शनिवार - 15 अगस्त
15 अगस्त सन 1947 ईसवी को वर्षो तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के पश्चात भारत की जनता इस देश को स्वतंत्र कराने में सफल हुई।
- 15 अगस्त सन 1854 को ईस्ट इंडिया रेलवे ने कलकत्ता से हुगली तक पहली यात्री ट्रेन चलाई हालांकि आधिकारिक तौर पर इसका संचालन 1855 में शुरू हुआ।
- 15 अगस्त सन 1915 को भारत की प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार इस्मत चुग़ताई का जन्म हुआ।
- 15 अगस्त सन 1945 को कोरिया स्वतंत्र हुआ और इस दिन इस देश का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
- 15 अगस्त सन 1947 को भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
- 15 अगस्त सन 1950 को भारत में 8.6 रिक्टर स्केल के तीव्रता वाले भूकम्प के कारण 20 से 30 हज़ार लोग मारे गए।
16वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने भारत में अपना प्रभाव बनाना आरंभ कर दिया था। 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने भारत में अपने योरोपीय प्रतिद्वन्द्वी फ़्रांस और इसी प्रकार तैमूरी मुग़लों को पराजित करके इस देश पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। भारतीय जनता ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध कई बार आंदोलन छेड़ा किंतु अंग्रेज़ों ने उसे कुचल दिया। 1895 में भारतीय नेशनल कॉग्रेस का गठन हुआ और फिर जनता के आंदोलन संगठित होने लगे। स्वतंत्रता आंदोलन से महात्मा गांधी के जुड़ने और उनके नेतृत्व में सत्याग्रह और असहयोग आंदोलनों के कारण ब्रिटेन को 15 आगस्त सन 1947 में अपने सबसे बड़े उपनिवेश से हाथ धोना पड़ा।
15 अगस्त सन 1948 ईसवी को कोरिया प्रायद्वीप के विभाजन के पश्चात दक्षिणी कोरिया नामक एक स्वाधीन देश अस्त्तिव में आया। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कोरिया प्रायद्वीप को चीन व जापान जैसे क्षेत्र के बड़े देशों के अतिक्रमण और अतिग्रहण का सामना करना पड़ा। 1905 में जापान ने कोरिया पर अधिकार कर लिया। परंतु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद सोवियत संघ ने इसके उत्तरी भाग पर और अमरीका ने दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया। चूंकि उत्तरी कोरिया में सोवियत संघ और कम्यूनिज्म की और दक्षिण में पश्चिमी देशों की पक्षधर सरकार थीं इस लिए कोरिया प्रायद्वीप दो अलग देशों में विभाजित हो गया।
15 अगस्त सन 1960 ईसवी को कांगो गणराज्य को फ़्रांस से स्वतंत्रता मिली। अतीत में कांगो पश्चिमी अफ़्रीक़ा का एक भाग था जिसमें वर्तमान अंगोला और कांगों डेमोक्रेटिक भी शामिल थे। पुर्तग़ालियों ने 15वीं शताब्दी में इसक्षेत्र की खोज की परंतु यह देश वर्षों तक फ़्रांस का उपनिवेश रहा।
15 अगस्त सन 1975 ईसवी को बंग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति की एक सैनिक विद्रोह में हत्या कर दी गयी। वे बंग्लादेश की स्वंधीनता के संस्थापकों में थे। 15 अगस्त सन 1990 ईसवी को रुस के तत्कालीन राष्ट्रपति मीखाईल गोरबाचोफ ने इस देश के नोबल पुरस्कार विजेता लेखक एलैग्ज़न्डर सोलहेनित्सिन को दोबारा रुस की नाग़रिकता दी। उन्हें 1974 में एक उपन्यास लिखने के कारण देश से निकाल दिया गया था।
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25 मुर्दाद सन 1332 हिजरी शम्सी को ईरान का अंतिम नरेश मुहम्मद रज़ा पहलवी अपनी पत्नी के साथ इटली भाग गया लेकिन उसने भागने से पहले प्रधानमंत्री मुसद्दिक को पदमुक्त करने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये थे। डाक्टर मुसद्दिक की सरकार ने, ईरान में तेल का राष्ट्रीयकरण किया था जिसके बाद ईरान में ब्रिटिश तेल कंपनियों के हित ख़त्म हो गये थे इसी लिए ब्रिटेन की सरकार ने डाक्टर मुसद्दिक़ की सरकार के खिलाफ़ कई साज़िशों कीं और अन्तत: तीन दिन के बाद अमरीका और ब्रिटेन की साज़िश से मुसद्दिक की क़ानूनी सरकार के खिलाफ विद्रोह हुआ और उसके तीन दिन बाद ईरान का तानाशाह पुन: लौट आया और विदेशियों के सहारे सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया किंतु अन्तत: ईरानी जनता ने इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में क्रांति द्वारा उसे सत्ता से बेदखल कर दिया।
25 मुर्दाद सन 1373 हिजरी शम्सी को ईरान के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी सैयद अहमद फ़रदीद का निधन हुआ। वह सन 1289 हिजरी शम्सी में ईरान के यज़्द नगर में पैदा हुए थे और आरंभिक शिक्षा वहीं प्राप्त की। सोलह साल की आयु में तेहरान आए और ग्रेजुएशन के बाद शिक्षक बन गये किंतु सन 1326 हिजरी शम्सी में अधिक शिका के लिए फ्रांस और जर्मनी गये और दर्शनशास्त्र में शिक्षा प्राप्त की।
उन्होंने कई मूल्यवान किताबें लिखी हैं।
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25 ज़िलहिज्जा सन 35 हिजरी को हज़रत अली अ ने अपने 4 वर्ष 9 महीने के शासन काल का आरंभ किया। 18 ज़िलहिज्जा सन 35 हिजरी क़मरी को जनता के विद्रोह में तीसरे ख़लीफ़ा हज़रत उसमान की हत्या के बाद लोगों ने हज़रत अली अ के पास जाकर सत्ता संभालने का अनुरोध किया। हज़रत अली अ पहले तो सत्ता संभालने से इंकार करते रहे किंतु जब लोगों का आग्रह बहुत बढ़ गया तो उन्होंने शासन संभालना स्वीकार किया। हज़रत अली अ ने अपने शासन काल में न्याय और बराबरी स्थापित करने का भरसक प्रयास किया जिसके कारण कुछ स्वार्थी पूँजीपति उनके विरोधी हो गये। इसी के चलते हज़रत अली अ को जमल और सिफ़फ़ीन नामक दो लड़ाइयां लड़नी पड़ीं। इसी प्रकार सिफ़फ़ीन की लड़ाई में दिगभ्रमित हो जाने वाले मुसलमानों ने हज़रत अली अ पर नहरवान नामक युद्ध थोप दिया। अंतत: इन्हीं दिगभ्रमित लोगों में से एक इब्ने मुल्जिम नामक एक व्यक्ति ने हज़रत अली अ को सन 40 हिजरी में कूफ़े की मस्जिद में उस समय शहीद कर दिया जब वे नमाज़ पढ़ने में लीन थे।