क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-926
सूरए ज़ुख़रुफ़, आयतें 79-84
आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 79 और 80 की तिलावत सुनते हैं,
أَمْ أَبْرَمُوا أَمْرًا فَإِنَّا مُبْرِمُونَ (79) أَمْ يَحْسَبُونَ أَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَاهُمْ بَلَى وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُونَ (80)
इन आयतों का अनुवाद हैः
क्या उन लोगों ने (हक़ का विरोध करने और उसके ख़िलाफ़ साज़िश करने की) कोई बात ठान ली है तो हमने भी कुछ ठान लिया है। [43:79] क्या ये लोग कुछ समझते हैं कि हम उनके भेद और उनकी सरगोशियों को नहीं सुनते। क्यों नहीं! (हम ज़रूर सुनते हैं) और हमारे फ़रिश्ते उनके पास हैं और (उनकी सब बातें) लिखते जाते हैं। [43:80]
पिछले कार्यक्रम के आख़िरी भाग में उन काफ़िरों और मुशरिकों की बात हुई जो हक़ को स्वीकार करने पर तैयार नहीं होते थे। अब यह आयत कहती है कि इतना ही नहीं कि वे हक़ और सत्य से भागते थे बल्कि उसका विरोध करते थे। वे हक़ और सत्य को कमज़ोर करना और इस प्रकाश को ख़त्म कर देने की साज़िशें रचते थे और तरह तरह के मंसूबे बनाते थे। उन्होंने हक़ और सत्य को मिटा देने की ठान ली थी लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उनके सामने अल्लाह है और अल्लाह का इरादा उनकी इच्छाओं और योजनाओं से बहुत ऊपर है। यह संभव नहीं है कि वे जो कुछ ठान लें वही हो जाएगा।
साज़िश रचने वाले विरोधी समझ रहे थे कि उनकी ख़ुफ़िया बैठकें और बातें अल्लाह से छिपी हुई हैं। अल्लाह उन्हें नहीं देख रहा है और उनकी बातें भी नहीं सुन रहा है। जबकि अल्लाह उनकी उन बातों को भी सुनता है जो वे एक दूसरे के कान में सरगोशी के तौर पर कहते थे। क्योंकि अल्लाह के लिए निहित और विदित सारी चीज़ें एक समान हैं। अल्लाह के फ़रिशते भी हर जगह मौजूद होते हैं और इंसानों की बातों और कर्मों का पूरा हिसाब किताब लिखते जाते हैं। यहां तक कि उनकी कानाफूसियों को भी दर्ज करते रहते हैं। उनसे कोई भी चीज़ छिपी नहीं रहती।
इन आयतों से हमने सीखाः
कोई भी फ़ैसला कितना ही पक्का क्यों न हो अल्लाह के इरादे के ख़िलाफ़ कभी भी व्यवहारिक नहीं हो सकता अगर अल्लाह न चाहे तो वो पूरा हो ही नहीं सकता।
विरोधी इस भूल में थे कि अल्लाह उनकी ख़ुफ़िया बातों को नहीं जानता जबकि इंसान जो भी करता या कहता है अल्लाह के फ़रिश्ते वह सब लिखते रहते हैं। अल्लाह की ओर से निर्धारित किए गए फ़रिश्तों से कोई भी चीज़ छिपी नहीं है।
अब आइए सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 81 और 82 की तिलावत सुनते हैं,
قُلْ إِنْ كَانَ لِلرَّحْمَنِ وَلَدٌ فَأَنَا أَوَّلُ الْعَابِدِينَ (81) سُبْحَانَ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ (82)
इन आयतों का अनुवाद हैः
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा की कोई औलाद होती तो मैं सबसे पहले उसकी इबादत को तैयार हूँ। [43:81] ये लोग जो कुछ बयान करते हैं सारे आसमान व ज़मीन का मालिक अर्श का मालिक (ख़ुदा) उससे पाक व पाक़ीज़ा है। [43:82]
इस सूरे की शुरुआती आयतों में बताया गया कि मुशरिकों का यह मानना था कि फ़रिश्ते अल्लाह की संतान हैं। बाद की आयतों में बताया गया कि ईसाई यह मानते हैं कि हज़रत ईसा अल्लाह के बेटे हैं। अब यह आयतें इस प्रकार के अक़ीदे को ग़लत और बेबुनियाद बताते हुए कहती हैं कि अगर अल्लाह की औलाद होती तो उन संतानों की भी इबादत की जाती और उनकी इबादत करने वालों में सबसे आगे पैग़म्बर होते। जबकि अल्लाह पत्नी और संतान इस तरह की चीज़ों से पाक व पाकीज़ा है। दूसरी बात यह है कि अल्लाह ने अपनकी मख़लूक़ में से चाहे वे फ़रिश्ते हों या इंसान किसी की भी इबादत का हुक्म नहीं दिया है।
आयतें आगे जाकर कहती हैं कि अल्लाह जो आसमानों और ज़मीन का मालिक और उनका संचालन करने वाला है जो अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है उसे संतान की ज़रूरत नहीं है। वो असीम अस्तित्व है और पूरी कायनात पर छाया हुआ है। संतान की ज़रूरत उसे होती है जो अपनी नस्ल जारी रखने के लिए अपनी संतान का मोहताज हो या उसे होती है जो बुढ़ाने और कमज़ोरी के समय सहारे के लिए संतान चाहता हो। दूसरी बात यह है कि संतान होने का यह भी अर्थ है कि अल्लाह को शरीर माना जाए और शरीर समय व स्थान के भीतर सीमित होता है। हालांकि अल्लाह ने तो सारी कायनात को पैदा किया है और सब कुछ उसके आदेश के अधीन है। अतः अल्लाह इस प्रकार की सारी चीज़ों से पाक है वो किसी भी चीज़ और किसी भी संतान का मोहताज नहीं है।
