शुक्रवार- 23 अक्तूबर
1922 को जर्मन सेना ने सैक्सनी पर क़ब्ज़ा कर लिया और वहां पर सोवियत आधिपत्य को समाप्त कर दिया।
23 अक्तूबर सन 1872 ईसवी को फ़्रांस के विख्यात कवि और लेखक टेनोफेल गोएटे का निधन हुआ। वे सन 1811 में जन्में थे। उन्होंने पेरिस में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने कुछ समय तक पत्रकारिता की और वे चित्रकार या संगीतकार बनने का प्रयास करते रहे किंतु अंतत: उन्हें साहित्य और शायरी से लगाव हो गया और फिर उन्होंने इस विषय में बड़ी ख्याति प्राप्त की और मूल्यवान रचनाए की। उनकी रचनाओं में अलबर्टस डेथ कॅमेडी आदि का नाम लिया जा सकता है।
23 अक्तूबर सन 1942 ईसवी को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उत्तरी मिस्र के क्षेत्र अलमैन में ब्रिटिश व जर्मन सेनाओं के मध्य इसी नाम से एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की कमान फील्ड मार्शल मोन्टेगमेरी के हाथ में और जर्मन सेना का नेतृत्व एडविन रोमेल के हाथ में था। इस युद्ध में जर्मन सेना को पराजय हुई किंतु इसकी लपेट में उत्तरी अफ़्रीक़ा के दूसरे क्षेत्र भी आ गए और इन सभी क्षेत्रों में युद्ध छिड़ गया लेकिन अंतत: जर्मनी को पराजय हुई और अफ़्रीक़ा में शांति स्थापित हुई।

23 अक्तूबर सन 1956 ईसवी को हंग्री की जनता ने पूर्व सोवियत संघ के वर्चस्व के विरुद्ध संघर्ष आरंभ किया। उल्लेखनीय है कि 1953 में हंग्री कम्युनिस्ट पार्टी के बिखर जाने के बाद इस देश के राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री एमरे नागी के नेतृत्व में नई सरकार सत्ता में आई जो सोवियत संघ के अधीन न थी। इसके बाद हंग्री के कम्युनिस्ट मोर्चे ने सोवियत संघ की आर्थिक व सामरिक सहायता से हंग्री की जनता के स्वतंत्रताप्रेमी आंदोलन के विरुद्ध संघर्ष आरंभ किया और इस आंदोलन को कुचल दिया गया।
23 अक्तूबर सन 1983 ईसवी को लेबनान में मुसलमान संघर्षताओं द्वारा अमरीकी व फ़्रांसीसी अतिग्रहणकारियों के ठिकानों पर शहादतप्रेमी आक्रमणों में 241 अमरीकी और 58 फ़्रांसीसी सैनिक मारे गए। अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन और इटली की सेनाएं इस घटना के कुछ ही सप्ताह पूर्व लेबनान के गृह युद्ध में फ़लांजिस्टों के समर्थन में बैरूत पहुँची थीं और इन सेनाओं का बैरूत आगमान इस्राईल के अतिग्रहणकारी शासन का अप्रत्यक्ष समर्थन भी समझा जा रहा था किंतु मुसलमान संघर्षकर्ताओं की ओर से विदेशी सैनिकों के ठिकानों पर आक्रमणों के बाद यह सेनाएं लेबनान से निकलने पर विवश हो गईं।
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2 आबान वर्ष 1307 हिजरी शम्सी को ईरान के प्रसिद्ध क्रांतिकारी और विचारक आयतुल्लाह डाक्टर सैयद मुहम्मद हुसैनी बहिश्ती का इस्फ़हान में जन्म हुआ। उनका पालन पोषण एक धार्मिक परिवार में हुआ और युवा काल से ही उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त करना आरंभ कर दिया। वे अभी अट्ठारह वर्ष के ही थे कि अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाने के लिए पवित्र नगर क़ुम गये और इमाम ख़ुमैनी के शिष्य बन गये। इसी के साथ उन्होंने विश्वविद्यालय की शिक्षा को भी जारी रखा और उसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र के विषय में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। डाक्टर बहिश्ती बहुत परिश्रमी थे और राजनैतिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में सदैव सक्रिय रहते थे। वर्ष 1342 हिजरी शम्सी में इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया। वर्ष 1344 में उन्हें इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए जर्मनी के हैमबर्ग इस्लामी केन्द्र भेजा गया । उन्हें जर्मन, अंग्रेज़ी और अरबी भाषा का पूरा ज्ञान था और इस चीज़ ने यूरोप और जर्मनी में उनके प्रचार अभियान में बहुत सहायता की। वर्ष 1349 में स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने पहलवी की तानाशाही सरकार के विरुद्ध संघर्ष को जारी रखा और 1357 में इस्लामी क्रांति की सफलता में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वर्ष 1360 में आतंकवादी गुट एमकेओ की ओर से किए गये एक भीषण बम विस्फोट में वह शहीद हो गये। इस भीषण आक्रमण में 72 अन्य सरकारी अधिकारी मारे गये थे। उनकी शहादत पर इस्लाम क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि शहीद बहिश्ती मज़लूम जिये, मज़लूम मरे व इस्लाम के शत्रुओं की आंखों का कांटा थे।

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6 रबीउल औवल सन 604 हिजरी क़मरी को ईरान के महान कवि व दार्शनिक जलालुद्दीन मोहम्मद बल्ख़ी का बल्ख़ नगर में जन्म हुआ जो उस समय ईरान का भाग था और अब अफ़ग़ानिस्तान का हिस्सा है। वह मौलाना और मौलवी की उपाधि से बहुत प्रसिद्ध हुए। उनके पिता बहाउद्दीन वल्द भी महान दार्शनिकों व वक्ताओं में थे। मौलाना बचपन में अपने पिता के साथ हज की यात्रा पर गए। हज के बाद वह बग़दाद और फिर वहां से क़ूनिया गए जो इस समय तुर्की में है। मौलाना ने सीरिया के हलब और दमिश्क़ शहरों में इस्लामी ज्ञाज की शिक्षा ली और फिर शिष्यों का प्रशिक्षण शुरु कर दिया। मौलाना के जीवन का निर्णायक मोड़ वर्ष 642 में महान ईरानी दार्शनिक शम्स तबरेज़ी से उनकी मुलाक़ात थी। इस मुलाक़ात के बाद उन्होंने पढ़ाना और लिखना पढ़ना छोड़कर चिंतन मनन और ईश्वर की उपासना में खुद को व्यस्त कर लिया। मौलाना की विश्व विख्यात रचनाएं इस मुलाक़ात के बाद की हैं। उनकी एक विख्यात रचना मसनविए मअनवी और दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक दीवाने शम्स तबरेज़ी है। इन दोनों पद्य रचनाओं के सारे ही शेर फ़ारसी भाषा में हैं । फ़ीहे मा फ़ीह, मजालिसे सबआ और मकतूबात भी मौलाना की मशहूर किताबे हैं। वर्ष 672 हिजरी क़मरी में मौलाना का निधन हो गया।
