हम और पर्यावरण-11
तेल आज की दुनिया में प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण बन गया है।
जिन चीज़ों से प्रदूषण फैलता है उनमें एक तेल है और आज वह सागरों और महासागरों की सुरक्षा के लिए चुनौती बना हुआ है। तेल से होने वाले प्रदूषण पर सबसे पहले उस समय ध्यान दिया गया जब वर्ष 1967 में टोरी कानियोन तेल टैंकर ब्रिटेन के दक्षिणी तट के निकट ज़मीन से टकरा कर दो टुकड़े हो गया। इस घटना से एक हज़ार टन कच्चा तेल समुद्र में फैल गया और ब्रिटेन की वायु सेना ने तेल से फैलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए उस तेल टैंकर पर युद्धक विमानों से बमबारी कर दी ताकि उसमें बाकी बचा कच्चा तेल जलकर समाप्त हो जाये। इस प्रकार यह घटना विश्व के देशों द्वारा इस ख़तरे पर ध्यान देने का कारण बनी। क्योंकि तेल से होने वाला प्रदूषण केवल समुद्रों, पानी में रहने वाले जानवरों और जो लोग नौकाओं पर सवार होकर मछली पकड़ते और दूसरी गतिविधियां करते हैं केवल उनके लिए ख़तरा नहीं है बल्कि ख़तरा इससे बड़ा है। जो तेल समुद्र की सतह पर होता है जब उस पर सूरज की रोशनी पड़ती है तो उसका वाष्पीकरण हो जाता है और वर्षा तथा कोहिरा के रूप में ज़मीन पर दोबारा वापस लौट आता है और वह खेती की पैदावार, इंसान और जानवरों के लिए ख़तरा उत्पन्न करता है।
घोषित आंकड़ों के अनुसार सागरों और महासागरों में लगभग 14000 तेल के रिसाव की घटनाएं प्रतिवर्ष होती हैं जो प्रायः छोटी होती हैं और उनमें फैलने वाले तेल को एकत्रित कर लिया जाता है परंतु कुछ बड़ी घटनाएं भी होती हैं। वर्ष 1989 में अलास्का के प्रिंस विलियम जलडमरु मध्य में तेल टैंकर “एक्सोन वाल्डज़” में तेल रिसाव की घटना पेश आ गयी जिससे चार करोड़ 20 लाख लीटर कच्चा तेल समुद्र में फैल गया। वर्ष 1993 में भी इस्काटलैंड में शेटलैंड द्वीप समूह के निकट एक दूसरे तेल टैंकर से नौ करोड़ 80 लाख लीटर कच्चा तेल समुद्र में फैल गया। यद्यपि समुद्रों को दूषित करने में नौकाओं और पानी के जहाज़ों की मुख्य भूमिका है परंतु प्रदूषण के जो सबसे अधिक स्रोत हैं उनका संबंध तेल के कुओं और उन जेटियों व प्लेटफार्मों से है जिन्हें तेल के लिए प्रयोग किया जाता है। मैक्सिको की खाड़ी में समुद्र की सतह पर तेल रिसाव की एक अन्य बड़ी घटना है जो 20 अप्रैल वर्ष 2010 को पेश आयी। इसमें बी. पी कंपनी की डीप वाटर होरीज़न DEEPWATR HORIZON जेटी में विस्फोट और आग लगने से 11 से अधिक मज़दूर हताहत हुए और चालिस लाख बैरेल से अधिक कच्चा तेल मैक्सिको की खाड़ी में फैल गया और इसे समुद्र में कच्चा तेल फैल जाने की इतिहास की सबसे बड़ी घटना माना जाता है। मैक्सिको की खाड़ी में 300 वर्ग किलोमीटर से अधिक की समुद्र की सतह पर कच्चा तेल फैल गया था और क्षेत्र के बहुत से जानवरों की जीवन स्थली बर्बाद हो गयी है और उनका जीवन ख़तरे में पड़ गया। मैक्सिको की खाड़ी में तेल फैल जाने के कई सप्ताह बाद तक जो मछुआरे ग्रूपर GROUPER FISH और RED FISH का शिकार करने के लिए दुर्घटना से प्रभावित क्षेत्र के आस -पास गये थे उन्होंने उन मछलियों का शिकार किया जिनके शरीर पर विचित्र घाव एवं धब्ते थे और इससे पहले उन्होंने इस प्रकार के घाव और धब्बे नहीं देखे थे। इस क्षेत्र में जो शोध किये गये उनसे पता चला कि खुले घाव, संक्रमित और रहस्यमयी काले धब्बे उन दुष्परिणामों में से हैं जो मैक्सिको की खाड़ी में तेल की घटना को कई साल बीत जाने के बावजूद अब भी इस क्षेत्र के समुद्री जानवरों के जीवन के लिए ख़तरा बने हुए हैं। इस क्षेत्र में गहरे पानी के मूंगें, समुद्री शैवाल, डॉलफिन और मैंग्रो MANGROVES जैसे जानवरों और वनस्तियों को भी आघात पहुंचा है।
