मूसिल में दाइश की सरकार के भयानक परिणाम (१) ।
इराक में आतंकवादी संगठन दाइश की तथाकथित खिलाफत और सरकार, मूसिल पर इराकी सेना के क़ब्ज़े के साथ ही खत्म हो गयी लेकिन यह शासन और यह खिलाफत, मूसिल और इराकी जनता के लिए बहुत मंहगी साबित हुई।
इराक में दाइश के तीन वर्षीय भयानक काल का सब से अधिक दुखदायी पहलु, इराक के विभिन्न क्षेत्रों में मानवता के खिलाफ अपराध रहा है।
"मानवता के खिलाफ अपराध" की परिभाषा सब से पहले सन 1915 में ब्रिटेन, फ्रांस और रूस की ओर से इस्तेमाल की गयी और इन देशों ने यह शब्द तुर्की की तत्कालीन सरकार द्वारा आर्मीनियाई जनसंहार की आलोचना में इस्तेमाल किया गया था। सन 1945 में पहली बार नूरनबर्ग न्यायालय में " मानवता के विरुद्ध अपराध" के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गयी। नूरनबर्ग अदालन के घोषणापत्र के अनुसार, युद्ध से पहले या बाद में जनसंहार, विनाश, दास बनाना, देश निकाला देना तथा इसी प्रकार विशेष राजनीतिक, धार्मिक या जातीय समुदाय को निशाना बनाना, " मानवता के विरुद्ध अपराध" की श्रेणी में है। भूतपूर्व योगोस्लाविया की अंतरराष्ट्रीय अदालत के घोषणापत्र के पांचवें अनुच्छेद में भी " मानवता के विरुद्ध अपराध" को परिभाषित किया गया है और नूरनबर्ग की अदालत के घोषणा पत्र में जिन अपराधों का उल्लेख किया है उनके अलावा इस घोषणापत्र में, क़ैद में रखने, यातना देने और बलात्कार को भी " मानवता के विरुद्ध अपराध" की श्रेणी में रखा गया है लेकिन " मानवता के विरुद्ध अपराध"की सब से महत्वपूर्ण परिभाषा, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के घोषणापत्र के सातवें अनुच्छेद में इस तरह से की गयी हैः
" मानवता के विरुद्ध अपराध से आशय निम्न लिखित कार्यवाहियां हैं जो संगठित रूप से असैनिकों के खिलाफ एक व्यापक हमले में की जाएं और हमला करने वालों को इसका ज्ञान भी हो " वह कार्यवाहियां इस प्रकार यह हैंः
- हत्या
- जातीय सफाया जैसे किसी विशेष समुदाय को जड़ से खत्म करने के लिए उन्हें खाने पीने और दवा से वंचित करना।
- दास बनाना।
- किसी एेसे समुदाय को ज़बरदस्ती किसी इलाक़े से बाहर निकालना जहां वह क़ानूनी तरीक़े से रह रहे हों और उनको वहां से खदेड़ना अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन हो।
- अंतरराष्ट्रीय नियमों के विपरीत किसी क़ैद करना या उसे शारीरिक आज़ादी से वंचित करना।
- यातना देना
- बलात्कार, यौन शोषण, ज़बरदस्ती वेश्यावृत्ति, गर्भ धारण करने पर मजबूर करना, ज़बरदस्ती बांझ बनाना या किसी भी प्रकार की शारीरिक हिंसा।
- राजनीतिक, जातीय, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, धार्मिक या लैंगिक कारणों से किसी विशेष समूदाय को परेशान और दंडित करना।
- अपहरण
- नस्ली भेदभाव
- आम नागरिकों पर संगठित व व्यापक हमला
- किसी व्यक्ति को भारी शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुंचाने के लिए जानबूझ कर किया जाने वाला हर काम
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के घोषणापत्र के सातवें अनुच्छेद में जो कुछ " मानवता के विरुद्ध अपराध"के रूप में आया है इराक में तीन वर्षों के अपने शासन के दौरान दाइश ने वह सब कुछ किया है। दाइश ने मूसिल में मानवता के विरुद्ध अपराध का अत्यन्त भयानक रूप दिखाया और इसी तरह इराक़ के दूसरे इलाकों में भी बार-बार इस तरह के अपराधों को दोहराया यह सब कुछ निश्चित रूप से मानवता के विरुद्ध अपराध था लेकिन " मानवता के विरुद्ध अपराध" का यह रूप शायद ही विश्व में किसी ने पहले देखा हो। लोगों को लाइन में खड़ा करके उनके सिर में गोली माना, पिंजरे में बंद करने ज़िन्दा जलाना, बिजली के आरे से इन्सानों को काटना, सिर काटना और जिन्दा दफ्न कर देना वह अपराध हैं जो दाइश ने इराक़ी जनता के हक़ में किये हैं।
