आतंकवाद से मुक़ाबले में ईरान की भूमिका।-1
निःसन्देह, आतंकवाद वर्तमान विश्व की ज्वलंत समस्या है।
इसके मुक़ाबले के लिए वैसे प्रयास तो किये जा रहे है किंतु विभिन्न देशों की ओर से आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के बारे में जो नीति अपनाई जा रही है उसके कारण आतंकवाद से संघर्ष का विषय जटिल समस्या में बदलता जा रहा है। वर्तमान समय में विश्व के अलग-अलग भागों में कुछ एसी अप्रिय एंव दुखद घटनाएं घट रही हैं जो आतंकवाद के बारे में अपनाए जाने वाले दोहरे मानदंडों का ही परिणाम हैं। वास्तविकता यह है कि कुछ देश अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से आतंकवाद के बारे में दोहरा मानदंड अपनाए हुए हैं।
यदि हम इस बारे में सोचें तो हमारे मन में दो प्रश्न उठते हैं। एक यह कि आतंकवाद से मुक़ाबले में अन्तर्रष्ट्रीय स्तर पर क्या कुछ कमियां हैं जिनके कारण यह अभिषाप तेज़ी से फैल रहा है? या यह कि इस संबन्ध में कुछ और चुनौतियां हैं जो आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष से संबन्धित अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के लागू होने में बाधा बन रही हैं। ये वे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हम कार्यक्रम में ढूंढने के प्रयास करेंगे।
ऐसे में कि जब वैश्वीकरण की बातें हो रही हैं और संसार सिकुड़ता जा रहा है, उसे आतंकवाद जैसी बुराई का इतने व्यापक स्तर पर सामना है जितना इससे पहले कभी भी नहीं रहा। अनियंत्रित आतंकवाद, इस समय पूरी मानवता के लिए ख़तरे में परिवर्तित हो चुका है। इस बढ़ते आतंकवाद के कारण मनुष्य बहुत से स्थानों पर सुरक्षा जैसे अपने मौलिक अधिकारों से वंचित होता जा रहा है। इसी आतंकवाद ने सरकारों के बीच मैत्रीपूर्ण संबन्धों को ख़तरे में डाल दिया है। देशों की संप्रभुता के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। आतंकवादियों की कार्यवाहियों से अब कोई व्यक्ति, गुट, देश, समाज, स्थान या क्षेत्र सुरक्षति नहीं बचा है। इसका एक कारण यह भी है कि आतंकवाद को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है। आतंकवाद को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया जिसके कारण उसके विरुद्ध संघर्ष करने में समस्याएं आ रही हैं।
इस समय आतंकवाद कोई राष्ट्रीय ख़तरा नहीं रहा है बल्कि एक अन्तर्राष्ट्रीय ख़तरा बन चुका है। आतंकवादी, विदेश में सैन्य प्रशिक्षण लेते हैं। विदेश से ही उनको आदेश दिये जाते हैं। विदेश से ही उनको हथियार भेजे जाते हैं। फिर आतंकवादी कार्यवाहियां करने के बाद वे अपने सरंक्षकों के बताए स्थानों पर छिप जाते हैं। आतंकवाद के बारे में दोहरे मानदंडों को इस समय स्पष्ट रूप में पूरे संसार में देखा जा सकता है। उदाहरण स्वरूप पश्चिमी देशों की ओर से प्रतिबंधित हथियारों का, आतंकवाद के समर्थकों को बेचा जाना जैसे ज़ायोनी शासन और सऊदी अरब। सीरिया, इराक़, यमन, अफ़ग़ानिस्तान और इसी प्रकार के देशों में आतंकवाद का समर्थन करने वालों के पिट्टठुओं की कार्यवाहियां। इन देशों में आतंकवादी कार्यवाहियों के कारण हज़ारों लोग मारे गए और लाखों घायल हुए। आतंकवादी कार्यवाहियों ने ही न जाने कितने लोगों को अपने घर छोड़कर पलायन करने पर विवश किया। यह लोग अलग अलग देशों के शरणार्थी शिविरों में बहुत ही बुरी परिस्थितियों में रह रहे हैं। अगर हम ग़ौर करें तो इस परिणाम तक पहुंचेंगे कि पश्चिम विशेषकर अमरीका, अपने वर्चस्ववादी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आतंकवादी गुटों के समर्थन को वरीयता देता है।
इस दौर में, जिसे तरक़्क़ी और विकास का दौर कहा जाता है, तकनीकी और वैज्ञानिक उपलब्धियों का दुरूपयोग करते हुए उन्हें आतंकवाद के विस्तार में प्रयोग किया जा रहा है। जिन चीज़ों को मानव विकास और प्रगति के लिए प्रयोग किया जाता है उसी का दुरूपयोग करते हुए आतंकवादी उन्हें आतंकवाद फैलाने के लिए कर रहे हैं जैस मोबाइल, इन्टरनेट, कम्प्यूटर और इसी प्रकार की अन्य आधुनिक चीज़ें। इन्ही चीज़ों का प्रयोग करके आतंकवादी अलग-अलग स्थानों पर जब भी चाहते हैं आतंकवादी कार्यवाहियां करते हैं।
