज़्यादा अहम मामला है जो पैदा करने वाले के इल्म और अनंत ताक़त को बयान करता है।

 

इस आयत से हमने सीखा:

 

   अल्लाह जिस पर हम ईमान रखते हैं, वह ख़ालिक़ भी है और पालनहार भी; यानी दुनिया की रचना भी उसी के हाथ में है और उसके मामलों की व्यवस्था भी। इसलिए क़ुरआन में अल्लाह के बारे में दो ऐसे शब्द जो दूसरे शब्दों से ज़्यादा इस्तेमाल हुए हैं, वह हैं 'ख़ालिक़' और 'रब'।

 

   दुनिया अल्लाह और उसकी बड़ाई को पहचानने के लिए सबसे बड़ी पाठशाला है, हालांकि कुछ लोग सिर्फ़ बनाई हुई चीज़ों की तरफ देखते हैं और बनाने वाले से ग़ाफ़िल रहते हैं।

   अल्लाह का इल्म हर चीज़ के बारे में पूरा, सही और बिना किसी कमी के है।