Jan २४, २०१७ १६:३२ Asia/Kolkata

महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन की कुछ आयतों में मोमिनों से बहुत से वादे किये हैं।

उनमें से एक वादे को पवित्र कुरआन के सूरे कसस की सातवीं आयत में बयान किया गया है। इस आयत के अनुसार महान ईश्वर हज़रत मूसा की मां से वादा करता है कि वह अपने बच्चे को पानी में डाल दें और चिंतित न हों क्योंकि वह हज़रत मूसा को उनकी मां को लौटा देगा और हज़रत मूसा को अपना पूट बनायेगा। इस आयत में हम पढ़ते हैं “हमने मूसा की मां के दिल में डाल दिया कि मूसा को दूध पिलाओ और जब उसे लेकर डरो तो उसे नदी में छोड़ दो और न डरो और न दुःखी हो कि हम उसे तुम्हें लौटा देंगे और उसे पैग़म्बर बनायेंगे।“

महान ईश्वर उसी वक्त सूरे कसस की 13वीं आयत में मोमिनों अर्थात भले बंदों को दिये गये वादों को पूरा करने की ओर संकेत करते हुए और कहता है” हमने उसे यानी मूसा को उसकी मां की ओर पलटा दिया ताकि उसकी आंखों को ठंडक मिले और दुःखी न हो और यह जान ले कि ईश्वर का वादा सच्चा है।“

महान ईश्वर के वादे सबसे सच्चे वादे हैं और उसके वादों पर भरोसा करना ईमान की निशानी है परंतु पवित्र कुरआन और दूसरी विश्वस्त आसमानी किताबों में जो ईश्वरीय वादे हैं उन पर अधिकांश लोग ध्यान नहीं देते हैं। इंसान प्रायः उन्हीं बातों पर भरोसा करता है जो उसकी समझ में आती हैं और महान ईश्वरीय परम्परा से निश्चेत है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं हिसाब- किताब की एक ग़लती यह है कि इंसान केवल भौतिक चीज़ों तक सीमित हो जाये यानी आध्यात्मिक कारकों, ईश्वरीय परम्पराओं, उन ईश्वरीय परंपराओं जिनकी सूचना ईश्वर ने दी है और वे चीज़ें जो आंख से दिखाई नहीं देती हैं इंसान उन सबकी अनदेखी कर दे और यह एक बहुत बड़ी गलती है।

पवित्र कुरआन की आयतों, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में महान ईश्वर के वादों पर भरोसा करने पर बहुत बल दिया गया है। वरिष्ठ नेता के अनुसार ईश्वर का एक वादा यह है कि अगर सत्य पर डटा रहा जाये और प्रतिरोध किया जाये तो सफलता अवश्य मिलेगी। वह इस वादे को अपना नहीं बल्कि ईश्वर का वादा मानते और कहते हैं” कुरआन ने हमें शिक्षा दी है कि अगर धैर्य करोगे, प्रतिरोध करोगे, अगर प्रयास करोगे और सही मार्ग से नहीं हटोगे तो तुम सफल व कामयाब होगे। यह कुरआन का पाठ है। कुरआन हमसे कहता है कि अगर इस बात और इस उद्देश्य पर ईमान रखोगे और इसी ईमान की दिशा में कदम बढ़ाओगे तो निःसंदेह तुम सफल होगे।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि यह बड़ा पाठ कि ईश्वर के वादे के प्रति संतोष और उसके सच्चे वादों को विस्तृत करना चाहिये और इन पाठों को विस्तृत करने का बेहतरीन माध्यम कुरआन है। अतः जितना हो सके राष्ट्रों के मध्य कुरआन से प्रेम और उसमें चिंतन- मनन करने को प्रसारित करना चाहिये। ईश्वर पर ईमान अधिक होगा और राष्ट्र अधिक जागरुक हो जायेंगे।

