क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-984
सूरए नज्म आयतें, 1 से 18
पिछले कार्यक्रम में सूरह तूर की व्याख्या पूरी होने के बाद, आज के इस कार्यक्रम में हम सूरह नज्म की आसान और सरल व्याख्या शुरू करेंगे। यह सूरह मक्का में उतरी है और इसमें पैगंबर पर वह्य (ईश्वरीय संदेश) के उतरने की विधि और उनके मेराज (आकाश यात्रा) की घटना से शुरुआत होती है। यह सूरह मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) की अंधविश्वासों को खारिज करते हुए और दुनिया व आखिरत में अल्लाह की सजा पर जोर देते हुए आगे बढ़ती है।
सबसे पहले हम सूरह नज्म की आयत 1 से 4 की तिलावत सुनेंगे:
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَى (1) مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَى (2) وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوَى (3) إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى (4)
इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार है:
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम वाला है।
तारे की क़सम जब टूटा [53:1] कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके [53:2] और वह तो अपने नफ़्स की ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते[53:3] ये तो बस वहि है जो भेजी जाती है[53:4]
कुछ अन्य मक्की सूरों की तरह, यह सूरा भी क़सम से शुरू होता है; तारे की क़सम जो प्राकृतिक चीज़ है और इतिहास में हमेशा से मनुष्य का ध्यान खींचती रही है, यहाँ तक कि इतिहास के कुछ दौर ऐसे भी हैं जिनमें कुछ समुदायों ने तारों की इबादत भी की है।
क़सम के बाद, अल्लाह मक्का वासियों से कहता है: मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह जो तुम्हारे बीच पैदा हुए हैं, 40 साल से अधिक समय से तुम्हारे साथी और तुम्हारे बीच रहे हैं। इस दौरान तुमने उनसे कभी कोई अनुचित बात या व्यवहार नहीं देखा और सभी उनकी सच्चाई और ईमानदारी की गवाही देते हैं।
अगर आज वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वह अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारी हिदायत के लिए भेजे गए हैं, तो यह किसी निजी इच्छा या सत्ता पाने की लालसा से नहीं है, कि वह तुम पर बड़ाई करना चाहते हों या धन, पद और प्रतिष्ठा पाना चाहते हों। जो कुछ वह तुम्हें अल्लाह की तरफ़ बुलाने के लिए कहते हैं, वह अल्लाह का वचन है जो उन पर वहि के ज़रिए किया जाता है, इसलिए अल्लाह के वचन को स्वीकार करो और उन पर ईमान लाओ।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
पैग़म्बर आम तौर पर उन समुदायों और क़बीलों में पले-बढ़े होते हैं जो गुमराह और भटके हुए थे, लेकिन वे कभी भी उनके ग़लत विचारों, मान्यताओं और परम्पराओं से प्रभावित नहीं हुए।
जो लोग सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहते, वे पवित्र लोगों पर नेतृत्व पाने का आरोप लगाकर सच्चाई से भागने का बहाना ढूंढते हैं।
पैगंबर के शब्द न तो उनकी निजी इच्छाओं से उपजे हैं और न ही उनके सामाजिक वातावरण से प्रभावित हैं।
पैगंबर का शब्द हुज्जत है। चाहे वह सीधे अल्लाह की तरफ़ से बोलें या अपनी तरफ़ से, किसी चीज़ का आदेश दें।
अब हम सूरह नज्म की आयत 5 से 12 की तिलावत सुनेंगे:
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَى (5) ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَى (6) وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَى (7) ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّى (8) فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَى (9) فَأَوْحَى إِلَى عَبْدِهِ مَا أَوْحَى (10) مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَى (11) أَفَتُمَارُونَهُ عَلَى مَا يَرَى (12)
इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार है:
(वह वहि) उन्हें जिसकी तालीम निहायत ताक़तवर (परवरदिगार) ने दी [53:5] जो हैरत अंगेज़ शक्ति रखता है अतः ग़ालिब हुआ [53:6] और जब वो ऊँचे क्षितिज पर था [53:7] फिर वो नज़दीक से नज़दीकतर हुआ [53:8] दो कमान का फ़ासला रह गया बल्कि इससे भी क़रीब था[53:9] ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ़ जो 'वही' भेजी सो भेजी [53:10] तो जो कुछ उन्होने देखा उनके दिल ने झूठ न जाना [53:11] तो क्या वह (रसूल) जो कुछ देखता है तुम लोग उसमें झगड़ते हो? [53:12]
