Feb ०५, २०२५ १७:२१ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-944

सूरए अहक़ाफ़, आयतें 19-23

 

सबसे पहले सूरए अहक़ाफ़ की 19वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

وَلِكُلٍّ دَرَجَاتٌ مِمَّا عَمِلُوا وَلِيُوَفِّيَهُمْ أَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ (19)

इस आयत का अनुवाद हैः

और लोगों ने जैसे काम किये होंगे उसी के मुताबिक सबके दर्जे होंगे और ये इसलिए कि ख़ुदा उनके अमल का उनको पूरा पूरा बदला दे और उन पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाए। [46:19]

 

पिछले कार्यक्रम में लोगों के दो समूहों की ओर संकेत किया गया था। एक वह समूह जो अपने माता-पिता के साथ नेकी करता है और अल्लाह पर ईमान रखता है और दूसरा वह समूह जो अल्लाह का इंकार करता है और अपने माता-पिता की उपेक्षा करता है।

यह आयत कहती है कि क़यामत के दिन अल्लाह दोनों गिरोहों को उनके कार्यों के हिसाब से दंड और प्रतिफल देगा और हर इंसान का दर्जा उसके अमल के हिसाब से एक दूसरे से भिन्न होगा। इसी प्रकार इस आयत में क़यामत के दिन अल्लाह के न्याय पर बल दिया गया है। इस आयत में अल्लाह कहता है कि हर इंसान को उसके अमल का पूरा बदला दिया जायेगा और किसी पर लेशमात्र भी ज़ुल्म नहीं किया जायेगा।

 

इस आयत से हमने सीखाः

लोक-परलोक में इंसान का भविष्य व अंजाम उसके हाथ में है और क़यामत में उसका स्थान दुनिया में अंजाम दिये गये उसके कर्मों का प्रतिफ़ल होगा।

समय बीतने से इंसान के आमाल मिट नहीं जाते बल्कि इंसान के अमल और उसके प्रभाव व परिणाम उसके नामाये आमाल में लिखे जाते हैं और क़यामत के दिन उन्हें ज़ाहिर किया जायेगा और वही अमल उसके दंड और प्रतिफल का मापदंड होगा।

 

आइये अब सूरए अहक़ाफ़ की 20वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ أَذْهَبْتُمْ طَيِّبَاتِكُمْ فِي حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُمْ بِهَا فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ بِمَا كُنْتُمْ تَسْتَكْبِرُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنْتُمْ تَفْسُقُونَ (20) 

 

इस आयत का अनुवाद हैः

 

और जिस दिन कुफ़्फ़ार जहन्नम के सामने लाए जाएँगे (तो उनसे कहा जाएगा कि) तुम अपनी दुनिया की ज़िन्दगी में अपने मज़े उड़ा चुके और उसमें ख़ूब चैन कर चुके तो आज तुम्हें ज़िल्लत का अज़ाब दिया जाएगा इसलिए कि तुम अपनी ज़मीन में अकड़ा करते थे और इसलिए कि तुम बदकारियां करते थे। [46:20]

दुनिया में अल्लाह की रहमत के साये में सब शामिल हैं चाहे मोमिन हों या काफ़िर। अल्लाह दुनिया की भौतिक नेमतों को काफ़िरों और मुशरिकों को भी देने में संकोच से काम नहीं लेता है। इस आयत में अल्लाह कहता है कि क़ाफिर और गुनहकार दुनिया में अल्लाह की नेमतों से काफ़ी हद तक लाभांवित होते हैं और वे किसी चीज़ से वंचित नहीं हैं मगर क़यामत के दिन अल्लाह की रहमत केवल नेक लोगों को मिलेगी। जिन लोगों ने हक़ का विरोध किया और दुश्मनी, घमंड और हठधर्मिता की वजह से हक़ को स्वीकार नहीं किया निश्चित रूप से कड़ा दंड उनकी प्रतीक्षा में है।

इस आयत से हमने सीखाः

दुनिया में अल्लाह की नेमत से लाभांवित होने के लिए उस पर ईमान रखना शर्त नहीं है बल्कि उसकी नेमतें एक प्रकार की आजीविका हैं जो इंसानों सहित वह अपनी समस्त सृष्टि व रचना को प्रदान करता है। 

अमल में घमंड न्याय के मार्ग से हटने का कारण बनता है।

क़यामत में ज़िल्लत एक दंड है और यह दंड उन लोगों को मिलेगा जो दुनिया में घमंड करते हैं और इज़्ज़त, श्रेष्ठता और ताक़त का दावा करते हैं।

