Jul २२, २०१५ १६:१९ Asia/Kolkata

बुद्धिमान इंसान प्रकृति और जीवन के मामलों को समझने के प्रयास में होते हैं।

बुद्धिमान इंसान प्रकृति और जीवन के मामलों को समझने के प्रयास में होते हैं। वे मामलों को सतही दृष्टि से नहीं देखते हैं बल्कि वे प्रकृति और जीवन के मामलों के रहस्यों को समझने का प्रयास करते हैं जबकि इसके विपरीत कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो मामलों को सतही दृष्टि से देखते हैं और अपने ज्ञान एवं कार्य को उसके आधार पर व्यवस्थित करते हैं। वे अज्ञात पहलुओं को जानने का प्रयास नहीं करते हैं जबकि अगर वे भी थोड़ा सा प्रयास करें और गहराई से सोचें तो उनके भी जीवन का मार्ग परिवर्तित हो सकता है। बेहतर यह होगा कि हम खुली दृष्टि से अपने आस- पास देखें और अपने अंदर जिज्ञासा की भावना को मज़बूत करें। जिज्ञासा से तात्पर्य जानने की भावना एवं उसके लिए प्रयास करना है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जो जानने का प्रयास करेगा वह जान जायेगा।“

 

जवानी वह काल होता है जिसमें ब्रह्मांड और उसमें मौजूद वस्तुओं के बारे में जिज्ञासा की भावना हर समय से अधिक होती है। इस आधार पर जवान स्वयं को पहचानना चाहता है। ईश्वरीय दूतों के भेजने का उद्देश्य समझ जायेगा और इस संबंध में उसके बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे। इस मार्ग में वह कभी सही व उचित मार्ग का चयन करेगा और कभी ग़लत मार्ग पर चला जायेगा।

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में प्रश्न को ज्ञान की कुंजी बताया गया है। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” लोगों के बर्बाद होने का कारण न पूछना है” इमाम जाफर सादिक़ और उनके पिता इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिमुस्सलाम के हवाले से एक अन्य रिवायत में आया है” ज्ञान एक ताला है और प्रश्न उसकी कुंजी है।“

प्रश्न करना युवा की विशेषता है। युवा बालिग़ होने के चरण से गुज़र चुका होता है परंतु उस समय के बहुत से प्रश्न उसके मन में होते हैं और अगर उनके उत्तर नहीं मिलते हैं तो वह अर्थहीन कार्यों की ओर चला जाता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई जवान की इस विशेषता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” जवानों की जिज्ञासा और उनके प्रश्नों को महत्व दिया जाये क्योंकि बहुत से अवसरों पर और उसे संतुष्ट करने वाला उत्तर नहीं दिया जाता है। इसी कारण जवान भ्रांति का आभास करता है।“

 

 

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जिज्ञासा शरीर के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इस संबंध में किये गये अध्ययन इस बात के सूचक हैं कि जिज्ञासा वह चीज़ है जो इंसान की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति को बेहतहर बनाने में सहायता करती है। इसी तरह सकारात्मक जिज्ञासा इस बात का कारण बनती है कि इंसान कठिनाइयों का समाधान और आसानी से कर लेता है। अमेरिकी डाक्टर बेन डीन “जिज्ञासा, जिज्ञासा के लिए” शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में कहते हैं जिज्ञासु मस्तिष्क अधिक सक्रिय होते हैं और परिणाम स्वरुप वे तेज़ बुद्धि के भी होते हैं। जो लोग अपने अंदर जिज्ञासा की भावना को सुरक्षित रखते हैं वे अपने जीवन में अधिक चीज़ें सीखते हैं और बड़ी उम्र के लोग कठिनाइयों के समाधान की अधिक क्षमता रखते हैं। जिज्ञासा इंसान की सहायता करती है कि वह व्यक्तित्व को खोज निकाले। जब इंसान अपने जीवन में विभिन्न विषयों के बारे में सोचता है तो यह विषेशता उसकी सहायता करती है कि वह अपने इर्द- गिर्द की दुनिया को बेहतर ढंग से पहचाने।

 

