ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-46
हम आपको ईरान में प्रचलित कपड़ा बनाने वाली विभिन्न प्रकार की शैलियों से अवगत करा चुके हैं।
ये वे शैलियां हैं जो वर्षों से ही नहीं बल्कि शताब्दियों से प्रचलित हैं। वर्तमान समय में इनमें से कई शैलियां दम तोड़ चुकी हैं जबकि कुछ अब भी बाक़ी हैं। वर्तमान समय में तेज़ी से होने वाले औद्योगिक परिवर्तनों के दृष्टिगत ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में ऐसी और भी कई पारंपरिक कलाएं और शैलियां समाप्त हो जाएंगी। उचित यह है कि कम से कम उन शैलियों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी रखी जाए जो अब धीरे धीरे सामप्त होने की कगार पर हैं।
ईरान में कपड़ा बनाने की प्रचलित पारंपरिक शैली में से एक का नाम “दाराई” है। बहुत से जानकारों का कहना है कि कपड़ा बनाने की यह कला किसी देश से विशेष नहीं है बल्कि यह विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय लोगों के प्रयास से अस्तित में आई है। हालांकि इसको दूसरे क्षेत्रों में फैलाने में व्यापारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस शैली को “ईकात” भी कहा जाता है। ईकात शैली से संबन्धित प्राचीनम नमूना मिस्र में पाया गया। मिस्र के अतिरिक्त भारत और इन्डोनेशिया में भी इसके अस्तित्व के प्रमाण मौजूद हैं। कहते हैं कि भारत के कुछ मंदिरों के भीतर इस कला के चित्र अंकित हैं। शोध से पता चलता है कि विश्व के वभिन्न राष्ट्र, अपनी पारंपरिक और स्थानीय शैली के अनुसार “दाराई” नामक कला का प्रयोग किया करते थे। इस शैली में मैक्सिको, पेरू, स्पेन और पश्चिमी अफ़्रीका में बुनाई की जाती थी।
ईरान में प्राचीनकाल के दौरान दाराई का काम काशान और ख़ुज़िस्तान प्रांत के नगरों में हुआ करता था किंतु वर्तमान समय में केवल यज़्द नगर में इसका काम होता है। कहते हैं कि दाराई वास्तव में रंगरेज़ी और बुनाई का मिश्रण है। कपड़े पर किसी चित्र को बनाने के लिए सामान्यतः दो प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया जात है। या तो यह होता है कि बुनाई के दौरान ही कपड़े पर चित्र बनाया जाता है या फिर छापकर उसे बनाते हैं किंतु दाराई में यह काम बिल्कुल ही अलग ढंग से किया जाता है। इसके अन्तर्गत दोनो शैलियों को एकसाथ प्रयोग करते हैं। हालांकि यह काम बहुत कठिन और जटिल है किंतु इस शैली से बना हुआ कपड़ा बहुत ही सुन्दर और देखने योग्य होता है।
दाराई के डिज़ाइन अधिकतर सादे होते हैं जो ज्योमितीय आकार के कुछ बड़े होते हैं। पुराने ज़माने में दाराई या अरीकात के डिज़ाइन में बने कपड़ों को पहनने के लिए प्रयोग किया जाता था किंतु यह काम केवल धनवान लोग ही करते थे। ईरान में सामान्यतः दाराई के डिज़ाइन वाले कपड़े उन क्षेत्रों में अधिक प्रचलित थे जो मरूस्थलीय होते थे। इन क्षेत्रों के रहने वालों की आय का मुख्य स्रोत यही था क्योंकि वहां पर खेतीबाड़ी बहुत कम हुआ करती थी। यज़्द में इस समय बहुत बड़ी संख्या में लोग “दाराई” या “ईकात” का काम करते हैं।
इसमें अधिकतर हरे, पीले और लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। इनकों 90 सेंटीमीटर की लंबाई और 30 सेंटीमीटर की चौड़ाई में तैयार किया जाता है। इन कपड़ों से मेज़पोश, सोफासेट के कवर और घर के सजाने की अन्य वस्तुएं तैयार की जाती हैं। कहते हैं पुराने ज़माने में दाराई के बने कपड़ों को लड़की के दहेज के लिए रखा जाता था और यह कपड़ा मंहगा हुआ करता था। इन कपड़ों पर जो डिज़ाइन बने होते हैं वे ईरान में सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों साल से प्रचलित हैं।
“दाराई” या “ईकात” शैली में कपड़ा बनाने वाले एक विशेषज्ञ हैं उस्ताद मलिक साबित। वे यज़्द नगर में रहते हैं। उनका कहना है कि दाराई शैली में बने कपड़े वास्तव में अमूल्य होते हैं जिसका उदाहरण मिलता बहुत ही कठिन है।
अबतक हमने आपकों “दाराई” या “ईकात” शैली से बने कपड़ों के बारे बताया। अब हम आपको एक अन्य शैली के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको “अबाबाफ़ी” कहा जाता है। यह शैली प्राचीनकाल से ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित रही है। सामान्यतः बूशहर, नाइन और मशहद नगरों में यह अधिक प्रचलित है। इसका उल्लेख प्राचीन पुस्तकों में भी मिलता है। अबा वास्तव में एक पोशका का नाम है जिसे अधिकतर अरब देशों में पहना जाता है। अब यह केवल अरब देशों से विशेष नहीं रही बल्कि बहुत से इस्लामी देशों में इसका चलन आम हो चुका है। यह एसी पोशाक है जो बहुत लंबी होती है और आगे से खुली हुई होती है। इसकी आस्तीनें छोटी होती हैं। अबा, अधिकतर काली, कत्थई और सफेद होती है। अबा एसा पहनावा है जो किसी जाति या वर्ग विशेष से संबन्धित नहीं है। इसे केवल पुरूष ही प्रयोग नहीं करते बल्कि महिलाएं भी इसको अलग ढंग से इस्तेमाल करती हैं। अरब देशों में इसका प्रयोग बहुत अधिक है जबकि अन्य देशों के मुसलमान भी इसको प्रयोग करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के काल से अबा बनाने का काम अरब अर्थात वर्तमान सऊदी अरब में आरंभ हुआ था। बाद में ईरान का बहबहान नगर अबा बनाने के केन्द्र के रूप में विख्यात हुआ। पांच शताब्दियों से अधिक समय से बेहबहान में अबा बनाने का काम हस्तकला उद्योग के रूप में प्रचलित है। बेहबहान की बनी हुई अबा, विश्व के बहुत से देशों में निर्यात की जाती है।
बूशहर प्रांत के गावों में भी अबा बनाने का काम होता आया है। यहा की बनी हुई अबाएं अधिकतर फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों को निर्यात की जाती हैं। इसके अतिरिक्त इस्फ़हान प्रांत के नाइन नगर में भी अबा बनाने का काम होता है। नाइन नगर का मुहम्मदिये क्षेत्र, अबा बनाने का केन्द्र है जहां पर अंडरग्राउंट में बने कारख़ानों में यह काम होता है। यदि आप इस क्षेत्र से गुज़रेंगे तो आपको हर ओर यह काम होता दिखाई पड़ेगा।
अबा को ऊंट के (कर्क) या भेड़ के ऊन से बनाते हैं। जब अबा को जब तैयार किया जाता है तो उसके बाद उसे तुरंत ही प्रेस के लिए भेज दिया जाता है। वैसे तो आरंभ से ही अबा को ऊंट की खाल या भेड़ के ऊन से बनाया जाता रहा है किंतु अब इसे धागे से भी बनाया जाता है। वर्तमान समय में धागे से बनाई गम अबा अधिक प्रयोग की जाती है।