Sep १७, २०१६ १५:५१ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि हमने इस कार्यक्रम की शुरूआत जेम्स ए ब्रेवर के इस कथन से की थी कि “भाग्यशाली संतान वह है जिसके अच्छे मां-बाप हों और भाग्यशाली मां-बाप वह हैं जिनकी अच्छी संतान हो।“

इंसान के इस दुनिया में क़दम रखने और सफल जीवन बिताने में मां-बाप की भूमिका के महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता। बच्चे को जन्म देने यहां तक कि उससे पहले जीवन साथी का चयन, गर्भधारण, गर्भावस्था और आत्मनिर्माण जैसे चरणों से लेकर बच्चे का पालन-पोषण और सही परवरिश मां-बाप की अहम ज़िम्मेदारियों में से है। इन समस्त चरणों की चरणबद्ध तरीक़े से हमने समीक्षा की और बच्चों की सही परवरिश और उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाने के उपायों की चर्चा की।

यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक रूप से मां-बाप के दिल में अपने बच्चों की मोहब्बत और ममता होती है, इसीलिए वे अपनी संतान के लिए एक अच्छा जीवन सुनिश्चित करने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देते हैं और अपना सुख चैन उन्हीं के नाम कर देते हैं। मां-बाप एक दीप की भांति होते हैं, जो दूसरों को रोशनी देने के लिए ख़ुद को जलाकर फ़ना कर लेता है लेकिन अपने वजूद से हज़ारों दीपों को रोशन कर जाता है ताकि वह हमेशा अँधेरों का सीना चीरकर दुनिया को रोशन रख सकें और वजूद को फ़ना पर फ़तह हासिल हो सके।

इसके अलावा जिस प्रकार मानवीय समाज और धर्म मां-बाप को अपनी संतान के प्रति जवाबदेह बनाते हैं और उनके लिए कुछ ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करते हैं, बिल्कुल उसी तरह संतान को भी अपने मां-बाप के प्रति उत्तरदायी और ज़िम्मेदार क़रार देते हैं। जिस प्रकार मां-बाप अपनी इस खेती को हरा भरा करने के लिए अपनी ऊर्जा, अपनी जवानी और अपनी सुविधाओं को क़ुर्बान कर देते हैं और अपने ख़ून-पसीने से इसे सींचते हैं, उसी तरह उनके बूढ़े होने पर संतान को भी ऐसे ही त्याग की ज़रूरत होती है। क्योंकि अगर यह त्याग और बलिदान नहीं होगा तो  ख़ुदग़रज़ी और स्वार्थपरता मानवीय अस्तित्व को ही ख़तरे में डाल देगी।

यही कारण है कि पूरे मानवीय इतिहास में और हर संस्कृति एवं धर्म में मां-बाप का एक विशेष महत्व और सम्मान रहा है, विशेष रूप से पूर्वी सभ्यता में आज भी मां-बाप का जो स्थान है और संतान जो सम्मान अपने मां-बाप को देती है, उसकी मिसाल अन्य सभ्यताओं में कम ही देखने को मिलती है।

इस बीच, इस्लाम धर्म ने मां-बाप को ईश्वरीय वरदान के रूप में उन्हें उनका वास्तविक स्थान प्रदान किया और संतान को ऐसे संस्कारों की शिक्षा दी जिनका पालन करके वह अपने मां-बाप की उस तरह सेवा कर सके जो सेवा करने का हक़ है और इस प्रकार वह लोक-परलोक में उच्च स्थान प्राप्त कर सके। विशेष रूप से मां द्वारा सहन की जाने वाली कठिनाईयों, त्याग और बलिदान के दृष्टिगत इस्लाम ने मां को एक विशेष स्थान प्रदान किया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की यह हदीस कि मां के क़दमों के नीचे जन्नत है, मां के महत्व को उजागर करने के लिए काफ़ी है।

जहां कहीं भी बात मां-बाप और संतान के परस्पर अधिकारों और ज़िम्मेदारियों की  आती है, वहां यह स्पष्ट किया जाता है कि संतान मां-बाप की बेहतर से बेहतर सेवा करके उन्हें प्रसन्न कर सकती है, लेकिन कदापि अपने बच्चों के लालन-पालन में उनके द्वारा सहन की गई कठिनाईयों का बदला नहीं दे सकती, यहां तक कि जीवन भर सेवा करके भी मां के एक रात के कष्ट का हक़ अदा नहीं किया जा सकता।

मां-बाप का साया संतान के लिए सबसे बड़ी ईश्वरीय अनुकंपा है। मां-बाप के अधिकारों को गिना नहीं जा सकता और न ही उसका हक़ अदा किया जा सकता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि बच्चे के लिए जागकर गुज़ारी गई मां की एक रात ज़िम्मेदार बाप की आयु के कई वर्षों से अधिक मूल्यवान है। मां-बाप का महत्व इतना अधिक है कि ईश्वर ने उनकी मर्ज़ी और ख़ुशी में ही अपनी मर्ज़ी और ख़ुशी रखी है।

 

मानवीय इतिहास और जीवन में हमेशा मां-बाप का स्थान बहुत ऊंचा रहा है। विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं में मां-बाप के संबंध में बहुत ही मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण बिंदु देखने और पढ़ने को मिलते हैं। इस्लामी इतिहास में है कि एक पापी व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सेवा में उपस्थित हुआ और उसने अपने पापों पर क्षमा याचना की गुहार लगाई और पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए जो ईश्वर मेरे पापों को क्षमा कर दे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, क्या तेरे मां-बाप या उनमें से कोई एक जीवित है? उस व्यक्ति ने कहा, मेरे पिता जीवित हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि जाओ और अपने पिता की सेवा करो। उस व्यक्ति के वहां से जाने के बाद, पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने साथियों से कहा कि अगर इस व्यक्ति की मां ज़िंदा होती और वह उसकी सेवा करता तो उसके पाप बहुत जल्दी धुल जाते।                

निःसंदेह हर धर्म और संस्कृति में मां-बाप का बहुत ऊंचा स्थान है और हर बुद्धिमानी व्यक्ति मां-बाप का और उनके आदेशों का सम्मान करता है। इतिहास में हर महत्वपूर्ण धर्म और मत ने इस विषय को विशेष महत्व दिया है और अपने अनुयाईयों से मां-बाप की सेवा का आहवान किया है। जिस प्रकार समस्त ईश्वरीय धर्म ब्रह्माण्ड की हर चीज़ के बारे में अपना दृष्टिकोण पेश करते हैं और संसार की वास्तविकता का उल्लेख करते हैं, तथा जहां नैतिक मूल्यों का विषय होता है, वहां नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, उसी तरह मां-बाप के महत्व और स्थान के बारे में भी वे ख़ामोश नहीं हैं, बल्कि उन्होंने मां-बाप के अधिकारों के संबंध में भी संतान को संस्कार सिखाएं हैं और शिक्षा दी है।

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