Sep १३, २०१५ १३:२५ Asia/Kolkata

सफलता और कामयाबी वह चीज़ है जो जवान के अंदर आवेग, प्रगति और उत्साह का कारण बनती है और इसके लिए दो शर्तें आवश्यक हैं।

सफलता और कामयाबी वह चीज़ है जो जवान के अंदर आवेग, प्रगति और उत्साह का कारण बनती है और इसके लिए दो शर्तें आवश्यक हैं। एक ज्ञान में वृद्धि और दूसरे जीवन की कठिनाइयों का मुकाबला करने की तत्परता। अपनी प्रकृति और समस्त आसमानी धर्मों के आधार पर इंसान का दायित्व है कि वह अपने ज्ञान पर भरोसा करके स्वयं को परिपूर्णता तक पहुंचाये।

 

 

ज्ञान के कारण इंसान स्वयं को हानियों व आघातों से बचाता है और सफलता के द्वार उसकी ओर खुलते हैं। इस मध्य जिन युवाओं के पास- सोच विचार की अधिक व मज़बूत शक्ति होती है उन्हें अपने जीवन के अनुभवों को पूरा करने के लिए बहुत अधिक जानकारी की आवश्यकता होती है ताकि वे सोच –विचार की अपनी वैचारिक शक्ति की सहायता से जीवन में प्रगति के मार्गों को पहचानें और पूरी गम्भीरता से इस दिशा में क़दम बढ़ाए। ज्ञान, जीवन की सुन्दरता है, वह जवान को सुसज्जित करता है और उसे दूसरों के निकट मूल्यवान दिखाता है। युवाकाल में ज्ञान से लाभ उठाना इंसान की प्रगति का सबसे बुनियादी तत्व है। इसी प्रकार ज्ञान एक विकसित, सभ्य और ऊज्वल समाज के लिए मूलभूत व आवश्यक तत्व है।

वास्तव में जवानों का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व ज्ञान प्राप्त करना है। इसी आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” युवाकाल में जो ज्ञान अर्जित किया जाता है वह पत्थर पर अंकित रेखा की भांति युवा के मस्तिष्क में बाक़ी रहता है।“ जवान अपने ज्ञान के कारण अपनी धार्मिक सोच को सही कर सकता है और बेहतर ढंग से अपने धर्म की सुरक्षा कर सकता है। जैसाकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” हे युवाओ! अपनी इज़्ज़त और व्यक्तित्व की सुरक्षा नैतिकता से और अपने धर्म की सुरक्षा अपने ज्ञान से करो।“

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी की शुरुआत से ही ऐसे काल समय का आरंभ किया जिसकी विशेषता अज्ञान पर ज्ञान की विजय थी। इसी आधार पर उन्होंने मस्जिद में जब दो गुटों को देखा कि एक गुट उपासना कर रहा था जबकि दूसरा शैक्षिक बहस कर रहा था तो वे शैक्षिक बहस करने वाले गुट के पास गये और अपने इस कार्य का कारण बताते हुए फरमाया कि मुझे ज्ञान सिखाने के लिए भेजा गया है।“

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ज्ञान के महत्व को इस प्रकार बयान करते हैं। मैं नहीं जानता कि जब रात को लोगों के लिए खाना लाया जाता है तो वे चेराग़ जला लेते हैं ताकि जो कुछ पेट में जाता है उसे देखें किंतु वे आत्मा के खाने पर ध्यान ही नहीं देते हैं और अपनी आस्थाओं व कर्मों के पापों के दुष्परिणामों से सुरक्षित रहें।“

यहां प्रश्न यह उठता है कि कौन सा ज्ञान जवान को सफल बनाता है और वास्तव में ज्ञान से भी बेहतर कोई चीज़ है?

 

 

 

इस संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने त्येष्ठ बड़े सुपुत्र हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से इस प्रकार सिफारिश करते हैं” मैंने ईश्वरीय किताब, उसकी ताविल, और इस्लाम की शिक्षाओं, आदेशों, हराम और हलाल की शिक्षा को तुम्हारे लिए आरंभ कर दिया है और तुम्हारे लिए यह कार्य करता रहूंगा।“

ज्ञान इंसान को स्वतंत्र लोगों के स्थान पर पहुंचाता है और उसके माध्यम से हराम से हलाल अलग होता है। ज्ञान का सीखना महान ईश्वर के निकट अच्छाई है, उसका पढ़ना तस्बीह व ईश्वरीय गुणगान है। उसके मार्ग में प्रयास, जेहाद है और जो व्यक्ति नहीं जानता है उसे सिखाना दान है। हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम भी इस बारे में फरमाते हैं” मैं इस बात को पसंद नहीं करता कि तुम्हारे जवानों को देखूं मगर यह कि दो हालतों में से एक या वे विद्वान हो या ज्ञान अर्जित करने की हालत में हों। अगर वे ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास न करे तो उन्होंने लापरवाही की है और अपनी आयु की तबाही का कारण बना है और अगर अपनी उम्र को तबाह करे तो उन्होंने पाप किया है और इस स्थिति में ईश्वर की सौगन्द कि जिसने मोहम्मद को सच्चाई के साथ भेजा है वे नरक में रहेंगे।“

