Jun ०९, २०२५ १५:३७ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-992

सूरए क़मर आयतें, 43 से 55

आइए सबसे पहले सूरए क़मर की आयत संख्या 43 से 46 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِنْ أُولَئِكُمْ أَمْ لَكُمْ بَرَاءَةٌ فِي الزُّبُرِ (43) أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُنْتَصِرٌ (44) سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ (45) بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ (46)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(ऐ अहले मक्का) क्या तुम्हारे कुफ़्फ़ार उन लोगों से बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते पिछली आसमानी किताबों में अमान-नामा मौजूद है?[54:43]  यह वे कहते हैं कि हम सब एकजुट और एक दूसरे के मददगार हैं (और कोई भी ताक़त हमें शिकस्त नहीं दे सकती) [54:44]  अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे [54:45]  बात ये है कि इनके वायदे का वक्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख़्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है [54:46]  

इस सूरह की शुरुआत से अब तक उन विद्रोही क़ौमों के बुरे अंजाम का वर्णन किया गया है जिन्होंने अल्लाह की निशानियों को झुठलाया था। अब ये आयतें मक्का के मुशरिकों को संबोधित करते हुए कहती हैं:  "क्या तुम इन घटनाओं से सबक नहीं लेते? क्यों मूर्तिपूजा और बुरे कामों से तौबा नहीं करते? क्या तुम समझते हो कि तुम उन क़ौमों से बेहतर हो, या तुम्हारा कुफ़्र और ज़ुल्म उनसे कम है, इसलिए अल्लाह का अज़ाब तुम्हें छू भी नहीं पाएगा? या फिर तुम्हारे पास अल्लाह का कोई अमान-नामा मिला है जो तुम्हें अज़ाब से बचा लेगा?"

"या शायद तुम्हें अपनी ताक़त पर इतना घमंड है कि लगता है कोई तुम्हारा मुक़ाबला नहीं कर सकता? जान लो, अगर अल्लाह चाहे तो यह मुट्ठी भर मुसलमान तुम पर भारी पड़ जाएँगे! तुम्हारी जमाअत बिखर जाएगी और तुम युद्ध के मैदान से भाग खड़े होगे। यह तुम्हारी दुनियावी हार होगी, और क़यामत का अज़ाब तो इससे भी कहीं ज़्यादा कड़वा होगा!"

इन आयतों से हमने सीखाः

अपने आप को दूसरों से बेहतर समझना और घमंड करना इंसान की बर्बादी का कारण बन सकता है। 

हमें अपनी ताक़त, साधनों या दूसरों के सहारे पर नहीं, बल्कि अल्लाह की असीम शक्ति पर भरोसा करना चाहिए। बेवजह का अहंकार हमें गुमराह कर देता है। 

कुफ़्र और ज़ुल्म की हार अल्लाह का वादा है, काफिरों और ज़ालिमों की ताक़त उन्हें नष्ट होने से नहीं बचा सकती। 

आइए अब सूरए क़मर की आयत नंबर 47 से 50 तक की तिलावत सुनते हैं,

إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ (47) يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَى وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ (48) إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ (49) وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ (50)

इन आयतों का अनुवाद हैः

बेशक गुनाहगार लोग गुमराही में हैं [54:47]  उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल जहन्नम की आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो [54:48]  बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है [54:49]  और हमारा हुक्म तो बस ऑंख के झपकने की तरह एक बात होती है [54:50]  

पिछली आयतों में दुनिया में अपराधियों की सज़ा का वर्णन था, अब इन आयतों में क़यामत में उनके कड़े अज़ाब की चर्चा है। जिन लोगों ने दुनिया में सही रास्ते को छोड़कर ग़लत मार्ग अपनाया, उन्होंने ख़ुद अपने लिए गुमराही का इंतज़ाम किया। नतीजतन, गुनाह और नाफ़रमानी उनकी ज़िंदगी का तरीक़ा बन गई। 

