Sep २७, २०१५ १४:३१ Asia/Kolkata

युवावस्था इंसान के जीवन का स्वर्णिम दौर है, इसलिए कि इस दौरान ऊर्जा और शक्ति किसी भी दौर की तुलना में अधिक होती है

युवावस्था इंसान के जीवन का स्वर्णिम दौर है, इसलिए कि इस दौरान ऊर्जा और शक्ति किसी भी दौर की तुलना में अधिक होती है, युवा अपनी शक्ति के चरम पर होता है। वैचारिक क्षमता, समीक्षा की क्षमता, समस्याओं के समाधान की क्षमता और नए नए समाधानों को पेश करना युवावस्था में अपने चरम पर होती है। इसका असर इंसान के जीवन के अंत तक बाक़ी रहता है। युवावस्था की इन विशेषताओं की उपेक्षा और उम्र का यूं ही बीतना, जीवन पर घातक प्रभाव छोड़ता है।

 

 

दूरदर्शिता का एक स्पष्ट उदाहरण, काम और उचित रोज़गार के लिए युवा का प्रयत्न करना है, इसलिए कि युवा अपने विचार, बाज़ूओं की ताक़त और पूंजी से अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है और उसकी सफलता की कुंजी प्रयास और प्रयत्न है। ईरान के वरिष्ठ नेता युवाओं के काम के महत्व के बारे में कहते हैं, युवाओं की ख़ुशहाली काम करने में है, युवा को काम करना चाहिए। युवा जब काम करता है तो वह स्वयं ख़ुश रहता है और उस वृक्ष की भांति होता है, जिसके फल से अन्य लोग लाभ उठाते हैं। यानी स्वयं भी फलता फूलता है और दूसरे भी लाभ उठाते हैं। युवा अगर कोई काम प्राप्त नहीं कर पाता है तो स्वयं ख़ुश नहीं रहता और दूसरे भी उसके वजूद से लाभ नहीं उठा पाते हैं।

 

 

अध्ययनों के अनुसार, अगर इंसान को उसकी रुची का काम मिल जाता है तो उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है। मनोवैज्ञानिक मॉरिस रोज़नबर्ग का कहना है कि युवा का आत्मविश्वास इस बात पर निर्भर होता है कि समाज में उसका दूसरों के साथ लेन देन और काम कैसा है और उसकी लोकप्रियता कितनी है। वह युवा कि जिसके पास रोज़गार है, उसकी लोकप्रियता अधिक होती है और उसका आत्मविश्वास भी मज़बूत होता है।

 

 

वास्तव में युवा रोज़गार और अपने प्रयत्न से पहचान हासिल करता है। उसे अपनी ऊर्जा और ताक़त को सही दिशा प्रदान करनी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) सब लोगों के लिए काम की सिफ़ारिश करते हुए कहते हैं, तुम सब लोग काम करो और प्रयास करो, यह ध्यान रहे कि हर कोई एक काम के लिए पैदा किया गया है और वह उसे आसानी से अंजाम दे सकता है।

निःसंदेह रोज़गार युवा की बुनियादी ज़रूरत है और उसकी अन्य ज़रूरतों, विवाह, शिक्षा और घर की तरह है। रोज़गार, स्पष्ट रूप से इंसान के जीवन के स्तर पर प्रभाव डालता है। इसलिए रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना बहुत महत्वपूर्ण है। रोज़गार आमदनी का स्रोत है और बेरोज़गारी वंचित रहने की श्रेणी में आता है।

 

 

ऐसा समाज, जिसमें रोज़गार की सही व्यवस्था नही होती, संकटों से घिर जाता है और उसमें नैतिक, सामाजिक और आर्थिक बुराइयां पनपते लगती हैं। इसलिए इस्लाम में रोज़गार का महत्व आर्थिक दृष्टि के अलावा स्वस्थ समाज के तौर पर भी है।

 

युवाओं के लिए रोज़गार का महत्व और भी अधिक है। उचित रोज़गार आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा, मानसिक एवं सामाजिक रूप से भी प्रभावित करता है। समाजशास्त्री मानसिक स्वास्थ्य के लिए रोज़गार और उचित काम को बहुत सार्थक मानते हैं। बेरोज़गारी या किसी उचित काम का न मिलना युवाओं की उदासीनता और समस्या का कारण है। बेरोज़गारी व्यक्ति या समाज को केवल आर्थिक नुक़सान नहीं पहुंचाती है, बल्कि उससे पहुंचने वाला मानसिक नुक़सान कहीं बड़ा नुक़सान होता है। इसलिए कि बेरोज़गारी से इंसान की हौसियत गिरती है और उसके आत्मविश्वास को नुक़सान पहुंचता है। काम से इंसान की हस्ती मज़बूत होती है, सम्मान प्राप्त होता है और वह बहुत से ख़तरों से सुरक्षित रहता है।

 

 

