Dec ११, २०१६ १५:२८ Asia/Kolkata
  • सोमवार - 14 दिसम्बर

2008, इराक़ पत्रकार मुन्तज़र अल-ज़ैदी ने बग़दाद में एक प्रेस कांफ़्रेंस के दौरान अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश को जूता फेंक कर मारा।  

14 दिसम्बर सन 1911 ईसवी को वर्षो के प्रयासों के बाद दक्षिणी धुव्र की खोज की गयी । पहली बार कुछ खोजकर्ताओं ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया। नॉर्वे के नाविक और ध्रुव विशेषज्ञ रोआल एमन्सन तथा उनके साथियों ने दक्षिणी ध्रुव पर नार्वे का झंडा फहराया ।दक्षिणी थ्रुव से वापसी के समय यह लोग बर्फ के तूफ़ान में फॅस गये और वहीं उनकी मृत्यु हो गयी।

 

14 दिसम्बर सन 1805 ईसवी को ब्रिटेन के एक लोहार जार्ज ब्रैंन्कलन ने पत्थर के कोयले की खोज की। इससे पहले तक इस कोयले को निर्माण कार्य में प्रयोग किया जाता था। किंतु इस लोहार ने पता लगाया कि यह कोयला जलते समय अत्यधिक ऊष्मा पैदा करता है। इस प्रकार से उर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत मनुष्य को मिल गया।

 

14 दिसम्बर सन 1981 ईसवी को ज़ायोनी शासन की संसद ने औपचारिक रुप से सीरिया की गोलान पहाड़ियों को अपने अधिकार में कर लिया। ज़ायोनी शासन ने वर्ष 1967 में अरबों के साथ युद्ध के दौरान सीरिया के गोलान क्षेत्र पर अवैध अधिकार किया था।

 

14 दिसंबर वर्ष 1546 ईसवी को डेनमार्क के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और गणितज्ञ टैको ब्राहे tycho brahe का जन्म हुआ। वे कुछ समय तक जर्मनी में शिक्षा प्राप्त करते रहे बहुत अधिक शोध व अध्ययन के बाद उन्होंने एक नये तारे की खोज की। कुछ दिनों के बाद डेनमार्क की सरकार ने वोन नामक छोटे से द्वीप को उन्हें वेद्यशाला बनाने के लिए दे दिया। वहां पर वेद्यशाला का निर्माण किया और बीस वर्षों तक अथक प्रयास के बाद उन्होंने इस वेद्यशाला को आधुनिक बनाया। उन्होंने वेद्यशाला के निर्माण में उपकरणों का प्रयोग बड़ी ही सूक्ष्मता से किया और कैप्लर तथा अन्य खगोलशास्त्रियों के लिए नये तारों की खोज के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वर्ष 1601 में टैको ब्राहे का निधन हो गया।

 

14 दिसंबर वर्ष 1995 ईसवी को पेरिस सम्मेलन में बोस्निया की शांति के लिए डेटन नामक समझौते को अंतिम रूप दिया गया। अमरीका के डेटन में होने वाले इस समझौते के कारण इसका नाम डेटन पड़ गया ।इस पर 21 नवंबर वर्ष 1995 को बोस्निया हिर्ज़ेगोविना के तत्कालीन राष्ट्रपति और सर्बिया तथा क्रोएशिया के राष्ट्राध्यक्षों के इस्ताक्षर हुये। इस समझौते के अंतर्गत सर्बों द्वारा मुसलमानों का जनसंहार रुक गया जिसमें 25 हज़ार लोग मारे गये थे किन्तु सर्बों और क्रोएशियाइयों ने इस समझौते से विशिष्टता प्राप्त की। डेटन समझौते के आधार पर बोसनिया में मुसलमानों के भारी संख्या में होने के बावजूद इस गणतंत्र को दो क्षेत्रों मुसलमान- तथा क्रोएशिया व सर्ब बोस्निया में विभाजित कर दिया। इन दोनों भागों पर केन्द्र की कमज़ोर सरकार निगरानी रखती है। इस समझौते के आधार पर बोस्निया की केन्द्रीय सरकार में तीनों जाति के सदस्यों पर आधारित त्रिपक्षीय राष्ट्रपति परिषद का गठन किया गया। कई वर्ष बीतने के बावजूद 12 लाख मुसलमानों की स्वदेश वापसी का मुद्दा अभी तक हल नहीं हो सका और इस समझौते के कारण इस देश में आर्थिक व राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न हो गयी।

 

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28 रबीउस्सानी सन 638 हिजरी क़मरी को प्रसिद्ध विद्वान व तत्वदर्शी अबू बक्र मुहियुद्दीन मुहम्मद का जो इब्ने अरबी के नाम से प्रसिद्ध थे, दमिश्क़ में निधन हुआ। इब्ने अरबी सन 560 हिजरी क़मरी में एंडलूसिया में जन्मे जिसे अब स्पेन कहा जाता है। वे अपने समय में प्रचलित शिक्षा प्राप्त करने के बाद आत्मनिरक्षीण व आत्मशुद्धि तथा अध्यात्म में लीन हो गए। उन्होंने विभिन्न देशों और नगरों की यात्रा की जिनमें ट्यूनीशिया, मक्का, बग़दाद और हलब शामिल हैं। इब्ने अरबी को इन सभी जगहों पर लोगों ने बहुत सम्मान दिया। उन्होंने विभिन्न विषयों पर 500 से अधिक छोटी बड़ी पुस्तकें लिखी हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध पुस्तक तफ़सीरे कबीर है। उनकी अन्य पुस्तकों में “फ़ूसूसुल हेकम” का नाम लिया जा सकता है जिसकी विभिन्न व्याख्याएं लिखी गई हैं।

 

28 रबीउस्सानी वर्ष 912 हिजरी क़मरी को प्रसिद्ध ईरानी शायर मिर्ज़ा शरफ़ जहान क़ज़वीनी, का क़ज़वीन नगर में जन्म हुआ। उन्होंने शीराज़ के प्रसिद्ध विद्वान अमीर ग़यासुद्दीन से शिक्षा प्राप्त की। मिर्ज़ा शरफ़ जहान विभिन्न ज्ञानों सहित साहित्य, संगीत इत्यादि में भी निपुण थे। वह अध्यात्म के उच्च स्थान के स्वामी होने के अतिरिक्त एक अच्छे शायर भी थे। मिर्ज़ा शरफ़ जहान का एक पद्य संकल्न भी है जिसका हस्तलिखित नुस्ख़ा भी मौजूद है।

 

28 रबीउस्सानी सन 1336 हिजरी क़मरी को प्रसिद्ध ईरानी साहित्यकार अदीबुल ममालिक फ़राहानी का देहान्त हुआ। उनको पुस्तकें लिखने में बहुत रूची थी इसीलिए उन्होंने अदब, मजलिस और आफ़ताब नामक समाचार पत्रों के प्रकाशन की ज़िम्मेदारी स्वयं ले ली थी। इसके अतिरिक्त वे राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। वह संविधान क्रांति के दौरान क्रांतिकारी संघर्षकर्ताओं से जा मिले और स्वतंत्रताप्रेमियों की सहायता की। अदीबुल मुमालिक फ़राहानी शेर कहने में दक्ष व निपुण थे और पुराने कवियों की शैली का बहुत अच्छे ढंग से अनुसरण करते थे। वह उन शायरों में शामिल थे जिन्होंने अपने शेरों और कविताओं में सामाजिक, राजनैतिक और विशेषकर देश प्रेम के विषयों को शेर का रूप दिया।

 

 

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