ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-5
सोलहवीं ईसवी शताब्दी में ईरान में सफ़वी शासन श्रंख्ला स्थापित हुयी जो लगभग दो सौ साल तक चली।
सोलहवीं ईसवी शताब्दी में ईरान में सफ़वी शासन श्रंख्ला स्थापित हुयी जो लगभग दो सौ साल तक चली। इस शासन काल में वास्तुकला, चित्रकला, धातु की कला, कपड़े की बुनायी, कालीन की बुनायी और इमारत को सुंदर रूप देने की कला अपने चरम पर पहुंची। इस काल में कलाकारों ने इन कलाओं के उत्कृष्ट नमूने पेश किए। शाह अब्बास सफ़वी के काल में ईरान और ईरान से बाहर के कलाकार इस्फहान में आकर बस गए और फिर यह शहर इस्लामी कलाओं के बेजोड़ नमूनों के उत्पादन का केन्द्र बन गया। शाह अब्बास सफ़वी ने बहुत से औद्योगिक कारख़ानों की स्थापना की। उनके काल में कलाओं और ख़ास तौर पर मिट्टी के बर्तन की कला के क्षेत्र को बहुत रौनक़ मिली।
सफ़वी काल में किरमान के एक रंग वाले और मशहद के रंग बिरंगे मिट्टी के बर्तन बनने लगे। इन बर्तनों पर ख़ूबसूरत बेल बूटे, इंसान, जानवर, वनस्पति और परिन्दों के चित्र बनाए जाते थे।
सफ़वी काल की मिट्टी के बर्तन की कला को कला की दृष्टि से कई वर्गों में बांटा जा सकता हैः कुबाची और ईज़नीक बर्तन, सफ़ेद चमकते हुए फूल और मुर्ग़ी के चित्र वाले। सफ़ेद रंग के मिट्टी के बर्तन जिन्हें स्थानीय ज़बान में गाम्बरून कहा जाता था और किरमान में बनने वाले एक रंग और रंग बिरंगे बर्तन जिन्हें स्थानीय भाषा में सलादेन कहा जाता था
कुबाची बर्तन का ढांचा सफ़ेद रंग का होता था और उस पर काले लाल, भूरे, हरे और नीले रंग के चित्र बनाए जाते थे। इस प्रकार के बर्तन पर चमकते हुए पदार्थ की कोट चढ़ाई जाती थी।
ईज़नीक बर्तन उस्मानी शासन काल के मिट्टी के बर्तन के डिज़ाइन से प्रेरित थे। ईज़नीक बर्तन पर सफ़ेद कोट चढ़ाई जाती थी और उस पर नाना प्रकार के रंगों व डिज़ाइन वाले चित्र बनाए जाते थे। किन्तु इस दौर के सबसे अच्छे बर्तन गाम्बरून शैली के बर्तन थे। गाम्बरून दक्षिणी ईरान में स्थित उस शहर का नाम था जिसे आज के दौर में बंदर अब्बास कहा जाता है। गाम्बरून शैली के बर्तन सफ़ेद और चमकते हुए होते थे। उस पर नीले रंग की कोट चढ़ाई जाती थी और यह बर्तन बहुत ही नाज़ुक होते थे। अलबत्ता सफ़वी शासन काल के अंतिम दिनों में सफ़ेद और नीले रंग के मिट्टी के बर्तन किरमान और मशहद में बनते थे जो धीरे धीरे आसमानी रंग के बनने लगे थे।
सफ़वी काल में सलादेन नाम की मिट्टी के बर्तन की नई शैली मशहूर हुयी। यह शैली चीन के सलादेन बर्तन से प्रेरित थी। किन्तु ईरानी कुम्हारों ने अपनी रचनात्मकता से इस बर्तन पर नए चित्र और डिज़ाइन बनाए और इस प्रकार ईरानी सलादेन बर्तन वजूद में आए। सलादेन मिट्टी के बर्तन का ढांचा मज़बूत होता था और इस पर गहरे और ब्राइट हरे रंग की कोट चढ़ी होती थी। इस प्रकार के बर्तन डिज़ाइनदार सांचे में ढले और उभरे हुआ डिज़ाइन के होते थे। इस प्रकार के बर्तनों पर अजगर, उनक़ा नामक चिड़िया, मछली, विशेष आकार के बादल और कमल के फूल के चित्र बने होते थे। सलादेन के कुछ बर्तन ऐसे होते थे जिन पर कुछ लिखा होता था जैसे कोई कथन या शेर वग़ैरह। सलादेन बर्तन के निर्माण केन्द्र के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी मौजूद नहीं है लेकिन किरमान, अराक, इस्फ़हान, और बंदर अब्बास वे स्थान हैं जहां इस प्रकार के बर्तन बरामद हुए हैं।
इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि सफ़वी शासन काल की यह शान जारी न रह सकी और इस शासन श्रंख्ला के पतन के बाद ईरान की कला शैली में बहुत बदलाव आया और प्राचीन शैली में विविधतापूर्ण कला रचनाओं का निर्माण कुछ हद तक नज़रअंदाज़ किया गया।