इमाम मूसा काज़िम (अ) काम के प्रभावों के बारे में फ़रमाते हैं, लोगों से आशा तोड़ लेना और उनके धन की उपेक्षा करना और अपने काम एवं आय पर संतुष्ट रहना, इंसान के सम्मान और सज्जनता का कारण बनता है। ऐसा इंसान लोगों की नज़र में बड़ा होता है, अपने रिश्तेदारों के बीच सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और परिवार में उसका रौब और दबदबा होता है। वे अपने और दूसरों के निकट आवश्यकता मुक्त होता है।

 

 

रोज़गार प्राप्त करने और उचित काम के महत्वपूर्ण परिणाम निकलते हैं। शहीद मुतहरी की नज़र में काम एकाग्रता और विचारों पर निंयत्रण का कारण बनता है, अर्थात अगर आप मन को किसी काम में नहीं लगायेंगे तो वह आपको स्वयं में व्यस्त कर लेगा। इसी प्रकार पापों से दूरी का कारण बनता है। इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) जब भी किसी व्यक्ति को देखते थे, उससे पूछते थे, तुम्हारे पास कोई काम है या नहीं? अगर वह कहता था मेरे पास कोई काम नहीं है, बेरोज़गार हूं तो हज़रत फ़रमाते थे, तुम नज़रों से गिर गए, जब वह उसका कारण पूछता था तो फ़रमाते थे, अगर किसी के पास कोई काम या रोज़गार न हो तो वह अपने धर्म को दाव पर लगा देता है और उसे तबाह कर लेता है।

जो युवा आर्थिक रूप से अपने परिवार पर आश्रित होता है, रोज़गार प्राप्ति के बाद जब उसे पहली तन्ख़्वाह मिलती है तो उसकी मिठास उसे हमेशा याद रहती है। इसलिए कि उसे उसके प्रयासों का फल मिल गया है। स्वाधीनता का आभास, एक ऐसी महत्वपूर्ण ज़रूरत है कि युवा प्रयास और काम द्वारा इसकी आपूर्ति कर सकता है।

 

 

इस दौर में एक दूसरी महत्वपूर्ण मानसिक ज़रूरत अपनी पहचान हासिल करना या उसके लिए प्रयास करना है। युवा कि जो अपने जीवन के सबसे संवेदनशील दौर से गुज़र रहा होता है, अपनी पहचान प्राप्त करने की खोज में रहता है। वह चाहता है कि अपनी एक पहचान बनाए और उसके आधार पर समाज और परिवार में पहचाना जाए। काम और रोज़गार से जवान को अपनी पहचान हासिल करने में सहायता मिलती है और उसे असमंजस की स्थिति से बाहर निकालती है।

 

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे। उन्होंने एक स्वस्थ एवं शक्तिशाली युवक को देखा कि जो सुबह सवेरे अपने काम में व्यस्त हो गया। जो लोग वहां उपस्थित थे उनमें से किसी ने कहा कि अगर यह युवा अपनी शक्ति और ताक़त को ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करता तो बेहतर था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उसके जवाब में कहा, ऐसी बात नहीं है। अगर यह युवा अपनी आजीविका के लिए कोशिश कर रहा है ताकि दूसरों का मोहताज न रहे तो इस प्रकार वह ईश्वर के मार्ग में ही क़दम उठा रहा है। इसी प्रकार अगर वह अपने बूढ़े मां-बाप या बच्चों के लिए काम कर रहा है ताकि उन्हें लोगों का मोहताज न होना पड़े तो भी ईश्वर के मार्ग में आगे बढ़ रहा है, लेकिन अगर वह इसलिए काम कर रहा है ताकि अपनी आय से निर्धनों पर रौब झाड़े या अपने धन में वृद्धि करे तो वह शैतान के मार्ग पर जा रहा है और सत्य से भटक गया है।

 

 

किसी विशेष काम या पेशे से जुड़ना, इंसान को भौतिक सुविधा एवं मानसिक संतुष्टि तो पहुंचाता ही है, उसकी प्रगति में भी उसकी सहायता करता है और उसके जीवन के स्तर को अच्छा करता है। वास्तव में युवा जो आज अंजाम देते हैं, वह भविष्य में हमारी अर्थव्यवस्था का आधार बनता है। काम और व्यवसाय से युवाओं की प्रतिभा निखरती है। उनके जीवन का स्तर बेहतर होता है और इस प्रकार की परिस्थितियों के लिए भूमि प्रशस्त होती है कि वह सक्रिय रूप से समाज में अपनी भूमिका निभा सके। इसलिए रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। अच्छे रोज़गार से परिवार औऱ समाज की आर्थिक स्थिति मज़बूत बनती है, इस तरह से कि जब युवा काम करते हैं तो आर्थिक विकास होता है और समाज में ग़रीबी कम होती है। समाज में रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं, निवेश के लिए भूमि प्रशस्त होती है, और कुल मिलाकर रोज़गार के अवसर बढ़ते हैं। यही कारण है कि जो मनोवैज्ञानिकों की नज़र में रोज़गार युवाओं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में सहायक होता है।