Nov २६, २०१६ १७:१५ Asia/Kolkata
  • मंगलवार- पहली दिसम्बर

पहली दिसंबर सन 1825 ईसवी को रूस के बाहर निकल जाने के साथ ही यूरोपीय देशों का पवित्र संघ नामक गठबंधन टूट गया।

यह संघ वर्ष 1815 में नेपोलियन की पराजय और वियना कान्फ्रेन्स के बाद रूस, आस्ट्रिया और प्रॉस के राजाओं के बीच समझौते पर हस्ताक्षर से अस्तित्व में आया था। इस समझौते के आधार पर तीन शासक प्रतिबद्ध हुए थे कि वे ईसाई धर्म के नियमों का पालन करेंगे। कुछ समय बाद दूसरे यूरोपीय देश भी इस संघ में शामिल हो गए। समझौते के भ्रामक नियमों का प्रयोग यूरोपीय देशों में स्वतंत्रता प्रेमी आंदोलनों को कुचलने के लिए किया गया।

 

पहली दिसंबर सन 1897 ईसवी को इटली और विश्व के अत्यंत छोटे गणराज्य सैन मैरीनो के मध्य, जो इटली के बीच में स्थित है,  अनाक्रमण संधि हुई। सैन मैरीनो का क्षेत्रफल 61 वर्ग किलोमीटर है।

 

पहली दिसम्बर सन 2011 को संयुक्त राष्ट्र की नस्ली भेदभाव उन्मूलन समिति के अध्यक्ष पद पर भारतीय उम्मीदवार दिलीप लाहिरी दोबारा निर्वाचित हुए। तीन साल का उनका दूसरा कार्यकाल 20 जनवरी, सन् 2012 से शुरू हुआ। संयुक्त राष्ट्र में इस पद के लिए हुए निर्वाचन में लाहिरी के पक्ष में 147 मत पड़े। समिति के अन्य सदस्य रोमानिया, कोलम्बिया, दक्षिण अफ्रीका, बुरकीना फासो, ग्वाटेमाला तथा अमेरिका से हैं।

 

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11 आज़र सन 1300 हिजरी शम्सी को ईरान के स्वतंत्रता संग्रामी धर्मगुरु मिर्ज़ा कूचक ख़ान जंगली को सोवियत संघ तथा ब्रिटेन के इशारे पर तत्कालीन ईरानी तानाशाह रज़ख़ान के पिटठुओं ने शहीद कर दिया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे स्वतंत्रता अभियान से जुड़ गये। प्रथम विश्व युद्ध के काल में कूचक ख़ान ने ईरान को विदेशियों के चंगुल में फँसा हुआ देखा तो उनके मन में अत्याचार और साम्राज्यवाद का मुक़ाबला करने के लिए संघर्षकर्ताओं को संगठित करने का विचार उत्पन्न हुआ। सन 1919 ईसवी में ईरान और ब्रिटेन के मध्य एक समझौता हुआ जिसके आधार पर ईरान में ब्रिटेन के अधिकार बढ़ गये। इसके चलते ईरान में विरोध और भी बढ़ गया। मिर्ज़ा कूचक ख़ान ने सेना के मुक़ाबले मे मोर्चे बनाए किंतु ब्रिटेन और पूर्व सोवियत संघ के षडयंत्रों से उनके साथियों में फूट पड़ गयी। जिसके बाद मिर्ज़ा कूचक ख़ान गिरफतार हुए और फिर बाद में वह शहीद कर दिए गये।

मिर्ज़ा कूचक ख़ान जंगली

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15 रबीउस्सानी सन 552 हिजरी क़मरी को विख्यात मुस्लिम धर्मगुरु फज़्ल बिन तबरसी का निधन हुआ। वे बड़े ही लोकप्रिय धर्मगुरुओं में थे। बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने उनसे शिक्षा प्राप्त की उनके शिष्यों में कुत्ब रावन्दी आदि की ओर संकेत किया जा सकता है। तबरसी इसी प्रकार अपने समय के मान्य न्यायधीशों में गिने जाते थे। उन्होंने कुरआन की व्याख्या पर आधारित पुस्तक मजमउल बयान की रचना की। इसी प्रकार उन्होंने इसी विषय में दूसरी पुस्तक जवामेऊल जामे भी लिखी।

 

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