Apr १९, २०१७ १५:४८ Asia/Kolkata

ईरान को जौहरियों के छिपे हुए स्वर्ग के नाम से याद किया गया है।

 ऐसी ज़मीन कि भूविज्ञान की दृष्टि से इसकी विशेष संरचना के कारण इस भूमि के हर क्षेत्र में किसी न किसी क़ीमती रत्न की मौजूदगी की उम्मीद की जा सकती है। क़ीमती रत्न खदान से निकलने वाले पदार्थ में शामिल हैं। मानव जीवन में क़ीमती रतनों के चलन का इतिहास लगभग 6-7 हज़ार साल पुराना है। क़ीमती रतन प्राय उन खनिज पदार्थ को कहते हैं जो अपनी ख़ास विशेषताओं के कारण दूसरे पत्थरों व खदान से निकलने वाले अन्य पदार्थों से भिन्न होते हैं। सिवाए मोती और मूंगे के कि ये कार्बन के बने मूल्यवान रतन में गिने जाते हैं जबकि ज़्यादातर क़ीमती रतन पारदर्शी खनिज पदार्थ के होते हैं।

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मानव अपने जीवन के आरंभिक दिनों में अपने शरण स्थल की प्रकृति और संस्कृति के अनुसार, सीप, हड्डी के टुकड़ों, हाथी के दांत, दांत या पक्षियों के परों से आभूषण बनाता था। ऐसा लगता है कि इन लोगों का यह मानना था कि वे इस प्रकार के साधनों से ख़ुद को परालौकिक शक्ति के मुक़ाबले में सुरक्षित रख सकते हैं, मुसीबतों व बीमारियों से बचा सकते हैं और अपनी शक्ति व शारीरिक बल में वृद्धि कर सकते हैं। धीरे धीरे जादुई व उपचारिक विचारों से हट कर आभूषण के इस्तेमाल ने शख़सियत की पहचान, पारिवारिक चिन्ह, सामाजिक स्थान और संपत्ति से संपन्नता का आयाम धारण कर लिया। इस तरह से कि अगर कोई व्यक्ति आभूषण और विशेष प्रकार का चिन्ह इस्तेमाल नहीं करता था तो दूसरे उसे अहमियत नहीं देते थे।

ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मूल्यवान रतन श्रंगार के लिए इस्तेमाल होते थे। ये रतन लगभग सभी राष्ट्रों व जातियों के बीच प्रचलित थे।                

ईरानी भी उन राष्ट्रों में रहे हैं जो प्रकृति में मौजूद खनिज को इस्तेमाल करते और सुंदर पत्थरों से श्रंगार के साधन बनाते थे। शताब्दियों के ज्ञान व अनुभव से जो उन्होंने सीखा उसके आधार पर वे रतनों की पहचान के ज्ञान का आधार रखने वालों मे गिने जाने लगे। प्राचीन दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि ईरानी मूल्यवान रतनों व खनिजों को पहचानते थे। ईरानी वैज्ञानिक जैसे अबू रेहान बीरूनी (973-1048 ईसवी) जाबिर बिन हय्यान (आठवीं व नवीं ईसवी शताब्दी) मोहम्मद बिन ज़करिया राज़ी (नवीं व दसवीं ईसवी शताब्दी) और बू अली सीना (दसवीं व ग्यारहवीं ईसवी शताब्दी) खदान से निकलने वाले पदार्थों के एक दूसरे से मूल्यवान होने के बारे में जानते थे। रतनों की खुदाई, संगतराशी, रतनों को पहचानने का ज्ञान और इनका व्यापार उस समय बहुत होता था।

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मूल्यवान पत्थरों को उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में मूल्यवान व अर्ध मूल्यवान दो वर्गों में बांटा गया। हीरे, माणिक, नीलम और पन्ने जैसे पत्थरों को मूल्यवान रतनों की श्रेणी में रखा गया। ये रतन सोने की तरह सुंदर, टिकाउ और दुर्लभ होने के कारण मूल्यवान होते हैं। हीरा सबसे ठोस खनिज और कार्बन का पारदर्शी रूप है। माणिक और नीलम दोनों ही कोरंडम नामक खनिज के दो अलग रूप हैं। पन्ना बेरल नामक खनिज का एक रूप है जो क्वार्टस से ज़्यादा ठोस होता है।

ज़्यादातर अर्ध मूल्यवान पत्थर क्वार्टस खनिज के होते हैं। जैसे अक़ीक़, फ़ीरोज़ा, अमथिस्ट, अक्वामरीन, ज़र्कान और पुखराज इत्यादि। हर मूल्यवान पत्थर की अहमियत उसके सौंदर्य, ठोसपन, चमक, आकार, तराश और लोकप्रियता पर निर्भर है। कभी कभी अर्ध मूल्यवान पत्थरों की सुंदरता के कारण जैसे मैलाकाइट और ऐशर के लिए मूल्यवान रतनों जैसी क़ीमत अदा करनी पड़ती है। यही कारण है कि धीरे-धीरे मूल्यवान रतनों के व्यापार में मूल्यवान व अर्ध मूल्यवान जैसी शब्दावली अप्रासंगिक होती जा रही हैं।

