Sep ०७, २०१६ १५:५५ Asia/Kolkata

हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार के विस्तारीकरण की प्रक्रिया में 1 लाख 20 हज़ार वर्गमीटर के भूभाग में सोलह बड़ी धार्मिक, सांस्कृतिक व सार्वजनिक सुविधा की परिजयोजनाएं शुरू हुईं जिनका बड़ा भाग पूरा हो चुका है।

हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार का एक महत्वपूर्ण भाग वहां स्थित केन्द्रीय लाइब्रेरी है। यह लाइब्रेरी लगभग 5000 वर्ग मीटर भूभाग पर बनी तीन मंज़िला इमारत में है। यह नहीं पता कि पहली बार हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार में लाइब्रेरी कब बनाई गई लेकिन साक्ष्यों से अंदाज़ा लगाया जाता है कि सफ़वी शासन काल में यहां पुस्तकालय था और इसे उस काल के महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में गिना जाता था। वर्ष 1037 हिजरी क़मरी में शाह अब्बास सफ़वी ने अपने हस्तलिपि और मोहर के साथ वक़्फ़ करके 120 किताबे इस लाइब्रेरी को दी थी। इनमें से तीन पुस्तकें आज भी हज़रत अब्दुल अज़ीम की लाइब्रेरी में मौजूद हैं। पुराना पुस्तकालय वर्ष 1300 हिजरी क़मरी तक मौजूद था जिसके बाद कुछ समय के लिए बंद हो गया और वहां रखी गई पुस्तकों का कुछ पता नहीं रहा कि वह कहां गईं। वर्ष 1324 हिजरी क़मरी में हाजी शैख़ जवाद मोवज़्ज़ेनी की मेहनत से नई लाइब्रेरी बनाई गई। वर्षों तक इस लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें ख़रीदी जाती रहीं जबकि हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार से श्रद्धा रखने वाले लोग भी बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तकें इस लाइब्रेरी के नाम वक़्फ़ करते रहे। इसके नतीजे मे आज इस लाइब्रेरी में 1 लाख से अधिक अति मूल्यवान किताबें मौजूद हैं। हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार की लाइब्रेरी में हस्तलिखित पुस्तकों सहित अति प्राचीन किताबों का बड़ा मूल्यवान ख़ज़ाना मौजूद है। इसके अलावा इस लाइब्रेरी में फ़ारसी, अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा की किताबें मौजूद है। इस लाइब्रेरी में इन मूल्यवान पुस्तकों में महान धर्म गुरू अल्लामा हिल्ली की हस्तलिपि में उनकी किताब तहरीरुल अहकाम भी मौजूद है जो वर्ष 766 हिजरी क़मरी में लिखी गई है। इसके अलावा शहीदे सानी के नाम से इस्लामी जगत और विशेष रूप से शीया समुदाय के बीच ख्याति रखने वाले महान धर्मगुरू की हस्तलिपि में भी कई रचनाएं मौजूद हैं जो इस लाइब्रेरी की अन्य मूल्यवान पुस्तकों में गिनी जाती हैं। हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार की लाइब्रेरी में एक अध्ययन हाल है जो आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित है। लाइब्रेरी का कम्प्युटर विभाग अनुसंधानकर्ताओं को ज़रूरत की पुस्तक सरलता से प्राप्त करने में मदद देता है। लाइब्रेरी में किताबों की जिल्दसाज़ी और मरम्मत के लिए भी एक विशेष भाग है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से संबंध रखने वाली हस्तियों के मज़ारों के निकट धार्मिक शिक्षा केन्द्र की स्थापना भी प्रचलित रही है और शिक्षार्थी इन स्थानों के आध्यात्मिक वातावरण में धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं। इसी तरह हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार में भी धार्मिक शिक्षा केन्द्र बन गया और बहुत पहले से यहां धार्मिक शिक्षा की सभाएं आयोजित होती रही हैं। यहां धार्मिक मदरसा है जिसका नाम मदरसए बुरहान है। यह मदरसा हरम के उत्तरी भाग में है। यह मदरसा सलजूक़ी काल से संबंधित है। हालिया वर्षों में बुरहान मदरसे की मरम्मत की गई और इसका विस्तार भी हुआ। मदरसे में भी एक लाइब्रेरी है जहां धार्मिक शिक्षार्थी अपने अध्ययन की किताबें प्राप्त करते हैं। हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार में एक और मदरसा भी है जिसका नाम मदरसए शाह अब्दुल अज़ीम है। यह मदरसा इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद के वर्षों में बनाया गया। मदरसए हज़रत अब्दुल अज़ीम में 250 शिक्षार्थियों की गुंजाइश है जिनके लिए छात्रालय भी बना है। मदरसे की इमारत में शिक्षा की सभी सुविधाएं हैं और उसे ईरान के महत्वपूर्ण मदरसों में गिना जाता है।

इस मदरसे में 68 कमरे छात्रों के रहने के लिए और 45 कमरे क्लासों के लिए हैं। हज़रत अब्दुल अज़ीम चूंकि हदीस ज्ञान के महान विद्वान थे अतः रौज़े के दक्षिण पूर्वी भाग में हदीस शास्त्र का विद्यालय है जो 23000 वर्गमीटर के भूभाग पर बना है। इस विद्यालय में शिक्षा व अध्ययन की सभी आवश्यक सुविधाओं का बंदोबस्त किया गया है। इसमें लाइब्रेरी, कम्प्युटर विभाग, भाषा की शिक्षा के लिए विशेष हाल, वेधशाला, कान्फ्रेन्स हाल, जिमख़ाना, हास्टल, डाइनिंग हाल और रेस्तोरान है।

 