हालांकि अफ़ग़ानों के हमले और सफ़वी शासन काल के पतन के बाद भी मिट्टी के बर्तन के ज़्यादातर कारख़ाने चलते रहे लेकिन इन कारख़ानों के उत्पाद अपने विगत के उत्पादों की तुलना में प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से नहीं टिक सके।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चौदह सौ साल पर फैले मिट्टी के बर्तन के निर्माण का यह काल इस बिन्दु की ओर इशारा करता है कि इस काल में मिट्टी के बर्तन के निर्माण की कला नए चरण में दाख़िल हुयी कि इस चरण में इसकी निर्माण शैली, उपयोगिता और डिज़ाइन में बहुत ज़्यादा बदलाव आए। ये बदलाव साहित्य, अर्थव्यवस्था, सुलेखन और चित्रकारी की दृष्टि से हुए। इस्लामी काल के मिट्टी के बर्तन अपने डिज़ाइन के लिए जाने जाते हैं। मुसलमान कुम्हार इन बर्तनों के डिज़ाइन में प्राकृतिक डिज़ाइनों और चित्रों के साथ साथ इन बर्तनों पर क़ुरआन की आयतें और शेर लिखते थे।
इस कला पर आधारित मिट्टी के बर्तन शताब्दियों के दौरान उत्पादित होते रहे। ये बर्तन अपनी सुंदरता में बेजोड़ होते हैं।
मीनाकारी पर आधारित सबसे पुराने मिट्टी के बर्तन पंद्रह शताब्दी ईसापूर्व के हैं। ये बर्तन मिस्र में बरामद हुए। हख़ामनेशी काल में नीले रंग के बिस्कुट ऐल्कलाइन की कोट के बने होते थे कि इसके नमूने ईरान के दक्षिण पश्चिम में स्थित शूश के आपादाना महल के प्रांगण से बरामद हुए। इन ईटों के निर्माण में दो शैली अपनायी जाती थी। एक उभरी हुयी डिज़ाइन वाले सिलिकन की कोट वाली ईंटें और दूसरी सपाट सतह वाली रंग बिरंगी ईटें। इस प्रकार की ईटों के निर्माण में रेत और चूने का इस्तेमाल किया जाता था। हर ईंट को सांचे में रूप देकर तीन बार भट्टी में पकाया जाता था।
आग में पकाने के पहले चरण में उस ढांचे को बनाया जाता था जिसे मौजूदा दौर के कुम्हार बिस्कुट कहते हैं। दूसरे चरण में नीले रंग की कोट चढ़ायी जाती थी और अंतिम चरण में सिलिकन पदार्थ की कोट चढ़ायी जाती थी। नीले रंग के मिट्टी के बर्तन के लिए चीनी मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता था। इन बर्तनों की निर्माण शैली काशान और केन्द्रीय ईरान के कुछ शहरों में प्रचलित थी और इनकी जड़ समरक़न्द और नीशापूर के कुम्हारों के परीक्षण पर आधारित थी। वे बर्तन पकाने के बाद उन पर चित्रकारी करते थे और फिर उन्हें भट्टियों में डाला जाता ताकि सफ़ेद रंग की डिज़ाइन बन जाए। इस जटिल शैली के तहत मिट्टी के बर्तन को कई बार भट्टी में पकाया जाता था। बर्तन को भट्टी में रखते वक़्त उसकी गर्मी ७५० डिग्री सेन्टिग्रेड होती थी और फिर भट्टी की गर्मी को धीरे धीरे कम किया जाता था।
मीनाकारी या नीले रंग की कोट वाले बर्तन के निर्माण की शैली को ईरानी कलाकारों ने उसके शिखर पर पहुंचाया। नीले रंग के बर्तन के निर्माण का सबसे कठिन चरण उभरे हुए चित्र के बर्तनों को चमकाने का होता था।
नीले रंग के मिट्टी के बर्तनों को ज्यामितीय आकार और फूल बूटे के चित्रों से सुंदर बनाया जाता था। आम तौर पर यह चित्र पूरे बर्तन पर बनाए जाते थे। छवी या सातवीं हिजरी का इस्लीमी चित्रों वाला एक नीला प्याला आज भी मौजूद है जिसकी भीतरी और बाहरी कगार पर कूफ़ी लीपि से मिलती जुलती एक लीपि में कुछ लिखा हुआ है। नीले रंग के बर्तनों पर जिन्हें स्थानीय ज़बान में मीना कहते हैं, जानवरों और इन्सानों के चित्र बनाए जाते थे। इन चित्रों में राजाओं के शिकार करने का दृष्य, प्रेमपूर्ण कहानियों, वादकों और कभी शाहनामे की कहानियों को बयान करने वाले चित्र बनाए जाते थे। पक्षी, दो इन्सान और उनके बीच एक पेड़, इन चित्रों में समान रूप से दिखाई देते हैं। अलबत्ता नीले रंग के बर्तन पर जो चित्र बने हुए हैं उनमें आपस में बहुत ज़्यादा अंतर दिखाई नहीं देता लेकिन मर्दाना और ज़नाना कपड़ों में अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
इसी प्रकार ये चित्र और डिज़ाइन हस्तलिखित किताबों पर बनाए जाने वाले चित्रों और उसकी शैली से समन्वित थे। कुछ पुरातनविदों का मानना है कि हस्तलिखित किताबों पर चित्र बनाने वाले ही नीले रंग के बर्तनों पर नक़्क़ाशी का काम करते थे। मीनाकारी के बर्तनों पर चित्र बनाने के लिए आसमानी नीले, हरे, फ़िरोज़ई, लाल, भूरे या काले, पीले और सफ़ेद रंग का इस्तेमाल किया जाता था। कभी कभी सभी रंगों को और कभी कुछ रंगों से डिज़ाइन की जाती थी।
सावे, नतन्ज़, सुलतानाबाद और काशान वे केन्द्र हैं जहां मीनाकारी के बर्तन बनाए जाते थे। पुरातात्विक खुदाई के अनुसार, मीनाकारी के बर्तन सभी निर्माण केन्द्रों से रय निर्यात किए जाते थे। (MAQ)
फेसबुक पर हमें लाइक करें, क्लिक करें