Jun ०९, २०२५ १६:३० Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-994

सूरए रहमान आयतें, 10 से 18

आइए सबसे पहले सूरए रहमान की आयत संख्या 10 से 13 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَالْأَرْضَ وَضَعَهَا لِلْأَنَامِ (10) فِيهَا فَاكِهَةٌ وَالنَّخْلُ ذَاتُ الْأَكْمَامِ (11) وَالْحَبُّ ذُو الْعَصْفِ وَالرَّيْحَانُ (12) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (13)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और उसी ने ज़मीन पर रहने वालों क़े लिए ज़मीन बनायी [55:10]  कि उसमें (हर प्रकार के) मेवे और खजूर के दरख़्त हैं जिन (के गुच्छों) के ऊपर ग़िलाफ़ होते हैं [55:11]  और दाने जिसके साथ भूसा होता है और ख़ुशबूदार वनस्पतियां [55:12] तो (ऐ गिरोहे जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों को न मानोगे! [55:13]

अल्लाह द्वारा मनुष्य को प्रदान की गई नेमतों में से एक है - उसके जीवन और अस्तित्व के लिए धरती को तैयार करना। जैविक प्रमाणों के अनुसार, कई जीव ऐसे रहे हैं जिनकी प्रजातियाँ समय के साथ विलुप्त हो गईं या विलुप्त होने के कगार पर हैं, लेकिन मानव जाति लगातार बढ़ती रही है और उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक सभी साधन धरती पर उपलब्ध कराए गए हैं। 

मनुष्य के अस्तित्व के साधनों में से एक है धरती पर विभिन्न प्रकार के पौधों और वृक्षों का उगना, जो अनेक प्रकार के फल-सब्ज़ियाँ देते हैं और मनुष्य के पोषण का मुख्य स्रोत हैं। ये पौधे मनुष्य के शरीर की सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और उसकी पाचन प्रणाली के अनुकूल होते हैं। जिन जानवरों का मांस मनुष्य खाता है, वे भी इन्हीं पौधों से पोषण प्राप्त करते हैं। 

 

इन आयतों से हम सीखते हैं

अल्लाह की नेमतों को पहचानना, उसके ज्ञान, शक्ति और दया को जानने का साधन है और इससे इंसान के अंदर अल्लाह के प्रति विनम्रता व आज्ञाकारिता पैदा होती है। 

फल मानव पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और सभी फलों में खजूर विशेष पोषण मूल्य रखती है, इसलिए इसका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। 

सुगंधित पौधे और उनकी मनमोहक खुशबू भी अल्लाह की एक नेमत है।

आइए अब सूरए रहमान की आयत नंबर 14 से 16 तक की तिलावत सुतने हैं,

 

خَلَقَ الْإِنْسَانَ مِنْ صَلْصَالٍ كَالْفَخَّارِ (14) وَخَلَقَ الْجَانَّ مِنْ مَارِجٍ مِنْ نَارٍ (15) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (16)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

उसी ने इन्सान को ठीकरे की तरह खन खनाती हुई मिटटी से पैदा किया [55:14] और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया [55:15] तो (ऐ गिरोहे जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों से मुकरोगे [55:16]

इन आयतों में धरती पर बुद्धिमान प्राणियों के रूप में मनुष्य और जिन्न की सृष्टि की ओर संकेत किया गया है।  यह बताया गया है कि मनुष्य, जो सृष्टि का सबसे श्रेष्ठ प्राणी है, सबसे मामूली पदार्थ यानी मिट्टी से बनाया गया है। जब मिट्टी पानी के साथ मिलती है, तो वह ईंट, मिट्टी के बर्तन या सूखे गारे का रूप ले लेती है। इसलिए मनुष्य का मूल्य उसके शरीर के कारण नहीं है, जो सूखी मिट्टी से बना है, बल्कि उस आत्मा के कारण है जिसे अल्लाह ने उसमें फूंक दिया है। 

 

जिन्न भी अल्लाह की एक रचना है, जिसका क़ुरआन की कई आयतों में उल्लेख हुआ है और क़ुरआन के एक सूरे का नाम ही "सूरतुल-जिन्न" है। इस आयत के अनुसार, जिन्न आग से बना है, और शैतान ने जो जिन्नों में से है इसी आधार पर स्वयं को आदम से जो मिट्टी से बने थे श्रेष्ठ समझा। जबकि आग को मिट्टी या पानी पर कोई वास्तविक तरजीह नहीं है। 

