Dec ०६, २०१६ १६:५३ Asia/Kolkata

मानव ने शुरू से ही जीवन की ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए सीधे रूप से व्यापक अनुकंपाओं से लाभ उठाकर हस्तशिल्प तैयार किए।

वर्तमान समय में भी हस्तशिल्पों का विशेष महत्व है, जैसे कि अत्यधिक वैट, रोज़गार सृजन के लिए कम निवेश की ज़रूरत, कच्चे माल और उपकरणों का आसानी से उपलब्ध होना और देश भर में उसका विस्तार करना। इसी प्रकार पर्यावरण के लिए घातक नहीं होना, आय में वृद्धि, पर्यटन और विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए आकर्षण हस्तशिल्प की अन्य विशिष्टताएं हैं।

तटीय सीमाओं के आधार पर ईरान विश्व में 37वां देश है। फ़ार्स खाड़ी, ओमान सागर और कैस्पियन सागर के तट ईरान की महत्वपूर्ण सीमाएं हैं। अगर केवल फ़ार्स खाड़ी की सीमा पर ध्यान केन्द्रित करें, तो पता चलेगा कि फ़ार्स की खाड़ी समुद्री जीवों जैसे कि कस्तूरा, स्पंज और मूंगों का केन्द्र है। इसी प्रकार ईरान की हिंद महासागर के गर्म पानियों तक पहुंच है, जिसके कारण ओमान सागर के रास्ते कस्तूरा, मूंगों और अन्य जलीय वस्तुएं उसके अधिकार में हैं।

यह कच्चा माल और तटीय प्रांतों में रचनात्मक कलाकारों के कारण, हस्तशिल्प उद्योग को बढ़ावा मिला। हस्तशिल्प विभिन्न साइज़ों और विविध प्रकार से बनाए जाते हैं, जिनके मूल्य उचित होते हैं, जिसके कारण बाज़ार में इनकी अच्छी मांग होती है।

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वर्षों से लोग इस प्रकार के कच्चे माल को तटों से प्राप्त करते हैं और घरों में या छोटे कारख़ानों में इनसे विभिन्न प्रकार की चीज़ें तैयार करके स्थानीय बाज़ारों में बेचते हैं। सीपों पर चित्रकारी महत्वपूर्ण समुद्री हस्तशिल्प उत्पादों में से है। इसी प्रकार, सजावट के लिए सीपों की तराश और उन पर चित्रों को उकेरना और सीपों से विभिन्न प्रकार की प्रतिमाओं का बनाना और मछलियों की टैक्सिडर्मी एवं रंग बिरंगे छोटे पत्थर सभी सुन्दर समुद्री उत्पाद हैं।

सीपों और अन्य समुद्री वस्तुओं से आभूषण बनाना दक्षिणी ईरान के हस्तशिल्प उत्पादों में से है, जिसमें विभिन्न प्रकार के ब्रेस्लेट, हार, अंगूठियां, बुंदे, बोर्ड इत्यादि शामिल हैं। फ़ार्स खाड़ी के द्वीपों के तटों पर मौजूद पत्थरों और मोतियों से विभिन्न प्रकार की सुन्दर प्रतिमाओं का निर्माण इन इलाक़ों के लोगों की अन्य गतिविधियों में से हैं।

हुरमुज़गान प्रांत के पारम्परिक ताने बाने और समृद्ध संस्कृति एवं परम्पराओं के कारण, प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प तैयार होते हैं। इस प्रांत के हस्तशिल्प उत्पादों में से एक मछलियां पकड़ने के विभिन्न प्रकार के जाल हैं। जाल मछली पकड़ने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। स्थानीय लोग विशेष रूप से मछुआरे, जाल बुनते हैं। जाल की बुनाई एक पैतृक कला है। हालांकि वर्तमान समय में मछुआरों के लिए जाल दक्षिणी मुछाओं द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है, लेकिन अभी भी हुरमुज़गान के कुछ गांवों में जाल की बुनाई का काम होता है।

ग्रेगर अर्थात मछली का जाल अर्धवृत्त के आकार का जाली से बना एक पिंजरा होता है, जो फ़ार्स खाड़ी में मछलियां पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मछुआरे उसे समुद्र में डालते हैं और उसके ऊपर के सिरे में स्टापर बांध देते हैं, ताकि उसके स्थान को भूल नहीं जाएं। मछलियां एक खिड़की से अंदर जाती हैं और फिर उन्हें बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता। हालांकि केवल बड़ी मछलियां ही इस जाल में फंसती हैं, छोटी मछलियां जाली से बाहर आ जाती हैं।

ग्रेगर अर्थात मछली का जाल चार प्रकार का होता है, बातिना ग्रेगर, तमए ग्रेगर, ओमानी ग्रेगर और दो थैलियों वाला ग्रेगर, इनके बीच ऊंचाई और खिड़कियों के कारण अंतर होता है।

सामान्य रूप से मछली के जाल को अलग थलग रहने वाले समुद्री जीवों और पलायन करने वाली मछलियों के लिए पानी में डाला जाता है। फ़ार्स की खाड़ी में ग्रेगर के इस्तेमाल के लिए बेहतरीन स्थान, मूंगों के द्वीप, चट्टानों वाले इलाक़े, तेल के कुंओं और समुद्र से गुज़रने वाली तेल की पाइपलाइ के आसपास के इलाक़े हैं।

