क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1002
सूरए वाक़ेया आयतें, 57 से 74
आइए सबसे पहले सूरए वाक़ेआ की आयत संख्या 57 से 62 तक की तिलावत सुनते हैं,
نَحْنُ خَلَقْنَاكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ (57) أَفَرَأَيْتُمْ مَا تُمْنُونَ (58) أَأَنْتُمْ تَخْلُقُونَهُ أَمْ نَحْنُ الْخَالِقُونَ (59) نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ الْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ (60) عَلَى أَنْ نُبَدِّلَ أَمْثَالَكُمْ وَنُنْشِئَكُمْ فِي مَا لَا تَعْلَمُونَ (61) وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْأَةَ الْأُولَى فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ (62)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तुम लोगों को हम ही ने पैदा किया है फिर तुम क्यों नहीं तस्दीक़ करते [56:58] तो जिस चीज़ को तुम (नुत्फे क़े रूप में) डालते हो क्या तुमने उसे देख भाल लिया है [56:57] क्या तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं?[56:59] हमने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और ताक़त में कोई भी हमसे आगे नहीं निकला है। [56:60] कि हम तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को ऐसी (दुनिया में) पैदा करें जिसे तुम बिल्कुल नहीं जानते। [56:61] और तुमने पैहली पैदाइश तो समझ ही ली है तो फिर तुम (दोबारा पैदा किए जाने के बारे में) ग़ौर क्यों नहीं करते?[56:62]
पिछली आयतों में क़यामत को झुठलाने वालों का ज़िक्र था; ये आयतें क़यामत के होने के कारणों की ओर इशारा करती हैं और कहती हैं: क्या तुमने अपने पैदा होने में अल्लाह की ताक़त नहीं देखी, फिर तुम अपने दोबारा पैदा होने को असंभव कैसे समझते हो?
ख़ुद के अलावा, अपनी औलाद के बारे में क्या कहोगे? क्या तुम उनके पैदा करने वाले हो? तुम तो बस नुतफ़े की एक बूँद को रहम में डालते हो और नहीं जानते कि 9 महीने के भ्रूण तक पहुंचने से पहले वह किन-किन परिवर्तनों से गुज़रता है। क्या एक तुच्छ बूँद का पूर्ण इंसान में बदलना तुम्हारा काम है और इसमें तुम्हारा कोई योगदान है?
दूसरी ओर, क्या तुममें से कोई अपनी मौत को रोक पाया है या मौत से भाग निकला है? तुम जिनकी ज़िंदगी और मौत अपने हाथ में नहीं है, जो अपनी मर्ज़ी से दुनिया में नहीं आए और न ही अपनी मर्ज़ी से दुनिया से जाओगे, तुम अल्लाह की ताक़त में कैसे शक करते हो कि वह तुम्हें दोबारा पैदा कर सकता है?
इन आयतों से हम सीखते हैं:
- तार्किक सवालों के ज़रिए अल्लाह और क़यामत का इनकार करने वालों की अक़्ल और फ़ितरत को जगाएँ, ताकि वे ख़ुद जवाब तक पहुँचें और हक़ को स्वीकार करें।
- क़ुरआन का तरीक़ा विरोधियों के संदेह और शक-ओ-शुब्हे के सामने प्राकृतिक और स्पष्ट तर्कों का इस्तेमाल करना है, न कि गाली-गलौज या तौहीन और मज़ाक उड़ाना।
- इंसान की मौत और ज़िंदगी उसके अपने हाथ में नहीं है। इंसान को पैदा करने और मारने दोनों में ही ताक़तवर और पैदा करने वाले अल्लाह की कुदरत ज़ाहिर है।
- कोई भी मौत से भाग नहीं सकता और न ही इस क़ुदरती नियम पर क़ाबू पा सकता है। बेशक, मौत भी दूसरी चीज़ों की तरह हिकमत और हिसाब-किताब पर आधारित है।
अब आइए हम सूरए वाक़ेआ की आयत 63 से 67 तक की तिलावत सुनते हैं:
أَفَرَأَيْتُمْ مَا تَحْرُثُونَ (63) أَأَنْتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ (64) لَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ (65) إِنَّا لَمُغْرَمُونَ (66) بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ (67)
इन आयतों का अनुवाद हैः
भला देखो तो कि जो कुछ तुम लोग बोते हो [56:64] क्या तुम लोग उसे उगाते हो या हम उगाते हैं [56:63] अगर हम चाहते तो उसे चूर चूर कर देते तो तुम हैरत ही करते रह जाते[56:65] कि (हाए) हम तो तावान में नुक़सान उठाने वाले हैं [56:66] बल्कि हम तो बदनसीब हैं।[56:67]
ये आयतें प्रकृति में अल्लाह की ताक़त का एक और उदाहरण देते हुए कहती हैं: क्या पेड़-पौधों को ज़मीन से उगाना तुम्हारा काम है या अल्लाह का? तुम एक बीज को, जिसे अल्लाह ने पैदा किया है, मिट्टी में डालते हो और पानी जो अल्लाह ने उतारा है, उसके ऊपर डालते हो। फिर सूरज की रोशनी और गर्मी उसे मिलती है। इन सबके ज़रिए बीज के बढ़ने का सामान तैयार होता है।
यहाँ यह सवाल उठता है कि मिट्टी, पानी, रोशनी और गर्मी तुम्हारी है या अल्लाह की? यह कि बीज एक तरफ़ मिट्टी में जड़ें जमाता है और दूसरी तरफ़ मिट्टी से बाहर निकलकर अंकुरित होता है, यह ख़ूबी तुमने बीज को दी है या अल्लाह ने?
