Mar १२, २०२५ १७:५६ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-971

सूरए क़ाफ़, आयतें 31 से 37

आइये सबसे पहले सूरए क़ाफ़ की 31वीं और 32वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ غَيْرَ بَعِيدٍ (31) هَذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ (32)

इन आयतों की अनुवाद हैः

और बहिश्त परहेज़गारों के बिल्कुल क़रीब कर दी जाएगी। [50:31]  यही तो वह बहिश्त है जिसका तुममें से (ख़ुदा की तरफ़) पलटने वाले हर एक और (हदों की) हिफाज़त करने वाले से वादा किया जाता है। [50:32]

पिछले कार्यक्रम में उन लोगों के अंजाम की चर्चा की गयी जो दुश्मनी और हठधर्मिता की वजह से ईमान नहीं लाते हैं। ये आयतें उनके बुरे अंजाम के मुक़ाबले में मोमिनों के अच्छे अंजाम की ओर संकेत करती हैं और कहती हैं कि क़यामत के दिन जन्नत परहेज़गार और भले लोगों के लिए तैयार है और वह बड़ी आसानी व सुगमता के साथ उन्हें प्रदान कर दी जायेगी ताकि वे कभी भी समाप्त न होने वाली नेअमतों से लाभ उठायें। 

यह बहुत बड़ा प्रतिदान जो उन्हें दिया गया है, दुनिया में उन्होंने महान ईश्वर के आदेशों का जो अनुसरण किया था और उसकी अवज्ञा से दूरी की थी यह उसके बदले में दिया गया है। अगर अनजाने में या निश्चेतना की वजह से उनसे कोई ग़लती व पाप हो जाता था तो वे तुरंत तौबा करते थे।

इन आयतों से हमने सीखाः

मोमिन भी काफ़िर की भांति गुनाह से सुरक्षित नहीं है परंतु काफ़िर के विपरीत मोमिन गुनाह करने पर आग्रह नहीं करता और अगर उससे ग़लती व गुनाह हो जाता है तो वह उस पर शर्मिन्दा होता और तौबा करता है। अगर हम महान ईश्वर के वादों पर ईमान रखते हैं तो हमें विश्वास रखना चाहिये कि पवित्रता और सदाचारिता हमें महान ईश्वर की ओर और स्वर्ग तक पहुंचायेगी। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 33वीं से 35वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं, 

مَنْ خَشِيَ الرَّحْمَنَ بِالْغَيْبِ وَجَاءَ بِقَلْبٍ مُنِيبٍ (33) ادْخُلُوهَا بِسَلَامٍ ذَلِكَ يَوْمُ الْخُلُودِ (34) لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ فِيهَا وَلَدَيْنَا مَزِيدٌ (35)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो जो शख़्स ख़ुदा से बे देखे डरता रहा और ख़ुदा की तरफ़ पलटने वाला दिल लेकर आया। [50:33]  (उसको हुक्म होगा कि) इसमें सही सलामत दाख़िल हो जाओ यहीं तो हमेशा रहने का दिन है। [50:34]  इसमें ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए हाज़िर है और हमारे यहां तो इससे भी ज्यादा है।[50:35]  

ये आयतें कहती हैं कि महान ईश्वर पर ईमान रखने वाले सच्चे और वास्तविक मोमिनों की एक अलामत यह है कि वे विदित और निहित हर हालत में महान ईश्वर से डरते हैं और उस हालत में भी वे अपने पालनहार से डरते हैं जहां महान ईश्वर के अलावा कोई भी देखने वाला नहीं होता है और उस हालत में भी वे महान ईश्वर की अवज्ञा करने से डरते हैं और अगर उनसे गुनाह हो जाता है तो तुरंत वे तौबा करते हैं। इस प्रकार की भावना इंसान को नरक की दहकती आग से मुक्ति प्रदान करती है और इंसान स्वर्ग में दाख़िल होता है और उसमें वह हमेशा -हमेशा रहेगा। उन लोगों ने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दुनिया में हर उस चीज से अपने आपको रोका जिसके लिए उनका दिल कहता था। महान ईश्वर जन्नत में उसका बदला देगा। वह कहता है अब हर वह चीज़ हाज़िर है जिसका तुम्हारा दिल कहे। इसके अलावा हमारे पास वे नेअमतें भी हैं जो तुम नहीं जानते हो और अल्लाह से उसे मांगो तो वह उन नेअमतों को भी तुम्हें प्रदान करेगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

