क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-910
सूरए शूरा, आयतें 29-35
आइए सबसे पहले सूरए शूरा की आयत संख्या 29 की तिलावत सुनते हैं:
وَمِنْ آَيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِنْ دَابَّةٍ وَهُوَ عَلَى جَمْعِهِمْ إِذَا يَشَاءُ قَدِيرٌ (29)
इस आयत का अनुवाद हैः
और उस की (क़ुदरत की) निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना है और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन के बीच फैला रखे हैं और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है।[42:29]
पिछले कार्यक्रम में बारिश के बारे में बात हुई कि वो ज़मीन में नई जान पड़ जाने का सबब और अल्लाह की रहमत की निशानी है। यह आयत कहती है कि आसमान और ज़मीन की रचना और उनके बीच छोटे बड़े अनगिनत क़िस्मों के जानदारों का वजूद अल्लाह की शक्ति और ज्ञान की निशानी है। आसमान के अंदर विशाल आकाश गंगाएं जिनमें अरबों तारे हैं और उनका अध्ययन करके इंसान हैरत में डूब जाता है, ज़मीन और उसमें तरह तरह के पेड़ पौधे, दूसरी अनेक सुदंरताएं और नेमतें यह सब उसकी आयतें और निशानियां हैं। इसी तरह ज़मीन और आसमान के जीव जंतु, तरह तरह के पक्षी, अनेक प्रकार के जंगली और पालतू जानवर, अति सूक्ष्म मछलियां और विशाल व्हेल मछलियां, और उनमें से हर एक के निर्माण में नज़र आने वाली नज़ाकतें और गहराइयां यह सब की सब अल्लाह की निशानियां हैं।
ज़ाहिर है कि जिसने यह विशाल ब्रहमांड और व्यवस्था पैदा की है वो क़यामत लाने की ताक़त भी रखता है और वहां इन जानदारों में जिसे चाहे एकत्रित कर सकता है।
इस आयत में दो बड़े रोचक बिंदु हैं। एक तो यह कि इसमें बताया गया है कि ज़मीन के अलावा आसमानी ग्रहों में भी उन रचनाओं की बात है जो चल फिर सकती हैं। दूसरा बिंदु क़यामत के दिन दूसरे जानदारों को भी एकत्रित करने से संबंधित है।
यह जमा करना दो उद्देश्य से हो सकता है। एक तो सज़ा और इनाम देने के लिए। अलबत्ता यह तब है जब हम मानें की उनकी बुद्धि और एहसास है। दूसरा उद्देश्य यह कि उन्हें उन जानदारों की हैसियत से जमा किया जाए कि वे जीवन तो रखते हैं लेकिन उनके पास तर्क वितर्क में सक्षम बुद्धि नहीं है बल्कि कुछ स्वाभाविक इच्छाएं हैं तो उन्हें कोई सज़ा या इनाम नहीं मिलेगा। क़ुरआन ने कई आयतों में जानदारों को एकत्रित किए जाने की बात कही है मगर उन्हें सज़ा या इनाम देने के बारे में कोई बात नहीं की है।
इस आयत से हमने सीखाः
चीज़ों और प्राणियों की रचना का सीधा मतलब यह है कि क़यामत में उन्हें दोबारा पैदा किया जा सकता है।
जानदार प्राणी केवल वही नहीं हैं जो हम ज़मीन पर देखते हैं बल्कि आसमानों में भी जीवन रखने वाली रचनाएं मौजूद हैं।
जानदारों को फैलाना और एकत्रित करना अल्लाह की इच्छा और आदेश पर निर्भर है, इसमें इंसान की कोई भूमिका नहीं है।
अब आइए सूरए शूरा की आयत संख्या 30 और 31 की तिलावत सुनते हैं,
وَمَا أَصَابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَنْ كَثِيرٍ (30) وَمَا أَنْتُمْ بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ (31)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों की करतूत से है और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ़ कर देता है।[42:30] और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो ख़ुदा को किसी तरह हरा नहीं सकते (कि अल्लाह के वर्चस्व से बाहर निकल जाओ) और ख़ुदा के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार।[42:31]