ईरान के दक्षिण में स्थित फार्स की खाड़ी एक अन्य क्षेत्र है जिसे सदैव तेल से होने वाले प्रदूषण का ख़तरा रहता है। फार्स की खाड़ी में तेल के 25 बड़े टर्मिनल्स हैं जिसके कारण विश्व के 30 प्रतिशत तेल टैंकर इसी क्षेत्र से गुज़रते हैं। हुरमुज़ जलडमरू मध्य से प्रतिवर्ष 20 से 30 हज़ार तेल टैंकर गुज़रते हैं। तेल टैंकरों की आवाजाही के कारण दसियों हज़ार टन तेल रिसाव के कारण यह समुद्र के एक प्रदूषित क्षेत्र में परिवर्तित हो गया है। ईरान की समुद्री पर्यावरण संस्था के अधिकारी अब्दुर्रज़ा करबासी ने अभी हाल में ही इस वास्तविकता की ओर संकेत किया और कहा कि वर्ष 2000 से 2009 के बीच के वर्षों में तेल ले जाने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 114000 टन तेल का रिसाव हुआ और यह मात्रा वर्ष 2009 से 2015 के वर्षों में लगभग प्रतिवर्ष 93000 से 135000 टन रही है। तेल टैंकरों के गुज़रने के अलावा फार्स की खाड़ी में तेल और गैस के 34 क्षेत्र और 800 कुंए हैं। स्पष्ट है कि असामान्य स्थिति में तेल और गैस के बहने से स्थिति विस्फोटक हो सकती है। अंजाम दिये गये शोध ने दर्शा दिया है कि इस प्रकार की स्थिति इस बात का कारण बनी है कि विश्व का तीन दशमलव एक प्रतिशत प्रदूषण इसी क्षेत्र से विशेष है जो विश्व के औसत प्रदूषण से 47 गुना अधिक है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सागरों और महासागरों के तेल से प्रदूषित होने के कारण उनमें रहने वाले जानवरों, वनस्पतियों और कुल मिलाकर इकोसिस्टम पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। क्योंकि जो तेल की परतें होती हैं उनके कारण पानी में हवा और आक्सीजन का प्रवेश कम हो जाता है जिसके परिणाम में पानी में रहने वाले जीव- जन्तुओं और उनके जीवन से संबंधित स्रोतों की मौत कारण बनता है। दूसरी ओर इस प्रकार का प्रदूषण समुद्र की गहराइयों में सूरज के प्रकाश के कम जाने का कारण बनता है जो वनस्पतियों द्वारा फोटोसेन्थेसिस PHOTOSYNTHESIS की कृया के कम होने का शुरु हो जाती है। समुद्री जीव- जन्तुओं के शरीर में तेल की बूंदों का पहुंचना भी बहुत से अवसरों पर उनकी मृत्यु का कारण बनता है। मूंगें, सजावट की छोटी मछलियां, अन्य मछलियां, सीपियां, घोंघे, मोलस्का MOLLUSca, समुद्री एनीमोन, जेली फीश, कछुए, डॉलफिन और शार्क आदि ये समुद्री प्राणी हैं जिन्हें तेल प्रदूषण से क्षति पहुंचती है। दूसरी ओर पानी में पौष्टिक खाद्य पदार्थों का न होना पानी में रहने वाले प्राणियों के छोटा रह जाने और उनके पर्याप्त शारीरिक विकास के न होने का कारण बनेगा। समुद्र के पानी में बहुत से एसे पदार्थ चले गये हैं जो पानी में घुलते नहीं हैं और वर्षों तक वे पानी में मौजूद रहते हैं और परिणाम स्वरूप पानी में आक्सीजन कम हो जाती है और पानी में ह्वेल, कछुए, शार्क, डॉलफिन और पेंगूइन जैसे समुद्री प्राणियों का जीवन कठिन हो जाता है। दूसरी ओर जब पानी में रहने वाली चीज़ें दूषित वस्तुओं का भोजन करेंगी तो यह दूषितवस्तुए इंसानों के भोजन में आ जायेंगी और उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा। यह चीज़ें इंसान के शरीर के अंगों में घुल जायेंगी और वे कैंसर, जन्म जात रोगों या इसी प्रकार लंबे समय तक उनके स्वास्थ्य के लिए समस्या का कारण बनेंगी।
