Feb ०५, २०२५ १४:३४ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-930

सूरए दुख़ान, आयतें 19-27

आइए सबसे पहले सूरए दुख़ान की आयत संख्या 19 से 21 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَأَنْ لَا تَعْلُوا عَلَى اللَّهِ إِنِّي آَتِيكُمْ بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ (19) وَإِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمْ أَنْ تَرْجُمُونِ (20) وَإِنْ لَمْ تُؤْمِنُوا لِي    فَاعْتَزِلُونِ (21)

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

और ख़ुदा के सामने सरकशी न करो मैं तुम्हारे पास स्पष्ट व रौशन दलीलें ले कर आया हूँ।  [44:19] और इस बात से कि तुम मुझे संगसार करो मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (ख़ुदा) की पनाह मांगता हूँ। [44:20] और अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाए तो तुम मुझे छोड़कर अलग हो जाओ। [44:21]


पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि हज़रत मूसा को अल्लाह की तरफ़ से आदेश दिया गया कि फ़िरऔन के दरबार में जाएं और उससे कहें कि बनी इस्राईल क़ौम को दासता से आज़ाद करे। अब यह आयतें हज़रत मूसा की उस बातचीत को बयान करती हैं जो उन्होंने दरबार में कीः हे फ़िरऔन वालो! मैं तुम्हारे लिए तर्क संगत और ठोस प्रमाण लेकर आया हूं  और तुम्हें चमत्कार भी दिखा चुका हूं। तो अब अल्लाह के आदेश के सामने समर्पित हो जाओ, उसके सामने घमंड न करो और उसकी नाफ़रमानी से परहेज़ करो। हे फ़िरऔन के मानने वालो! यह न समझ लेना कि अगर मुझे क़त्ल की धमकी दोगे तो मैं अपने उस रास्ते से पीछे हट जाउंगा जो मैंने चुना है। मैं अल्लाह का रसूल हूं और तुम्हारी साज़िशों के मुक़ाबले में उसकी पनाह मागूंगा। अगर वो चाहेगा तो मुझे तुम्हारे सारे ख़तरों से बचा लेगा।

अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाना चाहते और अल्लाह के फ़रमान के आगे सिर नहीं झुकाना चाहते तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और मेरी कोशिशों और मेरे अनुयाइयों के प्रयासों के मार्ग में रुकावट न डालो।


इन आयतों से हमने सीखाः


घमंड और ख़ुद को दूसरे इंसानों से श्रेष्ठ समझना बुरी बात है जबकि अल्लाह के सामने घमंड जो इंसानों का पैदा करने वाला है, उनका रचयिता है, बेहद बुरी बात है।

पैग़म्बरों का पैग़ाम और दावत ठोस और अक़्ल में उतर जाने वाले तथ्यों व तर्कों के साथ होता था। विरोधी इसे अगर स्वीकार नहीं करते थे तो इसकी वजह उनका घमंड और स्वार्थ था, पैग़म्बरों की शिक्षाओं और पैग़ाम को न समझ पाना नहीं।

सत्य के रास्ते की दावत देने के मिशन में दुश्मनों का दबाव, यातनाएं और धमकियां हमारे इरादे को कमज़ोर न करने पाएं और उस राह से हमें हटा न दें।

धार्मिक मिशन और लक्ष्यों को आगे ले जाने के लिए कभी बड़ी ताक़तों से उलझने के बजाए उनसे दूरी बनाने की ज़ारूरत होती है ताकि मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अनुकूल हालात पैदा हों।

 

आइए अब सूरए दुख़ान की आयत संख्या 22 से 24 तक की तिलावत सुनते हैं,

فَدَعَا رَبَّهُ أَنَّ هَؤُلَاءِ قَوْمٌ مُجْرِمُونَ (22) فَأَسْرِ بِعِبَادِي لَيْلًا إِنَّكُمْ مُتَّبَعُونَ (23) وَاتْرُكِ الْبَحْرَ رَهْوًا إِنَّهُمْ جُنْدٌ مُغْرَقُونَ
(24)

इन आयतों का अनुवाद हैः


(फ़िरऔन वालों ने बात नहीं मानी) तब मूसा ने अपने परवरदिगार से दुआ की कि ये बड़े दुष्ट लोग हैं। [44:22] तो ख़ुदा ने हुक्म दिया कि तुम मेरे बन्दों (बनी इस्राईल) को रातों रात लेकर चले जाओ और तुम्हारा पीछा भी ज़रूर किया जाएगा। [44:23] और दरिया को अपनी हालत पर ठहरा हुआ छोड़ कर (पार हो) जाओ (तुम्हारे बाद) उनका सारा लशकर डुबो दिया जाएगा। [44:24]


जब हज़रत मूसा ने फ़िरऔन और उसके दरबार वालों को समझाने और डराने के सारे तरीक़े आज़मा लिए और कोई नतीजा नहीं मिला तो उन्होंने अल्लाह से दुआ की कि वो ख़ुद जिस तरह चाहे इस गुनहगार और भ्रष्ट क़ौम को सज़ा दे। अल्लाह ने उन्हें फ़रमान दिया कि बनी इस्राईल क़ौम को जो फ़िरऔन के समर्थकों के हाथों ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ दी गई थी, तैयार करें ताकि रातों रात उन्हें मिस्र से लेकर फ़िलिस्तीन रवाना हो जाएं। ज़ाहिर सी बात थी कि फ़िरऔन की सेना उनका पीछा ज़रूर करती।