मोमिनीन से महान ईश्वर ने जो वादे किये हैं उनमें से एक यह है कि शत्रुओं और अत्याचारियों के मुकाबले में अंतिम जीत उन्हीं की होगी। जो लोग यह नहीं चाहते कि ईश्वर का धर्म फैले और वे बुराई, भ्रष्टाचार और निर्दोषों पर अत्याचार करने के प्रयास में हैं।

महान ईश्वर ने वादा किया है कि ऐसे लोगों के मुकाबले में प्रतिरोध करने और डट जाने से सफलता मिलती है। वरिष्ठ नेता इस संबंध में महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते और कहते हैं “अलबत्ता प्रयास और कोशिश  किये बिना और खतरा मोल लिये बिना सफलता संभव नहीं है। ईश्वर ने प्रयास के बिना किसी को भी सफलता का वादा नहीं किया है केवल मोमिन होना काफी नहीं है, प्रयास ज़रूरी है धैर्य ज़रूरी है।“

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने दुश्मनों के मुकाबले में पैग़म्बरों के प्रतिरोध के जारी रहने की ओर संकेत किया जिसे सूरे इब्राहीम की 12वीं आयत में बयान किया गया है। महान ईश्वर फरमाता है” हम अर्थात पैग़म्बर निश्चित रूप से तुम्हारी यातनाओं के मुकाबले में धैर्य करेंगे।“ यह अपने विरोधियों के मुकाबले में पैग़म्बरों का तर्क और बात है। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं पैग़म्बरों के साथ जो कुछ हुआ उसके साथ आज पैग़म्बरों की बात पूरी दुनिया के लिए पाठ है। पैग़म्बरों की बात आगे बढ़ी, फिरऔनियों व अत्याचारियों की बात आगे न बढ़ी।

वरिष्ठ नेता इस संबंध में जायोनी शासन की विस्तारवादी कार्यवाहियों के मुकाबले में फिलिस्तीनी प्रतिरोध की सफलता की ओर संकेत करते और फिलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध के मुकाबले में ईश्वरीय वादों को पूर्णरूप से व्यवहारिक होते हुए देखते हैं। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं। हालिया वर्षों में फिलिस्तीन में मिलने वाली सफलताएं यहां तक कि क्षेत्र में कुछ इस्लामी जागरुकता, फिलिस्तीनी लोगों और गुटों के प्रतिरोध का परिणाम है और भविष्य में मिलने वाली सफलताएं और ईश्वरीय वादों का व्यवहारिक होना भी इसी प्रतिरोध में नीहित है।“

अंत में कहा जा सकता है कि ईश्वरीय वादों पर भरोसा करना तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता की निशानी है। मोमिनों में यह विशेषताएं पायी जाती हैं। इस आधार पर वे आराम से हैं और उनका दिल संतुष्ट है और उनका भरोसा दूसरों से अधिक है। वे जानते हैं कि अगर सही तरह से ईश्वर की बंदगी करेंगे और पैग़म्बरों ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चलेंगे तो अंत में वे सफल होंगे और उन्हें महान ईश्वर के बड़े वादे के रूप में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

वरिष्ठ नेता ने पवित्र कुरआन की आयतों की ओर संकेत करके कहा” ईश्वर ने सूरे मोहम्मद की सातवीं आयत में फरमाया है” हे ईमान लाने वालों अगर ईश्वर अर्थात उसके धर्म की सहायता करोगे तो वह तुम्हारे कदमों को सुदृढ़ करेगा।“ क्या इससे भी अधिक स्पष्ट चाहिये? अगर आप ईश्वर के मार्ग में कदम बढायेंगे और ईश्वर के धर्म की सहायता करेंगे तो ईश्वर आपकी मदद करेगा। यह ईश्वरीय परम्परा है। यह परिवर्तित नहीं होगी। व लन तजिदा लेसुन्नतिल्लाह तबदीला” ईश्वरीय परंपरा में कोई परिवर्तन नहीं पाओगे।

