Mar १२, २०२५ १७:५३ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-970

सूरए क़ाफ़, आयतें 23 से 30

आइये सबसे पहले सूरए क़ाफ़ की 23वीं से 26वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ قَرِينُهُ هَذَا مَا لَدَيَّ عَتِيدٌ (23) أَلْقِيَا فِي جَهَنَّمَ كُلَّ كَفَّارٍ عَنِيدٍ (24) مَنَّاعٍ لِلْخَيْرِ مُعْتَدٍ مُرِيبٍ (25) الَّذِي جَعَلَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آَخَرَ فَأَلْقِيَاهُ فِي الْعَذَابِ الشَّدِيدِ (26)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और उसका साथी (फ़रिश्ता) कहेगा ये (उसका कर्मपत्र है जो) मेरे पास है।[50:23]  (तब हुक्म होगा कि) तुम दोनों हर सरकश नाशुक्रे को दोज़ख़ में डाल दो।[50:24]  (जो) भले कर्मों में रुकावट, हद से बढ़ने वाला (दीन में) शक़ करने वाला था।[50:25]  जिसने ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद बना रखे थे तो अब तुम दोनों इसको सख्त अज़ाब में डाल दो।[50:26]  

पिछले कार्यक्रम में उन फ़रिश्तों के बारे में चर्चा हुई थी जो हमेशा इंसान के साथ रहते हैं और इंसान के अच्छे और बुरे समस्त कार्यों को लिखते हैं और प्रलय के दिन इंसान के कर्मपत्र के आधार पर उसका फ़ैसला होगा। 

इन आयतों में अल्लाह कहता है कि फ़रिश्तों ने जो नामाये आमाल या कर्मपत्र तैयार किया है उसके साथ इंसान प्रलय में हाज़िर होगा और उसी के आधार प्रलय में उसका हिसाब- किताब होगा। पापियों को उनके पाप का दंड मिलेगा क्योंकि वे हक़ को हठधर्मिता की वजह से क़बूल नहीं करते और  अल्लाह का कुफ्र करते थे और अच्छे कार्यों के मुक़ाबले में बाधा व रुकावट उत्पन्न करते थे। इस प्रकार के लोग  अल्लाह की सीमा को पार करते थे। यही नहीं इस प्रकार के लोग दूसरे लोगों की राह में बाधा उत्पन्न करते थे जिसकी वजह से बहुत से लोग अच्छे व हक़ के रास्ते का चयन नहीं कर पाते थे और बहुत से लोग असमंजस का शिकार हो जाते थे। यही नहीं अपराधी व पापी लोग  अल्लाह के साथ दूसरों को पेश करते और लोगों को दूसरी शक्तियों की ओर ले जाते थे।

इन आयतों से हमने सीखाः

अगर इंसान अज्ञानता की वजह से कुफ़्र करता है तो उसकी वापसी की उम्मीद है मगर अगर कुफ़्र की वजह दुश्मनी, हठधर्मिता और पक्षपात हो तो वह हर रोज़ अधिक होता जायेगा और इस प्रकार के इंसान की वापसी की संभावना बहुत कठिन, बल्कि लगभग असंभव है।

मोमिन इंसानों के विपरीत कि मोमिन लोग अच्छे कार्य करने वाले हैं और दूसरों को अच्छे कार्यों की ओर दावत देते हैं जबकि हक़ का इंकार करने वाले दूसरों को अच्छा काम करने से रोकते हैं। 

जिस तरह जन्नत के दर्जे हैं उसी तरह जहन्नम के अज़ाब के भी दर्जे हैं और हर इंसान को उसके गुनाहों के हिसाब से जहन्नम में रखा जायेगा। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 27 से लेकर 30 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,   

