ज़िन्दगी की बहार-2
आपने बादलों को अवश्य देखा होगा।
आपने बादलों को अवश्य देखा होगा। वे विदित रूप से कितनी शांत मुद्रा में तेज़ी से गति में व्यस्त हैं। जीवन में भी बहुत से अवसर होते हैं। इन अवसरों से एक जवानी की अनुकंपा भी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि अवसर बादलों की भांति गुज़र जाते हैं, अवसरों से भरपूर लाभ उठाओ।
जवानी का काल, मनुष्य के जीवन का बहुत ही संवेदनशील काल होता है जिसकी विशेषताओं की पहचान और युवा के व्यक्तिगत ढांचे के निर्माण के कारकों पर ध्यान देना, युवाओं की महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएं समझी जाती हैं। यह बात स्पष्ट है कि मनुष्य की व्यक्तिगत, जीवन के आरंभिक दिनों में बनना आरंभ हो जाता है, यहां तक कि इससे पहले भी उसका निर्माण आरंभ हो जाता है और जीवन के अंतिम क्षणों तक यह क्रम जारी रहता है। इस दौरान जवानी का काल, विशेष आत्मिक व शारीरिक गुणों से संपन्न होता है। इसीलिए यहां पर युवा यह सोचने पर विवश हो जाता है कि समाज में किस प्रकार प्रविष्ट हो? और युवा के समाजिक संबंधों को जो मनुष्य के विचार और उसके व्यक्तिगत व आत्मिक ढांचे को प्रभावित करते हैं, वर्षों के बाद की आशा पर छोड़ा नहीं जा सकता।
युवा, स्वतंत्रता का आभास करते हुए समाज में अपनी उपस्थिति और सामाजिक संबंधों के साथ अपने जीवन के बहुत ही संवेदनशील चरण का अनुभव करता है। इस अनुभव का आरंभ यदि आवश्यक शिक्षाओं, जागरूकताओं और उचित सूझ बूझ के साथ न हो तो ऐसे में युवा आपदाओं और ख़तरों में ग्रस्त हो जाता है और इससे उसका जीवन पूरी तरह से बिखर जाएगा और उसको कटु अनुभवों का सामना करना पड़ेगा।
किसी भी व्यक्ति की शारीरिक, वैचारिक, भावनात्मक, सामाजिक और नैतिकता जैसी विशेषताएं चाहे वह विरासत में उसे मिली हों या उसने प्राप्त की हों, उसे अन्य लोगों से अलग करती हैं। एक व्यक्ति की समीक्षा के लिए उसकी शारीरिक, वैचारिक, भावनात्मक व नैतिक विशेषताओं सहित उसके समस्त आयामों को पहचानना चाहिए और इसी प्रकार अन्य लोगों के साथ उसके व्यवहार और सामाजिक व्यवहार की भी समीक्षा करनी चाहिए। उदाहरण स्वरूप जो व्यक्ति घमंड और आत्ममुग्धता में ग्रस्त हो, तो इसका प्रभाव उसकी बातचीत और चाल ढाल में देखा जा सकता है। व्यक्तिगत विशेषताएं, मनुष्य को दूसरों से भिन्न बना देती हैं किन्तु यह भिन्नताएं कुछ ही विशेषताओं या गुणों में ही पाई जाती हैं। दूसरे शब्दों में, मनुष्य बहुत से गुणों में एक दूसरे के समान होते हैं। अब प्रश्न यह है कि मनुष्य दूसरे से भिन्न कैसे होता है? और वे किस चीज़ में एक दूसरे के समान होते है? यह ऐसा विषय है जिस पर आज के बहुत से मनोचिकित्सक ध्यान देते हैं।
युवा की व्यक्तिगत स्थिरता के महत्त्व के कारण, विभिन्न रिवायतों और हदीसों में इस महत्त्वपूर्ण पड़ाव पर बहुत अधिक बल दिया गया है और मनोचिकित्सक भी इस चरण को, मनुष्य के ताज़ा जन्म की संज्ञा देते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि बुढ़ापा आने से पहले अपनी जवानी से भरपूर लाभ उठाओ व उसका महत्त्व समझो। तेहरान विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर व मनोचिकित्सक डाक्टर ख़ुदायारी का कहना है कि जवानी के दौर में, बचकाना जल्दबाज़ी धीरे धीरे समाप्त होती है और उसके बदले उसमें एक प्रकार की शांत और तार्किक सोच आ जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि युवा समाज में इस