मार्गदर्शन-17
पवित्र क़ुरआन ईश्वर की ओर से इंसान को सबसे मूल्यवान तोहफ़ा व बेजोड़ रत्न है।
ईश्वर ने यह तोहफ़ा इंसान के मार्गदर्शन के लिए भेजा है। पवित्र क़ुरआन की प्रकाशमय शिक्षा और उसके स्वच्छ सोते से इंसान के मन को सुकून मिलता है। उसका मन अध्यात्म के ऊंचे क्षतिज के निकट होता है। यह अंतिम आसमानी ग्रंथ अमर चमत्कार है। जिसके तर्क अटूट, अर्थ प्रभावी, शिक्षा ठोस और आदेश इंसान के जीवन के सभी आयाम की वास्तविक ज़रूरतों से समन्वित हैं। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इंसान के मन पर पवित्र क़ुरआन के आश्चर्यजनक प्रभाव के बारे में कहते हैं, “प्रियजनो! क़ुरआन प्रकाश है, जिससे इंसान के मन व आत्मा का मार्गदर्शन होता है। अगर क़ुरआन से लगाव पैदा किया तो आप अपने मन में सुकून का आभास करेंगे, बहुत सी भ्रान्तियां व बुराई इंसान के मन से दूर हो जाती है। क़ुरआन की बरकत से इंसान भ्रांतियों के दलदल और ग़लतियों से निकल कर मार्गदर्शन पाता है।”
इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत सी ग़लतियां करता है। ऐसा बहुत होता है कि वह ग़लतियों व गुमराही में डूबा होता है और उससे निकलने के लिए किसी मज़बूत सहारे की तलाश में होता है। इंसान की गुमराही का कारण पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं से दूरी है। क़ुरआन की शिक्षाओं से इंसान में आत्म-पहचान पैदा होती है, इस पहचान से उसकी जागरूकता बढ़ती है और उसे गुमराही से बचाती है। उस समय इंसान का जीवन अर्थपूर्ण हो जाता है और वह जानवरों की हालत से निकल कर इंसान बनता है और उच्च लक्ष्य निर्धारित करता है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई पवित्र क़ुरआन को गुमराही व पथभ्रष्टता से निकलने का साधन बताते हुए कहते हैं, “यह क़ुरआन ईश्वरीय रस्सी है, ठोस रस्सी है कि अगर इसे पकड़ लिया तो इधर उधर भटकने व गुमराही से बचे रहेंगे।”
वरिष्ठ नेता का मानना है कि हम जीवन के मामले, भविष्य, मौजूदा ज़िम्मेदारी, लक्ष्य के निर्धारण और दूसरी बहुत सी चीज़ें नहीं जानते लेकिन क़ुरआन आत्मज्ञान की किताब है। यह हमारे लिए स्पष्ट करती है कि हमारे कर्तव्य क्या हैं, गुमराही में पड़े इंसान को आत्मज्ञान देता है और उसे सही रास्ते पर ले जाता है।
पवित्र क़ुरआन के ज़ुमर सूरे की आयत नंबर 27 में ईश्वर कह रहा है, “हमने इस क़ुरआन में लोगों के सामने हर तरह की मिसाल पेश की है ताकि लोग नसीहत हासिल करें।” ईश्वर इस आयत में बहुत ही सरल अर्थ में सभी कहानियों व मिसालों का उद्देश्य बयान कर रहा है। इन कहानियों व मिसालों का उद्देश्य इंसान को नसीहत करना है। इस आसमानी ग्रंथ में ईश्वर अत्याचारियों के अंजाम, गुनाह के ख़तरनाक परिणाम, विभिन्न प्रकार की नसीहतें, सृष्टि की व्यवस्था व रहस्य, धर्म के आदेश और जो कुछ इंसान के मार्गदर्शन के लिए ज़रूरी है उसे कहानी, मिसाल और नसीहत के रूप में बयान किया है ताकि हम पाठ लें और ग़लत रास्ते पर न जाएं। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं, “क़रआन हमें हर चीज़ की शिक्षा देता है, क़ुरआन सीखें, क़ुरआन को समझें, क़ुरआन की शिक्षाओं को शक्तिवर्धक व मीठे पेय की तरह मन में उतारें और अपने जीवन को शक्तिशाली व सम्मानित बनाएं।”
इस्लामी इतिहास में मिलता है कि महापुरुष न सिर्फ़ सभी नियमों का पालन करते हुए पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते थे बल्कि आयतों के अर्थ पर इतना ध्यान देते थे कि आयत में वर्णित अर्थ के अनुसार उनके मन में बदलाव आता था। जब शुभसूचना देने वाली आयतों की तिलावत करते थे तो प्रसन्न हो उठते और जब नरक की आग और प्रकोप से संबंधित आयतों की तिलावत करते थे तो वह भीतर से कांप उठते थे और ईश्वर से शरण मांगते थे। इतिहास में है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ख़ुरासान जा रहे थे, उनके साथ सफ़र में चलने वाले यह देखते थे कि इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम बिस्तर पर और जहां भी आराम करते थे, पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते थे और जब भी ऐसी आयत पर पहुंचते जिसमें नरक का वर्णन है तो रोने लगते थे और ईश्वर से स्वर्ग की प्रार्थना करते और नरक की आग से बचने के लिए ईश्वर से शरण मांगते।