इन आयतों से हमने सीखाः
विरोधियों से बहस के समय सहनशीलता से काम लेना चाहिए और इस तरह बात करनी चाहिए कि अगर उनकी बात दुरुस्त हो तो क्या नतीजे निकल सकते हैं इस तरह साबित होगा कि उनकी बात दुरुस्त नहीं है।
बेशक अल्लाह हर प्रकार की कमी व कमज़ोरी और ज़रूरत से ऊपर है वो किसी भी इंसान से समरूपता नहीं रखता। इस लिए किसी भी इंसान रूपी मख़लूक़ को ख़ुदा नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस प्रकार का ख़ुदा इंसान की अवधारणा का नतीजा होता है और यह अल्लाह की वास्तविक विशेषताओं से अनभिज्ञता की वजह से होता है जो अनन्य है। आसमान और ज़मीन अपनी विशालता के बावजूद अल्लाह के संचालन के अधीन हैं इन सब के अख़्तियार का केन्द्र अल्लाह है और वही इन का संचालन करता है।
आइए अब सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 83 और 84 की तिलावत सुनते हैं,
فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ (83) وَهُوَ الَّذِي فِي السَّمَاءِ إِلَهٌ وَفِي الْأَرْضِ إِلَهٌ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ (84)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो तुम उन्हें छोड़ दो कि पड़े बक बक करते और खेलते रहते हैं यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वादा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो [43:83] और आसमान में भी (उसी की इबादत की जाती है और वही ज़मीन में भी माबूद है और वही जानकार और हिकमत वाला है। [43:84]
पैग़म्बरों को इंसानों के मार्गदर्शन के लिए भेजा गया। उन्होंने इस लक्ष्य के लिए पूरी हमदर्दी से काम किया और मेहनत की। उन्होंने अलग अलग रास्ते और तरीक़े आज़माए कि लोगों की हिदायत हो जाए और उन्हें मुक्ति मिले। यह आयतें कहती हैं कि इस हमदर्दी की भी एक सीमा है। जब कुछ लोग किसी भी तरह सही रास्ते पर आने के लिए तैयार न हों तो उन्हें सौभाग्य के रास्ते पर लाने का कोई रास्ता नहीं बचता। उन्हें फिर उनके हाल पर छोड़ देना होता है ताकि वे अपने ग़लत चयन का नतीजा देखें और बातिल व असत्य की गहराइयों में गिर जाने का ख़मियाज़ा भुगतें। शायद उस समय उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो और वे वापस लौट आएं। यह भी संभव है कि वे पूरी उम्र उसी ग़लत रास्ते पर चलते रहें और वापस न आएं यहां तक कि क़यामत का दिन आए और तब उन्हें अपने बुरे कर्मों और ग़लत विचारों के नतीजे से रूबरू होना पड़े।
आयतें आगे जाकर कहती हैं कि अल्लाह की इससे कोई ज़रूरत पूरी नहीं होती कि लोग ईमान लाएं। वो कहता है कि काफ़िर इस भ्रम में न रहें कि अल्लाह को उनकी इबादत की ज़रूरत है और उनका कुफ़्र और उद्दंडता अल्लाह की ख़ुदाई को नुक़सान पहुंचा देगा। वो तो आसमानों का ख़ुदा हे, ज़मीन का ख़ुदा है और सारी कायनात का पूज्य व माबूद है। दूसरे शब्दों में अस्ली पूज्य और माबूद वही है जो कायनात को चला रहा है। इसलिए फ़रिश्ते, मूर्तियां या चांद सूरज, सितारे कोई भी इबादत के योग्य नहीं है। वे ख़ुद भी अल्लाह की मख़लूक़ हैं और उनका पूरा अस्तित्व अल्लाह पर निर्भर है। इन आयतों के आख़िर में कहा गया है कि अल्लाह को हर चीज़ की ख़बर है और दुनिया को अपने असीम इल्म व हिकमत के आधार पर चलाता है।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बर इसलिए भेजे गए हैं कि वे इंसानों की हिदायत करें इसका यह मतलब नहीं कि वे इंसानों को मजबूर करेंगे या उनकी ख़ुशामद करेंगे।
अक़ीदे के मामले में दलील और हुज्जत पेश कर देने के बाद इंसानों को मजबूर नहीं किय जाता कि वे उसे क़ुबूल करें बल्कि उन्हें आज़ाद छोड़ देना चाहिए कि ख़ुद अपने रास्ते का चयन करें।
अल्लाह इंसानों में किसी का मोहताज नहीं है तो उनकी इबादत और बंदगी का ज़रूरतमंद होने का सवाल ही नहीं पैदा होता। जब हम नहीं थे तब भी वो ख़ुदा था और जब हम दुनिया स चले जाएंगे तब भी वो ख़ुदा रहेगा। वो आसमानों, ज़मीन और हर वस्तु और मख़लूक़ का ख़ुदा है।
माबूद और पूज्य वो है जो असीम ज्ञान व हिकमत का स्वामी हो।