तेल के धब्बों से समुद्री पक्षियों को भी बहुत क्षति पहुंचती है। उनके पंखों में तेल लगने से एक दूसरे से चिपक जाते हैं और उनके उड़ने की क्षमता कम या ख़त्म हो जाती है। इसके अलावा उनके पंखों के इन्सुलेटर (INSULATOR) होने की विशेषता के बावजूद वे ख़राब हो जाते हैं और पंक्षी को पानी की ठंडक का सामना होता है और वह मर जाता है। मैक्सिको की खाड़ी में तेल रिसाव की त्रासदी में 6000 से अधिक पंक्षी मर गये। तेल समुद्र की सतह पर रुका रहता है इसी प्रकार वह समुद्र के खनिज पदार्थों में घुल कर भारी हो जाता है और धीरे- धीरे वह पानी की तह में बैठ कर झींगा जैसे समुद्र में रहने वाले प्राणियों यहां तक कि वनस्पियों को भी नुकसान पहुंचाता है। समुद्र की सतह पर रुके हुए तेल का तटीय क्षेत्रों की वनस्पतियों पर प्रभाव भी एक अन्य महत्वपूर्ण विषय है। प्राप्त रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि तेल का यह प्रदूषण समुद्री शैवाल और दूसरी तटवर्ती वनस्पियों के नष्ट होने का कारण बनता है।
हालिया दशकों में समुद्रों में तेल से होने वाला प्रदूषण अपने चरम बिन्दु पर पहुंच गया जो बहुत से देशों के संवेदनशीलता का कारण बना। इसी प्रकार यह विषय इस बात का कारण बना कि विश्व वासियों ने इसके प्रति संयुक्तरूप से संकल्प किया और इस समस्या के समाधान की दिशा में क़दम उठाया। तेल से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए वर्ष 1969 में सरकारों ने एक समझौता किया। अलबत्ता विश्व समुदाय अब इस बात को भली-भांति समझ गया है कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केवल समझौता करने का तेल से होने वाले प्रदूषण को रोकने की दिशा में फाएदा नहीं है। इस आधार पर हालिया दशकों में इस बात का प्रयास किया गया कि सरकारें प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करें और अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्रों में सरकारों का हस्पक्षेप और हस्तक्षेप का न होना तेल से होने वाले प्रदूषण को रोकने वाले समझौते के परिप्रेक्ष्य में होना चाहिये ताकि सरकारों के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोका जा सके और हर सरकार के शासन क्षेत्र को भी स्पष्ट किया जा सके। इससे पहले समझौते के अनुसार पानी के जिन जहाज़ों और तेल टैंकरों से जो प्रदूषण फैलता था उनके मालिकों को उसका ज़िम्मेदार समझा जाता था और उसका हर्जाना अदा करने का दायित्व उन्हीं पर होता था किन्तु चूंकि तेल टैंकरों के मालिकों के पास उनसे होने वाले प्रदूषण का हर्जाना अदा करने की क्षमता नहीं होती थी इसलिए वर्ष 1971 में एक नागरिक दायित्व कन्वेशन और दूसरा भरपाई कोष कन्वेन्शन बनाया गया। इन कंवेन्शनों के आधार पर बड़ी घटनाओं में हर्जाना अदा करने की ज़िम्मेदारी तेल के खरीदारों पर डाल दी गयी। वर्ष 1992 में हर्जाने की भरपाई से संबंधित दो कंवेन्शनों को पारित किया गया और वर्ष 1996 से इनके पालन को अनिवार्य बना दिया गया। वर्ष 1971 और वर्ष 1992 में होने वाले कंवेन्शनों से किसी सीमा तक हर्जाने का भुगतान हो गया। यद्यपि भेंट चढ़ने वालों को इस मार्ग से शत- प्रतिशत हर्जाना अदा नहीं किया जाता है परंतु काफी सीमा तक हर्जाना अदा किया जाता है और हर्जाने के भुगतान के लिए वर्ष 1971 और 1992 में जो दो कन्वेशन बनाये गये हैं उसने इन वर्षों में काफी सीमा तक हर्जाने अदा किये हैं और काफी हद तक विश्व समुदाय उससे प्रसन्न भी है परंतु यहां प्रश्न यह है कि क्या इस हर्जाने के भुगतान से पर्यावरण को जो क्षति पहुंची है उसकी भी पूरी तरह भरपाई हो गयी?