मोमिनों का दिल तौबा करने वाला होता है और यही चीज़ उनकी मुक्ति का कारण बनेगी मगर काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों का दिल बीमार होता है और उनका दिल उनके गुनाहों व पापों का औचित्य दर्शाने वाला होता है और यह चीज़ उनके बुरे अंजाम का कारण बनेगी। 

दूसरों के सामने गुनाह न करना ईमान की निशानी नहीं है क्योंकि कभी ऐसा भी होता है कि इंसान क़ानून के भय से या दूसरों की आलोचना की डर से या अपनी इज़्ज़त बचाने की वजह से गुनाह नहीं करता है मगर अगर इंसान निहित में महान ईश्वर से डरता है और उसकी सीमाओं का ध्यान रखता है तो यह वास्तविक और सच्चे ईमान की अलामत है। 

स्वर्ग में जाने वाले जब स्वर्ग में दाख़िल होंगे तो विशेष ढंग से उनका स्वागत किया जायेगा। 

स्वर्ग में स्वर्ग की नेअमतों को हासिल करने के लिए किसी प्रकार के कष्ट की ज़रूरत नहीं होगी और स्वर्गवासियों के लिए बेहतरीन शुभसूचना यह है कि वे हमेशा- हमेशा उसमें रहेंगे और स्वर्ग की नेअमतें कभी भी ख़त्म नहीं होंगी। 

इंसान ऐसा प्राणी है जिसकी इच्छओं व आकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं है और वह हमेशा अधिक पाने की चाहत व लालसा रखता है इसलिए महान ईश्वर स्वर्ग में उनकी इच्छाओं व अपेक्षाओं से परे नेअमतों को भी उन्हें प्रदान करेगा। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 36वीं और 37वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं, 

وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنْ قَرْنٍ هُمْ أَشَدُّ مِنْهُمْ بَطْشًا فَنَقَّبُوا فِي الْبِلَادِ هَلْ مِنْ مَحِيصٍ (36) إِنَّ فِي ذَلِكَ لَذِكْرَى لِمَنْ كَانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيدٌ (37)

इन आयतों का अनुवाद हैः 

और हमने तो इनसे पहले कितनी उम्मतें मिटा डालीं जो इनसे ताक़त में कहीं बढ़ कर थीं तो उन लोगों ने (मौत के ख़ौफ से) तमाम शहरों को छान मारा कि भला कहीं भी भागने का ठिकाना है। [50:36]  इसमें शक नहीं कि जो शख़्स (आगाह) दिल रखता है या कान लगाकर दिल की गहराई से सुनता है उसके लिए इसमें (काफ़ी) नसीहत है।[50:37]  

ये आयतें अत्याचारियों व ज़ालिमों के लिए चेतावनी हैं कि वे यह न सोचें कि उनकी विदित ताक़त महान ईश्वर के इरादे के व्यवहारिक होने के मार्ग में बाधा बन जायेगी और वे महान ईश्वर की शक्ति से बच जायेंगे। इतिहास में बहुत से शासक गुज़रे हैं जो बहुत शक्तिशाली थे और अपनी सत्ता में विस्तार किया और ज़मीन के काफ़ी व विस्तृत भूभाग पर उनका शासन भी रहा परंतु महान ईश्वर की असीमित शक्ति के सामने वे परास्त हुए और ख़त्म हो गये। 

स्वाभाविक है कि वे लोग अतीत की क़ौमों के अंजाम से दर्स लेते हैं जो उनके इतिहास और व्यवहार का अध्ययन करते हैं और इस तरीक़े से वे उन क़ौमों की बर्बादी के कारणों को समझते हैं या उन लोगों की बातों को ध्यान से सुनते और उससे सीख लेते हैं जो अतीत की क़ौमों के अंजाम का विश्लेषण करके लोगों के लिए बयान करते हैं। 

इन आयतों से हमने सीखाः 

अतीत की क़ौमों की बर्बादी के कारणों की पहचान वर्तमान समय और भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन का चेराग़ होना चाहिये। 

महान ईश्वर की एक परम्परा अत्याचारियों और उनकी ताक़त को ख़त्म करना रहा है। 

शक्ति, अत्याचार और भ्रष्टाचार का कारण व आधार है और उससे दूसरों पर अत्याचार करने का मार्गप्रशस्त होता है मगर यह कि ईमान की ताक़त इंसान को दूसरों पर अत्याचार करने से रोके। 

अतीत की क़ौमों के अंजाम का केवल अध्ययन काफ़ी नहीं है बल्कि उन चीज़ों से बचना व परहेज़ ज़रूरी है जिसकी वजह से वे तबाह हुईं।