Aug १३, २०१६ १६:०७ Asia/Kolkata

अनुशासन एक ऐसी मज़बूत बुनियाद है, जिस पर इंसान अपनी सफलता की गगनचुंबी इमारत खड़ी कर सकता है।

लेकिन अनुशासित जीवन की शुरूआत बचपन से ही होनी चाहिए। अर्थात अनुशासन बचपन में सिखाया जाना चाहिए। इसलिए मां-बाप की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को अनुशासन सिखाएं।

 

अनुशासनहीनता का बच्चों के जीवन पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अनुशासनहीन बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है, वे मां-बाप समेत बड़ों का सम्मान नहीं करते, वे नहीं जानते कि दूसरों के साथ किस प्रकार उचित व्यवहार किया जा सकता है, वे स्वार्थी बन जाते हैं, अपने जीवन में अप्रसन्न एवं असंतुष्ट रहते हैं, उनमें धैर्य की कमी होती है और दोस्त बनाने की क्षमता नहीं होती, उन्हें जल्दी ग़ुस्सा आ जाता है और शीघ्र दुखी हो जाते हैं, किसी भी काम को पूर्ण दृढ़ता से अंजाम नहीं देते, बल्कि कामों को अधूरा छोड़ देते हैं और हर काम में जल्दबाज़ी दिखाते हैं, घर, स्कूल और अन्य स्थानों पर संपत्ति को हानि पहुंचाते हैं, यहां तक कि जब उनकी कोई इच्छा पूरी नहीं होती है तो वे अपने नकारात्मक व्यवहार से दूसरों और स्वयं को नुक़सान पहुंचाते हैं।

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि बच्चे के इस नकारात्मक आचरण के लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या यह मां-बाप की ग़लती है, क्या मां-बाप ने बच्चों का सही पालन-पोषण नहीं किया या समाज ने उन्हें बिगाड़ दिया है। आज के मां-बाप इसकी सारी ज़िम्मेदारी समाज और तेज़ी से बदलते हुए हालात पर डाल देते हैं। जब मां-बाप में से किसी से पूछा जाता है कि वे अपने बच्चों को देर रात घर लौटने की अनुमति क्यों देते हैं? तो सामान्य रूप से उनका जवाब होता है कि क्योंकि सोसायटी या बिल्डिंग के दूसरे परिवार अपने बच्चों को इस बात की अनुमति देते हैं, तो वह कैसे अपने बेटे या बेटी को ऐसा करने से रोक सकते हैं, या उनके बच्चे उनकी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं। इस प्रकार से अपने बच्चों की परवरिश करने वाले मां-बाप इतने मजबूर हो जाते हैं कि वे उन्हें खोने से बेहतर हर हाल में उनके साथ समझौता करने में ही भलाई समझते हैं।

 

जैसा कि हम उल्लेख कर चुके हैं, इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए मां-बाप को बच्चों के जन्म से ही उन्हें अनुशासन सिखाने की व्यवस्था करना चाहिए। अगर बपचन में बच्चा अनुशासनहीनता का शिकार है तो उसके सुधार के लिए प्रभावशाली क़दम उठाए जा सकते हैं और उसे अनुशासित बनाया जा सकता है। बच्चों की अनुशासनहीनता के समाधान के लिए हम यहां कुछ उपायों का उल्लेख कर रहे हैं।

पहला यह कि बच्चा घर में जब भी किसी नियम का पालन न करे या या कोई ऐसा काम करे जिससे अनुशासन या घर की व्यवस्था भंग होती हो तो आप उस पर उचित प्रतिक्रिया ज़रूर ज़ाहिर करें। लेकिन यहां यह ध्यान रहे कि अधिकांश अवसरों पर कोई गंभीर क़दम उठाने की ज़रूरत नहीं होती है। केवल सामान्य क़दम उठाकर बच्चे की अनुशासनहीनता के मुक़ाबले में दीवार बन जाएं। इसके लिए हम तीन प्रकार से प्रतिक्रिया जता सकते हैं।

 

पहला यह कि अगर बच्चे ने कोई ऐसा काम किया है जिसका कोई महत्व नहीं है और वह बहुत ही छोटा सा मसला या सामन्य सा मुद्दा है, तो उसे अनदेखा कर देना बेहतर है। बच्चों को अनुशासन सिखाने और उनके साथ सही आचरण के लिए यह बेहतरीन शैली है। इसका एक लाभ यह भी है कि मामूली बातों में न उलझकर मां-बाप अपनी ऊर्जा महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए बचाकर रख सकते हैं और अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं।

 

