ईरानी बाज़ार -8
दुनिया में सबसे पुराने उद्योग में चर्म उद्योग भी है।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, मानव जाति अपने अस्तित्व के आरंभिक दिनों में गर्मी और सर्दी जैसे प्राकृतिक तत्वों से अपने बदन की रक्षा के लिए पशुओं की खाल पहनती थी। समय बीतने के साथ इंसान ने यह सीखा कि किस तरह विशेष रासायनिक प्रक्रिया के ज़रिए खाल को चर्म में बदल कर इस्तेमाल किया जाता है। ईरान जैसे प्रचीन सभ्यता के स्वामी देश में प्रतिमाओं, मोहरों और चित्रों जैसी बरामद चीज़ों से पता चलता है कि लोगों के दैनिक जीवन में चर्म का इस्तेमाल होता था।
ईरान में चर्म उद्योग के तीन हज़ार साल के इतिहास से पता चलता है कि चर्म उद्योग में काम करने वाले चर्म से जूते, पशुओं के लिए लगाम, तस्मा और बर्तन बनाते थे। सफ़वी शासन काल में एंगेलबर्ट कंपफ़र और जान शार्डन जैसे विश्व विख्यात पर्यटकों ने ईरान यात्रा के दौरान अपने यात्रा वृत्तांत में ईरान में चर्म उद्योग की रौनक़ का उल्लेख किया है। फ़्रांसीसी पर्यटक शार्डन ने टैनिंग अर्थात खाल को चर्म में बदलने की प्रक्रिया में अन्य राष्ट्रों की तुलना ईरानियों को अधिक दक्ष बताया है। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में ईरान में साग़री चर्म के नाम से बनने वाले चर्म का विस्तार से वर्णन किया है कि यह चर्म ईरान से भारत और नियर ईस्ट निर्यात होते थे। साग़री चर्म सफ़वी शासन काल में तबरीज़ शहर में उत्पादित होते थे। इस चर्म से जूते और बूट बनाए जाते थे और सफ़वी शासन काल में राजनैतिक हस्तियां और धनवान लोग इस चर्म का इस्तेमाल करते थे। ईरान में हस्तकलाओं में भी चर्म का प्रयोग हुआ है। जैसे जिल्द चढ़ाने, चमड़े पर चित्र और चमड़े की पच्चीकारी में चर्म इस्तेमाल होता था।

ईरान में चर्म उद्योग के इतिहास में तबरीज़, शीराज़ और हमदान शहर की पहचान चर्म उत्पाद के केन्द्र के तौर पर रही है। 1779 से 1925 के बीच क़ाजारी शासन काल में हमदान शहर हमदानी चर्म के नाम से मशहूर था और इस समय यह शहर ईरानी सभ्यता व इतिहास के द्वार के नाम से मशहूर है। हमदानी चर्म भेड़-बकरी की खाल से बनता था। क़ाजारी दौर में इस्फ़हान, तबरीज़ और हमदान से रूस, तुर्की और भारत को चर्म का निर्यात होता था।
चर्म तीन प्रकार के होते हैं। एक हलका, दूसरा थोड़ा भारी और तीसरा भारी। हल्का चर्म उस चर्म को कहते हैं जो भेड़-बकरी और मेमने की खाल का होता है। इस प्रकार का चर्म बहुत नर्म व पतला होता है। यही कारण है कि हल्के चमड़े से दस्ताना और पहनने वाली चीज़ें बनती हैं। इसी प्रकार हल्के चर्म जूते के अस्तर के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। थोड़े भारी चमड़े की श्रेणी में मगरमछ का चमड़ा आता है। यह बहुत महंगा होता है इसलिए इसे साज सज्जा की चीज़ों के लिए इस्तेमाल करते हैं। और भारी चमड़ा गाय, भैंस, पड़वा, ऊंट और इन जैसे पशुओं की खाल से बनता है। इस प्रकार का चर्म बहुत मज़बूत होता है। इससे जूता, हैंड बैग, वॉलेट, और तस्मा बनाते हैं। विभिन्न प्रकार के पशुओं में गाय की खाल के भैंस की खाल से पतली और भेड़-बकरी की खाल की तुलना में मोटी होने के कारण सबसे ज़्यादा चर्म उत्पाद में इस्तेमाल होती है।