आतंकवादियों द्वारा की जाने वाली आतंकवादी कार्यवाहियों के दुष्परिणामों का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकवादी गुट दाइश ने सन 2016 में विश्व के विभिन्न हिस्सों में 1141 आतंकवादी हमले किये। इस प्रकार से दाइश के आतंकवादियों ने हर महीने औसतन 95 आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दीं। एक पुष्ट रिपोर्ट के अनुसार सीरिया और इराक़ में आतंकवादी कार्यवाहियां करने के लिए दुनिया के 100 देशों के 30000 आतंकवादी गए थे जिनमें से बहुत से अब भी इन देशों में मौजूद हैं।
इस प्रकार से कहा जा सकता है कि आतंकवाद की कोई सीमा नहीं है और उसे किसी देश तक सीमित नहीं किया जा सकता। यह वह बुराई है जो पूरी मानवता के लिए ख़तरा बन चुकी है और इसने आदमी से चैन और सुकून छीन लिया है। एसे में कहा जा सकता है कि आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए राष्ट्रीय नहीं बल्कि वैश्विक संकल्प की ज़रूरत है। यह एसा संघर्ष है जिसमें हर प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुट होकर काम करना होगा।
बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि आतंकवाद से मुक़ाबले में पश्चिम का व्यवहार खुल्लमखुल्ला दोहरे मानदंडों पर आधारित है। इसमें खुला विरोधाभास पाया जाता है। विडंबना यह है कि स्वयं पश्चिम को भी आतंवाद से ख़तरा है किंतु इसके मुक़ाबले के लिए उसने दोहरा मापदंड अपना रखा है। इससे पता चलता है कि पश्चिम, आतंकवाद से संघर्ष के विषय का प्रयोग एक हथकण्डे के रूप में कर रहा है। अफ़सोस इस बात पर है कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष की राग अलापन लगाने वाले ही इसमें बिल्कुल गंभीर नहीं है जबकि वे स्वयं को संघर्ष के ध्वजवाहक के रूप में पेश कर रहे हैं।
इस विषय को समझने के लिए हमें मध्यपूर्व पर एक नज़र डालनी होगी। मध्यपूर्व के कुछ देशों ने वर्चस्ववादी शक्तियों के साथ मिलकर पिछले तीन दशकों से पश्चिम एशिया को तनाव का केन्द्र बना रखा है। यही विषय इस क्षेत्र के अस्थिर होने और आतंकवाद के बढ़ने का कारण बना है। इस समय मध्यपूर्व, बारूद के ढेर में बदल चुका है। मध्यपूर्व के देशों में इस्लामी गणतंत्र ईरान वह देश है जिसने पिछले एक दशक से आतंकवाद के विरुद्ध गंभीरता से संघर्ष आरंभ कर रखा है। ग्लोबल टेरोरिज़्म इन्डेक्स की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार ईरान, आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में काफ़ी गंभीर है।
आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए विश्ववासियों को सबसे अधिक अपेक्षा संयुक्त राष्ट्रसंघ से है। उसको चाहिए कि वह पूरी गंभीरता के साथ उससे मुक़ाबला करे। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ही विश्व की वह सबसे महत्वपूर्ण संस्था है जो इस बारे में कुछ कर सकती है। सुरक्षा परिषद ने आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के बारे में कुछ प्रस्ताव पारित किये हैं जैसे प्रस्ताव क्रमांक 1267, 1373, 2178 और 2179 आदि। इन प्रस्तावों में प्रस्ताव क्रमांक 1373 विशेष महत्व का स्वामी है। इस प्रस्ताव में आतंकवाद से मुक़ाबला करने वाले देश के संबन्ध में बात कही गई है। सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव के अनुसार सुनियोजित या संगठित आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए तीन रास्ते अपनाए जा सकते है। पहलाः आतंकवादियों की संपत्ति ज़ब्त करना। दूसराः आतंकवादियों के लिए हथियार भेजने पर पाबंदी और तीसरेः आतंकवादियों की आवाजाही पर रोक।