मूल्यवान पत्थरों का व्यापार पिछले दशकों के दौरान संगतराशी व जेमालोजी के ज्ञान में विस्तार के कारण विश्व स्तर पर बहुत फैल चुका है। कुछ देशों में यह व्यापार इतने बड़े पैमाने पर है कि इसका सीधा असर कुछ देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इस वक़्त दुनिया में सालाना कई सौ अरब डॉलर मूल्य के मूल्यवान पत्थरों का नक़द व्यापार होता है। मूल्यवान रतनों में विभिन्न विशेषताएं पायी जाती हैं। इनमें से ज़्यादातर महत्वपूर्ण उद्योगों में उपयोग होते हैं। ये रतन ज़ेवर में इस्तेमाल होने के साथ साथ नैनों टेक्नालोजी, परमाणु परियोजनाओं, मेडिकल उपकरणों और अंतरिक्ष के टेलिस्कोप में इस्तेमाल होते हैं। इसी प्रकार इनमें से कुछ पत्थर उनकी उपचारिक विशेषताओं के मद्देनज़र जेम थ्रेपी में इस्तेमाल होते हैं। एलाज की इस शैली का इतिहास प्राचीन चिकित्सा से मिलता है और इसे पूरक उपचारिक शैली के तौर पर अहमियत हासिल है।                     

ईरान में भूविज्ञान व खदान की खुदाई करने वाली संस्था की यह ज़िम्मेदारी है कि वह खदान के क्षेत्र में मूल जानकारी हासिल करे और बड़े पैमाने पर खोज करे। यह संस्था 50 साल पुरानी है। उच्च प्रौद्योगिकी और दक्ष विशेषज्ञों से संपन्न होने के कारण यह संस्था भूविज्ञान के क्षेत्र में दुनिया की 8 सबसे बड़ी संस्थाओं में गिनी जाती है। इस संस्था ने मध्यपूर्व में भूविज्ञान का नक़्शा बनाया है। ईरान की भूविज्ञान संस्था के प्रयास से ईरान कम से कम 40 प्रकार के मूल्यवान पत्थरों से समृद्ध है इसलिए इस देश में रतन उद्योग की अपार संभावना पायी जाती है। क़ुम, ख़ुरासान, किरमान, हमेदान, इस्फ़हान, सेमनान और कुर्दिस्तान प्रांत में मूल्यवान पत्थरों की महत्वपूर्ण खदानें हैं। पंजीकृत खदानों में क़ुम में अक़ीक़ और निशापूर में फ़िरोज़े की खदान ज़्यादा मूल्यवान हैं। इस्लामी संस्कृति में अक़ीक़ और फ़िरोज़े को आध्यात्मिक अहमियत हासिल है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “अक़ीक़ की अंगूठी हाथ में पहनो कि यह बर्कत लाती है और इसे पहनने वाले व्यक्ति के अच्छे अंजाम की उम्मीद की जाती है।”

                    

क़ुम में स्थित अक़ीक़ की खदान में 5000 टन से ज़्यादा अक़ीक़ पत्थर मौजूद है। अब तक अक़ीक़ के 80 प्रकार के रंगों की पहचान हो चुकी है।

ईरान में फ़ीरोज़ा ख़ुरासान रज़वी, दक्षिणी ख़ुरासान, किरमान, यज़्द और सेमनान प्रांतों में पाया जाता है। ईरान में नीशापूर के फ़ीरोज़े को सबसे ज़्यादा मूल्यवान माना जाता है। नीशापूर ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में स्थित है और इस ज़िले का फ़ीरोज़ा पूरी दुनिया में मशहूर है। पर्शियन क्वालिटी शब्दावली ईरान के नीशापूर के फ़ीरोज़े के लिए इस्तेमाल होती है। नीशापूर के फ़ीरोज़े को दुनिया में फ़ीरोज़े की गुणवत्ता का मानदंड माना जाता है। दुनिया में फ़ीरोज़े की सबसे पुरानी खदानों में नीशापूर की खदान भी गिनी जाती है। इस खदान से हज़ारों साल से फ़ीरोज़ा निकाला जा रहा है। नीशापूर की खदान से निकले हुए फ़ीरोज़े से बनी सबसे पुरानी वस्तु एक गाय के बछड़े की मूर्ति है जो लगभग 7 हज़ार साल पुरानी है। यह मूर्ति इस समय तेहरान स्थित पुरातन म्यूज़ियम में रखी हुयी है।

इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि ख़ुरासान रज़वी में मौजूद मूल्यवान पत्थर दुनिया भर में मशहूर हैं। यही कारण है कि वर्ल्ड क्राफ़्ट काउंसिल ने ख़ुरासान रज़वी प्रांत के केन्द्र मशहद शहर को मूल्यवान पत्थरों के विश्वस्तरीय शहर का दर्जा दिया है।          

ईरान के राष्ट्रीय रतन म्यूज़ियम भी उन दर्शनीय स्थलों में है जिसे देखने के लिए दुनिया से सैलानी आते हैं। तेहरान स्थित राष्ट्रीय रतन म्यूज़ियम में दुनिया के सबसे मूल्यवान रतन रखे हुए हैं। दरियाए नूर नामक 182 कैरेट का हीरा, हीरे, पन्ने और माणिक से जड़ा तख़्त ताऊस, कुरे जवाहिर निशान नामक धरती का गोला भी रखा हुआ। यह गोला 34 किलो शुद्ध सोने से बना है। इसमें 51000 पन्ने, हीरे और याक़ूत जड़े हुए हैं। इस गोले में समुद्र, थल, महाद्वीप और भौगोलिक मार्ग को दर्शाया गया है। इसी प्रकार इस म्यूज़ियम में विभिन्न प्रकार के मुकुट जैसे ताज कियानी, नादेरी तख़्त, मोती रखने का बक्सा, सुनहरा ज़ारबंद, पन्ने के शोकेस, शाही तलवार और सैकड़ों सुंदर रतन रखे हुए हैं जिन्हें देखकर ईरानी कलाकारों की कलात्मक क्षमता का पता चलता है।