प्रकार के लोगों को स्वीकार कर लेता है और इसीलिए किशोरावस्था में उसकी समान सोच की जगह, साथ रहना, एक दूसरे से सहयोग करना और अपने संगी साथियों के साथ रहने जैसी बातें ले लेती है। अस्थिर भावनाओं का स्थान चिंतन के साथ संतुलित व्यवहार ले लेता है और इस प्रकार से वह व्यक्ति और दुनिया को यथार्थवाद की दृष्टि देखने लगता है। इस चरण के बाद युवा का वातावरण से मेल मिलाप और अधिक सुदृढ़ हो जाता है। इस प्रकार से उसमें सामाजिक सूझ बूझ की क्षमता बढ़ जाती है। इस चरण में वह समाजिक ज़िम्मेदारियों के संबंध में अधिक संवेदनशील हो जाता है और समाज में नैतिक व अध्यात्मिक मूल्यों को फैलाने के लिए उचित व्यवहार का समर्थन करना चाहिए ताकि युवा सहित समाज के सभी वर्ग के लोग इन मूल्यों की ओर रूझहान रखें।
स्पष्ट है कि इस संबंध में जवान लड़के और लड़कियों के पास व्यक्तिगत को बनाने व निखारने का बेहतरीन अवसर मिल जाता है। मनुष्य की आत्मा, उम्र बढ़ने के बाद भी सदैव जवान होती है और जवानी का उत्साह, सांसारिक इच्छाओं की प्राप्ति और भौतिक चीज़ों को अधिक अधिक से प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। इसी मध्य वह गुट जिसने अपने वास्तविक स्थान को पा लिया और उसका अहंम उसपर नियंत्रण खो चुका हो तो वह कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में बहुत ही सुन्दर ढंगसे व्यक्ति पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं जो अपने बहुत ही तुच्छ गुमशुदा माल को तलाश करते हैं और उसको ढूंढने में ज़मीन आसमान एक कर देते हैं किन्तु ख़ुद को भुला बैठता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम स्वयं की अनदेखी करने को बहुत बड़ी अज्ञानता से संज्ञा देते हैं।
मनुष्य के भीतर दो शक्तियां होती हैं जो सदैव ही विशेषकर जवानी के पड़ाव में एक दूसरे से संघर्षरत रहती हैं। उनमें से एक उसे प्रयास और कोशिशों की ओर प्रेरित करती है जबकि दूसरी उसे सुस्ती और आल्सय की ओर ले जाती हैं। इस झगड़े में दोनों पक्ष जीतते हैं और उसका उचित परिणाम मनुष्य के अस्तित्व में प्रकट होता है। आराम की भावना स्वयं मनुष्य की शर्मिंदगी और पछतावे का कारण बनती है और प्रयास करने वाले की सफलता, जीत व सफलता का उत्साह और घमंड की भावना के साथ होती है क्योंकि मनुष्य को बुद्धि के आदेश के अधीन बना देती है और सोच विचार की शक्ति और परिपूर्णता तक पहुंचने की भावना को उसमें बढ़ाती है। चूंकि युवा में पवित्र प्रवृत्ति होती है और स्वयं उसकी वास्तविकता, बहुत कम ही भौतिक संबंधों से प्रदूषित होती है, जवानी और किशोरावस्था का काल, उसके जीवन में भावनात्मक मोड़ होता है और वैचारिक व व्यवहारिक रूप से वह जो प्राप्त करता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।
इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि युवाओं के व्यक्तित्व की बनावट में, कुछ रुकावटें और कुछ नकारात्मक बातें बड़ी सरलता से अपनी नकारात्मक भूमिका निभा सकती है, इसीलिए युवा को अपने व्यक्तिव के विकास और व्यस्कता के चरण में विशेष क्षमताओं की आवश्यकता होती है। सूझबूझ की कमी, इच्छा शक्ति से लाभ न उठाना और बिना ज्ञान व जागरूकता के कार्य का संकल्प, उसे पथभ्रष्टा के गड्ढे में गिरा देता है । एक रिवायत के आधार पर जो व्यक्ति बिना सोचे समझे बिना आवश्यक ज्ञान के कुछ करता है वह उस व्यक्ति की भांति है जो अपने दृष्टिगत रास्ते के अलावा किसी और रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, वह इस प्रकार से गंतव्य से निकट होने के बजाए दूर होता जाएगा।