Apr २९, २०२५ १५:२६ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-983

सूरए तूर आयतें, 41 से 49

सबसे पहले हम सूरए तूर की आयत 41 से 43 तक की तिलावत सुनेंगे:

   

         أَمْ عِنْدَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ (41) أَمْ يُرِيدُونَ كَيْدًا فَالَّذِينَ كَفَرُوا هُمُ الْمَكِيدُونَ (42) أَمْ لَهُمْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ (43)

इन आयातों का अनुवाद है:

या इन लोगों के पास ग़ैब (का इल्म) है कि वो लिख लेते हैं [52:41] या ये लोग कुछ दाँव चलाना चाहते हैं तो जो लोग काफ़िर हैं वह ख़ुद अपने दांव में फँस गए हैं [52:42]  या ख़ुदा के सिवा इनका कोई (दूसरा) माबूद है जिन चीज़ों को ये लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हैं वह उससे पाक और पाक़ीज़ा है [52:43]

पिछले कार्यक्रम में अल्लाह ने पैगम्बर-ए-इस्लाम के विरोधियों से सवाल किया था कि वे किस आधार पर रसूलुल्लाह पर ऐसे आरोप लगाते हैं। ये आयतें उन्हीं सवालों को आगे बढ़ाते हुए पूछती हैं: क्या विरोधी यह दावा करते हैं कि वे स्वयं ग़ैब (अदृश्य जगत) से जुड़े हुए हैं और सीधे अल्लाह की वहि प्राप्त करते हैं, इसलिए उन्हें उस कलाम-ए-इलाही की ज़रूरत नहीं जो पैगम्बर-ए-इस्लाम उनके लिए लाए हैं?

या फिर वे पैगम्बर को ख़त्म करने के लिए साज़िश रच रहे हैं, जबकि उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे ख़ुद अल्लाह की मर्ज़ी के मोहताज हैं और उनकी सारी चालें उन्हीं के ख़िलाफ़ पलट जाएंगी। अगर वे उन झूठे सहायकों पर भरोसा कर रहे हैं जिन्हें वे अल्लाह का शरीक समझते हैं, तो उन्हें जान लेना चाहिए कि वे अल्लाह की ताक़त के आगे उनकी कोई मदद नहीं कर सकते।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

गुमराह लोगों को सही राह दिखाने का एक तरीक़ा यह है कि उनसे कई सवाल पूछे जाएं ताकि वे सोचने पर मजबूर हों।

जो कोई भी पैगम्बरों और अल्लाह के ख़ास बंदों से इतर ग़ैब का दावा करे, उसके दावे का न तो कोई तर्कसंगत आधार होता है और न ही वैज्ञानिक। उसकी बातें बेबुनियाद होती हैं।

अल्लाह ईमान वालों का साथ देता है और ज़रूरत पड़ने पर दुश्मनों की साज़िशों को नाकाम कर देता है।

अब हम सूरए तूर की आयत 44 से 46 तक की तिलावत सुनेंगे:

وَإِنْ يَرَوْا كِسْفًا مِنَ السَّمَاءِ سَاقِطًا يَقُولُوا سَحَابٌ مَرْكُومٌ (44) فَذَرْهُمْ حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي فِيهِ يُصْعَقُونَ (45) يَوْمَ لَا يُغْنِي عَنْهُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ (46)

और अगर ये लोग आसमान का टुकड़ा गिरते हुए देखें तो बोल उठेंगे कि यह तो घने बादल हैं। [52:44] तो (ऐ रसूल) तुम इनको इनकी हालत पर छोड़ दो यहाँ तक कि वे जिसमें ये बेहोश हो जाएँगे [52:45] इनके सामने आ जाए जिस दिन न इनकी मक्कारी ही कुछ काम आएगी और न इनकी मदद ही की जाएगी  [52:46]

इन आयतों में विरोधियों और इनकार करने वालों की हद से ज़्यादा ज़िद्द का ज़िक्र है। अल्लाह फ़रमाता है: अगर अल्लाह का अज़ाब आसमान से पत्थरों के रूप में नाज़िल हो, तो भी वे इनकार कर देंगे और कहेंगे कि यह तो बस घने बादल हैं। वे न सिर्फ आध्यात्मिक सच्चाइयों को नकारते हैं, बल्कि उन चीजों को भी तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं जो अपनी आंखों से देख रहे होते हैं, ताकि अल्लाह को मानने से बच सकें।

