Nov २२, २०१६ १७:२५ Asia/Kolkata

नस्र सूरा पवित्र क़ुरआन का 110वां सूरा है।

यह सूरा मदीने में उतरा और इसमें 3 आयते हैं। इस सूरे का अनुवाद है, जब ईश्वर की ओर से मदद और कामयाबी आएगी। आप देखेंगे कि लोग समूहों में ईश्वर के धर्म में शामिल होंगे। तो अपने ईश्वर का गुणगान कीजिए और उस से क्षमा याचना कीजिए कि वह प्रायश्चित को स्वीकार करता है।

मक्का शहर के लोग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को बहुत ज़्यादा सताते थे इसलिए वह अपनी जन्मस्थली व वतन को छोड़ कर मदीना पलायन करने पर मजबूर हुए और वहीं बस गए। लेकिन चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम हमेशा उस दिन के इंतेज़ार में थे कि दुबारा मक्का पहुंचे यहां तक कि नस्र नामक सूरा नाज़िल हुआ और इसमें ईश्वर ने बहुत बड़ी शुभसूचना दी। पैग़म्बरे इस्लाम इस शुभसूचना से बहुत प्रसन्न हुए और मुसलमानों को इस बारे में बताया। सभी सुनकर ख़ुश हुए और इतिहास के उस उज्जवल दिन के आगमन का बड़ी उत्सुकता से इंतेज़ार करने लगे यहां तक कि आठवीं हिजरी क़मरी में ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम को आदेश पहुंचा कि मुसलमानों को लेकर मक्का पर चढ़ाई करें। इस चढ़ाई से मुसलमानों को फ़त्ह मिली  और इस प्रकार नस्र नामक सूरे में जिस कामयाबी की ईश्वर ने शुभसूचना दी थी वह हासिल हुयी। पवित्र क़ुरआन की भविष्यवाणी सच्च साबित हुयी। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन के चमत्कार का आयाम भी स्पष्ट हुआ।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के जीवन काल में बहुत सी फ़त्ह हासिल हुयी लेकिन जिस घटना की ओर नस्र सूरे में साफ़ शब्दों में संकेत किया गया है वह मक्का की फ़त्ह है। क्योंकि मक्का की फ़त्ह इस्लाम के आरंभिक काल की फ़त्ह में सबसे अहम है। मक्का की फ़त्ह ने इस्लामी इतिहास में नया अध्याय जोड़ा और क़ुरैश के अनेकेश्वरवादियों का प्रतिरोध बीस साल बाद ख़त्म हो गया।

मक्का की फ़त्ह का महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमान सिपाहियों को आदेश दिया था कि किसी भी व्यक्ति का ख़ून न बहे और किसी को परेशान न किया जाए। इस महासफलता के बीच पैग़म्बरे इस्लाम पवित्र मक्का में दाख़िल हुए और काबा पहुंचे। वहां पहुंच कर पैग़म्बरे इस्लाम ने बुतों या मूर्तियों को तोड़ डाला। उसके बाद पवित्र काबा के बग़ल में खड़े होकर लोगों से सवाल किया, “आज तुम लोग मुझसे क्या अपेक्षा रखते होॽ लोगों ने कहा, माफ़ी। पैग़म्बरे इस्लाम के आखों से आंसू बहने लगे और लोग भी रोने लगे।”

हालांकि मक्के के अनेकेश्वरवादियों ने पैग़म्बरे इस्लाम को बहुत सताया था लेकिन इसके जवाब में पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें माफ़ करते हुए कहा, “मैं तुम्हारे बारे में वही कर रहा हूं जो मेरे भाई यूसुफ़ ने कहा था, आज किसी तरह की मलामत व फटकार नहीं है। ईश्वर आपको क्षमा करे वह सबसे ज़्यादा दयालु है।” इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने सबको माफ़ कर दिया और कहा, “तुम सबके सब आज़ाद हो जहां चाहो चले जाओ।”

इस तरह मक्का बिना किसी रक्तपात व जंग के फ़त्ह हो गया। पैग़म्बरे इस्लाम की ओर से इस सर्वक्षमा का लोगों के मन पर इतना गहरा असर पड़ा कि वह गुट गुट की शक्ल में आकर इस्लाम स्वीकार करने लगे। इस महा सफलता से पूरे अरब प्रायद्वीप में कांति आ गया और इस भूमि से मूर्ति पूजा व अनेकेश्वरवाद की बिसात उलट गयी। इस तरह इस्लाम की आवाज़ सभी जगह पहुंची और उसका क़दम जम गया। इसके बाद बाक़ी दुनिया में इस्लाम की आवाज़ पहुंची।     