पिछली आयत में जानदारों को क़यामत के दिन जमा किए जाने के बारे में बताया गया। अब यह आयतें कहती हैं कि एसा नहीं है कि दुनिया में कोई सज़ा और इनाम नहीं है और इंसान जिस तरह चाहे अमल करे उसे किसी ग़लती की कोई सज़ा नहीं दी जाएगी। बहुत से काम हैं जो इंसान अपने चयन और अपनी मर्ज़ी से करता है और उसका प्राकृतिक रूप से असर होता है और इसी दुनिया में उसे ख़मियाज़ा भुगतना पड़ता है। इंसान को अपने बुरे कर्मों के नतीजे का सामना करना पड़ता है। यह भी अल्लाह की तरफ़ से दी जाने वाली सज़ा है जो वो दुनिया के लिए निर्धारत कर दिए गए नियमों और व्यवस्थाओं के ज़रिए देता है।
इसका मतलब यह है कि इंसान जो अमल करता है, आख़ेरत में उसकी सज़ा या बदला मिलने के अलावा दुनिया में भी उसे अपने कर्मों के नतीजे से रूबरू होना पड़ता है। सूरए रोम की आयत संख्या 41 में कहा गया है कि लोगों ने जो काम किए उनकी वजह से ज़मीन और समुद्र में तबाही व बर्बादी खुलकर सामने आई है ताकि अल्लाह उनके कुछ कर्मों का नतीजा उन्हें दिखाए कि शायद वे सत्य के मार्ग की तरफ़ लौट आएं।
आयत आगे कहती है कि कुछ इंसान इस भ्रम में रहते हैं कि दुनिया में अपने कर्मों का ख़मियाज़ा भुगतने से बच सकते हैं, अल्लाह के क़ानूनों और नियमों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं और कोई सज़ा पाए बग़ैर अपनी मनमानी कर सकते हैं। जबकि सच्चाई तो यह है कि वे आसमान पर चले जाएं या ज़मीन पर, जहां कहीं भी हों हर जगह अल्लाह के क़ानून का ही राज है और इस कायनात पर अल्लाह के अलावा किसी का अख़तियार नहीं है।
इन आयतों से हमने सीखाः
बहुत सारी कड़वी घटनाएं जो इंसान की ज़िंदगी में होती हैं वो ख़ुद उसके अमल का स्वाभाविक परिणाम हैं।
इंसान की मुश्किलें उसकी ग़लतियों का थोड़ा सा ख़मियाज़ा है क्योंकि अल्लाह की बख़्शिश की वजह से इंसान अपने बहुत से ग़लत कामों का नतीजा भुगतने से बच जाता है और अल्लाह उसकी ग़लतियों को माफ़ कर देता है।
अल्लाह की शक्ति के सामने इंसान पूरी तरह बेबस है वो अल्लाह के वर्चस्व के दायरे से हरगिज़ बाहर नहीं निकल सकता।
अब आइए सूरा शूरा की आयत संख्या 32 से 35 तक की तिलावत सुनते हैं,
وَمِنْ آَيَاتِهِ الْجَوَارِ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ (32) إِنْ يَشَأْ يُسْكِنِ الرِّيحَ فَيَظْلَلْنَ رَوَاكِدَ عَلَى ظَهْرِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ (33) أَوْ يُوبِقْهُنَّ بِمَا كَسَبُوا وَيَعْفُ عَنْ كَثِيرٍ (34) وَيَعْلَمَ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آَيَاتِنَا مَا لَهُمْ مِنْ مَحِيصٍ (35)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से समन्दर में (चलने वाले) बादबानी जहाज़ हैं जो गोया पहाड़ हैं। [42:32] अगर ख़ुदा चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएँ बेशक तमाम सब्र और शुक्र करने वालों के वास्ते इन बातों में (ख़ुदा की क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं।[42:33] (या वह चाहे तो) उनको उनके (बुरे) कर्मों के सबब तबाह कर दे।[42:34] और वह बहुत कुछ माफ़ करता है और जो लोग हमारी निशानियों में (ख़्वाहमाख़्वाह) झगड़ा करते हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि उनको किसी तरह (अज़ाब से) छुटकारा नहीं।[42:35]
