मार्गदर्शन-23
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ऐसे कृपालु व इमानदार व्यक्ति हैं जिनके शिष्टाचार, सज्जनता व बुद्धिमत्ता का दुश्मन भी लोहा मानते थे।
पैग़म्बरी पर नियुक्त होकर उन्होंने मुरझायी हुयी मानवता को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और आसमान से ज़मीन पर वह संपर्क स्थापित किया जिससे इंसान मानवता व अध्यात्म के चरण पर पहुंच सकता है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने पैग़म्बरी पर नियुक्त होते ही सबसे पहले एकेश्वरवाद की ओर लोगों को बुलाया। एकेश्वरवाद इंसान के सामने जीवन जीने की विशेष शैली पेश करता है कि जिसके परिणाम में लोक-परलोक का कल्याण हासिल होता है। एकेश्वरवादी व्यक्ति अपने जीवन के हर क्षण में ईश्वर को याद रखता है और अनंत शक्ति पर भरोसा करते हुए वह मानव समाज में मौजूद विभिन्न प्रकार की शक्तियों को कुछ नहीं समझता। इस तरह एकेश्वरवादी व्यक्ति अत्याचार को सहन नहीं करता बल्कि सम्मान व वीरता के साथ रहता है। ये सब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति की महा घटना के परिणामों का एक हिस्सा है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई एकेश्वरवाद को पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी का महा परिणाम बताते हुए कहते हैं, “ला इलाहा इल्लल लाह अर्थात कोई पूज्य नहीं सिवाए अल्लाह के, हमारे पैग़म्बर सहित सभी पैग़म्बरों का संदेश है। इसका अर्थ है कि हमारे जीवन में, इंसानियत के मार्ग में और जीवन की शैली के चयन में शैतानी व उद्दंडी शक्तियां हस्तक्षेप न करें और मानव जीवन वासनाओं का शिकार न हो। अगर एकेश्वरवाद अपने उस वास्तविक अर्थ में जिसकी इस्लाम ने व्याख्या की और सभी पैग़म़्बरों का यही संदेश था, मुसलमान समाज और मानव जीवन में उतर जाए, तो मानव जाति वास्तविक अर्थ में लोक-परलोक में मुक्ति हासिल कर लेगी, मानव जगत विकसित हो जाएगा, एक ऐसी दुनिया वजूद में आएगी जो इंसान के वास्तविक उत्थान में मददगार होगी।”
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी को मानव समाज में जागरण का स्रोत मानते हैं। उनका मानना है कि पैग़म्बरी ने आरंभ में हेजाज़ अर्थात मौजूदा सऊदी अरब का माहौल और फिर 24 साल के भीतर उस समय की पूरी दुनिया में माहौल को बदला।
वरिष्ठ नेता पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर नियुक्ति से पहले की सामाजिक व सांस्कृतिक स्थिति के बारे में कहते हैं, “पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी मानव जाति के लिए नए मार्ग का आरंभ थी। जिस जगह से पैग़म्बरी का संदेश फैला, उस जगह का माहौल बहुत ही बुरा व असहनीय था। दुनिया भौतिकता में डूबी हुयी और पाश्विकता से भरी थी, शक्तिशाली लोगों व धौंस धमकी देने वालों का प्रभुत्व था, दुनिया भेदभाव, भ्रष्टाचार, अत्याचार व वासना में डूबी हुयी थी।” यह स्थिति सिर्फ़ हेजाज़ से विशेष नहीं थी बल्कि उस समय की दो बड़ी सरकारें अर्थात ईरान में सासानी हुकूमत और रूमी साम्राज्य भी इसी मुश्किलों में ग्रस्त थीं।
