Jul १४, २०१५ १६:१५ Asia/Kolkata

जवानी, इंसान की ज़िन्दगी का वह चरण होता है जिसमें उमंगे अपने चरम पर होती हैं

जवानी, इंसान की ज़िन्दगी का वह चरण होता है जिसमें उमंगे अपने चरम पर होती हैं और जवान तरुणायी एवं प्रफुल्लता का नमूना होता है और जवानी ज़िन्गदी का बेहतरीन समय होता है जो तेज़ी से गुज़र जाता है। जिस तरह बादल तेज़ी से गुज़र जाते हैं उसी तरह इंसान की जवानी का सुनहरा समय भी तीव्र गति से गुज़र जाता है। तो कितना अच्छा होगा कि जवान समय गवांये बिना अपने अच्छे व उज्वल भविष्य के लिए क़दम उठाये।

 

जवानी वह समय है जो इंसान के जीवन का मार्ग निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान अच्छे भविष्य के लिए प्रयास व परिश्रम करते है और प्रयास के लिए बेहतरीन समय जवानी है।

प्रफुल्लता जवानी की एक विशेषता है। जवान की शरीर और आत्मा में जो परिवर्तन उत्पन्न होते हैं वे इस बात का कारण बनते हैं कि जवान स्वयं को नई दुनिया में देखे। इस आधार पर जवान बचपने और जवानी में जो व्यवहार करता है उसमें बहुत भिन्नता होती है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम के अनुसार सही विश्वास और व्यवहार, जवान की प्रफुल्लता का रहस्य है। ग़ैर धार्मिक विचार धारा हर प्रकार के हंसी- मज़ाक को प्रफुल्लता का सूचक समझती है परंतु इस्लाम का मानना है कि विदित प्रसन्नता आतंरिक खुशी के साथ होनी चाहिये इस प्रकार से कि कठिनाई में भी इंसान के अंदर आशा मौजूद होनी चाहिये। दूसरे शब्दों में इस्लाम ने विदित प्रसन्नता के साथ आंतरिक प्रसन्नता पर भी ध्यान दिया है। इस्लामी रवायत में आया है कि इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में एक व्यक्ति इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए गया परंतु काफी प्रयास के बावजूद वह अपने कार्य में सफल नहीं हुआ। एक दिन उसने इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्लाम से इस कार्य का कारण पूछा। इमाम ने उससे पूछा तुमने किन लोगों से बात की? उसने कहा बड़े और बूढ़े लोगों से। उन लोगों को मैंने इस्लाम की ओर आमंत्रित किया। इमाम ने फरमाया तुमने ग़लत किया। जवानों को आमंत्रित करो वे हर अच्छाई की ओर जल्दी आयेंगे।“

 

इंसान स्वाभाविक रूप से दुःख से भागता है और खुशी को पसंद करता है। इंसान के अंदर जो खुशी होती है उसका प्रभाव केवल इंसान की आत्मा पर ही नहीं बल्कि उसके शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आंतरिक खुशी इंसान को एक दूसरे से निकट करती है और बहुत सी नैतिक व आत्मिक बीमारियों का उपचार, खुशी है। यूनानी दार्शनिक अरस्तू कहता है” खुशी बेहतरीन चीज़ है और वह इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे प्राप्त करने के लिए दूसरी वस्तुएं साधन हैं”

इस्लाम धर्म भी उचित व वैध खुशी की पुष्टि करता है और वह उसका पक्षधर है और वह अपने अनुयाइयों से अवसाद से दूर रहने का आह्वान करता है।

 

 

खुशी व प्रफुल्लता का महत्व इंसान के जीवन विशेषकर जवानी में बहुत अधिक है और वह आकांक्षाओं की आपूर्ति में जवान की सहायता करती है। खुशी वह चीज़ है जो इंसान को नाना प्रकार की मानसिक बीमारियों से सुरक्षित रखती है। कुछ देशों में मनोवैज्ञानिक मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए खुश रहने की सिफारिश करते हैं। भारत में हंसने वालों का केन्द्र है जो मुंबई महानगर में सक्रिय है और उसका बहुत अधिक स्वागत किया जा रहा है। इस केन्द्र में कार्य करने वालों का मानना है कि हंसने से आत्मिक बीमारियां व टेन्शन दूर होते हैं और साथ ही वह बहुत सी आत्मिक व शारीरिक बीमारियों के उपचार में भी प्रभावी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं” खुशी, आत्मा की शांति व प्रफुल्लता कारण है”

 

 

हर देश के जवान राष्ट्रीय सुरक्षा और विभिन्न क्षेत्रों में उस देश की प्रगति के ध्रुव होते हैं। जवान, हर देश व समाज के भविष्य होते हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई जवानों की खुशी व प्रफुल्लता के बारे में कहते हैं” मैं दो तीन बातें जवानों की प्रफुल्लता के बारे में कहना चाहता हूं। पहली बात यह है कि इस प्रफुल्लता की रक्षा की जानी चाहिये। इस बात की अनुमति नहीं दीनी चाहिये कि विभिन्न कारक इस प्रफुल्लता को कमज़ोर या समाप्त करें। निश्चित रूप से इस देश के विकास के शत्रुओं के दृष्टिगत एक बिन्दु यह है कि वे इस प्रफुल्लता व खुशी को समाप्त करें। शत्रुओं की इस शत्रुतापूर्ण मांग के समक्ष नतमस्तक नहीं होना चाहिये। इस समय आप देख रहे हैं कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में सैकड़ों रेडियो, टेलिवीज़न और इंटरनेट प्रयास कर रहे हैं ताकि हमारे लोगों में निराशा भर सकें। उनके कार्य का यही कारण है। जब निराशा उत्पन्न हो जायेगी तो प्रफुल्लता समाप्त हो जायेगी। दुनिया के विभिन्न प्रचार का एक लक्ष्य यही है कि वे खुशी व प्रफुल्लता से भरे हमारे जवानों को प्रयास करने से रोकना चाहते हैं। हमें चाहिये कि हम इसे रोक दें।“