इराकी नागरिकों को दाइश के आतंकवादियों ने यातना भी इस प्रकार से दी हैं कि जिन पर इन्सानियत कांप जाती है। हाथ पैर काटना और अंधा कर देना भी इन यातनाओं में शामिल है। दाइश के आतंकवादियों ने इराक़ में अपनी उपस्थिति दौरान इराकी महिलाओं और लड़कियों का व्यापक स्तर पर अत्याधिक हिंसक रूप में यौन शोषण किया और आज दाइश के आतंकवादियों द्वारा सामूहिक व व्यक्तिगत बलात्कार के नतीजे में पैदा होने वाले बच्चे इराकी समाज के लिए एक समस्या बन चुके हैं। यह बच्चे अपनी मांओं को पहचानते हैं लेकिन उनकी माएं उन्हें उनके पिता के बारे में कुछ नहीं बता सकतीं।
किसी इलाक़े से ज़बरदस्ती भगाना भी " मानवता के विरुद्ध अपराध" की श्रेणी में है और इराक में अपनी उपस्थिति के दौरान दाइश के आतंकवादियों ने व्यापक स्तर पर यह अपराध किया है। ईज़दी समुदाय के लोगों को जिस तरह से दाइश ने निशाना बनाया है वह इस प्रकार के अपराध का अत्याधिक भयानक रूप है। दाइश के आतंकवादियों ने सन 2014 के अगस्त के महीने में इराक़ " सेन्जार" इलाक़े पर हमला किया। यह ईज़दी समुदाय के लोगों का क्षेत्र था। इस क्षेत्र पर हमले के बाद दाइश के आतंकवादियों ने पुरुषों को मार डाला और महिलाओं और लड़कियों को बंदी बना लिया, इन आतंकवादियों के हाथ से जान बचा कर भागने वालों ने सेन्जार के पहाड़ों में शरण ली जहां बहुत से लोग, भूख और प्यास से मर गये। इस भयानक त्रासदी की रिपोर्ट मीडिया में आयी और फोटो व वीडियो क्लिप दिखाए गये जिससे पूरी दुनिया में दाशइ की दहशत फैल गयी और दाइश का एक मक़सद पूरा हो गया।
दाइश ने इसी प्रकार इन्सानों को ढाल के रूप में प्रयोग करने घिनौना अपराध भी किया है। दाइश के आतंकवादी जहां भी इराक़ी सैनिकों के घेरे में फंस जाते वहां से निकलने के लिए वह इराकी नागरिकों को मानव ढाल के रूप में प्रयोग करते थे जिसकी वजह से मारे जाने वाले इराकी नागरिकों की संख्या में काफी वृद्धि हुुयी।
दाइश के आतंकवादी भय व आतंक फैलाने के लिए भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में धमाके करते थे जो मारे जाने वाले इराकी नागरिकों की संख्या में वृद्धि की एक अन्य वजह है।
इराक़ में तीन वर्षों तक दाइश की तथाकथित खिलाफत के दौरान मारे जाने वाले लोगों की सही संख्या का तो पता नहीं है कि जूलाई सन 2017 में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह ज़रूर बताया गया है कि इराक़ में दाइश की तीन वर्षों की उपस्थिति के दौरान 1075 बच्चे मारे गये। इसके अलावा 1130 बच्चे शरीर के किसी अंग से वंचित या घायल हुए। सन 2016 के अंत तक चार करोड़ तीन लाख लोग, युद्ध की वजह से अपने की देश में बेघर हुए जिनमें से तीन करोड़ इराक़ी थे जो दाइश के आतंकवादियों की वजह से विस्थापित हुए थे। केवल सन 2016 में ही छे लाख साठ हज़ार इराक़ी घर छोड़ने पर मजबूर हुए।
इराक़ के बहुत से क्षेत्रों पर दाइश के तीन वर्षों के क़ब्ज़े के दौरान " इन्सानियत की मौत" हुई और शायद आागामी कई पीढ़ियां भी इस तरह से भयानक अपराध न देखें। काश दुनिया में इतना इन्साफ होता कि वह इस तरह के भयानक जुर्म करने वालों और उनके समर्थकों को अदालत में खड़ा करती और उनसे यह अहम सवाल पूछती कि दाइश को पैदा और उनका समर्थन करके तथा इन्सानियत को इस तरह से शर्मसार करके वह कौन सा मक़सद पूरा करना चाहते?