अगर अल्लाह इनमें से किसी एक चीज़ को भी छीन ले और पौधा सूखकर बेकार हो जाए, तो तुम उसे कैसे हरा-भरा और फलदार बना सकते हो?
इन आयतों से हमने सीखाः
- वही ताक़त जो दुनिया में एक छोटे से बीज को मिट्टी में पाल-पोसकर हरे-भरे पौधे के रूप में बाहर निकालती है, वह क़यामत में भी इंसान के मरने के बाद बचे हुए एक छोटे से अंश को पुनर्जीवित कर सकती है।
- इंसान का काम सिर्फ़ पैदा करने का मौका देना है। कभी वह एक बूँद को रहम में डालता है, तो कभी एक बीज को मिट्टी में। लेकिन जो बच्चे को पैदा करता है और पौधे को बढ़ाता है, वह सिर्फ़ अल्लाह है, जो सभी मख़लूक़ात का पैदा करने वाला है।
अब आइए हम सूरए वाक़ेआ की आयत 68 से 76 तक की तिलावत सुनते हैं:
أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ (68) أَأَنْتُمْ أَنْزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنْزِلُونَ (69) لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ (70) أَفَرَأَيْتُمُ النَّارَ الَّتِي تُورُونَ (71) أَأَنْتُمْ أَنْشَأْتُمْ شَجَرَتَهَا أَمْ نَحْنُ الْمُنْشِئُونَ (72) نَحْنُ جَعَلْنَاهَا تَذْكِرَةً وَمَتَاعًا لِلْمُقْوِينَ (73) فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ (74)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जो पीते हो? [56:68] क्या उसको बादल से तुमने बरसाया है या हम बरसाते हैं?[56:69] अगर हम चाहें तो उसे खारा बना दें तो तुम लोग शुक्र क्यों नहीं करते?[56:70] तो क्या तुमने आग पर भी ग़ौर किया जिसे तुम जलाते हो? [56:71] क्या उसके दरख़्त को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं [56:72] हमने आग को (जहन्नुम की) याद देहानी और मुसाफिरों के फ़ायदे के लिए क़रार दिया। [56:73] तो (ऐ रसूल) तुम अपने अज़ीम परवरदिगार की तस्बीह करो। [56:74]
पिछली आयतों के सिलसिले में जहां प्रकृति में अल्लाह की ताक़त की निशानियों का ज़िक्र था, ये आयतें कहती हैं: क्या समुद्रों और महासागरों पर बादलों का बनना और हवाओं का चलना जो बादलों को धरती के अलग-अलग हिस्सों में ले जाती हैं, इंसान का काम है?
अगर कुछ सालों तक बारिश न हो, तो तुम क्या करोगे? ख़ुद भी प्यास से मर जाओगे, तुम्हारे पेड़-पौधे और जानवर भी। या फिर अगर बारिश हो भी, लेकिन बारिश का पानी समुद्र के पानी की तरह खारा और नमकीन हो, तो तुम क्या करोगे?
अगर बारिश न हो, तो कोई पेड़ नहीं उगेगा जिससे तुम उसके फलों का फायदा उठा सको या उसकी लकड़ी से तरह-तरह के सामान बना सको या फिर उससे गर्मी पा सको। जो आग लकड़ी से जलती है, वह मुसाफ़िरों के लिए रोशनी और गर्मी का साधन भी है और यह याद दिलाती है कि पानी और मिट्टी से आग पैदा करने में अल्लाह की कितनी ताक़त है!
इन आयतों से हमने सीखाः
- चार तत्व - पानी, मिट्टी, हवा और आग - सभी अल्लाह के हुक्म और इरादे के तहत हैं और अल्लाह को पहचानने और उसकी ताक़त समझने का साधन हैं।
- पानी के बनने के तरीक़े और जीवित प्राणियों के लिए उसके महत्व पर ग़ौर करना, बादलों के बनने और हवाओं द्वारा उन्हें धरती के अलग-अलग हिस्सों में ले जाने की प्रक्रिया, और बारिश का गिरना - ये सब इंसान को अल्लाह की याद दिलाते हैं और उसमें शुक्रगुज़ारी की भावना जगाते हैं।
- पेड़ पानी और मिट्टी से पैदा होता है और पेड़ की लकड़ी से आग जलती है जो इंसान को गर्मी देती है। ये सब इस बात की निशानियां हैं कि अल्लाह एक-दूसरे के उलट चीज़ों को पैदा करने की ताक़त रखता है।
- हमेशा तस्बीह पढ़कर अल्लाह को हर कमज़ोरी और अज्ञानता से पाक बताओ, ताकि क़यामत के कायम होने में परवरदिगार की ताक़त पर शक न हो।