इसके अलावा, न तो मनुष्य और न ही जिन्न अपनी उत्पत्ति के स्रोत में कोई योगदान रखते हैं। वास्तव में, जिन्न और मनुष्य दोनों को अपने रचयिता का आभारी होना चाहिए, जिसने उन्हें अस्तित्व दिया और उन्हें अनेक प्रकार की नेमतें प्रदान कीं। लेकिन दुर्भाग्य से, दोनों समूहों में से बहुत से लोग नाशुक्री दिखाते हैं। 

 

इन आयतों से हम सीखते हैं:

 

पानी, मिट्टी और आग में जीवन नहीं है, लेकिन अल्लाह ने इन निर्जीव पदार्थों से सचेत, बुद्धिमान प्राणियों की रचना की है, और यह अल्लाह की एक महान नेमत है। 

जिन्न और मनुष्य दोनों ही धरती के प्राणी हैं और भौतिक तत्वों से बने हैं। 

जो हमें दिखाई नहीं देता और हमारी इंद्रियों से परे है, उसे नकारें नहीं। जिन्न एक अदृश्य प्राणी है, हम उसे नहीं देख सकते, फिर भी वह अल्लाह की रचना है और उसका अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता। 

अल्लाह की दी हुई नेमतों का इनकार करना निंदनीय है, और मनुष्य व जिन्न दोनों ही इस बुराई में फंसे हुए हैं।

 

आइए अब सूरए रहमान की आयत संख्या 17 और 18 की तिलावत सुनते हैं

 

رَبُّ الْمَشْرِقَيْنِ وَرَبُّ الْمَغْرِبَيْنِ (17) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (18)

इन आयतों का अनुवाद हैः

वही दोनों मशरिक़ों का मालिक है और दोनों मग़रिबों का (भी) मालिक है। [55:17] तो (ऐ गिरोहे जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे [55:18]

 

इन आयतों में एक बार फिर मनुष्य का ध्यान पृथ्वी के परिक्रमा पथ या ऑर्बिट की ओर आकर्षित किया गया है और बताया गया है कि जिस अल्लाह ने पृथ्वी और सूरज को बनाया है, उसने इस तरह की व्यवस्था की है कि सूरज की किरणें पृथ्वी पर एक समान नहीं पड़तीं, बल्कि साल भर में बदलती रहती हैं। 

गर्मियों की शुरुआत में, सूरज आकाश के सबसे ऊंचे बिंदु पर होता है और सबसे अधिक तपिश व प्रकाश देता है, जबकि सर्दियों की शुरुआत में, सूरज आकाश के सबसे निचले बिंदु पर होता है और पृथ्वी को कम से कम गर्मी प्रदान करता है। यही कारण है कि चार मौसम बनते हैं। 

ये दो बिंदु वास्तव में सूर्य के अधिकतम और न्यूनतम उदय व अस्त के स्थान हैं, जबकि साल भर के अन्य सभी उदय व अस्त के बिंदु इन दोनों के बीच में होते हैं। 

यह भी ध्यान देने योग्य है कि सूरज साल के हर दिन अलग-अलग बिंदुओं से उदय होता और अस्त होता है, इसलिए साल के दिनों के अनुसार ही उदय व अस्त के स्थान भी अलग-अलग होते हैं। इसीलिए सूरए मआरिज में "कई उदय और अस्त के स्थानों"  का ज़िक्र हुआ है, जो सूरज के रोज़ाना बदलते उदय-अस्त बिंदुओं की ओर इशारा करता है। हालांकि, जैसा कि ऊपर बताया गया, यह आयत साल के दो खास उदय-अस्त बिंदुओं यानी मशरिक़ व मग़रिब की ओर भी इशारा करती है, जिनके बीच में बाकी सारे मशरिक़ और मग़रिब यानी उदय-अस्त बिंदु आते हैं। 

 

इन आयतों से हम सीखते हैं:

क़ुरआन मनुष्य को आकाश और तारों को समझने का आह्वान करता है। अल्लाह की आसमानी नेमतों—जैसे सूरज, चाँद, तारे और उनकी गतियों—को जानना कुरआन का महत्वपूर्ण विषय है। 

दिनों का छोटा-बड़ा होना और मौसमों का बदलना कोई संयोग नहीं, बल्कि ईश्वरीय प्रबंधन है। यह पृथ्वी पर जीवन चक्र और जीवों की ज़रूरतों के अनुसार नियोजित है। 

इस तरह, ये आयतें हमें प्रकृति के नियमों में ईश्वर की महान योजना और उसकी दया को पहचानने की प्रेरणा देती हैं।