जैसा कि अनुशासन सिखाने के सिद्धांतों में उल्लेख किया गया है, किसी ग़लत काम से बच्चे का ध्यान हटाने के लिए एक प्रभावशाली तरीक़ा यह है कि हम उसे महत्व न देते हुए अनदेखा कर दें। यह तरीक़ा उस स्थिति में और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जब बच्चा वह अनुचित काम आपका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए कर रहा हो। इस शैली को अपनाकर संभव है आप ऐसा आभास करें कि वास्तव में स्थिति को बेहतर बनाने के लिए आपने कुछ नहीं किया है। लेकिन आपको बाद में पता चलेगा कि यह शैली कितनी प्रभावशाली थी और इस प्रकार उस काम को दोहराने में बच्चे ने ख़ुद ही कोई रूची नहीं दिखाई। परिणाम स्वरूप, आप आशचर्यजनक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं और बच्चे की आज़ादी में अत्यधिक हस्तक्षेप करने से भी बच सकते हैं।

 

बच्चे जब आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं तो कभी कभी वह अजीबो ग़रीब हरकत करने लगते हैं। बच्चा अच्छी तरह से जानता है कि आप किस समय और उसके किस काम से अधिक आहत हो सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, ठीक उस समय कि जब मेहमान घर में प्रवेश कर रहे होंगे वह कोई ऐसा काम कर देगा, जिससे आप क्रोधित हो उठें, या ठीक उस समय जब आप टेलीफ़ोन पर बात कर रहे होंगे। लेकिन अगर आपने धैर्य से काम लिया और उसकी इस हरकत को अनदेखा कर दिया तो बच्चा उसे दोहराने पर आग्रह नहीं करेगा। इसलिए कि उसका लक्ष्य आपका ध्यान खींचना था, जिसमें वह सफल नहीं हुआ। इसी के साथ साथ सकारात्म कामों पर और अनुशासन का पालन करने पर बच्चे की सराहना की जानी चाहिए। इस प्रकार, उसकी वह ज़रूरत अर्थात आपका ध्यान अपनी ओर खींचने की ज़रूरत सार्थक रूप से पूरी हो सकती है।

 

दूसरे संकेत और इशारों से आप बच्चों को सामान्य ग़लत कामों से रोक सकते हैं। कभी कभी आपके देखने का अंदाज़ या आपकी निगाहें बहुत कुछ कह जाती हैं और बच्चों को अनुशासन सिखाने में काफ़ी प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं। आपकी निगाहें बच्चों को ग़लत काम से रोक सकती हैं, तो सही मार्ग की ओर मार्गदर्शन भी कर सकती हैं। इसी प्रकार, हाथ से इशारा करके भी ज़बान से कुछ न कहकर आप बहुत कुछ कह जाते हैं और आपका बच्चा आपके मन की बात समझ जाता है।

 

बातचीत द्वारा संपर्क स्थापित करना भी अनुशासनहीनता को रोकने और अनुशासन सिखाने में प्रभावी हो सकता है। मां-बाप इस शैली को अपनाकर बहुत ही विनम्रता से और मीठे लहजे में बच्चों तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, अगर बच्चे ने अपना कमरा अस्तव्यस्त कर दिया है तो उसे डांटने फटकारने के बजाए, वे यह कहकर अधिक प्रभावशाली रूप में अपना संदेश पहुंचा सकते हैं कि तुम्हारा कमरा अस्तव्यस्त देखकर मैं बहुत दुखी होता हूं। इस वाक्य में न डांट फटकार है और न ही अपमान। केवल बच्चे को अपनी भावना से अवगत कराना है ताकि वह समझ सके कि इस प्रकार की स्थिति उसके मां-बाप को दुख पहुंचाती है।

 

इसके अलावा सावधान करना और सचेत करना भी बच्चों को ग़लत काम से रोकने में प्रभावी हो सकता है। अधिकांश अवसरों पर सचेत करना और सावधान करना ही काफ़ी होता है और बच्चा अपने आचरण में सुधार कर लेता है।

 

अनुशासनहीनता पर निंयत्रण करने के लिए जो गंभीर क़दम उठाए जा सकते हैं, उनमें से एक क्षतिपूर्ति कराना है। उदाहरण के रूप में समस्त उपायों के प्रयोग के बावजूद अगर बच्चा दूध का भरा गिलास ज़मीन पर उंडेलता है, तो उसकी क्षतिपूर्ति यह है कि फ़र्श साफ़ करने में वह अपनी मां की सहायता करे। इसके अलावा, बच्चे को कुछ देर के लिए उसके कमरे में भेज देना भी प्रभावी हो सकता है। इस दौरान वह परिवार के अन्य सदस्यों से अलग हो जाता है और अपनी दिलचस्पी की गतिविधियों से वंचित हो जाता है।