पवित्र क़ुरआन में किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं है। इसकी आयतें आपस में समन्वित, अर्थ प्रभावी व सुकून देने वाले हैं। वरिष्ठ नेता क़ुरआन के इस प्रभाव के बारे में कहते हैं, “क़ुरआन हमारा भौतिक व आत्मिक दृष्टि से उत्थान करता है।” वरिष्ठ नेता का मानना है कि पवित्र क़ुरआन आत्मज्ञान, ज्ञान व जीवन की किताब है और राष्ट्रों का जीवन क़ुरआन की शिक्षाओं को समझने और उस पर अमल करने पर निर्भर है। इस बारे में वह बल देते हुए कहते हैं, “लोग अगर न्याय चाहते हैं, अत्याचार से विरक्तता चाहते हैं, तो उन्हें अत्याचार से संघर्ष की शिक्षा क़ुरआन से लेनी चाहिए। लोग अगर ज्ञान चाहते हैं और आत्मज्ञान के ज़रिए अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाना चाहते हैं, अपने लिए कल्याण चाहते हैं, तो इसका रास्ता क़ुरआन के पास है। लोग अगर ईश्वर से संपर्क बनाना चाहते हैं, आत्मा को पाक करना चाहते हैं और ईश्वर का सामिप्य चाहते हैं कि तो उसका साधन क़ुरआन है।” वरिष्ठ नेता जवानों से अनुशंसा करते हैं कि पवित्र क़ुरआन से लगाव पैदा करें। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई जवानों से कहते हैं, “जब भी आप क़ुरआन की आयत पर ध्यान देते हैं तो आपके मन से अज्ञानता की एक परत हट जाती है, मार्गदर्शन का एक सोता आपके मन में फूटता है। क़ुरआन से लगाव, क़ुरआन की सभा का आयोजन, क़ुरआन की समझ, क़ुरआन की आयतों में चिंतन-मनन, ये सब ज़रूरी है।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की बात में महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि उन्हें समाजों की पवित्र क़ुरआन से दूरी पर दुख है। वह साफ़ तौर पर कहते हैं कि मुसलमानों की सारी कमज़ोरी, पिछड़ेपन, नैतिक व जीवन संबंधी मामलों में विचलन, ये सबके सब क़ुरआन पर अमल न करने के कारण हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस्लामी जगत की इन सारी मुश्किलों का हल पवित्र क़ुरआन की ओर लौटने और इस्लामी समाज के क़ुरआन पर अमल करने पर निर्भर है। वह बहुत ही दुखद अंदाज़ में कहते हैं, “इस्लाम का नाम तो हर जगह है, इस्लाम पर गर्व तो हर जगह है, मुसलमान होने का दावा सभी करते हैं, लेकिन जिस चीज़ की ज़रूरत है वह इस्लामी शिक्षाओं में रच बस जाना और क़ुरआन पर अमल करना है तब सही अर्थ में मुसलमान कहलाएंगे। हम क़ुरआन से दूर हैं। अगर एक राष्ट्र क़ुरआन को पहचान ले, तो बहुत सी मुश्किलें उसके लिए आसान हो जाएंगे। उसके लिए आगे बढ़ना आसान हो जाएगा। आप ध्यान दीजिए कि हमारे राष्ट्र ने जिस सीमा तक क़ुरआन पर अमल किया तो यह क्रान्ति की बरकत से है। देखिए हमारे राष्ट्र में कितना बदलाव आया। कितना सम्मान हासिल किया। यह पवित्र क़ुरआन पर थोड़ा सा अमल करने का नतीजा है। क़ुरआन का यह असर है। अगर क़ुरआन पर पूरी तरह अमल हो तो यह राष्ट्र वैसा राष्ट्र होगा जिसकी पवित्र क़ुरआन में ख़बर दी गयी है।”
जी हां क़ुरआन कृपालु ईश्वर का कथन है। उसे पढ़ने और उसकी आयतों को देखने से मन पर जमी ज़न्ग ख़त्म हो जाती है और इसकी हर आयत की तेलावत के ज़रिए इंसान अध्यात्म की एक सीढ़ी चढ़ता है। लेकिन सच्चाई यह है कि मुसलमानों को क़ुरआन को और अहमियत देने की ज़रूरत है। इन दिनों भ्रष्ट गुटों का वजूद में आना जो सबसे घृणित अपराध कर रहे हैं, शुद्ध क़ुरआनी शिक्षाओं और इसके गहरे अर्थ को न समझ पाने के कारण है। वरिष्ठ नेता बल देते हैं, “सच बात तो यह है कि हम अभी भी क़ुरआन से बहुत दूर हैं। हमारे मन में क़ुरआन रच बस जाना चाहिए। अगर हम क़ुरआन से लगाव पैदा कर लें, इसकी शिक्षाओं को मन में उतार सकें, हमारी ज़िन्दगी, हमारा समाज क़ुरआनी हो जाएगा तब हमें किसी तरह के दबाव व नीति निर्धारण की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सही बात यह है कि हमारे मान व आत्मा में क़ुरआन बैठ जाए, हमारी शिक्षाएं क़ुरआन पर आधारित हों।”