मछली के जाल की बुनाई उन हस्तशिल्पों में से है, जो दक्ष उस्तादों की कलाव कृपा के कारण आज भी सांसे ले रही है और बंदरगाहों में रहने वालों के जीवन का हिस्सा बन गई है। कैप्टन अब्दुल अज़ीज़ ग़ुलामी मछली के जाल की बुनाई करने वाले एक उस्ताद हैं, जिन्होंने 1963 में 12 वर्ष की आयु में ग्रेगर बुनने का काम शुरू किया था।

वे कहते हैं कि अतीत में मछली के जाल को खजूर की लकड़ी से बनाते थे, जिसमें दो बड़ी कमियां थीं। एक यह कि उसमें कुछ मछलियां नहीं फंसती थीं और दूसरे यह कि मज़बूत नहीं होता था और जल्दी ख़राब हो जाता था।

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उसे इस प्रकार से बनाया जाता था कि पेड़ के पत्ते को तोड़कर किसी धारदार चीज़ से उसमें खांचा बनाते थे और समुद्र के पानी से उसे भिगाते थे, ताकि वह नर्म हो जाए। समय बीतने के साथ दाव अर्थात छोटे अरबी जहाज़ से भारत से आबादान और बूशहर जैसी बड़ी बंदरगाहों के लिए लकड़ियां लाई जाती थीं और मछली का जाल बुनने वाले इन नई लकड़ियों से जिन्हें नी बाज़ अर्थात बांस कहा जाता था, लाभ उठाते थे।

नी बाज़ या बांस एक ऐसे वृक्ष को कहते हैं, जिसकी लकड़ी नर्म होती है और अगर उसे पानी में रखा जाए तो उससे पूर्ण वृत्त बन जाता है। लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़ों को साफ़ करने के बाद, उन्हें आपस में बांध दिया जाता था और लगभग एक हफ़्ते के लिए समुद्र के पानी में भिगाया जाता था, ताकि वह अधिक नर्म हो जाए। उसके बाद लकड़ियों को आपस में बुना जाता था और उससे दो टुकड़ों वाला पिंजरा बनाया जाता था। इस पिंजरे के दो द्वार होते थे, एक द्वार मछिलियों के अंदर जाने के लिए और दूसरे से मछुआरे पिंजरे में फंसने वाली मछलियों को निकालते थे।

कमज़ोर होने और अधिक कठिनाई से बनने के कारण धीरे धीरे लकड़ी के जालों का रिवाज कम हो गया और इस हस्तशिल्प के उत्पादन में धातु के तारों का इस्तेमाल होने लगा। अब दक्षिणी ईरान के शहरों और प्रांतों में धातु के मछली के जाल के निर्माण का प्रचलन है और केवल वही लोग इन्हें बना सकते हैं जो शक्तिशाली होते हैं और तेज़ी से काम कर सकते हैं।

मछली के जाल को विभिन्न साइज़ों बनाया जाता है और इसके साइज़ का चयन मछुआरा करता है। उदाहरण स्वरूप, मछली पकड़ने वाले जहाज़ों के लिए बड़े जाल बनाए जाते हैं और नाव में कम जगह होने के कारण, छोटे जालों का इस्तेमाल किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि इन पिंजरों द्वारा उन मछलियों को भी पकड़ा जा सकता है, जो 50 से 60 मीटर की गहराई में रहती हैं। यह पिंजरे समुद्र के तल तक चले जाते हैं, इसलिए इनमें यह मछलियां फंस जाती हैं, इसी वजह से इनसे विशेष मछलियों को पकड़ा जाता है।

इस इलाक़े के मूल निवासियों का मानना है कि मछली पकड़ने का पिंजरा सेविंग एकाउंड की भांति होता है, जितनी देर वह पानी के अंदर रहेगा, उतनी ही अधिक उसमें मछलियां फंसेंगी।

क़िश्म द्वीप के लोग हमेशा समस्याओं से जूझते रहे हैं और उन्होंने कठिन परिश्रम द्वारा अपने इलाक़े को आर्थिक केन्द्र बना दिया है। क़िश्म की यह विशिष्ट परिस्थिति रचनाकार उद्योगपतियों की कोशिशों का नतीजा है। इस द्वीप के हस्तशिल्प इस प्रकार से हैः चटाईयां, टोकरियां, खजूर की छाल से बनने वाली वस्तुएं, प्रतिमाएं, जाल और मछली पकड़ने के पिंजरे और इसके अलावा मोतियों से बनने वाले आभूषण एवं सजावटी चीज़ें, कपड़े, अगर बत्तियां, लकड़ी की चीज़ें, धातु की चीज़ें और खिलौने।

क़िश्म द्वीप प्राचीन काल से ही लांच निर्माण का केन्द्र रहा है और इस उद्योग में अनेक प्रसिद्ध उद्योगपतियों ने अहम भूमिका निभाई है। इसी प्रकार, लांच के निर्माण से बचने वाली सुन्दर एवं मज़बूत लकड़ियों ने द्वीप के युवकों को अपनी ओर आकर्षित किया और लांच के मॉडल के निर्माण का उनके बीच प्रचलन हो गया।

खंड़ाव का निर्माण, विभिन्न प्रकार की मछलियों के मॉडल, माला, ब्रेस्लेट, विभिन्न प्रकार की छड़ियां, जिनके दस्ते विभिन्न प्रकार से डिज़ाइन किए जाते हैं और अन्य चीज़ें इस द्वीप के हस्तशिल्प उत्पादों में से हैं। निःसंदेह यह अद्वितीय कला प्रत्येक पर्यटक का ध्यान अपनी ओर खींचती है।