क़यामत के दिन ये लोग ख़ुद जहन्नम में नहीं जाएँगे, बल्कि अज़ाब के फरिश्ते उन्हें ज़बर्दस्ती आग में झोंक देंगे ताकि वे आग की तपिश को महसूस करें और जिस चीज़ को दुनिया में झुठलाते थे, उसे अपनी आँखों से देख लें। 

कुछ लोग दुनिया में गुनाह और क़यामत में सज़ा के बीच तालमेल नहीं समझ पाते और इस पर सवाल उठाते हैं। इन आयतों में इस शुब्हे का जवाब देते हुए फरमाया गया है: जिस तरह यह सृष्टि एक नियत माप और तरतीब पर क़ायम है, ठीक उसी तरह सज़ा और इनाम का सिस्टम भी एक सटीक हिसाब-किताब पर आधारित है। इसलिए अल्लाह का फ़ैसला किसी भी तरह ज़ालेमाना नहीं है, हालाँकि इंसान की सीमित समझ के कारण ऐसे सवाल उठ सकते हैं।"

इन आयतों से हमने सीखाः

जीवन का रास्ता चुनते समय सोच-समझकर फैसला लें, वरना भटकाव और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। 

जैसे आसमान और ज़मीन अल्लाह की बनाई हुई मुकम्मल व्यवस्था है, वैसे ही आख़ेरत में जन्नत और जहन्नम भी पूरी न्याय व्यवस्था पर क़ायम हैं- हर सज़ा और इनाम बिल्कुल सही हिसाब से मिलेगा। 

आइए अब सूरए क़मर की आयत नंबर 51 से 55 की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِنْ مُدَّكِرٍ (51) وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ (52) وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُسْتَطَرٌ (53) إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ (54) فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِنْدَ مَلِيكٍ مُقْتَدِرٍ (55)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हम तुम्हारे जैसे (काफ़िरों को) पहले मिटा चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे [54:51]  और ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है [54:52]  (यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है। [54:53]  बेशक परहेज़गार लोग (बहिश्त के) बाग़ों और नहरों में [54:54]  (यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की क़ुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में होंगे। [54:55]

ये आयतें जो सूरए क़मर की आख़िरी आयतें हैं, बुराई करने वालों के लिए चेतावनी और अच्छे कर्म करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी लेकर आती हैं। ये कहती हैं कि तुम उन पिछली क़ौमों के हाल से सबक़ लो, जो तुम्हारी ही तरह इंसान थे। समझ लो कि अल्लाह की जानकारी से कोई भी काम छिपा नहीं है। हर अच्छा-बुरा काम तुम्हारे अमलनामे में दर्ज हो रहा है। 

क़यामत के दिन, सज़ा और इनाम की पूरी व्यवस्था बड़े ही न्यायसंगत तरीक़े से और लिखित रिकॉर्ड के आधार पर लागू होगी। नेक लोगों के अच्छे कर्म, चाहे वे ख़ुलूस के साथ और दूसरों की नज़रों से दूर किए गए हों, और अल्लाह के सिवा कोई उनके बारे में न जानता हो, उनका पूरा बदला दिया जाएगा। पाक-साफ़ और सच्चे इंसानों के लिए ऊँचे मुक़ाम होंगे, जिनकी कल्पना भी इस दुनिया के लोग नहीं कर सकते। 

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह का इनाम और सज़ा का सिस्टम पूरी तरह न्यायपूर्ण है, एक जैसे कर्म करने वालों को एक जैसा ही बदला मिलेगा। 

हालांकि अल्लाह सब कुछ जानता है और वही क़यामत के फ़ैसले करने वाला है, फिर भी फ़रिश्ते इंसान के छोटे-बड़े सभी कर्मों को एक किताब में बड़े ही व्यवस्थित तरीक़े से दर्ज करते हैं ताकि इनकार की कोई गुंजाइश न रहे। 

जन्नत की नेमतें सिर्फ़ शारीरिक और भौतिक सुख ही नहीं हैं। अल्लाह के क़रीब होना, नबियों और अच्छे लोगों की संगत मिलना - ये वो रूहानी नेमतें हैं जिनकी मिठास बयान नहीं की जा सकती।