Dr Hemant Kumar
Jun ०५, २०१६ १३:२७ Asia/Kolkata
आँखे तालाब नहीं, फिर भी, भर आती है!
आँखे तालाब नहीं, फिर भी, भर
आती है!
दुश्मनी बीज नही, फिर भी, बोयी जाती है!
होठ कपड़ा नही, फिर
भी, सिल जाते है!
किस्मत सखी नहीं, फिर भी, रुठ जाती है!
बुद्वि लोहा नही, फिर भी, जंग लग जाती
है!
आत्मसम्मान शरीर नहीं, फिर भी, घायल हो जाता है! और,
इन्सान मौसम नही, फिर भी, बदल जाता है!.....