बुधवार- 14 अक्तूबर
14 अकतूबर सन 1955 ईसवी को पूर्वी पाकिस्तान का नाम बदल कर पूर्वी बंगाल रखा गया।
14 अक्तूबर वर्ष 1066 को हेस्टिंग्स के निकट विलियम के नेतृत्व में नार्मन सेना ने इंग्लैंड को हराया और वहाँ के राजा हेराल्ड द्वितीय की हत्या कर दी। नॉर्मन मध्यकाल के आरम्भ में उत्तरी फ़्रांस में एक जाति थी जो उत्तरी यूरोप से आये वाइकिंग आक्रमणकारियों और स्थानीय जातियों का मिश्रण थी। नॉर्मन जाति 10वी सदी की शुरुआत में उभरी और आने वाली सदियों में इसमें बदलाव आते रहे। इंग्लैंड, यूरोप और मध्यपूर्व के क्षेत्रों पर इसने अपनी गहरी छाप छोड़ी । उत्तरी फ़्रांस का जो क्षेत्र उनकी मातृभूमि था उसे अब नॉरमैन्डी बुलाया जाता है। उन्होंने दक्षिण इटली, इंग्लैण्ड और मध्य पूर्व में कई इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर के अपना राज चलाया। इंग्लैण्ड पर सन् 1066 के बाद चले नॉर्मन-शाही दौर का सबसे पहला राजा विलियम विजयी था ।
14 अक्तूबर वर्ष 1240 को भारत की प्रथम शासिका रज़िया सुल्ताना एक रक्तरंजित युद्ध में अपने पति के साथ मारी गयीं। वह दिल्ली की शासिका थीं। रज़िया ने वर्ष 1236 और 1240 तक दिल्ली पर राज किया। तुर्क मूल की रज़िया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया, ताकि ज़रुरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। उन्हें 12 अप्रैल वर्ष 1236 को पिता शमसुद्दीन अलतमश की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बिठाया गया। वह दुनिया के पहले ऐसे शासक थे, जिसने अपने बाद किसी महिला को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। भाई द्वारा राजगद्दी पर क़ब्ज़ा किए जाने के बाद उन्होंने अपने पति के साथ भाई से युद्ध किया जिसमें 14 अक्तूबर वर्ष 1240 को दोनों मारे गये।
14 अक्तूबर वर्ष 1882 को शिमला में पंजाब विश्व विद्यालय की स्थापना की गयी। यह ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार द्वारा कोलकाता, मुंबई और चेन्नई के बाद स्थापित किया गया भारत का चौथा विश्वविद्यालय था। शिमला की खोज अंग्रेज़ों ने सन 1819में की थी। चार्ल्स कैनेडी ने यहाँ पहला ग्रीष्मकालीन घर बनाया और शीघ्र ही शिमला लॉर्ड विलियम बेन्टिन्क की नज़रों में आ गया, जो 1828से 1835 तक भारत के गवर्नर जनरल थे। वर्ष 1864 में, शिमला को भारत में ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था।
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26 सफ़र सन 288 हिजरी क़मरी को इराक़ के गणितज्ञ व खगोल शास्त्री साबित बिन क़रह हरानी का निधन हुआ। वे सरयानी और यूनानी भाषाओं की पुस्तकों का अरबी में अनवाद करने में भी दक्षता थे। अधिकांश यूनानी भाषा की पुस्तकें साबित बिन करह द्वारा या उनके निरीक्षण में अरबी भाषा में अनुवादित की गयी हैं। इस दृष्टि से ज्ञान की प्रगति में उनका बड़ा योगदान रहा है। कुछ इतिहास कारों का मानना है कि इस विद्वान द्वारा अनुवाद की गयी पुस्ताकों की संख्या 130 से अधिक है।
अनुवाद के अतिरिक्त उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं जिनमें गणित के विषय की पुस्तक मसायलुल हिन्दसा वल आदाद उल्लेखनीय है।