Jan १३, २०१६ १२:१६ Asia/Kolkata

मौलाना जलालुद्दीन मौलवी के विचार इतने मूल्यवान हैं कि उनके शेरों का अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है तथा बड़ी संख्या में कवियों और साहित्यकारों को आप मौलाना के विचारों से प्रभावित पाएंगे।

मौलाना जलालुद्दीन मौलवी के विचार इतने मूल्यवान हैं कि उनके शेरों का अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है तथा बड़ी संख्या में कवियों और साहित्यकारों को आप मौलाना के विचारों से प्रभावित पाएंगे। वह महान शाहर होने के साथ ही बड़े अंतरज्ञानी और आध्यात्मिक व्यक्ति भी हैं। तेरहवीं शताब्दी ईसवी में वह विशाल ईरान की धरती पर जीवनयापन कर रहे थे और फ़ार्सी संस्कृति व साहित्य की सिंचाई कर रहे थे।

जलालुद्दीन बल्ख़ी बल्ख़ शहर में रहते थे जो उस ज़माने में विशाल ख़ुरासान का एक शहर गिना जाता था। उनका जन्म एक मशहूर पढ़े लिखे परिवार में हुआ था। मंगोलों के हमले के कारण उन्होंने बल्ख़ नगर से अपने परिवार के साथ पलायन किया और कई साल तक बग़दाद, दमिश्क़ और हेजाज़ में गुज़ारने के बाद क़ूनिया पहुंचे और वहीं बस गए। हमने यह भी बताया था कि मौलाना युवाकाल से ही शिक्षा एवं उपदेश की सभाएं करने लगे थे। अब हम महान कवि शम्स तबरेज़ी से उनकी मुलाक़ात की दिलचस्प दास्तान आपको सुनाएंगे।

 

 

समकालीन शायर व शोधकर्ता डाक्टर शफ़ीई कदकनी ने भी दूसरे अनुसंधानों की भांति यह कहा है कि मौलाना का मानो एक नया जन्म उस समय हुआ जब शम्स तबरेज़ी से उनकी मुलाक़ात हो गई। शम्सुद्दीन मुल्क दाद तबरेज़ी तबरेज़ के रहने वाले बहुत महान व्यक्ति थे। उनके जीवन के बारे में ठोस जानकारियां नहीं हैं और शायरों की जीवनी बयान करने वाली किताबों में भी उनके जीवन के बारे में कुछ विशेष जानकारी नहीं दी गई है। उनके बारे में केवल मौलाना की बातों पर भरोसा करना पड़ेगा जिन्होंने कहा कि शम्स तबरेज़ी आपको मोहब्बत ही पहचान सकती है अक़्ल नहीं।

 

शम्स तबरेज़ी अकतूबर 1244 ईसवी के अंत में क़ूनिया पहुंचे। कहते हैं कि मौलाना से उनकी मुलाक़ात बड़े रोचक सवाल जवाब से शुरू हुई और मौलाना के साथ 16 महीने का समय बिताने के बाद वह कूनिया से चले गए। मौलाना से शम्स की पहली मुलाक़ात के बारे में अनेक प्रकार की कहानियां बयान की जाती हैं। इस कार्यक्रम में उन सब को बयान करने की गुंजाइश नहीं है। बहरहाल शम्स तबरेज़ी से मुलाक़ात ने मौलाना को पूरी तरह बदल दिया। उनके जीवन में एक नया रंग पैदा हो गया। मौलाना ख़ुद भी पढ़ाते थे और उपदेश की सभाएं आयोजित करते थे, अपने ज़माने के महान गुरू और मुफ़्ती समझे जाते थे। उन्हें सूफ़ीइज़्म की भी पूर्ण जानकारी थी। लेकिन शम्स तबरेज़ी ने उन्हें अलग ही ज्ञान दिया और डाक्टर सीरूस शमीसा के अनुसार मौलाना को जो पहले ही परिपक्व हो चुके थे जलाकार कुन्दन बना दिया।