 

 

दूसरी ओर प्रफुल्लता का शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक व आत्मिक बीमारियों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि खुशी एवं प्रफुल्लता के कारण जो हंसी आती है वास्तव में वह प्राकृतिक एन्टिबायोटिक होती है जो शरीर को बीमारियों के मुकाबले में मज़बूत करती है और शरीर की पीड़ाओं को कम करती है। शताब्दियों का समय बीत रहा है जब से इंसान यह मान रहा है कि दुःख और बीमारी का सीधा एक दूसरे से संबंध है। आज विभिन्न वैज्ञानिक कांफ्रेन्सों में इस बात की पुष्टि की जाती है और डाक्टरों और मनोवैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि मानसिक अप्रसन्नता एवं बीमारियों के मध्य सीधा संबंध है। इसके अतिरिक्त समाज में खुशी एवं प्रफुल्लता में वृद्धि से अपराधों की दर में कमी होती है। क्योंकि इंसान का क्रोधित होना कम हो जाता है और लोगों के मध्य हाथा-पाई को रोक देती है। बहुत से अपराध जवानी के दौरान आत्मिक व मानसिक संतुलन के ठीक न होने के परिणाम हैं। इस आधार पर अगर जवान खुशी व प्रफुल्लता से आंतरिक शांति प्राप्त करता है तो बहुत से अपराध कम होते हैं और उन पर विराम लगता है।

खुशी का एक लाभ यह है कि उससे परिवार के सदस्यों के मध्य मानसिक स्वास्थ्य की पूर्ति होती है। जो मां-बाप और घर के दूसरे सदस्य खुश होते हैं वास्तव में वे बहुत सी मानसिक बीमारियों को अस्तित्व में ही नहीं आने देते हैं। वास्तव में इस प्रकार के माता-पिता अपने बच्चों के आत्म सम्मान, प्रतिष्ठा और आत्मिक मज़बूती की दिशा में क़दम उठाते हैं। आज आपाधापी के जीवन में खुशी वह नेअमत है जिसकी हर इंसान आकांक्षा करता है। वास्तव में इंसान की एक आधारभूत आवश्यकता खुशी के साथ जीना है।

इस आधार पर जवान के अंदर खुशी उत्पन्न करना और उसकी रक्षा उसकी परिपूर्णता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य है। इस संबंध में शिक्षा प्रशिक्षा के विशेषज्ञों ने ऐसे मार्ग सुझाये हैं जिनका प्रयोग करके जवान खुशी प्राप्त कर सकता है और परिणाम स्वरुप उसके आत्म विश्वास में वृद्धि होगी। इस संबंध में बहुत सिफारिशें की गयी हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं। पहली सिफारिश यह है कि इंसान को अपने ज्ञान के स्तर में वृद्धि करनी चाहिये और हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया है” कोई कार्य नहीं है मगर यह कि उसके लिए ज्ञान व जानकारी की आवश्यकता है”

 

 

इस संबंध में दूसरी सिफारिश यह की गयी है कि इंसान को चाहिये कि वह स्वयं की निंदा न करे अन्यथा न चाहते हुए भी नकारात्मक बातें इंसान के दिमाग़ में आती हैं।

तीसरी सिफारिश यह है कि इंसान को चाहिये कि वह कुछ समय के बाद स्वयं की सराहना व प्रशंसा करे। इस चीज़ से इंसान के अंदर खुशी उत्पन्न होगी। इस बारे में चौथी सिफारिश यह है कि इंसान को चाहिये कि वह अपने अंदर सकारात्मक बिन्दुओं पर ध्यान दे और हर प्रकार के अपने नकारात्मक विचार से मुकाबला करे ताकि वह इंसान की खुशी पर हावी न जायें।

खुशी उत्पन्न करने के लिए जिन चीज़ों की सिफारिश की गयी है उनमें से एक यह है कि इंसान को चाहिये कि वह प्रयास व परिश्रम करता रहे क्योंकि प्रयास खुशी को मज़बूत व टिकाऊ बनाता है और शिथिलता से ठहराव उत्पन्न होता है और वह बर्बादी की जड़ है। जिसे आर्थिक समस्याओं का सामना हो उसे चाहिये कि वह हलाल व वैध आजीविका के लिए प्रयास करे। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” अगर आर्थिक समस्या है तो प्रयास करो और आजीविका कमाने तथा ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रयास करने से पीछे न पीछे हटो और न ही दुःखी हो”

 

 

खुशी प्राप्त करने के संबंध में व्यायाम करने की भी सिफारिश की गयी है। आज की दुनिया में बहुत कार्यों को अंजाम देने के लिए कोई विशेष शारीरिक परिश्रम व गतिविधि की आवश्यकता नहीं पड़ती है और इंसान बैठे बैठे इस कार्य को अंजाम दे देता है जिससे नाना प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं अस्तित्व में आती हैं और इन समस्याओं को दूर करने के लिए इंसान को व्यायाम करना चाहिये। क्योंकि व्यायाम जहां शरीर की मज़बूती एवं उसकी विदित सुन्दरता का कारण बनता है वहीं उससे मानसिक गतिविधियों में भी वृद्धि हो जाती है।