पिछली आयतों के ही क्रम में जिनमें अल्लाह के इल्म, शक्ति और रहमत की निशानियों का ज़िक्र था और बारिश की चर्चा थी, अब इस आयत में इंसान की ज़िंदगी में हवा की भूमिका का उल्लेख किया गया है। आयत कहती है कि सामान या यात्रियों को ढोने वाले जहाज़ समुद्र के पानी पर तैरते हैं, उनका पानी में डूब न जाना अल्लाह शक्ति की निशानी है इसलिए कि अल्लाह ने ही पानी में यह ख़ासियत रखी है कि जहाज़ उस पर तैरते हैं और डूबते नहीं। इसी तरह पानी के ऊपर जहाज़ों का सफ़र जो बादबानों की मदद से और हवा की मुख्य भूमिका से अंजाम पाता है अल्लाह की रहमत की निशानी है।
अलबत्ता आज बड़े जहाज़ ताक़तवर इंजन की मदद से समुद्र में हज़ारों किलोमीटर का सफ़र करते हैं और बहुत बड़ी मात्रा में सामान और भारी संख्या में यात्रियों को लाते ले जाते हैं वो भी प्रकृति के भीतर अल्लाह की ओर से रखे गए नियमों का फ़ायदा उठाते हैं जिनका इंसान ने अपने शोध के माध्यम से पता लगाया है। प्रकृति के यह नियम अल्लाह के बनाए हुए हैं इंसान के बनाए हुए नहीं है। इंसान इन नियमों का फ़ायदा उठाता है।
आयत में आगे कहा गया है कि अगर अल्लाह इरादा कर ले और हवा को रोक दे तो जहाज़ समुद्र के ऊपर ठहर जाएंगे इस सब्र व शुक्र करने वाले के लिए इसमें निशानियां हैं।
छोटे बड़े जहाज़ों का पानी पर ठहरे रहना और चलना तथा गंतव्य तक पहुंचना यह सब कुछ अल्लाह के अख़्तियार में है। क्योंकि अगर अल्लाह चाहे तो जहाज़ अपने यात्रियों समेत डूब जाएं। अलबत्ता यह उन कुकर्मों की सज़ा है जो इंसान ने अंजाम दिए हैं। मगर अल्लाह बहुत से गुनाहों और उन पर दी जाने वाली सज़ाओं को नज़रअंदाज़ कर देता है। क्योंकि अगर इंसानों को उनके किए पर सज़ा दी जाती तो ज़मीन पर कोई बाक़ी न रह पाता। मगर ज़िद्दी लोग प्रकृति की व्यवस्था में अल्लाह की शक्ति और हिकमत की भूमिका को मानने पर तैयार नहीं होते। उनकी हमेशा कोशिश होती है कि अल्लाह की निशानियों का इंकार करें और मोमिन बंदों से बहस करें। मगर उन्हें एक दिन पता चल जाएगा अल्लाह की शक्ति और नियंत्रण से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है।
इन आयतों से हमने सीखाः
जीवों की रचना ही नहीं बल्कि पत्थरों और द्रवों पर लागू क़ानून सब कुछ अल्लाह की शक्ति और रहमत की निशानियां हैं इनमें एक निशानी पानी के ऊपर विशालकाय पहाड़नुमा जहाज़ों का सफ़र करना है।
अल्लाह की नेमतें मिलें तो संयम और शुक्र से काम लेना चाहिए कभी अल्लाह की इच्छा यह होती है कि इंसान कठिनाइयों को झेले तो इस मौक़े पर भी सब्र करना चाहिए। कभी इंसान को सुविधापूर्ण जीवन दिया जाता है तो इसपर उसे चाहिए कि शुक्र करे।
हम इंसानों के काम हमेशा हमें विनाश के रास्त पर डाल देते हैं। अब अगर हम बच जाते हैं तो यह अल्लाह का करम है।
प्रकृति की पूरी व्यवस्था को केवल भौतिक नज़र से नहीं देखना चाहिए बल्कि हमें मालूम होना चाहिए कि पूरी प्रकृति की रचना और संचालन में अल्लाह का हाथ है। क्योंकि अगर हम यह नहीं करेंगे तो दुनिया के संचालन में अल्लाह की हिकमत, शक्ति और ज्ञान को हम समझ ही नहीं पाएंगे।