उसताद ज़र्रीनकूब ने अपनी पुस्तक में इस मुलाक़ात के बारे में लिखा है कि इस आगंतुक से मौलाना की मुलाक़ात ने जो ख़ुद भी महान शिक्षक और धर्मशास्त्री थे चमत्कारिक रूप से मौलाना का जीवन बदल दिया और उन्हें नया जीवन प्रदान किया। ऐसा जीवन जो एक त्यागी और ज्ञानी को महान आध्यात्मिक शास्त्री में बदल देता है, जो इंसान को प्रेम की गहराइयों में ले जाता है। बताया जाता है सोलह महीने की इस अवधि में मौलाना शम्स तबरेज़ी के सामने शिष्य के रूप में बैठते थे और धीरे धीरे अध्यात्म की मंज़िलें तय करते हुए ऊंचाइयों की ओर बढ़ते चले गए।

 

 

शम्स तबरेज़ी ने मौलाना को जो ज्ञान दिया वह उस समय तक मौलाना ने ज्ञान प्राप्त किया था उससे बिल्कुल अलग था। उन्होंने मौलाना को उनके बचपन के उस काल मे पहुंचा दिया जब वे अध्यात्म का क़रीब से आभास करते थे। उन्हें ईश्वर के सामिप्य पाने और सांसरिक इच्छाओं से ख़ुद को दूर करने का तरीक़ा सिखा दिया। उनका मानना था कि सांसारिक इच्छाएं आध्यात्मिक ऊंचाइयों की ओर इंसान की प्रगति के मार्ग में रुकावट बनती हैं और एक प्रकार का पर्दा बन जाती हैं और जब तक यह पर्दा बाक़ी रहता है इंसान ईश्वर की याद में विलीन नहीं हो सकता। डाक्टर ज़र्रीनकूब का कहना है कि मौलाना पूरी ज़िंदगी ईश्वर की खोज में रहे और गहराइयों को आंकते रहे। शिक्षा और उपदेश की सभाओं में बहुत अधिक व्यस्त रहने के बावजूद मौलाना हमेशा अध्यात्म की मंज़िल खोजते रहते थे और एक क्षण के लिए भी उन्होंने अपनी यह खोज नहीं रोकी। शम्स उनके लिए एक आध्यात्मिक ख़ुशबू और लहर साबित हुए। मौलाना को शम्स तबरेज़ी के भीतर एक संपूर्ण व आदर्श इंसान मिल गया था। उन दिनों मौलाना ने उपदेश की सभाएं बंद कर दी थीं शिक्षा देने के लिए अपनी क्लासों में भी नहीं जाते थे। बल्कि हर वक्त शम्स तबरेज़ी की सेवा में उपस्थित रहते थे। शम्स तबरेज़ी के लेखों और मौलाना की रचनाओं का यदि तुलनात्मक दृष्टि से जायज़ा लिया जाए तो यह समझा जा सकता है कि शम्स ने जो कहानियां और क़िस्से अपनी सभाओं में सुनाए हैं वह बाद में मौलाना की मसनवी में भी दिखाई दिए तथा शम्स के कुछ विचार भी मौलाना की ग़ज़लों में देखे जा सकते हैं।

 

 

मौलाना के कुछ शिष्य जो उनकी शिक्षा व उपदेश सभाओं के समाप्त हो जाने से परेशान थे उन्होंने शम्स तबरेज़ी को सताना शुरू कर दिया और यह सिलसिला इतना आगे बढ़ा कि वह अचानक क़ूनिया से चले गए। इस पूरी घटना में एक साल से अधिक का समय लग गया। बताया जाता है कि शम्स का अचानक शहर से चला जाना मौलाना पर बिजली के समान गिरा। वह इतने दुखी हो गए कि शिक्षा और उपदेश की सभाएं पुनः शुरू करने पर तैयार न हुए। यहां तक कि शायरी भी उन्होंने छोड़ दी। मौलाना के शिष्य यह समझ रहे थे कि शम्स के चले जाने के बाद मौलाना पुनः अपनी सभाएं शुरू कर देंगे लेकिन उन्हें मौलाना के दरवाज़े से मायूस होकर लौटना पड़ा। मौलाना ने अपने मित्रों को भेजा कि शम्स तबरेज़ी को खोजें लेकिन उनका कहीं कुछ पता नहीं चला। बाद में शम्स तबरेज़ी का एक ख़त मौलाना को मिला जो दमिश्क़ से उन्होंने लिखा था। मौलाना ने अपने बेटे सुलतान वल्द को तत्काल दमिश्क़ भेजा।