قَالَ قَرِينُهُ رَبَّنَا مَا أَطْغَيْتُهُ وَلَكِنْ كَانَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ (27) قَالَ لَا تَخْتَصِمُوا لَدَيَّ وَقَدْ قَدَّمْتُ إِلَيْكُمْ بِالْوَعِيدِ (28) مَا يُبَدَّلُ الْقَوْلُ لَدَيَّ وَمَا أَنَا بِظَلَّامٍ لِلْعَبِيدِ (29) يَوْمَ نَقُولُ لِجَهَنَّمَ هَلِ امْتَلَأْتِ وَتَقُولُ هَلْ مِنْ مَزِيدٍ (30)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(उस वक़्त) उसका साथी (शैतान) कहेगा परवरदिगार हमने इसको गुमराह नहीं किया था बल्कि ये तो ख़ुद सख़्त गुमराही का शिकार था।[50:27]  इस पर ख़ुदा फ़रमाएगा हमारे सामने झगड़े न करो मैं तो तुम लोगों को पहले ही (अज़ाब से) डरा चुका था।  [50:28] मेरे यहाँ बात बदला नहीं करती और न मैं बन्दों पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म करने वाला हूँ। [50:29]  उस दिन हम दोज़ख़ से पूछेंगे कि तू भर चुकी और वह कहेगी क्या कुछ और भी हैं। [50:30]

ये आयतें उन दोस्तों के बारे में बात करती हैं जो इंसान को जहन्नमी बना देते हैं जैसे बुरे दोस्त, काफ़िरों के सरगना और उन सबमें सर्वोपरि शैतान 

इंसान जब क़यामत में अपने निश्चित अंजाम को देखेंगे तो अपराधी और पापी लोग अपने बुरे नेताओं और शैतान के साथ झगड़ा करेंगे और अपने गुनाह दूसरों की गर्दन में डालने की कोशिश करेंगे। गुनहकार और पापी कहेंगे कि अगर तुम न होते तो हम ईमानदार इंसान होते और वे कहेंगे कि तुम्हारा अनुसरण करने के कारण हमारा आज यह बुरा अंजाम हुआ है। अलबत्ता इस बहस व विवाद का उनके दंड में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसमें कोई कमी नहीं होगी। शैतान भी अपने बचाव में कहेगा कि पालनहार मैंने कुफ़्र और उद्दंडता के लिए किसी को मजबूर नहीं किया था बल्कि इन लोगों ने ख़ुद अपनी मर्ज़ी से तेरे रास्ते का चयन व अनुसरण नहीं किया और गुमराही के रास्ता का चयन किया परंतु जहन्नमी उसे दोषी ठहरायेंगे और अपने गुनाहों का औचित्य दर्शाने की कोशिश करेंगे। 

उस वक़्त  अल्लाह की आवाज़ उनके विवाद को समाप्त कर देगी कि अब यह वक़्त इस प्रकार की बातों का नहीं है। हर इंसान का अंजाम स्पष्ट हो चुका है और अपने कर्म के हिसाब से उसे दंडित किया जायेगा न अधिक न कम और कोई भी यह न सोचे कि नरक व जहन्नम की क्षमता सीमित है और बड़े- बड़े पापियों के होने की वजह से उनकी नौबत नहीं आयेगी बल्कि जहन्नम ख़ुद पापियों को अपनी ओर बुलायेगी और कहेगी कि कोई और है?

इन आयतों से हमने सीखाः

मां- बाप, भाई- बहन का चयन इंसान ख़ुद से नहीं करता है परंतु दोस्त और साथी का चयन इंसान ख़ुद करता है और वे इंसान के भविष्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। 

क़यामत में कोई भी अपनी ग़लती व पाप को अपने बुरे दोस्त, नेता और शैतान की गर्दन में डाल कर स्वयं को नहीं बचा सकता। 

 अल्लाह ने लोगों की हिदायत व मार्गदर्शन करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और कोई भी यह नहीं कह सकता कि उसने लोगों का मार्गदर्शन न करके लोगों पर अत्याचार किया है। इसी प्रकार  अल्लाह पापियों को दंडित करने से कोई कमी नहीं छोड़ेगा क्योंकि अत्याचारियों को दंडित करने में कमी भले और मज़लूम लोगों पर अत्याचार का कारण बनेगा। 

अपराधियों व पापियों ने जो कुछ अपने हक़ में पाप व अत्याचार किया है उसके कारण वे नरक का पात्र बनेंगे न यह कि  अल्लाह ने उन पर अत्याचार किया है। क्योंकि  अल्लाह कदापि किसी पर अत्याचार नहीं करता।