आगे की आयतें रसूल-ए-अकरम को संबोधित करते हुए फ़रमाती हैं: इन लोगों को उनके हाल पर छोड़ दो; ये सोए हुए नहीं हैं जिन्हें तुम जगा सको। ये ख़ुद ही नींद में डूबे हुए हैं और चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो, ये जागेंगे नहीं। सिर्फ़ मौत और हलाकत ही इन्हें जगा सकती है, लेकिन तब यह बेदारी इनके किसी काम नहीं आएगी। इसके अलावा, हक़ को हराने और दीन-ए-इस्लाम को मिटाने की इनकी सारी साजिशें इनके किसी काम नहीं आएंगी और न ही इनका कोई मददगार होगा।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

ज़िद्द इंसान की आंखों को सामने की हक़ीक़त देखने से भी रोक देती है, फिर वह आध्यात्मिक सच्चाइयों की बात ही क्या जिन्हें दिल की आंखों से देखा जाता है। दरअस्ल ज़िद्द इंसान को हक़ीक़त का ग़लत आकलन करने पर मजबूर कर देती है।

पैगम्बरों की हिदायत और मार्गदर्शन उसके लिए है जो हक़ीक़त को जानना चाहता हो, न कि उसके लिए जो हक़ के सामने ज़िद और हठधर्मी दिखाता हो।

विरोधी अपनी हलाकत और बरबादी को अपने हिसाब-किताब में शामिल नहीं करते। उन्हें लगता है कि वे हमेशा रहेंगे और अपनी साज़िशों को अंजाम दे पाएंगे। जबकि जब अल्लाह चाहेगा, मौत और बरबादी उन्हें आ घेरेगी और उनकी सारी साज़िशें धरी की धरी रह जाएंगी।

अब हम सूरए तूर की आयत 47 से 49 की तिलावत सुनेंगे:

وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا عَذَابًا دُونَ ذَلِكَ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (47) وَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعْيُنِنَا وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ (48) وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَإِدْبَارَ النُّجُومِ (49)

इन आयतों का अनुवाद है:

और इसमें शक़ नहीं कि ज़ालिमों के लिए इसके अलावा और भी अज़ाब है मगर उनमें बहुतेरे नहीं जानते हैं [52:47] और (ऐ रसूल) तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से इन्तेज़ार में सब्र किए रहो तो तुम बिल्कुल हमारी निगरानी में हो तो जब तुम उठा करो तो अपने परवरदिगार की हम्द की तस्बीह किया करो [52:48]   और कुछ रात को भी और सितारों के ग़ुरूब होने के बाद तस्बीह किया करो [52:49]

पिछली आयतों में जिन ज़िद्दी इनकार करने वालों पर अल्लाह के क़हर और सज़ा के नाज़िल होने की बात कही गई थी, उनके बारे में ये आयतें फ़रमाती हैं: अल्लाह का अज़ाब सिर्फ आख़ेरत तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया और बरज़ख में भी उन्हें घेर लेगा। लेकिन जो लोग वहि से अनजान हैं, वे इस बात से बेख़बर हैं और न ही अपने सुधार और अल्लाह की सज़ा से बचने के बारे में सोचते हैं।

इस सूरे के अंत में, दुश्मनों के तमाम आरोपों और साज़िशों का ज़िक्र करने के बाद, अल्लाह पैगम्बर-ए-अकरम से फ़रमाता है: जो रिसालत का बोझ हमने तुम्हारे कंधों पर डाला है, उसे निभाने के लिए सब्र और स्थिरता से काम लो। हम तुम्हारे रहनुमा और हामी हैं और तुम एक पल के लिए भी हमारी निगाह से दूर नहीं हो कि हम तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दें।

हां, अपनी रूह को मज़बूत करने के लिए अल्लाह के साथ निरंतर रिश्ता बनाए रखो और हर सुबह-शाम उसकी हम्द (प्रशंसा) और तस्बीह करो। यह काम तुम्हें दूसरों से बेज़ार कर देगा और ताकत और अज़मत के स्रोत से जोड़ देगा।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

ज़ालिम अपने कामों के दुनिया और आख़ेरत में बुरे नतीजों से अनजान होते हैं, वरना वे ऐसा व्यवहार न करते और ख़ुद पर ज़ुल्म करना बंद कर देते।

अल्लाह के दीन को बचाने के रास्ते में ज़िद्दी विरोधियों के सामने डटकर खड़ा होना चाहिए और सब्र से इस रास्ते की मुश्किलात झेलनी चाहिएं।

अगर इंसान को यह यकीन हो कि अल्लाह उन लोगों को देख रहा है जो उसके रास्ते में कोशिश और जेहाद कर रहे हैं, और वह उनकी मदद करता है, तो उसका सब्र और हिम्मत बढ़ जाती है और वह कोशिश करना नहीं छोड़ता।

अल्लाह से दुआ और मुनाजात और ज़बानी ज़िक्र का इंसान की रूह और दिमाग़ पर गहरा असर होता है, ख़ासकर अल्लाह के हुक्म को अंजाम देने के रास्ते में।