Mar १२, २०२५ १७:५० Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-969

सूरए क़ाफ़, आयतें 16 से 22

आइये सबसे पहले सूरए क़ाफ़ की 16वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

 

وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ (16)

इस आयत का अनुवाद हैः 

और बेशक हम ही ने इन्सान को पैदा किया और और उसका नफ़्स उसके अंदर जो बहकावे पैदा करता है हम उनको जानते हैं और हम तो उसकी शहरग से भी ज्यादा उसके क़रीब हैं।[50:16]  

इससे पहले वाले कार्यक्रम में हमने कहा था कि सूरए क़ाफ़ का मुख्य विषय क़यामत है। सूरए क़ाफ़ की यह आयत कहती है कि महान ईश्वर ने इंसान की रचना की और उसे पैदा किया है और वह उसके शरीर के समस्त अंगों व अंशों और इसी प्रकार उनकी समस्त हालतों से पूर्णरूप से अवगत है। 

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर न केवल इंसान के समस्त कर्मों से पूरी तरह अवगत है बल्कि उसके विचारों से भी पूर्णरूप से अवगत है। महान ईश्वर अपनी असीम कृपा से इंसान को उसकी बुरी सोचों के कारण उस वक़्त तक दंडित नहीं करता जब तक वह बुरा कार्य अंजाम नहीं देता। यानी महान ईश्वर इंसान को केवल बुरी सोच के कारण दंडित नहीं करता है मगर यह कि वह बुरा काम भी अंजाम दे दे। 

इंसान का जीवन उन रगों व धमनियों पर निर्भर है जो दिल सहित उसके शरीर के विभिन्न अंगों में ख़ून पहुंचाती हैं और महान ईश्वर इन रगों व धमनियों से भी इंसान से निकट है। क्योंकि इंसान की ज़िन्दगी वास्तव में महान ईश्वर के हाथ में है और दिल और रगें महान ईश्वर के इरादे को व्यवहारिक बनाने का मात्र माध्यम व साधन हैं। 

इस आयत से हमने सीखाः

महान ईश्वर का ज्ञान और शक्ति असीमित है और उसके ज्ञान और शक्ति की सीमा कल्पना से परे है। 

महान ईश्वर इंसान के न केवल समस्त कार्यों से पूर्णरूप से अवगत है बल्कि उसकी सोचों से भी पूर्णतः अवगत है। अतः अगर कोई यह सोचता है कि महान ईश्वर हमारे विचारों, सोचों और कारणों से अवगत नहीं है तो वह पूरी तरह ग़लत है।

अगर हम सजग व सावधान न रहें तो हमारा नफ़्स हमें विभिन्न तरीक़ों से ग़लत व अनुचित कार्यों के लिए उकसायेगा और यहां तक वह हमें उकसायेगा कि हम उसे अंजाम दे दें। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 17वीं और 18वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ (17) مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ (18)

 इन आयतों का अनुवाद हैः

जब (वह कोई काम करता है तो) दो लिखने वाले (केरामल क़ातेबीन) जो उसके दाहिने बाएं बैठे हैं लिख लेते हैं।[50:17]  कोई बात उसकी ज़बान पर नहीं आती मगर एक निगेहबान (उसे दर्ज करने के लिए) उसके पास तैयार रहता है।[50:18]  

 

इससे पहली वाली आयत इस बारे में थी कि महान ईश्वर इंसानों की समस्त सोचों से भी पूर्णतः अवगत है जबकि यह आयत इस बात की ओर इशारा करती है कि इंसान के समस्त कर्म लिखे जाते हैं। महान ईश्वर कहता है कि हर इंसान के लिए दो फ़रिश्तों को क़रार दिया है जो उसकी समस्त गतिविधियों पर नज़र रखे हुए हैं और वे इंसान के समस्त अच्छे और बुरे कार्यों को लिखते हैं और कोई भी चीज़ उनकी नज़रों से ओझल नहीं है। 

बहुत से लोग बात करने को काम का हिस्सा नहीं समझते हैं और उसे कोई विशेष महत्व नहीं देते हैं जबकि बात करने की इंसान के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः पवित्र क़ुरआन ने बात करने का उल्लेख अलग से किया है। महान ईश्वर कहता है कि जो बात इंसान के मुंह से बाहर निकलती है उसे भी दोनों फ़रिश्ते लिखते हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

महान ईश्वर इंसान के विदित और निहित से पूर्णरूप से अवगत है उसके बावजूद उसने हर काम के लिए एक साधन व ज़रिया बना रखा है। इसीलिए उसने हर इंसान पर दो फ़रिश्तों को नियत कर रखा है कि वे इंसान के समस्त कर्मों को दर्ज करें। 