मगर अल्लाह ने वादा किया कि उनके लिए रास्ते खोल देगा और उन्हें सुरक्षित  नील नदी पार करा देगा। इसलिए उन्हें परेशान होने और घबराने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि जब फ़िरऔन के सिपाही नील नदी में उतरेंगे तो अल्लाह के आदेश से नील में बना हुआ रास्ता ख़त्म हो जाएगा और वे पानी में डूब जाएंगे और हज़रत मूसा और उनके साथी तक उनके हाथ नहीं पहुचेंगे।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

 

आम लोगों पर पैग़म्बरों की बातों का असर न होने और उनकी दावत स्वीकार न करने की एक वजह उन लोगों का बुराइयों और पापों में लिप्त होना है।

बग़ैर मेहनत और काम किए दुआ करते रहने का कोई फ़ायदा नहीं है। हमें चाहिए कि अपने फ़रीज़े पर अमल करें, साथ ही अल्लाह से दुआ करें कि नतीजे और मंज़िल तक पहुंचाने में हमारी मदद करे और बंद रास्ते हमारे लिए खोल दे।

अगर अल्लाह ने चाह लिया तो नील जैसी बड़ी नदी मूसा और उनके साथियों के लिए सुरक्षित और अनुकूल हो जाएगी और फ़िरऔन और उसके साथियों के लिए कड़ी परीक्षा बन जाएगी और वे डूब कर ख़त्म हो जाएंगे।

 

आइए अब सूरए दुख़ान की आयत संख्या 25 से 27 तक की तिलावत सुनते हैं,

كَمْ تَرَكُوا مِنْ جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (25) وَزُرُوعٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ (26) وَنَعْمَةٍ كَانُوا فِيهَا فَاكِهِينَ (27)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

वह लोग कितने ज़्यादा बाग़ और चश्में और खेतियाँ छोड़कर चले गए। [44:25] और अच्छे मकानात और आराम की चीज़ें। [44:26] जिनमें वह ऐश और आराम किया करते थे। [44:27]


फ़िरऔन और उसके लशकर वालों के नील नदी में डूब जाने की बात पिछली आयतों में कही गई अब यह आयतें इसके आगे कहती हैं कि फ़िरऔन जो ख़ुदा होने का दावा करता था और हज़रत मूसा का पैग़ाम और संदेश स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, वो सब कुछ गवां बैठा जो उसके पास था। यह सारी चीज़ें बनी इस्राईल को मिल गईं। अजीब बात यह है कि एक पूरी क़ौम जो कुछ घंटे पहले तक दासता की ज़ंजीर में जकड़ी हुई थी अचानक फ़िरऔन के ताज और मुल्क की मालिक बन गई। उसके सारे काग़, दरबार, महल और संपत्ति सब कुछ उस क़ौम को मिल गया।

केवल महल और बाग़ ही नहीं बल्कि फ़िरऔनियों के पास जीवन की जो भी सुविधाएं थीं वह सब उन्हें मिल गईं। जबकि फ़िरऔन वाले सारे नील नदी में जाकर डूब गए और उनके शव पानी में तैरते एक जगह से दूसरी जगह इसी तरह भटकते रहे।

यह सब अल्लाह के चमत्कार थे कि हज़रत मूसा ने नील नदी पर अपनी छड़ी मारी तो पानी का बहाव रुक गया और पानी के बीच में से एक रास्ता बन गया। बनी इस्राईल के गुज़रने के लिए एक रास्ता बन गया। उन्होंने शांति के साथ नील नदी पार कर ली। मगर जब फ़िरऔन और उसका लशकर उसी रास्ते पर आगे बढ़े तो नील की लहरों ने उन्हें निगल लिया।

 

इन आयतों से हमने सीखाः


अल्लाह का इरादा हर दूसरे इरादे पर प्राथमिकता रखता है। अल्लाह के इरादे से ही पूरी तरह लैस फ़िरऔन का लशकर जो घोडों पर सवार था बनी इस्राईल के पैदल सफ़र कर रहे लोगों को घेरने और ख़त्म करने में नाकाम हो गया।

भौतिक संसाधन और सुविधाएं कल्याण और मुक्ति नहीं दिला सकतीं। महल और बड़े बड़े दुर्ग अल्लाह के अज़ाब के सामने टिक नहीं पाते।

दुनिया में मिलने वाली कामयाबी के लिए हमेशा मिट जाने का ख़तरा रहता है। बहुत सारे संसाधन दुनिया में बाक़ी रह जाते हैं और उनके अस्ली मालिक इस दुनिया से चले जाते हैं।

ताक़त और दौलत से इंसान की क़िस्मत नहीं सवंरती और उसका कल्याण नहीं होता बल्कि संभव है कि यही चीज़ें इंसान की तबाही और मिट जाने का सबब बन जाएं।