उल्लेखनीय है कि चर्म उद्योग के बुनाई उद्योग से ज़्यादा पुराने होने के बावजूद इस उद्योग में 2 शताब्दी पूर्व तक बहुत ज़्यादा विकास नहीं हुआ था। चर्म उद्योग में काम करने वाले विभिन्न चरणों में पशुओं की खाल को रासायनिक पदार्थ के ज़रिए उसकी आरंभिक स्थिति से निकाल कर चर्म की हालत लाते थे। खाल को चर्म में बदलने के लिए पहले खाल को उसकी प्राकृतिक अवस्था में लाने के लिए 3 से 6 दिन पानी में रखते हैं ताकि उससे नमक निकल जाए। उसके बाद खाल से बाल और इधर उधर लगे मांस को हटाएं, खाल में 3 से 10 दिन के लिए विशेष प्रकार का रासायनिक पदार्थ या चूना लगाते हैं। इस स्थिति में खाल फूल जाती है और उससे बालों को आसानी से हटाया जा सकता है। इसी प्रकार खाल में मौजूद अतिरिक्त प्रोटीन को ख़त्म करने के लिए फिटकरी, तूतिया और गंधक का इस्तेमाल करते हैं जिससे चमड़े में नर्मी आती है। इसके बाद चमड़े को उसी हालत में बाक़ी रखने के लिए चूना लगाते हैं। इसके बाद विशेष हौज़, में कि जिसमें पानी और बलूत या बबूल की छाल से बना विशेष रासायनिक पदार्थ मिला होता है, खाल को 2 से 10 दिन के लिए रखते हैं ताकि वह घोल अच्छी तरह खाल में अवशोषित हो जाए। इसके बाद खाल को सुखाते हैं। इस प्रक्रिया से प्राप्त चर्म को दो दिन पानी और नमक के घोल में 2 दिन रखते हैं ताकि नमक धीरे-धीरे खाल में अवशोषित हो जाए इससे चर्म खराब नहीं होता। फिर दुबारा चर्म को धूप में सुखाते हैं। इस दौरान जब चर्म आधा सूखा होता है उसे विशेष प्रकार के पत्थर से घिसते हैं ताकि उस पर चिपका हुआ नमक निकल जाए। उसके बाद चर्म को धूप में रखते हैं ताकि पूरी तरह सूख जाए।

इन दिनों चर्म विभिन्न रंगों में बाज़ार में मिलता है लेकिन इस उद्योग के कुछ माहिरों का मानना है कि चर्म का नारंगी रंग उसकी अस्लियत को बाक़ी रखता है। रंग सूखने के बाद अंतिम चरण में चमड़े में चमक लाने के लिए जेड पत्थर का इस्तेमाल करते हैं।
अच्छे चमड़े की पहचान यह है कि अगर उसकी सही ढंग से टैनिंग हुयी होती है तो वह आसानी से आग नहीं पकड़ता और जलने की स्थिति में उससे जले हुए बाल की महक आती है जबकि भीगने की स्थिति में उससे बदबू नहीं आती, फूलता नहीं है, बदन की बदबू उसमें नहीं समाती, उसे रखने के लिए विशेष देखभाल की ज़रूरत नहीं पड़ती और वर्षों उसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

पारंपरिक तरीक़े से चर्म के उत्पादन में 3 महीने का वक़्त लगता है यहां तक कि खाल चर्म में बदल जाए। आज के दौर में मशीनों के ज़रिए काम की गुणवत्ता भी बहुत बेहतर हुयी है और वक़्त भी बहुत कम लगता है।
ईरान में बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों के दौरान तबरीज़ और हमदान शहरों में चर्म बनाने के कारख़ाने लगे जिससे ईरान खाल को चर्म बदलने की पारंपरिक शैली से बाहर निकला। समय बीतने के साथ चर्म बनाने की इकाइयां बढ़ती गयीं। आज तेहरान, तबरीज़, हमदान और मशहद जैसे शहरों के बाहर चर्म उत्पादन के कारख़ाने चल रहे हैं हालांकि ये शहर विगत से ईरान में चर्म उत्पादन के ध्रुव के रूप में पहचाने जाते रहे हैं। इन कारख़ानों में से कुछ अपने शहर के नाम पर अपने उत्पाद को देश भीतर और विदेश के बाज़ार में बेचते हैं जैसे तबरीज़ का चर्म या मशहद का चर्म। ईरान में चर्म उत्पाद का निर्यात करने वाली दसियों कंपनियां हैं। ईरान में सालाना 20 लाख भारी खाल का उत्पादन होता है। इनसे जैकेट, हैंड बैग, जूते, बिछौना, सोफ़ा इत्यादि बनाए जाते हैं।

ईरान हल्की खाल के उत्पादन में दुनिया के तीन मुख्य देशों में है। प्राचीन समय से ईरानी पशुओं के चर्म हल्के होने के कारण दुनिया भर में मशहूर रहे हैं। इस तरह ईरान हल्के चर्म के उद्योग के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में है। ईरान में सालाना 2 करोड़ 20 लाख खाल से लगभग 10 करोड़ वर्ग फ़ुट चर्म का उत्पादन होता है कि इसका 80 फ़ीसद से ज़्यादा हिस्सा निर्यात होता है। यद्यपि ईरानी कच्चे चर्म उत्पाद की दृष्टि से दुनिया में बेहतर स्थिति में थे लेकिन इस उद्दोग में सक्रिय लोगों की कोशिश है कि इसके उत्पादन के पूरे क्रम को देश में अंजाम दें और तय्यार उत्पाद विश्व बाज़ार में भेंजे क्योंकि टैनिंग में हर अगले चरण में उत्पाद का मूल्य पिछले चरण की तुलना में 2 से 3 गुना बढ़ जाता है।