रवीवार- 29 नवम्बर
29 नवम्बर 2012 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने फ़िलीस्तीन को ग़ैर सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा दिया।
29 नवम्बर सन 1520 ईसवी को स्पेन के नाविक फ़र्डिनेंड मेजालन ने एक जल डमरु को पार किया जिसे आज उन्हीं के नाम पर मेज़ालन जल डमरु के नाम से जाना जाता है। इस तरह वे एटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर में प्रविष्ट हो गये। मेज़ालन उस समय दक्षिणी अमरीका के तटवर्ती क्षेत्रों में समुद्र संबंधी खोज में लगे हुए थे। वे आज के दिन इस जल डमरु की ओर आकर्षित हुए और इस मार्ग से प्रशांत महासागर पहुँच गये।
29 नवम्बर सन 1643 ईसवी को इटली के विख्यात संगीतकार क्लॉडियो मोंटवोर्डी का 67 वर्ष की आयु में निधन हुआ। उन्हें बचपन से ही संगीत से गहरा लगाव था और युवाकाल तक पहुँचते- पहुँचते वे इस क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गये। उनकी अधिकांश रचनाएं वैसे तो नष्ट हो गयी हैं किंतु उनकी एक महत्वपूर्ण रचना पाप की ताजपोशी अब भी सुरिक्षत है।
29 नवम्बर सन 1943 ईसवी को योगोस्लाविया में टीटो के नेतृत्व में फ़ाशिज़्म विरोधी और स्वतंत्रता प्रेमी मोर्चा बना। इस संगठन के सदस्यों ने जर्मनी की सेना के हाथों योगोस्लाविया के अतिग्रहण के दौरान जर्मनी की सेना पर कुठारा घात लगाया और सन 1944 में सोवियत संघ की लाल सेना की सहायत से जर्मन सेना को अपने देश से मार भगाया। जर्मन सेना के निष्कासन के बाद टीटो योगोस्लाविया की सत्ता में पहुँचे और युद्ध के बाद की पहली सरकार का गठन किया।
29 नवम्बर वर्ष 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने कमज़ोर बहुसंख्या के साथ फ़िलिस्तीन को यहूदी व फ़िलिस्तीनी भागों में बांट दिया। यह अन्यायपूर्ण व आतार्किक निर्णय पश्चिमी सरकारों विशेषकर अमरीका व ज़ायोनियों के प्रभाव के अंतर्गत किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस प्रस्ताव के अनुसार बैतुलमुक़द्दस या यरूश्लम को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र घोषित किया गया। फिलिस्तीन के विभाजन के प्रस्ताव द्वारा इस क्षेत्र में एक ज़ायोनी शासन के गठन को औपचारिकता दे दी गयी किंतु इससे अरबों में आक्रोश फूट पड़ा। ब्रिट्रेन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का विरोध करने के बहाने से किंतु ज़ायोनी शासन की स्थापना के लिए भूमिका तैयार करने के उद्देश्य से, 15 मई वर्ष 1947 को अपनी सेना फिलिस्तीन से वापस बुला ली जिसके तत्काल बाद ब्रिटिश सैनिकों द्वारा खाली की गयी छावनियों में ज़ायोनियों ने क़ब्ज़ा कर लिया और ज़ायोनी शासन के गठन की घोषणा कर दी। इसके बाद अरबों और ज़ायोनी शासन के मध्य पहला युद्ध हुआ।
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9 आज़र सन 1317 हिजरी शम्सी को ईरान के संघर्षकर्ता, स्वतंत्रताप्रेमी और साहसी धर्मगुरु आयतुल्ला सैयद हसन मुदर्रिस को ईरान के तत्कालीन अत्याचारी शासक रज़ाख़ान के कारिन्दों ने पुर्वोत्तरी नगर काशमर में शहीद कर दिया। वे 1249 में ईरान के अरदिस्तान शहर के निकट पैदा हुए। आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए इराक़ के नजफ़ नगर गये। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के बाद वे स्वदेश लौटे। देश में तत्कालीन शासक के अत्याचारों से क्षुब्ध होकर उन्होंने सरकार के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर दिया और जब उन्हें तेहरान की जनता ने संसद के लिए अपना प्रतिनिधि चुना तो उन्होंने यह संघर्ष और भी तेज़ कर दिया। वे ईरान को विदेशी साम्राज्य के पंजों से छुड़ाने लिए निरंतर प्रयासरत रहे। इसी लिए ईरान में ब्रिटेन का पिटठू रज़ाख़ान पहलवी उनका क्षत्रु हो गया। और उसने कई बार आयतुल्लाह मुदर्रिस पर प्राणघातक आक्रमण करवाया। वे धर्म को राजनीति से अलग रखने के विरोधी थे वे कहते थे, हमारा धर्म ही हमारी राजनीति है। अंतत: रज़ाख़ान ने उन्हें आज के दिन शहीद करवा दिया।
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13 रबीउस्सानी सन 218 हिजरी क़मरी को विख्यात अरब इतिहासकार इब्ने हेशाम का निधन हुआ उनका पूरा नाम अबू मोहम्मद अब्दुल मलिक बिन हेशाम था।
वे इराक़ के दक्षिणी नगर बसरा में जन्में थे। उन्होंने अपनी आयु का अधिकांश भाग पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स के जीवन के बारे में अध्ययन करने में बिताया। वे अरबी साहित्य में भी पूर्णत: दक्ष थे। उन्हें ज़्यादा ख्याति अस्सीरतुन्नबवीया नामक पुस्तक लिखने के बाद मिली। यह पुस्तक पैग़म्बरे इस्लाम की जीवनी के मुख्य स्रोतों में गिनी जाती है।
13 रबीउस्सानी सन, 356 हिजरी क़मरी को मोइज़्ज़ुददौला दैलमी का निधन हुआ उनका असली नाम अबुल हसन अहमद बिन बूये था। वे आले बूये के नाम से प्रसिद्ध तीन भाइयों में से एक थे जिन्होने सन 334 हिजरी क़मरी में बग़दाद को जीत कर अब्बासी शासक अलमुसतकफ़ी को अपने अधीन कर लिया था। इस अब्बासी शासक के काल में जनता की स्थिति दयनीय थी। सरकार जनता को अत्याचारों और अतिक्रमणों का निशाना बना रही थी किंतु मुइज़्ज़ुद्दोला का बग़दाद पर अधिकार हो जाने के बाद उनके 22 वर्षीय शासनकाल में जनता की स्थिति बेहतर हुई। मुइज़्ज़ुद्दौला ने संस्कृति और ज्ञान के मैं क्षेत्रों में भी प्रभावशाली काम किये जिसके परिणाम स्वरुप लोगों में शिक्षण और प्रशिक्षण का चलन हुआ तथा इसी वातावरण के परिणाम स्वरूप अनेक विद्वान उमर कर सामने आए।