पैग़म्बरी पर नियुक्ति से पहले के अंधकारमय दौर में, सभी क्षेत्रों में जो सऊदी अरब के आस-पास थे, ज्ञान व सभ्यता मौजूद थी, यहां तक कि राजशाही व्यवस्था थी और प्रोटोकाल का पालन होता था। देशों में अनुशासन भी था लेकिन जो चीज़ नहीं थी वह मानवता थी। वरिष्ठ नेता की नज़र में उस दौर में पूरी दुनिया में हर व्यक्ति और समाज का हर वर्ग ईश्वर को छोड़ उद्दंडियों व अत्याचारियों के शासन का आदी हो चुका था और वर्ग भेद व्याप्त था।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में कहते हैं, “उस समाज में न्याय का दूर-दूर तक पता न था। शक्तिशाली और अविवेकी सरदार लोगों के जान-माल पर क़ब्ज़ा किए हुए थे। पैग़म्बरे इस्लाम नैतिकता, सहनशीलता, क्षमाशीलता, न्याय और प्रेम का प्रचार करते थे लेकिन उस समय ये अच्छाइयां नाम मात्र भी नहीं थीं। समाज हिंसाग्रस्त, अविवेकी, बलपूर्वक बात मानने वाला, नैतिकता, अध्यात्म और ज्ञान से दूर, वासनाओं में डूबा, पक्षपात व निराधार बातों पर घमंड से भरा था। ऐसे जटिल माहौल में, जिसे पानी व हरियाली रहित मरुस्थल से उपमा दी जा सकती है, पैग़म्बरी का पौदा उगा। उस कठिन माहौल में 13 साल में विकसित हुआ और फिर इन तेरह साल के नतीजे में विज्ञान, न्याय, एकेश्वरवाद, अध्यात्म, नैतिकता व दानशीलता पर आधारित एक समाज व हुकूमत का गठन हुआ।”
जी हां, पैग़म्बरे इस्लाम ने बदलाव लाने वाली अपनी पैग़म्बरी से अपमानित समाज को सम्मानित समाज में बदल दिया, बर्बरता का स्थान भाईचारे ने ले लिया, पक्षपात का स्थान तर्क ने लिया, अज्ञानता का स्थान ज्ञान ने लिया और ऐसा ढांचा वजूद में आया जिसके आधार पर मुसलमान शताब्दियों तक दुनिया की सभ्यता पर छाए रहे और ऐसी सफलताएं हासिल कीं जिसकी इतिहास में मिसाल नहीं मिलती।
पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के बहुत से आयाम हैं। मानव जाति पर पैग़म्बरी के जो प्रभाव पड़े हैं वह एक दो नहीं हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई पैग़म्बरी के विभिन्न आयाम को अनेक बार बयान कर चुके हैं लेकिन उनका मानना है कि आज के दौर में पैग़म्बरी के दो आयाम बहुत अहम हैं। वह इन दोनों आयाम के बारे में कहते हैं, “आज मानवता को पैग़म्बरी के दो आयाम की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। एक नैतिकता और दूसरे विचार व चिंतन-मनन का आम होना। अगर यह दोनों चीज़ें व्यवहारिक हो जाएं तो मानवता की लंबे समय से चली आ रही इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। जैसा कि ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, जान लो कि मैं नैतिकता के चरणों को पूरा करने के लिए नियुक्त हुआ हूं। पवित्र क़ुरआन में भी आया है कि उसने अनपढ़ लोगों के बीच उन्हीं में से एक पैग़म्बर भेजा जो उसकी आयतों की तिलावत करता है और उनकी आत्मशुद्धि करता है। उन्हें क़ुरआन और तत्वदर्शिता की शिक्षा देता है। हालांकि वे लोग इससे पहले खुली गुमराही में पड़े थे। इस तरह पैग़म्बर इस्लाम की पैग़म्बरी का एक उद्देश्य शिक्षा देना व आत्मा की शुद्धि है, मनों को पाक करना है, नैतिकता को ऊंचाई पर पहुंचाना है। मानव जाति को मुसीबतों, नैतिक कमज़ोरियों और वासनाओं के गढ़े निकालना है।”