 

इस बात में शक नहीं कि दुश्मन पर जीत के लिए फ़ौज व संसाधनों की ज़रूरत होती है लेकिन इस मूल बिन्दु को नहीं भूलना चाहिए कि वास्तविक मदद ईश्वर की ही ओर से होती है। जब यह दृष्टिकोण होगा तो लोग सफलता पाकर घमंड नहीं करेंगे और उनमें अहं पैदा नहीं होगा। नस्र सूरे की पहली आयत में ईश्वर की मदद और फिर उससे मिलने वाली फ़त्ह का उल्लेख है। उसके बाद लोगों के समूह में इस्लाम स्वीकार करने का उल्लेख है। मदद, फ़त्ह और लोगों का गुट गुट ईश्वर के धर्म को स्वीकार करना ये सब बिन्दु आपस में जुड़े हुए हैं। जब तक ईश्वर की मदद न होती फ़त्ह नहीं मिलती और जब तक फ़त्ह न मिलती उस वक़्त तक रास्ते में मौजूद रुकावट दूर नहीं होती और लोग समूह की शक्ल में इस्लाम को स्वीकार नहीं करते। इस मदद के बाद ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम को आदेश देता है कि वह उसका गुणगान करें और उसे हर प्रकार की त्रुटि से पाक समझें और क्षमा याचना करें। नस्र सूरे की आयतें इस बिन्दु का उल्लेख करती हैं कि लोगों को यह नहीं ख़्याल करना चाहिए कि ईश्वर अपने साथियों को अकेला छोड़ देता है और उन्हें यह भी समझना चाहिए कि ईश्वर अपने वचन को पूरा करता है और बंदों पर यह अनिवार्य है कि वह ईश्वर के सामने अपनी कमियों को स्वीकार करें, उसकी प्रशंसा करें और उसका आभार व्यक्त करें।

इस्लामी इतिहास में है कि जिस वक़्त नस्र सूरा उतरा और पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने साथियों के बीच इसकी तिलावत की तो सब ख़ुश हो गए लेकिन उनके चाचा अब्बास ने जब सुना तो रोने लगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, “हे चाचा क्यों रो रहे हैं?” उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि इस सूरे में आपके स्वर्गवास की ख़बर दी गयी है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, जो आप कह रहे हैं वहीं है।             

 

पवित्र क़ुरआन का 111वां सूरा मसद है जिसका अर्थ है खजूर के पेड़ से निकलने वाले तार से बुनी हुयी रस्सी। इस सूरे के दूसरे नाम ‘तब्बत’ और ‘अबू लहब’ भी है।

मसद सूरा पैग़म्बरे इस्लाम के लोगों को इस्लाम की ओर आमंत्रित करने के आरंभिक दिनों में नाज़िल हुआ और यह अकेला सूरा है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम के एक दुश्मन अबू लहब को सीधे तौर पर धिक्कारा गया है। इस सूरे को पढ़ने से लगता है कि अबू लहब को पैग़म्बरे इस्लाम से विशेष दुश्मनी थी। अबू लहब और उसकी बीवी उम्मे जमील पैग़म्बरे इस्लाम को सताने के किसी भी अवसर से नहीं चूकते थे। इस सूरे में अबू लहब और उसकी बीवी के बुरे अंजाम की सूचना दी गयी है। इस सूरे में ईश्वर कह रहा है, अबू लहब के दोनों हाथ टूट जाएं और उसका सत्यानास हो। न उसका माल ही उसके काम आया और जो उसने कमाया। वह भड़कती हुयी आग में डाला जाएगा और उसकी बीवी भी जो अपने सिर पर ईंधन उठाए फिरती है और उसके गले में बटी हुयी रस्सी है।

अबू लहब हज़रत अब्दुल मुत्तलिब का बेटा और पैग़म्बरे इस्लाम का सगा चाचा था। वह मक्का के कुलीन वर्ग और पैसे वालों में था। वह उस समय से पैग़म्बरे इस्लाम का दुश्मन था जब पैग़म्बरे इस्लाम ने पैग़म्बरी का दायित्व निभाना शुरु किया। अबू लहब पैग़म्बरे इस्लाम को झूठा कहता था और मक्के के अन्य अनेकेश्वरवादियों की तुलना में उसने पैग़म्बरे इस्लाम को सबसे ज़्यादा सताता था। इस्लामी इतिहास में है कि जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम सफ़ा नामक पहाड़ पर गए और ऊंची आवाज़ में कहा, “बहुत अहम ख़बर है।” जब मक्का के लोगों ने यह आवाज़ सुनी तो कहा कि कौन है जो चिल्ला रहा है। किसी ने कहा कि मोहम्मद हैं। यह सुनकर लोग उनके पास पहुंचे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने सवाल किया, “अगर मैं आपको यह सूचना दूं कि आज शाम को या कल सुबह दुश्मनों का लश्कर इस पहाड़ के पीछे से आप पर हमला करने वाला है तो क्या आप लोग मेरी बात मानेंगे?” लोगों ने कहा, हमने आपको कभी झूठ बोलते नहीं पाया।

पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “मैं आप लोगों को मूर्ति पूजने के कारण ईश्वर के कड़े दंड की ओर से चेतावनी दे रहा हूं।” अबू लहब ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि अगर में आपके धर्म को मान लूं तो मुझे दूसरे मुसलमानों की तुलना में क्या विशिष्टता मिलेगी? पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “अगर मेरे धर्म को स्वीकार करेंगे तो आप भी अन्य मुसमलानों में से एक होंगे और किसी प्रकार की कोई विशिष्टता आपको नहीं मिलेगी। क्योंकि मैं जो धर्म लाया हूं वह समानता व भाईचारे का धर्म है। ईश्वर के धर्म में सभी तराज़ू के पलड़ों की तरह एक समान हैं।” यह सुनकर अबू लहब क्रोधित हुआ और उसने बहुत ही बुरे स्वर में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, तुम तबाह हो जाओ और तुम्हारा धर्म मिट जाए।

अबू लहब की इस अपमानजनक बात पर मसद नामक सूरा नाज़िल हुआ और उसकी बात को उसी पर लौटाते हुए इस सूरे में ईश्वर कह रहा है कि अबू लहब के दोनों हाथ टूट जाएं और उसे मौत आए।

अबू लहब पैग़म्बरे इस्लाम के साए की भांति उनके पीछे लगा रहता था। जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम किसी क़बीले को इस्लाम का निमंत्रण देते तो उसी समय अबू लहब इस्लाम के ख़िलाफ़ बोलना शुरु कर देता और कहता था कि वह तुम्हें लात व उज़्ज़ा सहित अन्य मूर्तियों से दूर करना चाहता है। वह तुम्हें गुमराह करना चाहता है। उसकी बात मत सुनो। अबू लहब किसी भी क्षण पैग़म्बरे इस्लाम का विरोध करने से नहीं चूकता था। उसकी ज़बान बहुत ख़राब थी और शायद इस दृष्टि से पैग़म्बरे इस्लाम के दुश्मनों में सबसे बुरा दुश्मन था। यही कारण है कि वह मसद सूरे में अबू लहब और उसकी बीवी के इतने साफ़ शब्दों में धिक्कारा गया है।            

तारिक़ मुहारबी नामक एक व्यक्ति कहता है कि मैं ज़िल मुजाज़ नामक बाज़ार में था। यह बाज़ार मक्का में अरफ़ात के मैदान के निकट स्थित है। अचानक मैंने एक व्यक्ति को देखा जो ऊंची आवाज़ में कह रहा था कि हे लोगो अगर ला इलाहा इल्लल लाह अर्थात ईश्वर के सिवा कोई पूज्य नहीं कहो तो मुक्ति पा जाओगे। उसके पीछे एक व्यक्ति को देखा जो पत्थर से उसके पैर पर इस तरह मार रहा था कि पैर से ख़ून बह रहा था और पत्थर मारने वाला व्यक्ति चिल्लाकर कह रहा था, “हे लोगो! यह व्यक्ति झूठा है। इसकी बात मत मानो!” मैंने पूछा कि यह जवान कौन है? लोगों ने बताया कि मोहम्मद। जो पैग़म्बर होने का एलान कर रहे हैं और यह बूढ़ा व्यक्ति उनका चाचा है जो उन्हें झूठा कह रहा है।

पवित्र क़ुरआन अबू लहब और उसकी बीवी के बारे में कह रहा है कि दोनों ही नरक में जाएंगे। अबू लहब की बीवी उम्मे जमील बनी उमय्या से थी और अबू सुफ़्यान की बहन थी। इस्लामी इतिहास में है कि उम्मे जमील पैग़म्बरे इस्लाम को सताने के लिए कांटों को रस्सियों में बांध कर रात में उन रास्तों में बिछा देती थी जिस पर से पैग़म्बरे इस्लाम का गुज़र होता था। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कह रहा है कि वह भी प्रलय के दिन गर्दन मे रस्सी बांधे और पीठ पर गट्ठर लादे नरक में डाली जाएगी।

 

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