 

आइये अब सूरए अहक़ाफ़ की 21वीं से 23वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَاذْكُرْ أَخَا عَادٍ إِذْ أَنْذَرَ قَوْمَهُ بِالْأَحْقَافِ وَقَدْ خَلَتِ النُّذُرُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ (21) قَالُوا أَجِئْتَنَا لِتَأْفِكَنَا عَنْ آَلِهَتِنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَا إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (22) قَالَ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللَّهِ وَأُبَلِّغُكُمْ مَا أُرْسِلْتُ بِهِ وَلَكِنِّي أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ (23) 

इन आयतों का अनुवाद हैः

 

और (ऐ रसूल) तुम आद के भाई (हूद) को याद करो जब उन्होंने अपनी क़ौम को (सरज़मीने) अहक़ाफ में डराया और उनके पहले और उनके बाद भी बहुत से डराने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे (और हूद ने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो क्योंकि तुम्हारे बारे में एक बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से डरता हूँ। [46:21]  वे बोले क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमको हमारे माबूदों से फेर दो तो अगर तुम सच्चे हो तो जिस अज़ाब की तुम हमें धमकी देते हो ले आओ।  [46:22] हूद ने कहा (इसका) इल्म तो बस ख़ुदा के पास है और (मैं जो अहकाम देकर भेजा गया हूँ) वह तुम्हें पहुँचाए देता हूँ मगर मैं तुमको देखता हूँ कि तुम जाहिल लोग हो।  [46:23]

ये आयतें हज़रत हूद और उनकी क़ौम की हालत बयान करती हैं। इन आयतों में अल्लाह कहता है हूद दूसरे पैग़म्बरों की भांति लोगों को बुतों की पूजा और बुरे कार्यों को अंजाम देने से रोकते थे मगर वे लोग अपने ग़लत कार्यों पर सोच-विचार के बजाये पैग़म्बरों का आह्वान करते थे कि जिस अज़ाब से वे हमें डरा रहे हैं और जिसका वादा हमें दे रहे हैं वह अज़ाब इसी दुनिया में उन पर नाज़िल हो जाये जबकि दंड अल्लाह के हाथ में है और अज़ाब के दुनिया में नाज़िल होने या आख़ेरत में होने में उनकी कोई भूमिका नहीं है। अतः हज़रत हूद पैग़म्बर ने उनके जवाब में फ़रमाया कि जो चीज़ तुम लोग मुझसे चाह रहे हो वह मेरे अधिकार में नहीं है और उसका ज्ञान अल्लाह को है। मैं केवल ईश्वरीय आदेशों को पहुंचाने का ज़िम्मेदार हूं। इसी प्रकार मुझे यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है कि तुम्हें अल्लाह की इबादत के लिए आमंत्रित करूं। मैं अपनी बात मानने के लिए तुम्हें मजबूर नहीं करता हूं और मेरे पास किसी को दंडित करने की क्षमता नहीं है। तुम लोग जो हक़ को क़बूल नहीं कर रहे हो और उस पर हठधर्मिता कर रहे हो उसकी वजह मैं तुम्हारी जिहालत में देख रहा हूं जो तुम्हारे न समझने और ईमान न लाने का कारण बन रही है।

 

इन आयतों से हमने सीखाः 

बुतों की पूजा करने वाली, मुशरिक और भ्रष्ट क़ौम के मुकाबले में पैग़म्बरों की ज़िम्मेदारी उन्हें चेतावनी दे देना है ताकि वे ख़तरे से अवगत हो जायें।

पूरे इतिहास में समस्त पैग़म्बरों का एक ही उद्देश्य था अल्लाह की उपासना की दावत देना और हर प्रकार के शिर्क और कुफ्र से रोकना। 

अगर इंसान को क़यामत के दिन पर आस्था हो जाये तो दुनिया में उसके व्यवहार में सुधार हो जायेगा।

पैग़म्बरों का दायित्व ईश्वरीय संदेशों को पहुंचाना था। अल्लाह की उपासना के लिए लोगों को मजबूर करना नहीं था।

ग़लत ताअस्सुब, भेदभाव, क़ौम क़बीले की आस्थायें इंसान की जेहालत की अलामत हैं और वे इस बात का कारण बनती हैं कि इंसान हक़ीक़त को समझने से दूर रह जाता है।