चिंतन-मनन भी महत्वपूर्ण व मौलिक विषय है। यह विषय सिर्फ़ पैग़म्बरे इस्लाम से विशेष नहीं है बल्कि सभी पैग़म्बरों को मानव जाति में चिंतन मनन की क्षमता विकसित करने के लिए भेजा गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के एक भाषण में इस बिन्दु की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “पैग़म्बरों को भेजा गया ताकि वह इंसान के मन के पटल पर बुद्धि के छिपे हुए ख़ज़ाने को उभारें।”
इस समय मानव जाति बहुत ज़्यादा भौतिकतवाद और असीमित वासनाओं में घिर कर सत्य के मार्ग को खो चुकी है और अंधकार में डूबी हुयी है। शायद ख़ुद भी नहीं जानती कि उसकी बीमारी का एलाज क्या है। वरिष्ठ नेता आत्मशुद्धि और चिंतन-मनन को मौजूदा दौर के इंसान की गुमराही का हल बताते हैं। वह कहते हैं, “आज हमें सबसे ज़्यादा आत्मशुद्धि, किताब व तत्वदर्शिता की शिक्षा, भीतर से बदलाव की ज़रूरत है। मन बुराइयों, घटिया सोच और वासनाओं से पाक हो जाए कि ये चीज़ें दुनिया को बुराई की तरफ़ ले जाती हैं। चिंतन मनन भी इसी तरह अहम है। हर इंसान में चिंतन मनन की अपार क्षमता छिपी हुयी है। जब हम विचार नहीं करते, अध्ययन नहीं करते, जब ईश्वर की निशानियों के बारे में नहीं सोचते, जब अपने इतिहास, भूतकाल, मानव जाति के सामने घटने वाली घटनाओं, विगत की मुश्किलों, राष्ट्रों की सफलता के तत्वों के बारे में चिंतन मनन नहीं करते तो उस आध्यात्मिक ख़ज़ाने से वंचित हो जाते हैं जिसे ईश्वर ने हमारे वजूद में रखा है।”
पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी का बहुत उच्च उद्देश्य था जिसे हासिल करना चाहिए। पैग़म्बरी उस संपूर्ण पैकेज की तरह है जिसमें अनगिनत बीमारियों की शिफ़ा है, सभी नैतिक, सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक मुश्किलें इसी पैकेज के नुस्ख़ों से ठीक होंगी। हमारा कर्तव्य है कि पैग़म्बरी के उद्देश्य को पाने की कोशिश करें। वरिष्ठ्र नेता इस बारे में बहुत ही रोचक बिन्दु की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “जब हम क़ुरआन में पैग़म्बरी के बारे में पढ़ते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम के आने से सभी इंसानों के मन पाक हो गए या पाक हो जाएंगे। जब हम यह कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम धर्म न्याय क़ायम करने, वंचितों को मुक्ति दिलाने, जीवधारी व निर्जीव मूर्तियों को तोड़ने के लिए आया है, तो इसका अर्थ यह नहीं है इस चमकते सूरज के निकलने के बाद लोगों पर अत्याचार नहीं होगा, उद्दंडता नहीं होगी और मानव जीवन से मूर्तियों का प्रभाव ख़त्म हो जाएगा। इसका अर्थ यह है कि पैग़म्बरी का उद्देश्य मानव जाति को मुक्ति देना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को जो चीज़ दी है वह स्वस्थ्य रखने वाला ऐसा नुस्ख़ा है कि हर दौर के लिए है। यह नुस्ख़ा इंसान की अज्ञानता को दूर करने वाला, अत्याचार व भेदभाव के मुक़ाबले में डट जाने वाला, शक्तिशाली के हाथों कमज़ोर वर्ग के दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाला ऐसा नुस्ख़ा है जो उन सभी पीड़ाओं को दूर कर सकता है जिसके कारण मानव जाति अपने वुजद के आरंभ से सिसक रही है।”