शम्स फिर क़ूनिया लौटे लेकिन वहां फिर लोगों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया अतः वह कुछ दिन बाद फिर अचानक गायब हो गए। इसके बाद फिर उनका कहीं कुछ पता नहीं चल सका। लोगों का कहना था कि उनकी हत्या कर दी गई।

 

 

मौलाना ने शम्स की मौत का यक़ीन नहीं किया। दो साल तक उन्हें खोजते रहे और खोजते खोजते दमिश्क़ जा पहुंचे। डाक्टर सीरूस शमीसा का कहना है कि मौलाना जब उन्हें ढूंढते ढूंढते थक गए तो बाहर की दुनिया छोड़कर उन्हें अपने अस्तित्व के भीतर इस महान हस्ती को खोजना शुरू कर दिया। इस स्थिति ने उन्हें कुछ सुकून दिया। जर्मन शोधकर्ता सुश्री मैरी शेमल अपनी पुस्तक में जिसमें उन्होंने मौलाना के विचारों और शेरों की समीक्षा की है, शम्स के बाद की मौलाना की ज़िंदगी के बारे में लिखती हैं कि मौलाना सोच में और उपासना में डूबे रहते थे। कभी बहस करते थे और कभी दूसरों की सभाओं में जाकर बैठते थे। मौलाना के अस्तित्व में तीन महान चरण गुज़रे। शम्स के प्रेम की ज्वाला का दौर देखने के बाद मौलाना सलाहुद्दीन ज़रकूब की सोहबत में बैठने लगे और इससे उन्हें आराम मिलने लगा जबकि होसामुद्दीन चलबी का साथ पाकर उनके विचार अपने चरम बिंदु पर पहुंच गए। शम्स तबरेज़ी के प्रेम और ज़रकूब की दोस्ती के बाद वह एक मुरशिद के रूप में दुनिय में लौटे और एक गुरू के रूप में इस दुनिया से गए।

मौलाना का जीवन बहुत से उतार चढ़ाव से गुज़रते हुए अपने अंतिम पड़ाव में पहुंच गया। मौलाना अपने जीवन के अंतिम दिन बहुत कुम्हलाए हुए रहते थे और चिकित्सकों को उनकी बीमारी समझ में नहीं आ रही थी। अंततः यह महान कवि 17 दिसम्बर 1273 को 68 साल की उम्र में इस दुनिया से सिधार गया। अगले दिन सुबह के समय मौलाना का जनाज़ा मदरसे से बाहर निकला तो पूरे शहर में शोक छा गया। मौलाना के कुछ चाहने वाले क़ुरआन की तिलावत कर रहे थे। कुछ लोग उन्हीं के गज़लें पढ़ रहे थे, उनका जनाज़ा उठाने के लिए लोगों में होड़ सी लगी हुई थी। पूरे दिन मौलाना का जनाज़ा लोगों के कांधों पर रहा। भारी भीड़ के कारण अंतिम संस्कार बहुत लंबा हो गया। जब मैलाना का जनाज़ा दफ़्न करने के लिए क़ब्र में उतारा गया तो रात हो चुकी थी।

 

 

क़ूनिया के लोगों के लिए इस ईरानी कवि को विदा करना बहुत कठिन था जो उनके बीच वर्षों तक ज्ञान का प्रकाश बिखेरता रहा। मौलाना की मौत से रोम के सलजूक़ी शासन में ख़ामोशी छा गई। कई हफ़्ते तक पूरे शहर मे सन्नाट पसरा रहा। लोग ग़म मनाते रहे। मौलाना की विनम्रता एसी थी कि यहूदी और ईसाई भी उनकी मौत का शोक मना रहे थे। उनकी कमी शहर के हर कोने में महसूस होती थी। 

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