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने लोगों का अह्वान किया है कि जवानों की विषताओं पर ध्यान दें। वे इस संबंध में कहते हैं कि मैं यह कहना चाहता हूं कि जवानी का चमकता हुआ दौर, ऐसा दौर है, यद्यपि यह अधिक लंबा नहीं है किन्तु इसके प्रभाव, पूरे जीवन में बाक़ी रहते हैं। जवानी के दौर में युवा, अपनी नई पहचान के चरण में होते हैं, उसमें रुचि होती है कि उसके नये व्यक्तित्व को आधिकारिक रूप से पहचाना जाए, जो सामान्यतः नहीं होता, माता और पिता, युवा को मानो उसकी नयी पहचान में नहीं पहचानते। दूसरी बात युवा ने एक ऐसी नई दुनिया में क़दम रखा है कि सामान्य रूप से परिवार और समाज के लोग इस नई दुनिया से अज्ञान होते हैं और इस बारे में उन्हें कोई सूचना नहीं होती, या उसकी अनदेखी करते हैं, इसीलिए युवा अकेलेपन का आभास करने लगता है। जवानी के काल में युवा के सामने नयी समस्याएं पेश आती हैं जिनके बारे में उसके मन में सवाल उठते हैं। वह चाहता है कि इन भ्रांतियों और प्रश्नों के जवाब दिए जाएं कि अधिकतर अवसरों पर परिवपक्व व संतुष्ट जवाब नहीं मिलता, इसीलिए युवा शून्य और भ्रांति का आभास करता है। दूसरी ओर युवा में ऐसी क्षमताएं पायी जाती हैं जो चमत्कार कर सकती हैं, वह पहाड़ को हिला सकती हैं किन्तु युवा आभास करता है कि वह इन शक्तियों से और उसमें पायी जाने वाली ऊर्जा से भरपूर लाभ नहीं उठाया जा रहा है, इसीलिए वह बेकारी का आभास करने लगता है। जवान अपनी जवानी के दौर में पहली बार महान दुनिया का सामना करता है जिसका अब तक उसने आभास नहीं किया जिसे वैचारिक सहायता व मार्गदर्शन की आवश्यकता है और चूंकि उसके माता पिता सामान्य रूप से व्यस्त होते हैं, युवा का हाल चाल नहीं पूछ पाते और इस प्रकार से वह वैचारिक सहायता से वंचित रह जाता है। इस संबंध में कार्य करने वाली संस्थाएं भी ज़िम्मेदार हैं जो सामान्य रूप से आवश्यकता की जगह और आवश्यक मोड़ पर उपस्थित नहीं हैं, इसीलिए युवा स्वयं को बेसहारा समझने लगता है, इस आभास का पाया जाना, सभी पर ज़िम्मेदारी डालता है और सभी इसके ज़िम्मेदार हैं।
इस आधार पर यदि युवा सही व्यक्तित्व तक नहीं पहुंच पाता और उसकी समस्त आकांक्षाएं भौतिक व आंतरिक इच्छाओं की प्राप्ति तक सीमित रह जाती हैं तो जो बाक़ी रह जाता है वह झूठी आवश्यकताओं और चिंता के साथ निर्भर व असंमजस व्यक्तित्व होगा। उसकी आंतरिक शांति व वास्तविकता उत्साह समाप्त हो चुका होगा और यदि यह स्थिति जारी रही तो युवा बहुत से सामाजिक आकांक्षाओं व लक्ष्यों की प्राप्ति और समाज में सार्थक उपस्थिति जैसे मामलों से वंचित हो जाएगा। इस संबंध में आत्म विश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मिक साहस और शारीरिक शक्ति जैसे मूल्यवान तत्व उसकी क्षमताओं को पुनर्जीवित करने का कारण बन सकते हैं किन्तु उसके व्यक्तित्व को स्थिर करने में अधिकारी, पारिवारिक विश्वास तथा आसपास का वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कहते हैं कि एक युवा ने एक बूढ़े व्यक्ति की कमर पर जो छुक चुकी थी, हाथ रखा और उसका उपहास करते हुए कहा यह कमान कितने में बेच रहे हो, बूढ़े ने जवाब दिया, समय तुम्हें भी मुफ़्त में दे देगा किन्तु इसकी क़ीमत सर्वाधिक होगी अर्थात जवानी। (AK)
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