जो लोग अपनी जवानी एवं नौजवानी में नई -नई चीज़ों को जानने की जिज्ञासा करते हैं और वे अपनी इस विशेषता को जारी रखते हैं ऐसे लोग अपने स्थान व दृष्टिकोणों को बेतर ढंग से पहचानते हैं और अगर वे उससे प्रसन्न व संतुष्ट नहीं होते हैं तो उसे परिवर्तित कर देते हैं। इस संबंध में एक भारतीय जवान रावुल के भविष्य के जीवन की और संकेत किया जा सकता है। राहुल और उसका परिवार हिन्दु धर्म के अनुयाई थे और उन्हें इस्लाम धर्म के बारे में कोई विशेष ज्ञानकारी नहीं थी। रोज़गार की खोज में वह किसी इस्लामी देश की यात्रा करता है और वहां वह इस्लाम धर्म से परिचित होता है और वहां वह अपने जीवन को परिवर्तित करने का निर्णय करता और कहता है” कुछ महीनों से मैं मुसलमान हूं मैं ऐसे परिवार में पला- बढ़ा हूं जो दूसरे लोगों की भांति हिन्दू धर्म का अनुयाई था और उनमें से कुछ मूर्तिपूजा करते थे जबकि कुछ अन्य सूरज की पूजा करते थे। यह विश्वास कारण बने थे कि मैं गुमराही में और उद्देश्यहीन जीवन व्यतीत करूं यहां तक कि ईश्वर की इच्छा से रोज़गार की खोज में मैंने ओमान की यात्रा की और वहां पर मैं मुसलमानों से परिचित हुआ। वहां पर मैंने तीन वर्षों के दौरान ईश्वरीय धर्मों के बारे में काफी जानकारी प्राप्त की और इन तीन वर्षों ने वास्तविकता को समझने एवं सोच व आस्था के बदलने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

 

उसके जीवन में परिवर्तन की कहानी वहां से आरंभ होती है जब वह रोज़गार की खोज में ओमान जाता है और वहां पर अपने सहकर्मी मुसलमानों से उसकी दोस्ती हो जाती है और उनसे निकट संबंध स्थापित हो जाते हैं और वहां पर वह देखता है कि एक विशेष महीने में मुसलमान रोज़ा रखते हैं। जिज्ञासा की भावना के कारण वह अध्ययन करता है और दूसरों से पूछता है कि वे क्यों रोज़ा रखते हैं? रोज़ा क्यों रखा जाता है। वह अनुभव करने का निर्णय करता है वह मुसलमान हुए बिना एक दिन रोज़ा रखता है और कुरआन का अध्ययन करता है। वह कहता है कि मुसलमान होने से पहले मैं ने जो रोज़ा रखा था वह अनुभव के लिए था और मैं केवल खाना नहीं खाता था परंतु अब मैं जानकारी के साथ रोज़ा रखता हूं और अब मैं ईश्वर के समक्ष बंदगी का आभास करता हूं। रमज़ान का महीना अब मेरे लिए केवल खाना न खाने का महीना नहीं है बल्कि उसके साथ ईमान एवं ईश्वर की प्रसन्नता भी है। मैं इस महीने में दुआ करता हूं, नमाज़ पढ़ता हूं और दूसरों की सहायता करने के लिए दान देता हूं रातों को जागता और कुरआन पढ़ता हूं।

 

 

धार्मिक शिक्षाओं में आया है कि प्रलय के दिन महान ईश्वर उस बंदे से पूछेगा जो उसके आदेशों पर अमल नहीं करता है” क्या तुम जानते थे? अगर उसने कहा कि हां तो ईश्वर उससे पूछेगा कि क्यों अमल नहीं करते थे? और अगर यदि उसने कहा कि नहीं जानता था तो आवाज़ आयेगी कि सीखा क्यों नहीं ताकि उस पर अमल करते। इस आधार पर अमल करने के लिए जानना ज़रूरी है और प्रश्न ज्ञान की कुंजी है। कुछ जवान ऐसे होते हैं जो धार्मिक एवं ग़ैर धार्मिक मामलों को जानना चाहते हैं परंतु शर्म के कारण वे पूछते नहीं हैं। हां शर्म अपने स्थान पर बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन उसका प्रयोग जानने की जगह पर नहीं होना चाहिये। ऐसे स्थान पर शर्म करना सही कार्य नहीं है और वह इंसान को नुकसान पहुंचाती है। परिणाम स्वरुप जब भी जवानों को समय मिले पूछें ताकि उस पर अमल करके अपना कल्याण करें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की भांति लोगों का पूछने का आह्वान करते थे। एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मिम्बर से फरमाया मुझसे पूछो इससे पहले कि तुम मुझे खो। मैं ज़मीन से ज़्यादा आसमान के रास्तों को जानता हूं।“

 

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम जवानों की जिज्ञासु आत्मा को भलिभांति जानते थे। वह इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि अधिकांश ने जो कुछ किया और वे जिस रास्ते पर गये उसके प्रति उनके अंदर रूचि नहीं है। इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस कार्य से न तो मना करते हैं और न ही आलोचना करते हैं। वे फरमाते हैं” अगर पहले वालों के अनुसरण से तुम प्रसन्न नहीं हो और तुम स्वयं अमल करना चाहते हो तो रास्ते का अनुभव तुम करो और बहुत क़ायदे से शुरू करो। पहले वालों ने जो कठिनाई उठाई है और रास्ता तय किया है अगर वह तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है और तुम्हें आवश्यकता मुक्त नहीं कर देती है तो उसमें बुराई क्या है? जानने के लिए प्रयास करो और पूछो और पूछने वाला बनो