 

 

इंसान को चाहिये कि वह उस ज्ञान को अर्जित करे जिसकी उसे और उसके समाज को आवश्यकता हो यहां तक कि वह दूसरों को भी सिखाने का प्रयास करे। ज्ञान इंसान की खोई हुई चीज़ है और उसे चाहिये कि वह लगातार उसे प्राप्त करने का प्रयास करे। पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसार जो लोग शिक्षा प्राप्त करते हैं फरिश्ते उनके पैरों के नीचे अपना पर बिछाते हैं। इसी प्रकार ज़मीन और आसमान यहां तक कि समुद्र की मछलियां भी इस प्रकार के व्यक्ति के लिए दुआ करती हैं और उसके लिए ईश्वर से क्षमा चाहती हैं। समाजशास्त्र की दृष्टि से भी अगर इंसान अपनी छोटी से उम्र में भी ज्ञान प्राप्ति की दिशा में क़दम बढ़ाता है तो वह समाज को प्रगति व कल्याण की ओर ले जा सकता है क्योंकि इंसान की रचना का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना और परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचना।

इस आधार पर यह उचित नहीं है कि इंसान अपनी पूरी उम्र भौतिक आवश्कताओं को प्राप्त करने में खर्च कर दे बल्कि उसे चाहिये कि वह लाभदायक ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करे।

 

 

जवान और नौजवान हर समाज की पूंजी एवं खजाने हैं और अगर शिक्षा और प्रशिक्षा से जुड़े लोगों ने इस वर्ग की प्रशिक्षा के लिए पूंजी निवेश कर दिया और सही दिशा में इस वर्ग का दिशा निर्देश कर दिया तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह वर्ग गुमराही से बच जायेगा। दूसरे शब्दों में अगर शिक्षा व प्रशिक्षा से जुड़े लोगों ने युवा वर्ग की प्रशिक्षा पर पूंजी लगा दी तो उन्होंने समाज और सामाजिक मूल्यों को पतन से बचा लिया।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कि जो जवान के दिल को खाली और खेती के लिए तैयार भूमि की तरह बताते हैं, स्वयं की नौजवानी व जवानी के समय को पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले कर दिया और ज्ञान प्राप्त करने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया। स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस प्रकार फरमाते हैं” मैं हमेशा पैग़म्बर के साथ रहता था जिस तरह से ऊंटनी छोटा सा का बच्चा अपनी मां से अलग नहीं होता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम भी प्रतिदिन मेरे समक्ष ज्ञान का एक नया द्वार खोलते थे प्रतिदिन मुझे अपने व्यवहार की नई शिक्षा देते थे और मुझसे चाहते थे कि उन्हें अपना आदर्श बनाऊं।“

 

 

ईरान एक इस्लामी देश होने के नाते इस्लाम, पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाओं को विशेष महत्व देता है। इसी आधार पर उसने जवानों द्वारा ज्ञान प्राप्ति की ओर विशेष ध्यान दिया है।

मरियम इस्लामी ईरान की एक आदर्श जवान महिला हैं। उन्होंने अपनी क्षमताओं और महान ईश्वर पर भरोसा करके ध्यान योग्य सफलताएं अर्जित की हैं। उन्होंने वर्ष २००५ में हड्डियों के उपचार के लिए एक्सटर्नल फिक्सेटर नाम का एक चिकित्सा उपकरण बनाया। इस उपकरण का प्रयोग हड्डियों विशेषकर कलाई के उपचार में होता है। उन्हें वर्ष २००८ में संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था wtpo की ओर से बेहतरीन आविष्कारक महिला की उपाधि दी गयी और स्वर्ण पदक तथा मानद उपाधि से उन्हें सम्मानित किया गया है। इसी प्रकार उन्हें दो हज़ार डालर भी इनाम स्वरुप भेंट किया गया।

मरियम इस्लामी जन्म शीराज़ नगर के एक धार्मिक व सांस्कृतिक परिवार में हुआ है। उसी नगर में इंटरमीडियट की डिग्री प्राप्त करने के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में उनका एडमिशन हुआ और वह इसी विषय में अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहती हैं। अब तक विश्व के विश्वस्त वैज्ञानिक केन्द्रों से मरियम इस्लामी के १० लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इस्लामी जगत की अध्ययन व शोध साइट isc के अनुसार गत १५ वर्षों में ईरान के वैज्ञानिक स्थान में तेज़ी से वृद्धि हुई है। १७ वर्ष पहले वर्ष १९९८ में वैज्ञानिक क्षेत्र में ईरान ५२वें स्थान पर था जबकि हालिया वर्षों में ईरान ने विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की है और वर्ष २०१३ में ईरान विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में १९वें स्थान पर पहुंच गया। यानी गत १५ वर्षों में ईरान ५२वें से १९वें स्थान पर पहुंच गया।

यही कारण है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई कहते हैं कि ईरानी युवा हर क्षेत्र में प्रगति कर सकते हैं। वे कहते हैं हर वैज्ञानिकी और तकनीकी कार्य जिसका आधारभूत ढांचा मौजूद हो, ईरान, ईरानी जवान और ईरानी मेधावी अंजाम दे रहे हैं।