फ़रिश्तों के होने पर ईमान रखना ग़ैब और महान ईश्वर पर ईमान रखने का एक मिसदाक़ है। 

इंसान न केवल अपने कार्यों बल्कि अपनी बातों के प्रति भी ज़िम्मेदार है और इंसान जो कुछ भी अंजाम देता व बोलता है उसे उसका हिसाब देना होगा। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 19वीं से 22वीं तक कि आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَجَاءَتْ سَكْرَةُ الْمَوْتِ بِالْحَقِّ ذَلِكَ مَا كُنْتَ مِنْهُ تَحِيدُ (19) وَنُفِخَ فِي الصُّورِ ذَلِكَ يَوْمُ الْوَعِيدِ (20) وَجَاءَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَعَهَا سَائِقٌ وَشَهِيدٌ (21) لَقَدْ كُنْتَ فِي غَفْلَةٍ مِنْ هَذَا فَكَشَفْنَا عَنْكَ غِطَاءَكَ فَبَصَرُكَ الْيَوْمَ حَدِيدٌ (22) 

 

इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार हैः

 

मौत की बेहोशी यक़ीनन तारी होगी (तो इंसान को बताया जाएगा कि) यही तो (वह हालत) है जिससे तू भागा करता था।[50:19]  और (क़यामत का) सूर फूँका जाएगा यही (अज़ाब) के वायदे का दिन है और हर शख़्स (हमारे सामने इस तरह) हाज़िर होगा।[50:20]  कि उसके साथ एक (फरिश्ता) हॅका लाने वाला होगा  और एक (आमाल का) गवाह [50:21] उससे कहा जाएगा कि उस (दिन) से तू ग़फ़लत में पड़ा था तो अब हमने तेरे सामने से पर्दे को हटा दिया तो आज तेरी निगाह बड़ी तेज़ है। [50:22]

 

मौत के समय इंसान पर अजीब भय तारी होता है। उसे अजीब व्याकुलता होती है। आमतौर इंसान मौत से डरते व भागते हैं यहां तक कि कुछ इंसान मौत के बारे में सोचने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं। अगर मौत के बारे में सोचते हैं तो बहुत से लोग अपनी मौत के बजाये दूसरों की मौत के बारे में सोचते हैं मगर पवित्र क़ुरआन कहता है मौत हक़ है और सबको मौत आयेगी चाहे उसके लिए तैयार हो या न हो। अलबत्ता मौत का मतलब ख़त्म हो जाना व मिट जाना नहीं है बल्कि मौत का मतलब एक दुनिया से दुसरी दुनिया में चला जाना है और स्वाभाविक है कि मौत के साथ सख़्ती, दबाव और दोस्तों व निकट संबंधियों से जुदाई भी है। 

पैदाइश का समय भी इसी प्रकार है यानी एक दुनिया से दूसरी दुनिया में इंसान आता है। इंसान मां के पेट से दुनिया में क़दम रखता है। जब बच्चा पैदा होता है तो रोता है और उसकी नाफ़ व नाड़ी काटी जाती है और मौत के समय दोबारा ज़मीन के पेट में वापस चला जाता है और जब महान व सर्वसमर्थ ईश्वर इरादा करेगा तो इंसान ज़मीन के पेट से बाहर निकल कर दोबारा इस ज़मीन पर क़दम रखेगा परंतु इस बार जब इंसान दुनिया में क़दम रखेगा तो हिसाब- किताब के लिए। जिस तरह से दुनिया में दो फ़रिश्ते उसके साथ थे उसी तरह क़यामत में भी दो फ़रिश्ते उसके साथ रहेंगे यहां तक कि वह महान ईश्वर की बारगाह में हाज़िर हो और जो काम भी इंसान ने दुनिया में अंजाम दिया है उसकी वे गवाही देंगे और उसके अमल का लेखाजोखा पेश करेंगे। उस वक़्त इंसान समझेगा कि वह क़यामत से किस तरह ग़ाफ़िल था और उसने स्वयं को क़यामत के लिए तैयार नहीं किया था।

इन आयतों से हमने सीखाः 

मौत से भागना इंसान की स्वाभाविक विशेषता है। 

सकराते मौत यानी मौत के समय की विशेष हालत का सामना सबको होगा। मौत से भय, व्याकुलता और दबाव इस प्रकार का होगा कि इंसान अपनी सामान्य हालत खो बैठेगा और कोई भी चीज़ उसके बस में नहीं होगी। 

लोक में परलोक से बेख़बरी व निश्चेतना वह ख़तरा है जिसका इंसान को सामना करना पड़ेगा और वह इस बात का कारण बनता है कि इंसान सीमा से अधिक दुनिया, बीवी, बच्चों आदि से दिल लगा बैठता है। 

दुनिया और उसकी चमक- दमक इंसान की नज़रों के सामने एक पर्दे की भांति है जिसकी वजह से इंसान हक़ को सही तरह से नहीं देख पाता है। अतः निश्चेत व ग़ाफ़िल इंसान गहराई से नहीं देखता व सोचता मगर क़यामत में सारे पर्दे हट जायेंगे और इंसान जाग जायेगा और नई वास्तविकताओं को देखने व समझने लगेगा।