वरिष्ठ नेता  ईरान में स्वर्गीय इमाम खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति की सफलता को ईश्वरीय वादे के व्यवहारिक होने का एक उदाहरण मानते हैं और 2500 वर्षीय अत्याचारी राजशाही व्यवस्था के मुकाबले में ईरानी लोगों के प्रतिरोध को अंतिम सफलता की भूमिका बताया। वरिष्ठ नेता ने इस विषय के बारे में स्पष्ट किया कि मैंने भी ईश्वरीय वादे को व्यवहारिक होने का अनुभव किया। भौतिक दुनिया में, उस दुनिया में जो बड़ी शक्तियों के वर्चस्व में है, इस्लाम, इस्लामी शिक्षाओं और चारों ओर से इस्लामी मूल्यों की विरोधी दुनिया में कि इस्लाम के आधार पर एक व्यवस्था अस्तित्व में आये वह भी उस बिन्दु पर जहां हर जगह से अधिक दुनिया की बड़ी शक्तियों का प्रभाव था और वे मौजूद थीं। यह विचित्र बात है हमारे और आपके लिए सामान्य बात हो गयी है। यह वही ईश्वरीय वादे का व्यवहारिक होना है। ईरानी राष्ट्र डगमगाया नहीं, इतने सारे दबाव, इतने सारे षडयंत्र, इतनी सारी पीड़ाएं, इतनी सारी पुरुषार्थहीनता ने ईरानी राष्ट्र को विचलित नहीं किया। यह एक ईश्वरीय परंपरा है।“

पैग़म्बरों और आसमानी किताबों के माध्यम से जो वादे विश्व वासियों तक पहुंचे हैं उनमें एक सबसे महत्वपूर्ण अंतिम काल में महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलामा का लोगों के सामने प्रकट होना है। बहुत से लोग अपने 2 धर्मों के अनुसार मानवता के महामुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आगमन की प्रतीक्षा में हैं ताकि वह समस्त इंसानों को अन्याय व अत्याचार से मुक्ति दिलायें और न्याय को सार्वजनिक करें। मुसलमान भी पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के आगमन की प्रतीक्षा में हैं। इस समय चारों ओर अन्याय व अत्याचार फैल गया है दया व प्रेम महत्वहीन हो गया है और वर्चस्ववादी, राष्ट्रों के शोषण व दोहन के प्रयास हैं और बड़े आराम और बड़ी निर्दयता से निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हैं एसे वातावरण में इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की ज़रुरत पहले से अधिक की जा रही है। वरिष्ठ नेता महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम के प्रकट होने को महान ईश्वर के सच्चे वादों में से मानते हैं जो निश्चित रूप से पूरा होकर रहेगा। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं” प्रतीक्षा में रहना चाहिये। मानवीय कारवां के प्रति धर्मों की यह दृष्टि बहुत आशाजनक है। सच में प्रतीक्षा की भावना, महामुक्तिदाता से संपर्क की भावना, उनके प्रकट होने की प्रतीक्षा, उस दिन की प्रतीक्षा में रहना इस्लामी समाज के लिए बहुत बड़ी आशा की किरण है। हम समस्याओं के समाधान और कल्याण की प्रतीक्षा में हैं। स्वयं यह प्रतीक्षा कल्याण है स्वयं यह प्रतीक्षा कल्याण का झरोखा है आशा जनक है, शक्ति व ऊर्जादायक है। यह प्रतीक्षा अकारण व व्यर्थ हो जाने के आभास और भविष्य के प्रति निराश हो जाने की भावना से रोकती है यह प्रतीक्षा मार्ग दर्शन करती है। इमाम ज़मान अलैहिस्सलाम का यह मामला है और आशा है कि महान ईश्वर हमें वास्तिक अर्थों में सच्चा प्रतीक्षक करार देगा और हम इस ईश्वरीय वादे को व्यवहारिक होने को अपनी नज़रों से देख लेंगे।“