पिछली आयतें वहि के उतरने के सिद्धांत के बारे में थीं, ये आयतें पैगम्बर का अल्लाह से संबंध बताती हैं और कहती हैं: पैगम्बर को तालीम देने वाला अल्लाह हैं जो सर्वज्ञानी है, जिसके हाथ में सारी शक्तियाँ हैं और जिसके काम मज़बूत और दृढ़ हैं। वह मनुष्य की सोच और समझ से कहीं ऊपर है और कोई भी उस तक नहीं पहुँच सकता, लेकिन अल्लाह के पैग़्मबर ने ईमान से भरे दिल के ज़रिए उसकी ज़ियारत की। यह एक ऐसा अनुभव था जिसमें कोई ग़लती नहीं हो सकती और यह पैग़म्बर को अल्लाह के सबसे निकट ले गया।
यह निकटता वहि के उतरने का मार्ग प्रशस्त करती है और इसके बाद, जिब्राईल अल्लाह और पैग़म्बर के बीच एक माध्यम बनकर, वहि को पैग़म्बर के दिल में डालते थे और पैग़म्बर क़ुरान की आयतें लोगों को सुनाते थे।
इतिहास में नबूव्वत को न मानने वालों ने हमेशा अल्लाह और इंसान के बीच संबंध को असंभव माना है और इसे स्वीकार नहीं किया है। जबकि यह संबंध कोई भौतिक या इंद्रियों से जुड़ा संबंध नहीं है, बल्कि यह एक दिली और आध्यात्मिक अनुभव है और ये आयतें भी स्पष्ट करती हैं कि पैग़म्बर ने अपने दिल से अल्लाह को देखा, न कि अपनी आँखों से।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
सिर्फ विज्ञान और दुनियावी ज्ञान ही नहीं जिसे शिक्षक की ज़रूरत होती है; इंसान को आध्यात्मिक विकास और पूर्णता तक पहुँचने के लिए भी एक आध्यात्मक उस्ताद की ज़रूरत होती है ताकि वह लोगों को वह सिखा सके जो अल्लाह ने उसे सिखाया है और उन्हें अंधविश्वासों और ग़लत विचारों से बचा सके।
जो लोग पैग़म्बर को अपने जैसा इंसान मानते थे, उनके लिए ये आयतें स्पष्ट रूप से कहती हैं कि अल्लाह पैग़म्बर का उस्ताद है और वह वहि को सीधे स्रोत से प्राप्त करते हैं।
जहाँ अल्लाह चाहे और अनुमति दे, वहाँ उसके पैग़म्बर बिना किसी माध्यम के सीधे उससे बात कर सकते है और उसके वचन को प्राप्त कर सकते हैं।
अल्लाह की बंदगी और उसके निकट पहुँचने की कोशिश ने पैग़म्बर के लिए वहि प्राप्त करने और रिसालत के मक़ाम तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया। इसलिए इन आयतों में कहा गया है: अल्लाह ने अपने बंदे पर वहि की, यह नहीं कहा गया कि अल्लाह ने अपने पैग़म्बर पर वहि नाज़िल की।
अब हम सूरए नज्म की आयत 13 से 18 की तिलावत सुनेंगे:
وَلَقَدْ رَآَهُ نَزْلَةً أُخْرَى (13) عِنْدَ سِدْرَةِ الْمُنْتَهَى (14) عِنْدَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَى (15) إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَى (16) مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَى (17) لَقَدْ رَأَى مِنْ آَيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَى (18)
इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार है:
और उन्होने उस को एक बार और देखा है [53:13] सिदरतुल मुनतहा के नज़दीक [53:14] उसी के पास तो रहने की बेहिश्त है [53:15] जब (वह नूर) सिदरा पर छा रहा था तो छा रहा था। [53:16] (उस वक्त भी पैग़म्बर की) ऑंख न तो दूसरी तरफ़ मुड़ी हुई और न वो हद से आगे बढ़े [53:17] और उन्होने यक़ीनन अपने परवरदिगार (की क़ुदरत) की बड़ी बड़ी निशानियाँ देखीं। [53:18]
पिछली आयतों के सिलसिले में, ये आयतें पैग़म्बर की मेराज की घटना का ज़िक्र करती हैं जो सूरए इसरा की शुरुआत में भी आती है। पिछली आयतें पैग़म्बर के दिल से अल्लाह को देखने की बात करती हैं, जबकि ये आयतें पैग़म्बर के आसमानों में जाने और वहाँ अल्लाह की महान निशानियों को देखने की बात करती हैं। साथ ही, आसमानों में बनी जन्नत को देखने का ज़िक्र है जहाँ क़यामत तक ईमान वालों और पाक लोगों की रूहें रहती हैं, और यह सब एक भरपूर पेड़ "सिदरतुल मुंतहा" की छाया में होता है।
पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने मेराज के सफ़र में अपनी आँखों से कई सच्चाइयाँ देखीं, जैसे अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम (अ.स.) को आसमानों और ज़मीन की बादशाहत दिखाई थी और उन्होंने इस महानता को देखा था। इस तरह, हम कह सकते हैं कि अल्लाह ने इंसानों की हिदायत के लिए भेजे गए पैग़म्बरों को कायनात की महानता दिखाकर उन्हें पूर्ण यक़ीन दिलाया ताकि वह वहि को पूरे विश्वास के साथ प्राप्त कर सकें और लोगों तक पहुँचा सकें।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
पैगंबरों ने न सिर्फ दिल से अल्लाह को महसूस किया, बल्कि अपनी आँखों से भी उसकी बनाई हुई महान चीज़ों को देखा।
आख़ेरत के बाद की जन्नत के अलावा, एक बरज़ख़ (मृत्यु और प्रलय के बीच की दुनिया) की जन्नत भी है जहाँ पाक और नेक लोग अल्लाह की नेमतों का लुत्फ उठाते हैं।