हज़रत अब्दुल अज़ीम का मज़ार तेहरान के अति प्राचीन ज़ियारत स्थलों में से है। इसमें बड़ी मूल्यवान वस्तुएं भी मौजूद हैं। इनमें पुराने दरवाज़े, शिलालेख, चित्र, हस्तलिखित पुस्तकें, मिट्टी और धातु के पुराने बरतन, जिनमें अधिकतर वह हैं जो श्रद्धालुओं ने हज़रत अब्दुल अज़ीम के रौज़े को दियै हैं। इन सारी चीज़ों को 3500 वर्गमीटर के भूभाग पर बनी तीन मंज़िला इमारत में स्थित संग्रहालय में रखा गया है।  

हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार का संग्रहालय भीतरी वातावरण, पवित्र पुस्तकों और चीज़ों की देखरेख की दृष्टि से अद्वितीय है। यहां विशेष सुरक्षा व सेफ़्टी सिस्टम लगाए गए हैं। इमारत की छत आपस में जुड़े चार बड़े प्यालों का स्वरूप पेश करती है और इसे भीतर से चित्रकारी की कला से सजाया गया है और अल्लाह के अलग अलग नाम लिखे गए हैं।

इस म्युज़ियम में रखे गए प्रचीन अवशेषों में चार हज़ार वर्ष ईसापूर्व से लेकर समकालीन समय तक के अवशेष शामिल हैं। संग्रहालय मे हस्तलिखित पुस्तकें हैं जिनका संबंध सातवीं शताब्दी हिजरी क़मरी से लेकर क़ाजारिया दौर तक है। अत्यंत पुरानी पुस्तकें जिनका संबंध सातवीं शताब्दी हिजरी है, उनमें प्राचीन क़ुरआन, दुआ की किताबें जैसे ज़ादुल मआद, सहीफ़ए सज्जादिया, इसी प्रकार फ़ारसी की पुस्तकें जैसे बुरहाने क़ातेअ नामक डिक्शनरी और फ़िरदौसी का चित्रयुक्त शाहनामा शामिल है। मिट्टी के बरतनों में चार हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से लेकर क़ाजारिया दौर तक के मिट्टी के बर्तन इस संग्रहालय में शामिल हैं। इस संग्रहालय की एक विशेषता यह भी है कि इसमें रखे गए अधिकतर अवशेषों का संबंध इसी मज़ार से है।

संग्रहालय में दो पट वाले 11 दरवाज़े शामिल हैं जो पहले हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार में लगे रह चुके हैं। इनमें सबसे पुराना दरवाज़ा आले बूये शासन श्रृंखला के ज़माने का है जो क़ाजारिया दौर तक लगा रहा है।

संग्रहालय में ज़ियारतनामे भी हैं इनमें कुछ ज़ियारतनामे अपने समय के विख्यात लिपिकारों की रचना हैं। इन लिपिकारों में ज़ैनुल आबेदीन महेल्लाती, असदुल्लाह शीराज़ी, का भी नाम लिया जा सकता है जिन्हें इस्लामी जगत के स्तर पर ख्याति प्राप्त है। संग्राहलय के अन्य अवशेषों में हज़रत अब्दुल अज़ीम की क़ब्र पर रखी ज़रीह में लगाए जाने वाले प्राचीन ताले भी हैं। यह लोहे और चांदी के बने ताले हैं जिन पर बड़ी सुंदर लिखावट की गई है। ओलंपिक मुक़ाबलों में ईरान के खिलाड़ियों और पहलवानों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में जीते गए मेडल भी इस संग्रहालय में रखे गए हैं जिन्हें जीतने वाले खिलाड़ियों ने हज़रत अब्दुल अज़ीम के संग्रहालय का वक़्फ़ कर दिया। इनमें ताइकवांडो, जूडो और रेसलिंग के मुक़ाबलों में मिलने वाले मेडल हैं।

8000 वर्गमीटर के भूभाग पर बना दो मंज़िला मुसल्ला या उपासना गृह भी इसमें शामिल है। इसे नमाज़े जुमा और रोज़ाना की जमाअत की नमाज़ों के लिए बनाया गया है। मुसल्ला की इमारत को प्राचीन इस्लामी वास्तुकला और आधुनिक वस्तुकला के संयुक्त प्रयोग से बनाया गया है। इसी प्रकार इसे चूनाकारी और सुंदर टाइलों के काम से सजाया गया है जिसकी वजह से इस इमारत को विशेष वैभव प्राप्त हो गया है और हर देखने वाले देर तक इस इमारत को देखता रह जाता है।

ज़ियारत के लिए जाने वाले दर्शनार्थियों के लिए मज़ार के पूर्वोत्तरी भाग में गेस्ट हाउस बनाया गया है। इस गेस्ट हाउस का क्षेत्रफल 3000 वर्गमीटर है और यह दो मंज़िला इमारत है। इमारत में 1500 वर्गमीटर का डाइनिंग हाल है। इस इमारत में एक साथ 500 दर्शनार्थियों को सेवाएं दी जा सकती हैं। यह इमारत सीमेंट की बनी है और बाहरी भाग को सुंदर ईंटों से सजाया गया है और भीतरी भाग को तांबे की प्लेटों पर बनाए गए चित्रों से सजाया गया है। फ़र्श को ग्रेनाइट पत्थरों से सजाया गया है तथा केन्द्रीय वातानुकूलित सिस्टम से इसे जोड़ा गया है। हज़रत अब्दुल अज़ीम के मज़ार के लिए संलग्न दारुश्शेफ़ा कौसर नाम का पाली क्लिनिक बनाया गया है जो ज़रूरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा रहा है यह चिकित्सा केन्द्र 6500 वर्गमीटर के भूभाग पर आधारित है और इसमें अलग अलग चिकित्सा सेवाओं के लिए कई भाग बनाए गए हैं।